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आतंकियों का काल है ‘अस्मि’, सेना के बेड़े में शामिल हुईं 550 पिस्तौल; एक बार में करती है 33 राउंड फायर

भारतीय सेना ने आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए 550 स्वदेशी रूप से विकसित अस्मि मशीन पिस्तौल शामिल की हैं। यह 100% भारतीय निर्मित हथियार का पहला बैच है जिसे नजदीकी लड़ाई और विशेष अभियानों के लिए विशेष बलों को लैस करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। अस्मि पिस्तौल 100 मीटर तक सटीक निशाना लगा सकती है।

सेना के बेड़े में शामिल हुईं अस्मि पिस्तौल (AI द्वारा जारी चित्र- दाएं)

HighLights

  1. अस्मि पिस्तौल एक बार में 30 राउंड फायर करती है
  2. यह पिस्तौल पूरी तरह से मेड इन इंडिया है
  3. लेफ्टिनेंट जनरल एम. वी सुचिंद्र कुमार ने की समीक्षा

पीटीआई, जम्मू। जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आतंकी वारदातों पर दुश्मन को सबक सिखाने के लिए सेना ने कमर कस ली है। दहशतगर्दों के मंसूबों को नेस्तनाबूद करने के लिए जांबाजों के बेड़े में एक ऐसी पिस्तौल को शामिल किया है, जो पल भर में दुश्मन को ढेर कर देगी।

वजन में हल्की और कैरी करने में आसान व अनेकों खूबियों से लैस भारतीय निर्मित ‘अस्मि’ पिस्तौल सेना की उत्तरी कमान को मिल गई है। उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एम. वी सुचिंद्र कुमार ने शुक्रवार को नई शामिल की गई ‘अस्मि’ मशीन पिस्तौल की समीक्षा भी की। भारतीय सेना ने इस महीने की शुरुआत में उत्तरी कमान में 550 स्वदेशी रूप से विकसित अस्मि मशीन पिस्तौल शामिल की थीं।

टोटली ‘मेड इन इंडिया’ है ये पिस्तौल

खास बात है कि अस्मि पिस्तौल 100 फीसदी भारतीय निर्मित हथियार है। अस्मि को उत्तरी थिएटर में नजदीकी लड़ाई और विशेष अभियानों के लिए इस्तेमाल करना है। उत्तरी कमान में ऑपरेशनल तैयारियों को तेजी देने के लिए आधुनिक हथियार सेना के बेड़े में शामिल किए जा रहे हैं।

अस्मि पिस्तौल से आतंकियों पर लगाम कसना आसान हो जाएगा। भारत में निर्मित हथियार को शामिल करना भारतीय सेना की आत्मनिर्भर भारत के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस हथियार को भारतीय सेना के कर्नल प्रसाद बंसोड़ ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से विकसित किया है।

सब-मशीन गन भी है यह पिस्तौल

हथियार का निर्माण हैदराबाद में लोकेश मशीन्स लिमिटेड द्वारा स्वदेशी रूप से किया जा रहा है। सेना ने कहा कि पिस्तौल का अनूठा सेमी-बुलपप डिजाइन जवान को एक हाथ से संचालन करने को आसान बनाता है। यह पिस्तौल और सब-मशीन गन दोनों के रूप में कार्य कर सकती है।

विनिर्देशों के अनुसार इस बंदूकमें आठ इंच की बैरल और 9 मिमी गोला बारूद फायर करने वाली 33-राउंड मैगजीन है, उत्तरी कमान के परिचालन क्षेत्र में नजदीकी लड़ाई और विशेष अभियानों के लिए विशेष बलों को हथियार देने के लिए तैयार है।

क्या हैं ‘अस्मि’ की खूबियां

  • 100 मीटर तक सटीक निशाना लगा सकती है
  • एक मैगजीन 33 गोलियां आती है
  • मशीन पिस्टल के लोडिंग स्विच दोनों तरफ है, जिससे इसे पिस्टल भी बना सकते हैं और सब-मशीन गन भी।
  • यह गन पूरी तरह से ‘मेड इन इंडिया’ है
  • जवान इस गन को आसानी से छिपा भी सकता है

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China Tibet Dam: तिब्बत में तबाही, इको-सिस्टम बर्बाद, चीन के तीन बांध भारत के लिए कितने खतरनाक बने?

China Tibet Dam: चीन दुनिया का सबसे लापरवाह और बर्बादी लाने वाला देश बनता जा रहा है और वैज्ञानिकों की चेतावनियों को खारिज करते हुए उसने तिब्बत में माचू (पीली नदी) की ऊपरी पहुंच पर बड़े पैमाने पर जलविद्युत बांधों के निर्माण का काम शुरू कर दिया है। तिब्बत पर केंद्रित एक सहयोगी रिसर्च नेटवर्क, टर्कुइज रूफ की एक हालिया रिपोर्ट ने इन बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर गहरी चिंता जताई है।

पहली बार, चीन तिब्बत में हाइड्रोपावर डेम्स का निर्माण कर रहा है, जिसका मकसद एशिया की प्रमुख नदियों के स्रोतों को टारगेट करना है। रिपोर्ट में ऊपरी माचू नदी पर कम से कम तीन महत्वपूर्ण बांधों के निर्माण की बात कही गई है। चीनी भाषा में हुआंग हे के नाम से जानी जाने वाली माचू नदी को “चीन का शोक” भी कहा जाता है, क्योंकि ये नदी कई बार विनाशकारी बाढ़ की वजह बनी है।

यह क्षेत्र, जो पहले से ही भूकंप आने को लेकर अस्थिर रहा है, और जो जलवायु परिवर्तन के लिहाज से काफी संवेदनशील रहा है, वहां बांधों का निर्माण तबाही ला सकता है, बांधों का निर्माण काफी जोखिम पैदा करता है, फिर भी चीन इस नाजुक वातावरण में बांध बनाने का काम जारी रखे हुआ है, जो बताता है, कि दुनिया के लिए ये देश कितना ज्यादा खतरनाक बन चुका है।

पीली नदी कितनी महत्वपूर्ण है?

