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कनाडा जल रहा, जस्टिन ट्रूडो ठुमके लगा रहे, मॉन्ट्रियल में हिंसा के बीच टेलर स्विफ्ट के साथ नाचने पर बवाल

Justin Trudeau Canada News: बहुत पुरानी कहावत है, रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो यही करते नजर आए हैं, जब मॉन्ट्रियल में जारी हिंसक प्रदर्शन के बीच उनका टेलर स्विफ्ट के साथ डांस करने का वीडियो वायरल हुआ है।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को टेलर स्विफ्ट के कॉन्सर्ट में नाचते हुए एक वीडियो वायरल होने के बाद भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, जो मॉन्ट्रियल में हिंसक विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुआ था। सोशल मीडिया पर सामने आए फुटेज में ट्रूडो 23 नवंबर को टोरंटो के रोजर्स सेंटर में स्विफ्ट के ट्रैक “यू डोंट ओन मी” पर थिरकते हुए दिखाई दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री के डांस मूव्स ने जहां कुछ लोगों को खुश किया, वहीं मॉन्ट्रियल में हिंसा की लहर के दौरान कॉन्सर्ट में उनके आने के समय ने लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया है।

मॉन्ट्रियल में हिंसक विरोध प्रदर्शन

मॉन्ट्रियल में 23 नवंबर की रात शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें हुईं हैं। नाटो विरोधी प्रदर्शनकारियों में से कई ने फिलिस्तीनी झंडे लहराए, कारों में आग लगाई, अधिकारियों पर विस्फोटक फेंके और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का पुतला जलाया। यह अशांति कनाडा के सबसे बड़े शहर में आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन के संदर्भ में हुई, जहां विश्व के नेता यूक्रेन में संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे।

टोरंटो में ट्रूडो के नाचने के दौरान, कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने मॉन्ट्रियल में बढ़ते संकट को लेकर उनकी उदासीनता और लापरवाही की आलोचना की है।

 

 

एक यूजर ने स्थिति की तुलना रोमन सम्राट नीरो से की, जिसे रोम जलते समय बांसुरी बजाते हुए दिखाया गया था। एक ट्वीट में लिखा गया है, कि “फिलिस्तीन समर्थक, नाटो विरोधी दंगाइयों ने कनाडा के दूसरे सबसे बड़े शहर को आग में झोंक दिया। इस बीच, जस्टिन ट्रूडो टेलर स्विफ्ट के गाने पर नाच रहे हैं।”

अन्य यूजर्स ने प्रधानमंत्री पर एक संगीत कार्यक्रम का आनंद लेते हुए कनाडा के बढ़ते कर्ज और आवास संकट जैसे राष्ट्रीय मुद्दों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। विरोध प्रदर्शनों पर ट्रूडो की प्रतिक्रिया का संदर्भ देते हुए टोरंटो के सांसद डॉन स्टीवर्ट ने कहा, “यह लिबरल सरकार द्वारा बनाया गया कनाडा है।”

ट्रूडो के डांस का वीडियो, जिसे टिकटॉक पर पोस्ट किया गया है उसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया गया है, जिसमें उन्हें डांस में पूरी तरह डूबे हुए और यहां तक ​​कि प्रशंसकों के साथ दोस्ती के बैंड का आदान-प्रदान करते हुए दिखाया गया है। कॉन्सर्ट में उनकी उपस्थिति की पुष्टि उनके कार्यालय ने एक पारिवारिक सैर के रूप में की थी, लेकिन मॉन्ट्रियल में हो रहे हिंसक विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए, यह अभी भी लोगों को चौंका रहा है, जो कि कुछ सौ मील की दूरी पर स्थित है।

 

 

ट्रूडो ने की है हिंसक प्रदर्शन की निंदा

जस्टिन ट्रूडो ने मॉन्ट्रियल में हुई आक्रामकता की निंदा की है। 25 नवंबर को जारी एक बयान में, उन्होंने घटनाओं को “भयावह” कहा और यहूदी-विरोधी और हिंसा के खिलाफ अपना मजबूत रुख जताने की कोशिश की है।

