World’s Angriest Country! दुनिया का सबसे गुस्सैल देश! ‘मिडिल ईस्ट के स्विट्जरलैंड’ का क्यों चढ़ा रहता है पारा?

World’s Angriest Country: गैलप की 2024 ग्लोबल इमोशन रिपोर्ट में एक देश ने एक अविश्वसनीय खिताब हासिल किया है और उसे आधिकारिक तौर पर दुनिया का सबसे गुस्सैल देश घोषित किया गया है। इसकी लगभग आधी (49%) आबादी ने गुस्से में रहने की बात कबूल की है।

मिडिल ईस्ट के इस देश में मौजूद ये भावनात्मक उथल-पुथल अलग-थलग नहीं है, बल्कि तुर्की और आर्मेनिया जैसे पड़ोसी देश भी इसी तरह हमेशा गुस्से में रहते हैं, जो इस क्षेत्र की सामूहिक संकट की तरफ इशारा करती है।

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तुर्की दूसरे स्थान पर है, जहां 48% नागरिक गुस्सा जताते हैं, उसके बाद आर्मेनिया तीसरे स्थान पर है। वहीं, भारी गुस्से में रहने वाले बाकी देशों में इराक, अफगानिस्तान, जॉर्डन, माली और सिएरा लियोन जैसे देश शामिल हैं। जबकि, गैलप की रिपोर्ट में, अल साल्वाडोर दुनिया का सबसे खुशहाल और सबसे आशावादी देश बनकर उभरा है, जबकि लेबनान को सबसे ज्यादा गुस्से में रहने वाला देश बताया गया है।

Gallup 2024: ग्लोबल इमोशनल रिपोर्ट

गैलप की ग्लोबल इमोशनल रिपोर्ट देशों की भावनात्मक स्थितियों में गहराई से उतरती है, जो उन अनुभवों को मापती है, जिन्हें जीडीपी जैसे आर्थिक संकेतक नहीं पकड़ पाते हैं। 142 देशों में लगभग 146,000 लोगों से बातचीत के आधार पर 2024 की ये रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें क्रोध, तनाव, चिंता और उदासी जैसी भावनाओं को ट्रैक किया गया है।

इस रिपोर्ट में लेबनान को सबसे गुस्सैल देश घोषित किया गया है, जो पिछले एक साल इजराइल और हिज्बुल्लाह के जंग से जूझ रहा है। लेबनान का सबसे क्रोधित राष्ट्र के रूप में स्थान, राजनीतिक अराजकता, आर्थिक पतन और सामाजिक उथल-पुथल से पीड़ित आबादी के संघर्ष को दर्शाता है। देश की लगभग आधी आबादी गुस्से और तनाव से पीड़ित है।

लेबनान – चौराहे पर खड़ा एक देश

भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर बसा लेबनान, मध्य पूर्व में एक छोटा लेकिन भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है। अपने समृद्ध इतिहास और जीवंत व्यापारिक परंपराओं के लिए जाना जाने वाला यह देश, लंबे समय से इस क्षेत्र के लिए एक वाणिज्यिक प्रवेश द्वार के रूप में काम करता रहा है।

लेबनान को 1970 के दशक की शुरुआत तक “मध्य पूर्व का स्विटजरलैंड” भी कहा जाता था, क्योंकि खाड़ी अरबों के लिए एक सुरक्षित बैंकिंग केंद्र, बर्फ से ढका एक अवकाश स्थल, एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, उच्च साक्षरता दर और राजनीतिक स्थिरता, सुरक्षा और शांति के रूप में इसकी अनूठी मौजूदगी थी।

लेकिन, फिर लेबनान अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से मध्य पूर्व में होने वाले संघर्ष के केन्द्र में आ गया। लेबनान की सीमा सीरिया और इजराइल के साथ मिलती है, जिसने इसे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। लेबनान ने एक वक्त दिल खोलकर शरणार्थियों का स्वागत किया, लेकिन आगे जाकर उन शरणार्थियों ने राजनीतिक ताकत हासिल की और फिर देश का इस्लामीकरण हो गया। अब यहां की एक बड़ी अबादी में शिया और सुन्नी मुसलमान, ईसाई शामिल हैं।

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अशांति में कैसे फंसता चला गया लेबनान?

1982 में हिज्बुल्लाह के उदय ने लेबनान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। एक वक्त ईसाई बहुल इस देश में मुस्लिम आबादी काफी तेजी से बढ़ी, जिसने यहां की राजनीति को बदल दिया और उसी का नतीजा हिज्बुल्लाह का गठन था, जिसने लेबनान को ईरान की कठपुतली बना दिया। ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने हिज्बुल्लाह को ट्रेनिंग दिया और हिज्बुल्लाह ने लेबनान में “देश के भीतर एक देश” बनाना शुरू कर दिया।

ईरानी फंडिंग लेबनान में कई मिलिशिया को जन्म दिया और देखते ही देखते, हिज्बुल्लाह, लेबनान की सेना से ज्यादा शक्तिशाली बन गया। हिज्बुल्लाह, अब देश की राजनीति में सबसे बड़ी ताकत बन गया।

1992 में ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के इशारे पर हिज्बुल्लाह ने लेबनान की संसदीय और नगरपालिका, दोनों चुनावों में सीटें हासिल करते हुए राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया। समय के साथ, इसने सीरिया समर्थक गुटों के साथ गठबंधन किया, जिससे लेबनान में सत्ता मजबूत हुई।

आज, हिजबुल्लाह की सैन्य शाखा, जिसे “लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध” के रूप में जाना जाता है, वो वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी और सबसे अच्छी तरह से सुसज्जित गैर-राज्य सैन्य बल है। इसकी ताकत के बारे में अनुमान अलग-अलग हैं और अमेरिकी सेना के अनुसार इसमें लगभग 40,000 से 50,000 लड़ाके हैं। वहीं, इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) का मानना ​​है कि इसकी संख्या 20,000 से 25,000 के बीच है, और इसके पास बड़ी संख्या में रिजर्व फोर्स भी है।

लेबनान की आर्थिक दुर्दशा

चल रहे संघर्ष ने लेबनान की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध की वजह से लेबनान को 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है, जिसमें अकेले बुनियादी ढांचे की क्षति 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। 2024 में लेबनान की अर्थव्यवस्था में 6.6% की गिरावट आने की उम्मीद है।

मानवीय लागत भी उतनी ही विनाशकारी है। संघर्ष ने महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग व्यक्तियों और शरणार्थियों सहित 875,000 से ज्यादा लोगों को विस्थापित किया है। इसके अलावा, इस संकट के कारण बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं। 166,000 लोग बेरोजगार हो गए, जिसके परिणामस्वरूप अनुमानित 168 मिलियन अमेरिकी डॉलर की इनकम का नुकसान हुआ।

हालांकि हाल ही में अमेरिका और फ्रांस की मध्यस्थता से इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच हुए युद्धविराम समझौते ने 12 लाख से ज्यादा विस्थापित लेबनानी लोगों के लिए घर लौटने का रास्ता खोला है। लेकिन, इस बात की उम्मीद ना के बराबर है, कि देश अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाएगा। देश को युद्ध और राजनीतिक पतन के वर्षों के बाद अपने बिखर चुके बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।