पीली नदी, जिसे तिब्बत में माचू नदी कहा जाता है, वो उत्तरी चीन में फैली एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है। चीन में इसे “मां नदी” के नाम से जाना जाता है, यह चीन की दूसरी सबसे लंबी नदी है और दुनिया भर में छठी सबसे लंबी नदी प्रणाली है।

पीली नदी, जिसे अक्सर “दुनिया की सबसे गंदी नदी” कहा जाता है, वो अपनी उच्च तलछट सामग्री के लिए कुख्यात है। इस भारी तलछट निर्माण ने इसे एक और उपनाम दिया है, “लटकती नदी”, क्योंकि जमा हुई गाद, नदी के किनारों को काफी ज्यादा भारी बनाती है।

समय के साथ, इस जमा गाद ने नदी को अपना रास्ता बदलने के लिए मजबूर किया है, जिसके परिणामस्वरूप बार-बार और विनाशकारी बाढ़ आती है। नदी का एक तिहाई से ज्यादा मार्ग तिब्बत में है, जहां यह उत्तरी तिब्बत में अमदो क्षेत्र में लगभग 2,000 किलोमीटर बहती है। ‘बायन हर पर्वत’ – तिब्बत-किंगहाई पठार (15,000 फीट) से उत्पन्न, पीली नदी सात चीनी प्रांतों से होकर पूर्व की ओर बहती है और किंगहाई, गांसु, निंगक्सिया, इनर मंगोलिया, शानक्सी, शांक्सी, हेनान और शेडोंग क्षेत्रों से निकलती है।

पीली नदी में तीन अलग-अलग धाराएं हैं: ऊपरी धारा जो पहाड़ी इलाके से होकर बहती है, मध्य धारा जो पठार से होकर बहती है, और निचली धारा जो निचले मैदान से होकर बहती है। भारी मात्रा में तलछट और अप्रत्याशित मार्ग के संयोजन की वजह से पीली नदी एक महत्वपूर्ण जलमार्ग और पर्यावरणीय खतरा दोनों बन गई है।

नदी के ऊपरी हिस्से में जलविद्युत बांध खतरनाक क्यों हैं?

Climate Change: चीनी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, कि तीव्र मानवीय गतिविधि और प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव ने पीली नदी के ऊपरी इलाकों में महत्वपूर्ण इको सिस्टम और पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। इन मुद्दों ने क्षेत्र की इको-सिस्टम सुरक्षा और बिजली आपूर्ति को खतरे में डाल दिया है।

बांधों की एक श्रृंखला, या फिर एक झरना बनाने के लिए और पानी को अगले बांध के तल तक पहुंचने के लिए जल स्तर को काफी ऊपर उठाना आवश्यक है। यह एक बार तेज गति से बहने वाली पहाड़ी नदी को मानव निर्मित झीलों की एक श्रृंखला में बदल देता है, जिनमें से प्रत्येक अपने ऊपर की ओर पड़ोसी बांध के खिलाफ दबाव वाली स्थित होती है।

लिहाजा, जलस्तर को बढ़ाने के लिए इन बांधों को दुनिया के सबसे ऊंचे बांधों में से एक होना चाहिए, जो 300 से 400 मीटर ऊंचे हों। यदि एक बांध फेल हो जाता है, तो एक भयावह प्रतिक्रिया हो सकती है और एक के बाद एक सभी बांध ढह सकते है, जिससे पानी की सुनामी आ सकती है।

पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र के लिए खतरा: तिब्बत में ऊंचाई पर बांध बनाने से एक और खतरा पैदा होता है, वो है पिघलता हुआ पर्माफ्रॉस्ट। तिब्बत का पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र आर्कटिक के बाहर सबसे बड़ा है, और इस अस्थिर जमीन पर निर्माण एक बड़ी चुनौती पेश करता है। चूंकि हर गर्मियों में पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है और सर्दियों में फिर से जम जाता है, इसलिए बदलती हुई उप-भूमि बांध की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।

इसके अलावा, तिब्बती पठार के 1.6 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मीथेन- ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली- वातावरण में उत्सर्जित होती है। चीन के पास इन मीथेन उत्सर्जनों से निपटने के लिए कोई स्पष्ट नीति या उपाय नहीं हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और भी गंभीर हो रहा है।

कोयला आधारित बिजली संयंत्र: चीन खुद को स्वच्छ ऊर्जा के लिहाज से काफी आगे बताता है, फिर भी यह दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। 2024 की पहली छमाही में, चीन ने नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के निर्माण में दुनिया का नेतृत्व किया।

अक्षय ऊर्जा स्रोतों की मौजूदगी के बावजूद, रिपोर्ट से पता चलता है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र क्षेत्र के पावर ग्रिड पर हावी हैं, जो जीवाश्म ईंधन पर चीन की लगातार निर्भरता को उजागर करता है। वहीं, बड़े पैमाने पर जलविद्युत परियोजनाओं की वजह से स्थानीय आबादी को क्षेत्र से भागना पड़ सकता है और पूरे क्षेत्र के जलवायु पर गंभीर असर पड़ता है।

इन प्रोजेक्ट्स से स्थानीय तिब्बती समुदायों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, माचू नदी पर बना पहला बड़ा बांध यांगखिल (यांग्कू) हाइड्रोपावर स्टेशन ने पूरे तिब्बती समुदाय को तबाह कर दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, घरों को जबरन ढहा दिया गया और एक मठ को भी नष्ट कर दिया गया, जिसे ध्वस्त करने से पहले संरक्षित विरासत सूची से हटा दिया गया था।

तिब्बती नदियों पर चीन का कब्जा

इससे पहले, जनवरी 2023 में, सैटेलाइट तस्वीरों ने पुष्टि की थी, कि चीन तिब्बत में माबजा जांगबो नदी पर एक नया बांध बना रहा है, जो भारतीय गंगा नदी की एक सहायक नदी है। यह नदी भारत, नेपाल और तिब्बत के त्रि-जंक्शन के पास स्थित है। मई 2021 में शुरू हुआ बांध का निर्माण इस त्रि-जंक्शन से लगभग 16 किमी उत्तर में, उत्तराखंड के कालापानी क्षेत्र के सामने स्थित है।

इस डेवलपमेंट ने नदी के निचले हिस्से के देशों, भारत और नेपाल के लिए महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा कर दी हैं, खासकर तब जब चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्रों में अपने सैन्य और दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढांचे को बढ़ा रहा है। जैसा कि टर्कुइज़ रूफ रिपोर्ट द्वारा उजागर किया गया है, पीली नदी के ऊपर की ओर चीन की जलविद्युत परियोजनाओं का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जो कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड, लाओस और म्यांमार जैसे देशों के किसानों और मछुआरों को प्रभावित करता है।

इन परियोजनाओं के दूरगामी परिणाम संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित बुनियादी ढांचे के विकास के जोखिमों को उजागर करते हैं। तिब्बत के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में यह आक्रामक बांध निर्माण, चीन की बुनियादी ढांचा विकास के पागलपन को दिखाता है, जो तबाही के रास्ते को खोलती है।

Hafiz Saeed: पाकिस्तान का 10 मिलियन डॉलर का इनामी आतंकी, मुंबई हमले का मास्टरमाइंड कभी आ पाएगा भारत?