ट्रूडो ने कहा, “यहूदी-विरोधी, धमकी और हिंसा के कृत्यों की निंदा की जानी चाहिए, चाहे इसे हम कहीं भी देखें।”

यह पहली बार नहीं है जब ट्रूडो की टेलर स्विफ्ट के साथ मेलजोल देखा गया है। स्विफ्ट ने जब अपने एरास टूर के लिए कनाडा आने की तारीखों की घोषणा की थी, उससे पहले, ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से पॉप स्टार से कनाडा को अपने कार्यक्रम में शामिल करने का आग्रह किया था। कॉन्सर्ट की रात, ट्रूडो ने स्विफ्ट का कनाडा में स्वागत करते हुए एक और पोस्ट शेयर किया, जिसमें घोषणा की गई, “हम आपके लिए तैयार हैं।”

ट्रूडो ने भले ही विरोध प्रदर्शनों की निंदा की है, लेकिन कॉन्सर्ट में उनकी मौजूदगी उनके लापरवाह और गैरजिम्मेदाराना रवैये को उजागर करता है। जस्टिन ट्रूडो, अपनी नीतियों की वजह से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचा चुके हैं। लिहाजा, इस वीडियो के आने के बाद उनके नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े हो गये हैं।

World’s LargeWorld’sst Exporters: दुनिया में सबसे ज्यादा सामान बेचने वाले देश कौन कौन हैं, टॉप-10 में नहीं है भारत

World’s Largest Exporters: दुनिया भर में संरक्षणवाद (घरेलू व्यवसाय को बचाने के लिए टैरिफ में इजाफा) के बढ़ने के साथ ही वैश्विक व्यापार प्रवाह में भी बदलाव आ रहा है। टैरिफ की लहर का सामना करने के बावजूद, चीन के माल निर्यात में लचीलापन देखने को मिल रहा है।

2023 में चीन के निर्यात की मात्रा अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, हालांकि चीन में बने सामानों की कीमत औसतन 10 प्रतिशत तक गिर गई है। फिर भी, दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक चीन ने पिछले साल अमेरिका को 500 बिलियन डॉलर का माल बेचा है, लेकिन ट्रंप प्रशासन के तहत इसमें भारी बदलाव हो सकता है।

आइये जानते हैं, कि दुनिया के शीर्ष निर्यातक देश कौन कौन हैं?

पिछले साल, दुनिया में वस्तुओं का वैश्विक निर्यात कुल 23.8 ट्रिलियन डॉलर था, जो 2022 की तुलना में 5% कम है। कुल मिलाकर, दुनिया के शीर्ष 30 सबसे बड़े निर्यातकों में से 20 में निर्यात का डॉलर मूल्य गिर गया क्योंकि दुनिया भर में व्यापार प्रतिबंधों की संख्या लगभग 3,000 तक बढ़ गई है और ये 2015 की तुलना में पांच गुना ज्यादा है।

साल 2023 में-

– चीन ने सबसे ज्यादा 3 हजार 380 अरब डॉलर के सामान बेचे

– अमेरिका ने पिछले साल 2 हजार 20 अरब डॉलर के सामान बेचे हैं

– वहीं, तीसरे नंबर पर जर्मनी है, जिसने 1 हजार 688 अरब डॉलर के सामान बेचे

– जबकि चौथे नंबर पर नीदरलैंड है, जिसने 935 अरब डॉलर के सामान बेचे हैं।

– साल 2023 में पांचवें नंबर पर जापान रहा, जिसने 717 अरब डॉलर के सामान वैश्विक बाजार में बेचे

– छठे नंबर पर इटली आता है, जिसने पिछले साल 677 अरब डॉलर के सामान बेचे हैं।

– सातवें नंबर पर फ्रांस है, जिसने 648 अरब डॉलर के सामान बेचे

– आठवें नंबर पर दक्षिण कोरिया रहा, जिसने 632 अरब डॉलर के सामान बेचे

– नौवे नंबर पर मैक्सिको का आता है, जो 593 अरब डॉलर मूल्य के सामान बेचने में कामयाब रहा

– जबकि, दसवें नंबर पर हांगकांग रहा, जिसने 574 अरब डॉलर के सामान बेचे।

इस लिस्ट के मुताबिक, चीन ने 2023 में अमेरिका के मुकाबले 1.4 ट्रिलियन डॉलर के ज्यादा सामान बेचे हैं। यानि, अंदाजा लगाया जा सकता है, कि ग्लोबल मार्केट में चीन कितना बड़ा खिलाड़ी बन चुका है।

पिछली बार अमेरिका 1979 में दुनिया का शीर्ष निर्यातक था, लेकिन तब से इसने व्यापार घाटे में वृद्धि का अनुभव किया है। हालांकि, ऊर्जा निर्यात, जो अमेरिका का शीर्ष निर्यात है, पिछले एक दशक में घाटे से मुनाफे में बदल गया है।

2023 में, अमेरिका ने अपने व्यापार संतुलन को मजबूत करते हुए 65 बिलियन डॉसलर का शुद्ध ऊर्जा अधिशेष हासिल किया। घरेलू ऊर्जा उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि ने देश को तेल की कीमतों में होने वाले झटकों से बचाया है, जैसे कि रूस-यूक्रेन युद्ध से होने वाले झटके से, जिसने यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं को बुरी तरह प्रभावित किया है।

 

 

जर्मनी, जो कुल मिलाकर तीसरा सबसे बड़ा देश है, उसने अर्थव्यवस्था में संकुचन के बावजूद माल निर्यात में मामूली 1% की वृद्धि देखी है। इंडस्ट्री आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश जर्मनी, विशेष रूप से तेल की बढ़ती कीमतों से प्रभावित हुआ है, क्योंकि कई फर्मों ने ऊर्जा की कीमतों में उछाल के कारण उत्पादन रोक दिया है। 2023 में, देश ने अपने सबसे बड़े निर्यात बाजार अमेरिका को 160 बिलियन डॉलर का माल निर्यात किया।

वहीं, अगर ट्रंप के प्रस्तावित टैरिफ लागू हो जाते हैं, तो अमेरिका के निर्यात में 15% तक की गिरावट आ सकती है। ऑटोमोटिव और फार्मास्युटिकल सेक्टर पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा, जिसमें क्रमशः 32% और 35% की गिरावट आएगी।

बात अगर भारत की करें, भारत का साल 2023 में निर्यात 432 अरब डॉलर का रहा है और अपार क्षमताएं होने के बावजूद वैश्विक निर्यात में भारत अपना स्थान नहीं बना पाया है। भारत फिलहाल निर्यात के मामले में 17वें नंबर पर रहा है और भारत से पहले ताइवान 16वें स्थान पर (432 अरब डॉलर से थोड़ा ज्यादा), 15वें स्थान पर सिंगापुर (476 अरब डॉलर), 14वें स्थान पर UAE (488 अरब डॉलर), 13वें स्थान पर UK (521 अरब डॉलर), 12वें स्थान पर बेल्जियम (562 अरब डॉलर) और 11वें स्थान पर कनाडा है, जिसने 2023 में 569 अरब डॉलर के माल निर्यात किए हैं।

Diplomacy: कभी जापान की तरक्की से जलने वाले अमेरिका को भारत के विकास से डर? अडानी केस में अंदर की बात जानिए

Adani Case Diplomacy: अडानी को टारगेट करने का मुख्य मकसद अडानी ग्रुप को अमेरिकी बाजारों से फंड जुटाने से रोकना, और खासकर बंदरगाहों और हवाई अड्डों में इसके तेजी से हो रहे बुनियादी ढांचे के विस्तार को रोकना हो सकता है।