Hafiz Saeed: हाफिज सईद, जिस पर अमेरिका और भारत ने 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड होने का आरोप लगाया है, वो अभी भी पाकिस्तान के सबसे खतरनाक कट्टरपंथियों में से एक है। पाकिस्तान में आए दिन जो बम धमाके होते रहते हैं, उस जिहादी मानसिकता को सींचने में हाफिज सईद जैसे कट्टरपंथियों का सबसे बड़ा हाथ है।

भारत इस हफ्ते 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले की 16वीं बरसी मना रहा है और उस भीषण आतंकवादी हमले को अंजाम देने में सबसे बड़ी भूमिका हाफिज सईद ने ही निभाई थी, लेकिन हैरानी की बात ये है, कि पाकिस्तान ने उसे आज भी भारत के हवाले नहीं किया है। आइये, फिर से जानने की कोशिश करते हैं, कि क्या भारत के सबसे बड़े गुनहगार को इंसाफ के कटघरे में लाया जा सकेगा?

लश्कर-ए-तैयबा का चीफ है हाफिज सईद

हाफिज सईद ने 1990 के दशक में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा (LeT) आतंकवादी समूह की स्थापना की और जब उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, तो उसने 2002 में एक बहुत पुराने संगठन, जमात-उद-दावा (JuD) को अपनी आतंकी हरकतों को आगे बढ़ाने के लिए फिर से जिंदा कर लिया। हाफिज सईद का कहना है, कि JuD एक इस्लामी कल्याण संगठन है, लेकिन अमेरिका का कहना है, कि यह LeT का मुखौटा है।

2012 में वाशिंगटन ने उसकी जानकारी देने वाले के लिए 10 मिलियन डॉलर के इनाम की घोषणा की थी, लेकिन इसके बाद भी वो सालों तक आजाद रहा और पाकिस्तान ने उसे सलाखों के पीछे तभी डाला, जब उसे लगने लगा, कि अब अमेरिकी खैरात मिलना उसे बंद हो जाएगा। पाकिस्तान ने उसे तब नजरबंद किया, जब डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान उसे लगा, कि अमेरिका उसके खिलाफ सख्त एक्शन ले सकता है और उसके बाद ही बाद में जाकर हाफिज सईद को आतंकवाद की फंडिंग के आरोपों में 78 सालों की सजा सुनाई गई।

लेकिन, आपको ये जानकर हैरानी होगी, कि मुंबई आतंकवादी हमलों के लिए पाकिस्तान में उसके खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं है।

2014 में एक इंटरव्यू में हाफिज सईद ने बीबीसी से कहा था, कि उसका मुंबई हमलों से कोई लेना-देना नहीं है, उसने अपने खिलाफ सबूतों को भारत का एक प्रोपेगेंडा बताया था।

उसने कहा था, कि “पाकिस्तान के लोग मुझे जानते हैं और वे मुझसे प्यार करते हैं। किसी ने भी इस इनाम को पाने के लिए अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश नहीं की। मेरी भूमिका बहुत स्पष्ट है, और अल्लाह मेरी रक्षा कर रहे हैं।”

हाफिज सईद पर कोई चार्ज नहीं

दिल्ली ने सईद और उसके संगठन पर अपने क्षेत्र में कई आतंकवादी हमले करने का आरोप लगाया है लेकिन आज तक पाकिस्तान ने यही कहा है, कि उसे गिरफ्तार करने और उस पर मुकदमा चलाने के लिए कोई सबूत नहीं है। 2001 में भारतीय संसद पर हमला करने के आरोप में लश्कर-ए-तैयबा पर आरोप लगने के बाद उसे तीन महीने तक हिरासत में रखा गया था। अगस्त 2006 में उसे ऐसी गतिविधियों के लिए हिरासत में लिया गया था, जिसके बारे में सरकार ने कहा था, कि वह अन्य सरकारों के साथ उसके संबंधों के लिए “हानिकारक” है, लेकिन बाद में उसे रिहा कर दिया गया।

हाफिज सईद को लेकर पाकिस्तान हमेशा से गेम खेलता रहा है। 2008 में मुंबई हमलों के बाद उसे घर में ही नजरबंद कर दिया गया था। और जब उसके ऊपर अमेरिका का भारी जबाव पड़ा, तो पाकिस्तानी सरकार ने बाद में कुछ मौकों पर कबूल किया, कि मुंबई पर हमले की साजिश का “कुछ हिस्सा” उसकी धरती पर हुआ था, और इसमें लश्कर-ए-तैयबा शामिल था।

हमलों के सिलसिले में पाकिस्तान में कई गिरफ्तारियां की गईं, लेकिन मोस्ट वांडेट आतंकवादी सईद के खिलाफ कोई आपराधिक आरोप नहीं लगाया गया।

पाकिस्तानी सेना ने हाफिज सईद को पाला

हाफिज सईद को लेकर पाकिस्तान अब कहता है, कि वो जेल में सजा काट रहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है, कि असल में उसे पाकिस्तान की सेना ने छिपाकर रखा हुआ है। पाकिस्तान की ओर से इस समूह के खिलाफ की गई कार्रवाई भी पूरी तरह से अनिश्चित रही है, जो जाहिर तौर पर, जो भी कार्रवाई की गई, वो बाहरी दबाव में की गई।

अमेरिका द्वारा लश्कर-ए-तैयबा को आतंकवादी संगठनों की सूची में डालने के बाद जनवरी 2002 में इसने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसी तरह, संयुक्त राष्ट्र द्वारा विवादास्पद चैरिटी पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अमेरिका ने दिसंबर 2008 में जमात-उद-दावा को राष्ट्रीय निगरानी सूची में डाल दिया था।

लश्कर-ए-तैयबा जमात-उद-दावा वल-इरशाद की एक शाखा थी, जो 1985 में अफगानिस्तान में जिहाद (पवित्र युद्ध) के लिए हाफिज सईद की तरफ से बनाया गया एक प्रचार, प्रकाशन और प्रचार नेटवर्क था।

अब्दुल्ला उज्जम, जो एक फिलिस्तीनी मौलवी और कट्टरपंथी था, उसने अफगानिस्तान में जिहाद के शुरुआती बीज बोए थे, उसने हाफिज सईद के साथ मिलकर लश्कर-ए-तैयबा का निर्माण किया था और इस दोनों ने मिलकर उस पूरे क्षेत्र में सैकड़ों-हजारों बच्चों और युवाओं को जिहादी बनाया और उसी का नतीजा है, कि आज पूरा पाकिस्तान आतंकवाद की भट्टी में जल रहा है।