1980 के दशक में अमेरिका, जापान के उदय और “अमेरिका पर जापान के कब्जे” को लेकर काफी ज्यादा टेंशन में रहता था, क्योंकि मित्सुबिशी और सोनी जैसी जापानी कंपनियों ने अमेरिका की प्रमुख प्रॉपर्टीज पर कब्जा कर लिया था। इस चिंता ने माइकल क्रिचटन के राइजिंग सन (1992) जैसे उपन्यासों को जन्म दिया, जो लॉस एंजिल्स में एक ‘काल्पनिक युग में भ्रष्टाचार’ से भरी ‘अमेरिकी भविष्य की हत्या’ की रहस्यपूर्ण कहानी है, जब जापानी कंपनियों ने अमेरिका में पूरी तरह से अपना दबदबा बना लिया था।

जापानी कंपनियों ने उस दौरान अमेरिकी बाजारों में किसी भी प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया था। विडंबना यह है कि उसी समय, जापानी बुलबुला भी फूटने लगा था और एक लंबा ठहराव आने लगा था।

पिछले तीन दशकों से अमेरिकी और पश्चिमी सिस्टम में चीनी घुसपैठ और चीनी कंपनियों की ताकत के बारे में चिंताएं तेजी से बढ़ी हैं, खासकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की टेक्नोलॉजी चोरी सहित खुद की साजिशों के कारण। यह गाथा जारी है क्योंकि चीन ने अब बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर कब्जा कर चुका है और इलेक्ट्रिक वाहनों और अन्य क्षेत्रों में अमेरिका सहित पश्चिम से काफी आगे निकल गया है।

और जापान और चीन के बाद आर्थिक ताकत और भारतीय कंपनियों की भूमिका के बारे में यह चिंता भारत की तरफ तो आनी ही थी, क्योंकि भारत की जीडीपी लगातार आगे बढ़ रही है, भारत का ग्रोथ रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है और बहुत जल्द भारत की अर्थव्यवस्था तीसरे नंबर पर आने वाली है और हर तरह के आर्थिक रिपोर्ट में बताया जा रहा है, कि भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार फिलहाल थमने वाली नहीं है।

लिहाजा, अडानी मामले को समझना काफी जरूरी हो जाता है।

अडानी रिश्वतकांड में सच क्या है, झूठ क्या है, इसका फैसला करना अदालत का काम है, लेकिन इस कथित भ्रष्टाचार कांड के पीछे की जियो-पॉलिटिक्स को समझना काफी जरूरी हो जाता है।

अडानी का उदय

अहमदाबाद स्थित करीब 150 अरब डॉलर का अडानी समूह, तीन दशक पहले लगभग अज्ञात था, और फिर भी यह भारत में बंदरगाहों से लेकर रियल एस्टेट, FMCG और मीडिया पोर्टफोलियो के साथ सबसे शक्तिशाली समूहों में से एक बन गया है। यह एक तरह से बांग्लादेश में बिजली की आपूर्ति से लेकर दुनिया भर में बंदरगाहों के निर्माण और मैनेजमेंट तक, भारत के भू-राजनीतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण में निजी योगदान की अगुआई कर रहा है।

उदय गौतम अडानी के व्यवसाय का उदय, भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उदय के साथ-साथ हुआ है और आज की तारीख में, अडानी समूह की लगभग हर भारतीय राज्य में दिलचस्पी है, और इस प्रकार, हर राजनीतिक दल के साथ उनके संबंध हैं।

यह उन बड़ी कंपनियों के समूह में सबसे आगे है, जिन्हें भारत की आर्थिक ताकत को घरेलू और दुनिया भर में पहुंचाने का काम सौंपा गया है, ठीक वैसे ही जैसे चैबोल्स ने कभी दक्षिण कोरिया के लिए किया था, या जैसा मित्सुबिशी, टोयोटा और सोनी जैसी कंपनियों ने 1980 के दशक में जापान के लिए किया था, या जैसा चीन की BYD आज EV बाजार में खलबली मचा रही है, उसी तरह से अडानी, भारत की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के मुख्य चेहरों में से एक बन गये हैं।