9/11 के बाद बदलते रहे नाम

9/11 के बाद लश्कर-ए-तैयबा पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ गया था और भारत ने 2003, 2005 और 2008 में मुंबई और दिल्ली में हुए हमलों के लिए इस समूह को दोषी ठहराया था। दिसंबर 2000 में दिल्ली के लाल किले और एक साल बाद भारतीय संसद पर हुए हमले में भी हाफिज सईद मास्टरमाइंड था।

जनवरी 2002 में लश्कर-ए-तैयबा पर प्रतिबंध लगने से कुछ दिन पहले, हाफिज सईद ने समूह के मूल संगठन, जमात-उद-दावा वल-इरशाद को पुनर्जीवित किया था और इसके नाम में संशोधन किया था। और ये लगातार अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता रहा। मात-उद-दावा ने पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों के लिए लड़ाकों की भर्ती जारी रखी।

हालांकि, अब हाफिज सईद को लेकर पाकिस्तान दावा करता है, कि वो जेल में बंद है और उसे सजा मिल चुकी है, लेकिन उसे सजा भारत में किए गये आतंकी हमलों के लिए नहीं मिली है। भारत में अभी भी सवाल उठ रहे हैं, कि क्या कभी हाफिज सईद को उसके किए गुनाह के लिए सजा मिल पाएगी?

Diplomacy: यूक्रेन में शांति के लिए दिल्ली में बन रहा रास्ता? ट्रंप की वापसी से पहले पुतिन इसलिए आ रहे भारत!

Diplomacy News: जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में भारत आएंगे, तो उनकी मुलाकातें यूक्रेन और उसके आस-पास के युद्ध पर नई दिल्ली की सैद्धांतिक तटस्थता के बैकग्राउंड में होंगी।

भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रखे गए रूस विरोधी प्रस्तावों से खुद को अलग रखा है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। साथ ही, भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने और यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने का आह्वान भी किया है।

अभी तक भारत ने रूस पर पश्चिमी दबाव को निकालने के लिए एक रिलीज वाल्व के रूप में काम किया है, जिससे मॉस्को को चीन पर अत्यधिक निर्भर होने के बजाय एक बड़ी शक्ति का विकल्प मिल गया है। भारत, चीन के बाद रियायती रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार 2021 में जहां सिर्फ 12 बिलियन डॉलर था, वो अब बढ़कर पिछले साल 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, सस्ते तेल ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है, जो पिछले साल औसतन 8.2% थी और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।

हालांकि, भारत सरकार रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करती है, लेकिन भारत के वित्तीय संस्थाओं को उन प्रतिबंधों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे इनमें से कुछ फंड को ट्रांसफर करना मुश्किल हो गया है। इस प्रकार रूस ने अपने रुपये के भंडार का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करने पर सहमति जताई है, जिससे दोनों पक्षों के व्यापार में विविधता लाने और संतुलन बनाने में मदद मिली है।

भारत और रूस ने तीन लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर के डेवलपमेंट को प्राथमिकता दी है, जिनमें से कोई भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। इनमें शामिल हैं:-

1- ईरान से होकर गुजरने वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जिसकी शाखाएं अजरबैजान, कैस्पियन सागर और मध्य एशिया तक फैली हैं।

2- व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री गलियारा, जिसे पूर्वी समुद्री गलियारा भी कहा जाता है

3- आर्कटिक में उत्तरी समुद्री मार्ग।

इन तीनों में से, INSTC सबसे ज्यादा आशाजनक है, लेकिन सबसे ज्यादा असुरक्षित भी है, क्योंकि ऐसी खबरें हैं, कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ईरान के खिलाफ अपने “अधिकतम दबाव” अभियान को फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

भारत के सामने क्या दिक्कतें आ सकती हैं?

भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने के लिए अमेरिका से पहले ही छूट हासिल कर ली है। ट्रंप, ईरान पर प्रतिबंधों को इस हद तक कड़ा कर सकते हैं, कि भारत को INSTC के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार को बंद करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिससे रूसी अलमारियों पर भारतीय उत्पादों की उपलब्धता कम हो सकती है – जिसमें फार्मास्यूटिकल्स भी शामिल हैं, जिससे बाजार में हिस्सेदारी कम हो सकती है और परिणामस्वरूप रूस की चीन पर पहले से ही उच्च निर्भरता बढ़ सकती है।

ऐसा ही तब हो सकता है, जब भारत द्वारा कथित तौर पर रूस के साथ स्थापित किए गए गुप्त तकनीकी चैनल को निशाना बनाया जाता है। यह आने वाले ट्रंप प्रशासन के अपने बड़े रणनीतिक हितों के खिलाफ काम करेगा, क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में चीन विरोधियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले ट्रंप ने कहा था, कि वह रूस और चीन को “अलग करना” चाहते हैं, लेकिन यदि वह ईरान को दंडित करने के लिए रूसी-भारतीय व्यापार पर नई सीमाएं लगाते हैं, तो इससे अनजाने में ही वे एक-दूसरे के और करीब आ जाएंगे।

ट्रंप ने यह भी कहा, कि वह यूक्रेन युद्ध को खत्म करने को प्राथमिकता देंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि वह ऐसा कैसे करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कुछ ऑब्जर्वर्स को उम्मीद है, कि वह युद्धविराम समझौते में यूक्रेन की जमीन पर रूसी कब्जे को मान्यता दे देंगे। हालांकि, वो क्या करेंगे, फिलहाल साफ नहीं है।

माना जा रहा है, कि 20 जनवरी को शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्ड ट्रंप बातचीत को फिर से शुरू कर सकते हैं।

भारत से कैसे गुजरेगा शांति का रास्ता?