और यही वजह है, कि अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने जब अडानी समूह और उसके प्रमोटर गौतम अडानी के खिलाफ भ्रष्टाचार (रिश्वत) के आपराधिक और दीवानी आरोपों की घोषणा की, तो इस मामले ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। कुछ लोगों का मानना ​​,है कि अडानी पर हमला मोदी सरकार पर हमला है, लेकिन वास्तव में चीजें इससे काफी ज्यादा जटिल हैं।

अडानी समूह भारतीय अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है, जिसका मतलब है, कि यह देश के लगभग हर राजनीतिक दल के साथ काम करता है। आज इसकी राष्ट्रीय पहचान इतनी ज्यादा है, कि यह किसी एक पार्टी या यहा तक कि किसी एक राजनीतिक नेता के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

भारत के लिए कितना जरूरी हो चुके हैं अडानी?

हकीकत तो यह हे, कि भारत को ऐसे चैंपियनों की जरूरत है, जो इसके जियो-पॉलिटिकल फायदों को आगे बढ़ा सकें और यह सुनिश्चित कर सकें, कि भारत, चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का सामना करने की ताकत रखता है।

भारत के पास भले ही चीन जितनी आर्थिक ताकत नहीं है, लेकिन यह तेजी से विस्तार कर रहा है और कई देशों में इसकी चीन से ज्यादा साख है। अडानी समूह उन देशों में तेजी से बंदरगाह और एयरपोर्ट प्रोजेक्ट हासिल कर रहा है, जहां चीन अपना दबदबा बनाना चाहता है, और जो देश, भारत को जियो-पॉलिटिकल लाभ पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए श्रीलंका, जहां पोर्ट डील हासिल करने के लिए भारत और चीन एड़ी से चोटी का जोर लगा देते हैं।

और अमेरिका में जैसे ही अडानी समूह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गये, ठीक वैसे ही केन्या के राष्ट्रपति ने 2.6 अरब डॉलर के हवाईअड्डा और ऊर्जा सौदे को रद्द कर दिया, जबकि केन्या, जियो-पॉलिटिक्स में भारत और चीन के लिए कितना महत्व रखता है, ये बताने की जरूरत नहीं है। केन्या के साथ अडानी ग्रुप का डील रद्द होना, गौतम अडानी के लिए नहीं, बल्कि भारत के लिए झटका है।

अडानी पर एक के बाद एक हमले क्यों?

अडानी ग्रुप के खिलाफ रिश्वतकांड का ये खुलासा काफी दिलचस्प है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अडानी कानूनी घोटाला तब सामने आया है, जब कुछ महीने पहले अमेरिका के एक एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलर ने अडानी समूह के वित्तीय लेन-देन का तथाकथित खुलासा किया था, लेकिन उन खुलासों से समूह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

और रिश्वतकांड के जरिए आपराधिकर आरोप लगाकर कोशिश ये की गई है, कि इसे काफी गंभीरता से लिया जाएगा। हालांकि, अडानी ग्रुप ने तमाम आरोपों से इनकार कर दिया है।

गौतम अडानी के खिलाफ़ सुझाए गए आपराधिक मामले को शायद ज़्यादा गंभीरता से लिया जाएगा- अडानी समूह ने सभी आरोपों से इनकार किया है और एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अदालत के अंदर ऐसे आरोपों के टिकने की संभावना नहीं है, लिहाजा ऐसे आरोपों को लगाने के पीछे का मकसद कुछ और हो सकता है।