डोनाल्ड ट्रंप अगर यूक्रेन में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू करते हैं, तो निश्चित तौर पर उन्हें भारत की तरफ देखना होगा, क्योंकि ये भारत ही है, जो बातचीत शुरू करने के लिए जमीन तैयार कर सकता है और राष्ट्रपति पुतिन के आगामी भारत दौरे को उसी लेंस में देखना होगा।

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन, सौदे के संभावित सैन्य और आर्थिक मापदंडों पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें रूस के खिलाफ लगाए गये प्रतिबंधों को धीरे धीरे कम करना और आगे जाकर खत्म करना शामिल हैं और ईरान के माध्यम से रूस के साथ भारतीय व्यापार के लिए प्रतिबंधों में छूट शामिल है।

इसके बाद भारत, निजी तौर पर रूसी वार्ता के इन बिंदुओं को ट्रंप प्रशासन तक पहुंचा सकता है, क्योंकि इसके पूरे आसान हैं, कि ट्रंप 2.0 के भारत के साथ विशेष रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध होंगे।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मंगलवार को पुष्टि की, कि पुतिन की भारत यात्रा की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी। यह जून में मोदी की रूस यात्रा के बाद होगी, जो सितंबर 2019 में व्लादिवोस्तोक में पूर्वी आर्थिक मंच में पुतिन के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के बाद से उनकी पहली रूस यात्रा थी। गर्मियों में उनकी पिछली बैठक में नेताओं ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए और एक विस्तृत संयुक्त बयान जारी किया।

डोनाल्ड ट्रंप, प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी हैं, और उनकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड भारत के काफी करीबी हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज, भारत कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं और विदेश मंत्री के लिए उनके नामित सीनेटर मार्को रुबियो ने जुलाई में अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग अधिनियम पेश किया था।

लिहाजा, कैबिनेट के इन सदस्यों के साथ यूक्रेन में शांति का मार्ग पूर्व मध्यस्थ तुर्की या महत्वाकांक्षी मध्यस्थ चीन के माध्यम से नहीं, बल्कि भारत के माध्यम से हो सकता है। इसलिए यह संभावना है, कि पुतिन और मोदी अपनी आगामी यात्रा के दौरान यूक्रेन सौदे पर चर्चा करेंगे, हालांकि उनकी चर्चाओं के बारे में जानकारी, निश्चित तौर पर सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

पुतिन को इस बात का पूरा अहसास है, कि डोनाल्ड ट्रंप एशिया की ओर वापस लौटने के लिए कितने उत्सुक हैं, जिसके लिए यूक्रेन युद्ध का तत्काल समाधान आवश्यक है। और पुतिन इस बात से भी वाकिफ हैं, कि चीन के मुकाबले यूरेशियाई शक्ति संतुलन को संभालने में भारत की भूमिका अपरिहार्य है।

इस प्रकार, मोदी ईरान के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए अच्छी स्थिति में हैं, जो अगर लागू होते हैं, तो रूस में और उसके ऊपर चीन का प्रभाव और बढ़ जाएगा। 2014 से पुतिन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के आधार पर, मोदी यूक्रेन में समझौता करने के सर्वोत्तम मार्ग पर व्यावहारिक सुझाव भी दे सकते हैं जो रूस को मंजूर होगा।

इजरायल पीएम बेंजामिन नेतन्याहू अब मुश्किल में, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने जारी किया गिरफ्तारी वारंट

Benjamin Netanyahu: इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योव गैलेंट अब मुश्किल में फंस गए है। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने गुरुवार 21 नवंबर को दोनों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। उन पर हत्या और उत्पीड़न सहित मानवता के खिलाफ अपराध करने का आरोप है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेतन्याहू और गैलेंट पर आरोप है कि इजरायल ने गाजा में नागरिकों के लिए भोजन, पानी और चिकित्सा सहायता जैसी आवश्यक आपूर्ति को प्रतिबंधित कर दिया है, जिससे बच्चों की मौत हुई है और कई लोगों को संकट का सामना करना पड़ा है। आरोप में कहा गया है कि कोर्ट को यह मानने के लिए उचित आधार भी मिला है कि नेतन्याहू ने जानबूझकर नागरिकों को निशाना बनाया।

 

साथ ही, जरूरी सहायता रोक दी, जिससे लोगों भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कोर्ट ने कहा, ‘हमने आंकलन किया कि यह मानने के उचित आधार हैं कि नेतन्याहू और गैलेंट गाजा की नागरिक आबादी के खिलाफ जानबूझकर हमलों को निर्देशित करने के युद्ध अपराध के लिए जिम्मेदार हैं।’

इजरायल के राष्ट्रपति ने दी प्रतिक्रिया
इजरायल के राष्ट्रपति इसहाक हर्ज़ोग ने आईसीसी के फ़ैसले पर कड़ी असहमति जताते हुए इसे “न्याय के लिए काला दिन” बताया। उन्होंने हमास द्वारा बंधक बनाए गए 101 इजरायली बंधकों की दुर्दशा को नज़रअंदाज़ करने के लिए अदालत की आलोचना की और उस पर न्याय के लिए लड़ने वालों का मज़ाक उड़ाने का आरोप लगाया। हर्ज़ोग ने हमले के बाद खुद की रक्षा करने के इजरायल के अधिकार पर ज़ोर दिया।

दुनिया के नये ‘सऊदी अरब’ पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी, 56 सालों के बाद किसी भारतीय PM का दौरा, क्यों है खास?

India-Caricom summit: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को गुयाना पहुंच गये हैं और 56 वर्षों में दक्षिण अमेरिकी देश का दौरा करने वाले वो पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1968 में गुयाना का दौरा करने वाली आखिरी भारतीय नेता थीं।अभूतपूर्व कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री मोदी का गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली और एक दर्जन से ज्यादा कैबिनेट मंत्रियों ने हवाई अड्डे पर गर्मजोशी से गले लगाकर उनका स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी को गुयाना के जॉर्जटाउन में औपचारिक स्वागत और गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।

 

गुयाना को दुनिया का नया सऊदी अरब कहा जाता है, क्योंकि यहां पर तेल के भंडार मिले हैं और भारत के लिए ये देश इसलिए भी काफी खास है, क्योंकि यहां की 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी भारतीय है। यहां के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली और उप-राष्ट्रपति भारत जगदेव, भारतीय मूल के हैं। भारतीय लोगों को अंग्रेज गिरमिटिया मजदूर बनाकर गुयाना और अन्य कैरेबियाई देश ले गये थे, जो अब काफी रसूखदार हो चुके हैं।

तेल और गैस संसाधनों की खोज के बाद गुयाना एक तेजी से बढ़ता हुआ देश है। देश के साथ जुड़ाव में, भारत न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने की उम्मीद कर रहा है, बल्कि ग्लोबल साउथ देशों और कैरेबियाई क्षेत्र के बीच अपनी स्थिति को मजबूत करने की भी कोशिश कर रहा है।

भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करेंगे मोदी

गुयाना में, प्रधानमंत्री मोदी सभी कैरीकॉम देशों के नेताओं की मौजूदगी में ग्रेनाडा के प्रधानमंत्री डिकॉन मिशेल, कैरीकॉम (कैरिबियन समुदाय और साझा बाजार) के वर्तमान अध्यक्ष के साथ दूसरे भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करेंगे। शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री मोदी ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालेंगे, जो कैरीकॉम देशों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं का समर्थन करता है।

प्रधानमंत्री मोदी गुयाना के राष्ट्रपति के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता भी करेंगे और गुयाना की राष्ट्रीय सभा को संबोधित करेंगे। गुयाना की अपनी यात्रा से पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान में कहा है, कि वह सबसे पुराने भारतीय समुदाय में से एक को अपना सम्मान देंगे, जो 185 साल से भी पहले यहां आकर बसे थे।

प्रधानमंत्री ने कहा, “हम अपने अनूठे संबंधों को रणनीतिक दिशा देने पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे, जो साझा विरासत, संस्कृति और मूल्यों पर आधारित है।”

गुयाना के उपराष्ट्रपति भारत जगदेव ने कहा, कि प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना यात्रा “भारत और गुयाना के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंधों को रेखांकित करती है।”

 

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कैरीकॉम क्या है?

कैरीकॉम, कैरीबियाई देशों का एक समूह है। इसमें 21 देश हैं, जिनमें से 15 सदस्य देश हैं और छह सहयोगी सदस्य हैं। पहला शिखर सम्मेलन 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान आयोजित किया गया था, जहां भारत ने जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 150 मिलियन डॉलर की ऋण सुविधा की पेशकश की थी।

कैरीकॉम वेबसाइट के मुताबिक, 20 नवंबर 2024 को होने वाले दूसरे भारत-कैरीकॉम शिखर सम्मेलन से ऊर्जा और बुनियादी ढांचे, कृषि और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन, साथ ही मानव संसाधन और क्षमता निर्माण में कैरीकॉम और भारत के बीच द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने की उम्मीद है।

मोदी की गुयाना यात्रा से भारत को क्या फायदा होगा?

आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए गुयाना की ओर देख रहे हैं। यह छोटा कैरेबियाई देश लगातार एक संभावित प्रमुख पेट्रोलियम और गैस शक्ति के रूप में उभर रहा है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुसार, गुयाना में तेल और प्राकृतिक गैस संसाधनों का अनुमान 11 बिलियन तेल-समतुल्य बैरल से अधिक है, जो कुवैत के तीन गुना से भी ज्यादा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत के ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के प्रयास में गुयाना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से सहयोग के नए रास्ते खुलने, भारत-गुयाना संबंधों को मजबूत करने और क्षेत्रीय साझेदारी को प्रोत्साहित करने की भी उम्मीद है।

भारत-गुयाना संबंध

भारत-गुयाना संबंधों को स्ट्रेक्चरल बाइलेटरल मैकेनिज्म द्वारा बल मिलता है, जिसमें मंत्रिस्तरीय स्तर पर एक संयुक्त आयोग और विदेशी कार्यालयों के बीच पिरियोडिक परामर्श शामिल हैं।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) और जॉर्जटाउन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (GCCI) के बीच स्थापित एक संयुक्त व्यापार परिषद, संबंधों को और मजबूत करती है।

विकासात्मक सहयोग मुख्य रूप से भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के माध्यम से होता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में सालाना 50 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) गुयाना के छात्रों को स्नातक, स्नातकोत्तर और चिकित्सा पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करता है। आज तक, 600 से ज्यादा भारतीय विद्वानों ने ITEC के तहत प्रशिक्षण पूरा कर लिया है।

भारत ने गुयाना को कृषि और सूचना प्रौद्योगिकी पहलों के लिए ऋण सुविधाएं भी प्रदान की हैं, जिसमें भारतीय कंपनियां जैव ईंधन, ऊर्जा, खनिज और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में अवसरों की तलाश कर रही हैं। भारत ने गुयाना को कई परियोजनाओं के लिए सहायता भी प्रदान की है, जिसमें 25 मिलियन डॉलर का राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम भी शामिल है, जो इस वर्ष टी20 विश्व कप क्रिकेट का आयोजन स्थल था।

गुयाना में भारतीय

गुयाना की जनसंख्या में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 39.8 प्रतिशत है, जिसमें सबसे बड़े धार्मिक समुदाय में हिंदू 28.4 प्रतिशत हैं।

भारत-गुयाना व्यापार

भारत और गुयाना के बीच 2021-22 में व्यापार 223.36 मिलियन डॉलर था, जिसमें गुयाना का निर्यात 156.96 मिलियन डॉलर था, जिसे ऊर्जा उत्पादों से बढ़ावा मिला।

 

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर पर ताला? आतंकी हमलों से डरा चीन छोड़ सकता है CPEC, पाकिस्तान को बड़ा झटका

China-Pakistan Economic Corridor: पाकिस्तान को बड़ा झटका देते हुए चीन ने अफगानिस्तान के रास्ते ईरान से तेल खरीदने के लिए सड़क बनाकर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के विकल्प की तलाश करना शुरू कर दिया है।

सूत्रों के हवाले से सीएनएन-न्यूज18 ने जानकारी दी है, कि चीन, पाकिस्तान में चीनी नागरिकों की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तानी जनरलों से काफी नाराज है, जो बार-बार आतंकवादी हमलों का शिकार होते रहे हैं। चीनी अधिकारियों ने ग्वादर में 65 अरब डॉलर के सीपीईसी से जुड़े फंड और बजट में भ्रष्टाचार पर गहरा गुस्सा जताया है।

अब, चीन कथित तौर पर वैश्विक ऊर्जा पहुंच में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए तेल आयात के लिए ईरान से जुड़ने वाली सड़क पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। बीजिंग, अफगानिस्तान के माध्यम से ईरान से तेल प्राप्त करने के लिए सबसे तेज मार्ग बना रहा है।

चीन के व्यापार मार्गों के लिए ‘गेम-चेंजर’ प्लान

अक्टूबर में कराची एयरपोर्ट पर आत्मघाती हमले में दो चीनी नागरिकों की मौत के बाद चीनी नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहने के कारण चीन, पाकिस्तान से तंग आ चुका है। इस हमले की जिम्मेदारी अलगाववादी बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली थी, जिसने पाकिस्तान और चीन पर अशांत बलूचिस्तान प्रांत का शोषण करने का आरोप लगाया है।

सूत्रों ने ईरान तक गलियारा बनाने की चीन की योजना को “गेम-चेंजर” बताया है, क्योंकि इससे न केवल तेल आयात बढ़ेगा, बल्कि संभावित रूप से इसके व्यापार मार्गों को पूरी तरह से नया आकार मिल सकता है। इससे पाकिस्तान पर भी दबाव बढ़ेगा, क्योंकि उसे अमेरिका के साथ-साथ भारत, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों से भी परेशानी है।