जैसे

– अडानी ग्रुप को अमेरिकी बाजारों से फंड जुटाने से रोकना

– अडानी ग्रुप को दुनियाभर में बंदरगाहों के विस्तार करने से रोकना

– अडानी के जरिए मजबूत मोदी सरकार पर दबाव बनाना

रिश्वतकांड के खुलासे के फौरन बाद अडानी ग्रुप की एक ऊर्जा कंपनी, अडानी ग्रीन को अमेरिका में अपने 600 मिलियन डॉलर के बॉन्ड की पेशकश वापस लेनी पड़ी है। यह जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक सरकार के अंतिम दिनों में हुआ है और यह बाइडेन नौकरशाही के कुछ हिस्सों के मोदी सरकार के साथ बढ़ते हुए तकरार का विस्तार भी हो सकता है।

रिश्वतकांड के खुलासे ने अडानी ग्रुप के मार्केट कैप में 25 अरब डॉलर की कमी कर दी है और इन आरोपों के बाद अगले कई महीनों तक इसके लिए अमेरिकी बाजार से फंड जुटाने की क्षमताओं पर गहरा असर पड़ेगा। लेकिन अमेरिका की इस हरकत से उसे खुद फायदा होने के बाद वास्तविक फायदा चीन को होगा।

जैसे, चीन का बंदरगाह प्रोजेक्ट किसी अमेरिकी कंपनी को नहीं, बल्कि चीन को मिलेगा। इसके अलावा, आने वाले वक्त में दुनियाभर में बिजली परियोजनाएं भी चीन के हिस्से में गिरने की संभावना ज्यादा बन गई है।

अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में बंदरगाहों, सड़कों, हवाई अड्डों, बिजली आपूर्ति और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में भी निश्चित तौर पर चीन फायदा उठाएगा, जो घरेलू आर्थिक संकट से जूझ रहा है।

रिश्वतकांड के पीछे साजिश की बदबू क्यों है?

लिहाजा, असल सवाल ये है, कि क्या इस अदालती मामले को इसलिए तेजी से आगे बढ़ाया गया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके, कि अडानी ग्रुप के खिलाफ एक्शन अगले साल जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार बनने से पहले डैमेज कर दिया जाए, खासकर तब, जब यह भारत में कथित रिश्वतखोरी से संबंधित है, न कि अमेरिका में।

अमेरिकी नियम ऐसे कानूनी हस्तक्षेप की अनुमति देते हैं जहां अमेरिका से धन जुटाया गया हो, और जहां अमेरिकी कंपनियों की भागीदारी हो, लेकिन ऐसे हस्तक्षेप नॉर्मल नहीं हैं।

लिहाजा, पूछे जाने चाहिए, क्या इस अदालती मामले की घोषणा से भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में और ज्यादा अस्थिरता लाने की कोशिश की गई है, जो पहले से ही खालिस्तान मुद्दे और खालिस्तानी आतंकवादी, गुरपतवंत सिंह पन्नू को खत्म करने की कथित भारतीय खुफिया साजिश से जूझ रहा था? क्या ट्रंप के सत्ता में आने से पहले चीजें और भी बिगड़ सकती हैं, और क्या यह इस बात के आधार तैयार किए जा रहे हैं, कि ट्रंप के सत्ता में आने के बाद भी दोनों देशों के बीच के रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी रहे?

Elon Musk: ‘भारत ने एक दिन में गिन डाले 64 करोड़ वोट’, एलन मस्क ने अमेरिकी वोटिंग सिस्टम को लगाई लताड़

Elon Musk: दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क ने भारतीय इलेक्शन प्रोसेस की तारीफ करते हुए अमेरिकी इलेक्शन सिस्टम को लताड़ लगाई और उन्होंने भारत में हुए लोकसभा चुनाव को सराहा है।

कैलिफोर्निया राज्य में वोटों की गिनती में देरी पर कटाक्ष करते हुए, अरबपति कारोबारी एलन मस्क ने तारीफ करते हुए कहा, कि भारत ने एक दिन में 64 करोड़ वोटों की गिनती की। इस साल जून में हुए लोकसभा चुनाव में भारत में सिर्फ एक दिन में 64 करोड़ से ज्यादा वोट गिने गये और उससे भी खास बात ये थी, कि लोकसभा चुनाव में दोपहर होते होते एक समझ आने लगी, कि किस पार्टी को करीब करीब कितनी सीटें मिलने जा रही हैं।