इससे भी बदतर बात यह है, कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और सऊदी अरब भी नकदी की कमी से जूझ रहे पाकिस्तान से नाराज हैं और उसे मदद देने को तैयार नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ पाकिस्तान का 7 मिलियन डॉलर का सौदा भी मुश्किल में पड़ गया है, क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था लगातार चरमरा रही है।

पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर हमला

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निर्माण के दौरान चीनी नागरिकों की हत्या और अपहरण की कई घटनाएं हुई हैं। चीन ने कई मौकों पर इस मुद्दे को उठाया है और इस्लामाबाद से पाकिस्तान में काम कर रहे अपने नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है।

पिछले हफ्ते चीन ने पाकिस्तान से यहां तक कह दिया था, कि उससे चीनी नागरिकों की सुरक्षा नहीं हो पाती है, तो वो अपनी सेना को तैनात करना चाहेगा। चीन का ये बयान पाकिस्तान की संप्रभूता का उल्लंघन होने के साथ साथ उसका अपमान भी है।

2022: कराची में आत्मघाती बम विस्फोट में तीन चीनी नागरिक मारे गए, दो अन्य घायल हो गए।

 

2022: कराची विश्वविद्यालय में बम विस्फोट में दो चीनी नागरिक मारे गए, जबकि एक घायल हो गया।

 

2021: खैबर पख्तूनख्वा में एक बस में बम विस्फोट के दौरान कम से कम नौ चीनी नागरिक मारे गए, जबकि चार अन्य घायल हो गए।

 

2019: दासू में एक जलविद्युत परियोजना स्थल पर आतंकवादी हमले में दो चीनी इंजीनियर मारे गए, जबकि एक घायल हो गया।

 

2018: कराची में एक चीनी नागरिक मारा गया, जबकि दो अन्य घायल हो गए

 

2017: बलूचिस्तान के क्वेटा में दो चीनी नागरिकों का अपहरण कर लिया गया और इस्लामिक स्टेट (ISIS) आतंकवादी समूह ने उनकी हत्या कर दी।

 

2007: दक्षिण वजीरिस्तान में तीन चीनी नागरिकों का अपहरण कर लिया गया। उनमें से दो मारे गए, जबकि एक भागने में सफल रहा।

 

चीन ने पाकिस्तान में अपने नागरिकों के लिए बेहतर सुरक्षा की मांग को आगे बढ़ाया है। चीनी राजदूत जियांग जैदोंग ने अक्टूबर में इस्लामाबाद में एक सभा को बताया, कि घातक हमलों की बढ़ती संख्या अस्वीकार्य है। इस्लामाबाद के आश्वासनों के बावजूद, वह अपने वादों पर खरा उतरने में नाकाम रहा है क्योंकि 5 नवंबर को कराची में एक और हमले में दो चीनी नागरिक घायल हो गए।

Iraq News: कभी सद्दाम हुसैन के शासन में हुआ था ऐसा, अब किस योजना पर काम रहा इराक?

इराक में 1987 के बाद राष्ट्रीय जनगणना आज से शुरू होने जा रही है। इराक के लिए ये खास पल है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश के विकास के लिए जनसांख्यिकीय जानकारी एकत्र करने की कोशिश की जा रही है। इससे पहले सद्दाम हुसैने के शासन में देश में जनगणना हुई थी। अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया जाएगा।

1987 के बाद इराक में पहली बार जनगणना होगी (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Iraq Census News: इराक में करीब तीन दशक से अधिक समय के बाद पहली राष्ट्रीय जनगणना शुरू होने जा रही है। ये इराक के लिए एक खास क्षण है क्योंकि देश में भविष्य की योजना और विकास के लिए जनसांख्यिकीय जानकारी एकत्र करने की कोशिश की जा रही है।

इस बात की जानकारी इराक के योजना मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल ज़हरा अल-हिंदवी ने दी। उन्होंने कहा कि 1987 में सद्दाम हुसैन के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली पूर्ण जनगणना का उद्देश्य इराक की आबादी की व्यापक गणना प्रदान करना है। एक अनुमान के अनुसार साल 2024 के अंत तक इराक की आबादी 43 मिलियन से अधिक होने का अनुमान है।

तीन दशक बाद क्यों हो रही जनगणना?

दरअसल, इराक में कई राजनीतिक गुटों के बीच संघर्ष, अस्थिरता और असहमति के कारण राष्ट्रीय जनगणना आयोजित करने की कोशिशों में देरी हुई है। हालांकि, अब देश में स्थिरता का दौर है। बुधवार से शुरु होने वाली जनगणना को लेकर अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया जाएगा।

 

Explainer: पृथ्वी पर हम गंदगी का अंबार लगा रहे, सारा कचरा सूर्य की ओर फेंक जला नहीं सकते?

Earth Garbage In Space: दिल्ली हो या हो न्यूयॉर्क, बड़े-बड़े शहरों में कूड़े के पहाड़ अब इंसानों को मुंह चिढ़ाने लगे हैं. क्या हम अपना सारा कचरा अंतरिक्ष में नहीं भेज सकते?

Science News in Hindi: हम हर साल सैकड़ों सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में भेजते हैं. सैकड़ों टन वजनी ये सैटेलाइट उतने ही भारी रॉकेट्स पर लदकर अंतरिक्ष तक की यात्रा करते हैं. तो क्या हम सैटेलाइट्स की जगह रॉकेट्स पर कूड़ा-कचरा लादकर अंतरिक्ष में डंप नहीं कर सकते? कम से कम पृथ्‍वी को गंदगी और कचरे के अंबार से मुक्ति तो मिलेगी. नैतिक तौर पर ऐसा करना उचित है या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है. लेकिन क्या वैज्ञानिक नजरिए से ऐसा कर पाना संभव है? क्या हम धरती के कचरे को सूर्य की ओर फेंक नहीं सकते जिससे वह भस्म होकर हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाए?

अंतरिक्ष में धरती का कचरा? बड़ा महंगा सौदा

अगर हम नैतिकता को ताक पर रखकर अपना कचरा अंतरिक्ष में फेंकने की ठान लें, तो भी ऐसा कर पाना बेहद खर्चीला होगा. ‘पॉपुलर साइंस’ से बातचीत में न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर जॉन एल. क्रैसिडिस ने कहा, ‘यह बिल्कुल भी किफायती नहीं है. ऐसा करने के लिए आपको बहुत ज्यादा जोर और बहुत ज्यादा ईंधन की जरूरत पड़ेगी.’

धरती पर हम जहां-तहां कचरा फेंक देते हैं, अंतरिक्ष में ऐसा नहीं चल पाएगा. लेकिन अगर किसी तरह हम अंतरिक्ष में भेजने के लिए धरती का सारा कूड़ा एक जगह जमा कर लें, तो भी बड़ी चुनौती बरकरार रहेगी. हमें उस कूड़े को पृथ्‍वी के प्रभाव से दूर ले जाना होगा, सतह से कम से कम 22,000 मील दूर. इससे नजदीक, कचरे को ठिकाने लगाने पर उसके सैटैलाइट्स से टकराकर वापस धरती पर गिरने का खतरा है.

चंद्रमा या सूर्य पर डंप करें कचरा तो?

क्या हम धरती के कचरे को चंद्रमा की ओर फेंक सकते हैं? क्रैसिडिस के मुताबिक, ऐसा करना भी सही नहीं होगा क्योंकि कचरा चांद से टकरा सकता है. चंद्रमा या मंगल पर भी, ऐसा करना उचित नहीं होगा क्योंकि हम वहां कॉलोनियां बसाने की सोच रहे हैं.

अगर कचरे को सूर्य की ओर फेंका जाए तो, क्या वह जलकर भस्म नहीं हो जाएगा? क्रैसिडिस ने कहा, ‘सबसे पहले तो आपको सारा कचरा एक जगह जमा करना पड़ेगा. फिर उसे एक रॉकेट पर रखकर सूर्य की ओर भेजना पड़ेगा.’ किसी एक रॉकेट पर इतना बड़ा पेलोड रखकर लॉन्च करने की क्षमता हमारे पास नहीं है. प्रोफेसर ने कहा कि ‘सूर्य की ओर कचरे को भेजने में कई ट्रिलियन डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं क्योंकि रॉकेट पर सीमित मात्रा में ही वजन ले जाया जा सकता है.

कल्पना की उड़ान

फिल्मों और टीवी सीरीज में ऐसा करते कई बार दिखाया गया है. 1999 की एनिमे Planetes में अंतरिक्ष का कचरा उठाने वाला एक यान 2075 में धरती की ओर बढ़ता है. वहीं Futurama के एक एपिसोड में, धरती को अपने ही कचरे की एक विशालकाय गेंद से खतरा पैदा हो जाता है.

 

इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के घर पर दोबारा हमला, जलते हुए आग के गोले गिरे; रक्षा मंत्री बोले- रेडलाइन पार

सेसरिया कस्बे में स्थित इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आवास पर दोबारा हमला हुआ है। घटना की जांच की जा रही है। गनीमत रही है कि इस हमले में कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। हमले के वक्त बेंजामिन नेतन्याहू अपने आवास पर नहीं थे। उधर विपक्ष समेत कई इजरायली नेताओं ने हमले की कड़ी निंदा की। एयर डिफेंस सिस्टम के विफल होने की जांच भी की जा रही है।

बेंजामिन नेतन्याहू के आवास पर दोबारा हमला।

रॉयटर्स, यरुशलम। इजरायल में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के उत्तरी भाग में स्थित सेसरिया कस्बे के निजी आवास पर एक बार फिर से हमला हुआ है। इस बार आग के दो गोले उनके आवास के बगीचे में गिरे। हमले के समय नेतन्याहू दंपती या उनके परिवार का कोई अन्य सदस्य आवास में मौजूद नहीं था। इस हमले से कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ है।

प्रधानमंत्री को धमकाना संभव नहीं: रक्षा मंत्री

हमले के बाद इजरायल के रक्षा मंत्री इजरायल काज ने एक्स पर कहा, सभी रेडलाइन पार की जा रही हैं, यह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, इजरायल के प्रधानमंत्री को धमकाना संभव नहीं है। ईरान और उसके सहयोगी संगठन प्रधानमंत्री को लगातार धमकी देने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वे सफल नहीं होंगे। इजरायल के राष्ट्रपति इजाक हरजोग ने हमले की निंदा की है और कहा है कि बचाव में चूक की जांच चल रही है। देखा जा रहा है कि ये गोले किस हथियार से फेंके गए थे।

अक्टूबर में भी हो चुका हमला

पुलिस ने मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। नेतन्याहू के इस आवास पर अक्टूबर में भी ड्रोन से हमला हुआ था। उस समय भी आवास पर नेतन्याहू दंपती मौजूद नहीं थे और कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ था।

गाजा में 84 फलस्तीनी मारे गए

गाजा में जारी इजरायली हमलों में रविवार को 84 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। इनमें से 70 लोग बेत लाहिया की एक बहुमंजिली इमारत पर हवाई हमले में मारे गए हैं। हमले में इमारत ध्वस्त हो गई है। हमास द्वारा संचालित गाजा के सरकारी मीडिया के अनुसार इमारत में छह परिवार रहते थे, उनके कुल 72 लोग हमले में मारे गए हैं। उत्तरी गाजा को घेरकर वहां पर बीते कई महीनों से इजरायली सेना की कार्रवाई जारी है।

इजरायली सेना यहां पर टैंकों से गोलाबारी के साथ ही विमानों से बमबारी भी कर रही है। इससे कुछ घंटे पहले गाजा के मध्य में स्थित बुरेज शरणार्थी क्षेत्र में इजरायल के हवाई हमले में 10 लोग मारे गए जबकि नजदीक स्थित नुसीरत शिविर में चार लोग मारे गए।

विपक्ष ने भी घटना की निंदा की

जांच में सामने आया है कि यह हमला सरकार विरोधी प्रदर्शन में शामिल लोगों ने किया है। इजरायल की आंतरिक खुफिया एजेंसी शिन बेट के प्रमुख रोनेन बार ने रविवार को कहा कि प्रधानमंत्री के आवास पर फ्लेयर गन से हमला बेहद गंभीर घटना है। यह विरोध प्रदर्शन के वैध तरीके से बहुत दूर है।

उधर, संचार मंत्री श्लोमो करही ने अटॉर्नी जनरल को बर्खास्त करने की मांग की। विपक्षी नेता और नेशनल यूनिटी के अध्यक्ष बेनी गैंट्ज ने भी घटना की निंदा की। उन्होंने दोषियों को कटघरे में लाने की अपील की। उन्होंने कहा कि यह विरोध नहीं बल्कि आतंकवाद है। मैं नेतन्याहू से गहराई से असहमत हूं। अक्सर उनकी आलोचना करता हूं। नेतन्याहू हत्यारा नहीं है और दुश्मन भी नहीं है। किसी को भी उनके खिलाफ सिर्फ कानून के तहत प्रदर्शन करना चाहिए।

 

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