न्यूजवीक के एक लेख के मुताबिक, छह हफ्ते की अवधि में आयोजित किए गए भारत चुनाव में 642 मिलियन, यानि करीब 64 करोड़ से ज्यादा वोट डाले गए थे और चंद घंटों में सभी वोटों की गिनती हो जाने से शाम होते होते स्पष्ट चुनावी नतीजे सामने आ गये थे।

लेकिन, आपको हैरानी होगी, कि अमेरिका में 5 नवंबर को हुए राष्ट्रपति चुनाव में भले ही डोनाल्ड ट्रंप जीत हासिल कर चुके हैं, लेकिन कैलिफोर्निया राज्य अभी भी वोटों की गिनती कर ही रहा है, जिससे कई लोग हैरान हैं कि इस देरी के पीछे क्या कारण है?

रविवार को एलन मस्क ने एक्स पर न्यूजवीक का एक लेख शेयर किया, जिसमें बताया गया है, कि कैसे भारत ने 24 घंटे के भीतर 600 मिलियन से ज्यादा वोटों की गिनती करने में कामयाबी हासिल की। ​​उन्होंने कैलिफ़ोर्निया में वोटों की गिनती के लिए अपनाई जाने वाली सुस्त प्रक्रिया पर भी कटाक्ष किया। मस्क ने एक्स पर लिखा, “भारत ने 1 दिन में 640 मिलियन वोटों की गिनती की। कैलिफोर्निया अभी भी वोटों की गिनती कर रहा है।”

 

 

कैलिफोर्निया में वोटों की गिनती में दिक्कत

एलन मस्क की यह टिप्पणी उस समय आई है, जब यह पाया गया है, कि कैलिफोर्निया राज्य, चुनाव खत्म होने के दो हफ्ते से ज्यादा समय बाद भी मतपत्रों की गिनती कर रहा है। इस सप्ताह की शुरुआत में, कैलिफोर्निया के चुनाव अधिकारियों ने सूचित किया था, कि राज्य में अभी भी 300,000 से ज्यादा मतपत्रों की गिनती होनी बाकी है।

यह ध्यान देने वाली बात है, कि कैलिफोर्निया संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है और यहां 3 करोड़ 90 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। इसमें से कम से कम 1 करोड़ 60 लाख लोगों ने इस महीने हुए राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाला था। पिछले कुछ वर्षों में, राज्य लगातार अपने मतों की गिनती और रिपोर्ट करने में सबसे धीमे राज्यों में से एक रहा है।

इस देरी का एक कारण यह है, कि राज्य बहुत बड़ा है और ज्यादातर मतपत्र डाक से डाले जाते हैं। शुक्रवार को चुनाव अधिकारियों ने कहा, कि हर मतपत्र की गिनती में कई हफ्ते लगेंगे। इसी तरह राज्य ने 2020 और 2022 के चुनावों में अपने अंतिम नतीजों की रिपोर्ट करने में भी कई हफ्ते लगा दिए थे।

एसोसिएटेड प्रेस ने बताया है, कि मेल-इन मतपत्रों की गिनती में देरी इसलिए होती है, क्योंकि प्रत्येक मतदाता को व्यक्तिगत रूप से वैलिडेट किया जाना जरूरी होता है, और यह मतदान केंद्र पर मतपत्र को स्कैन करने की तुलना में ज्यादा गहन प्रक्रिया है।

भारत में वोटों की गिनती क्यों होती है तेज?

भारत में दुनिया का सबसे विशाल चुनाव होता है और इस साल हुए लोकसभा चुनाव में करीब 90 करोड़ से ज्यादा लोग वोटर्स थे, जिनमें से रिकॉर्ड 64 करोड़ 20 लाख लोगों ने वोट डाले थे। लेकिन, इस बार के इलेक्शन में किसी भी पार्टी ने बहुमत हासिल नहीं किया। मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था, कि “हमने 642 मिलियन गौरवान्वित भारतीय मतदाताओं का विश्व रिकॉर्ड बनाया है। यह एक ऐतिहासिक क्षण है।”

जब मतगणना प्रक्रिया की बात आती है, तो भारत में मतों की गिनती विकेंद्रीकृत तरीके से की जाती है, जो 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से हर एक क्षेत्र में एक साथ होती है। चुनाव अधिकारी पहले डाक से आए मतपत्रों की गिनती शुरू करते हैं, उसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) द्वारा दर्ज किए गए मतों की गिनती करते हैं, जिनका इस्तेमाल देश में 2000 से किया जा रहा है। ये प्रक्रिया काफी तेज होती है।

इतना ही नहीं, प्रत्येक वोट को वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) द्वारा भी सपोर्ट किया जाता है, जो हर बार वोट डालने पर एक पेपर स्लिप बनाता है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद, डाक मतपत्रों की गिनती की जाती है और अन्य मतों की गिनती से पहले घोषणा की जाती है। इसके बाद, सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में ईवीएम को खोला जाता है।

रिटर्निंग ऑफिसर (RO) की देखरेख में, मतगणना आम तौर पर एक बड़े हॉल में होती है, और प्रत्येक राउंड के बाद परिणाम रिकॉर्ड किए जाते हैं और घोषित किए जाते हैं। शनिवार को भी, भारत झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में कुछ ही घंटों में 9 करोड़ वोटों की गिनती करने में कामयाब रहा। अकेले महाराष्ट्र राज्य की जनसंख्या कैलिफोर्निया से लगभग चार गुना ज्यादा है।

‘अगर मैं मारी गई तो करवा दूंगी राष्ट्रपति की हत्या’, फिलीपींस की उप-राष्ट्रपति की उग्रवादियों वाली धमकी

Philippines News: फिलीपींस की उपराष्ट्रपति सारा डुटर्टे ने शनिवार को एक चौंकाने वाली धमकी देते हुए कहा है, कि “अगर उनकी हत्या की जाती है, तो वे राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर की हत्या करवा देंगी।” उप-राष्ट्रपति के बयान के बाद फिलीपींस की राजनीति में भूचाल आ गया है।

वहीं, उप-राष्ट्रपति सारा डुटर्टे की सार्वजनिक धमकी के बाद राष्ट्रपत के कार्यालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा है, कि “तत्काल उचित कार्रवाई” की जाएगी।

उप-राष्ट्रपति की धमकी, देश के दो सबसे प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों के बीच तनाव में नाटकीय वृद्धि को दिखाता है। उप-राष्ट्रपति डुटर्टे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, कि उन्होंने एक हत्यारे को निर्देश दिया है, कि अगर उनकी मृत्यु होती है तो वे मार्कोस, उनकी पत्नी और फिलीपीन प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष की हत्या कर दें।

उन्होंने कहा, कि “मैंने किसी से बात की है। मैंने उनसे कहा, अगर मैं मारी जाती हूं, तो जाकर बीबीएम (मार्कोस), (फर्स्ट लेडी) लिजा अरनेटा और (स्पीकर) मार्टिन रोमुअलडेज को मार डालो। कोई मजाक नहीं। कोई मजाक नहीं।”

डुटर्टे का प्रेस कॉन्फ्रेंस अपशब्दों से सना हुआ था और समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने ये भी कहा, कि “मैंने कहा है, कि जब तक वे मर न जाएं, तब तक रुकना नहीं है, और वह व्यक्ति सहमत हो गया।”

उनकी यह टिप्पणी उस ऑनलाइन अपील के जवाब में आई है, जिसमें उनसे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए कहा गया था, क्योंकि वह अपने चीफ ऑफ स्टाफ के साथ कांग्रेस के निचले सदन में रात भर रुकी थीं। हालांकि, डुटर्टे ने अपनी जान को किसी खास खतरे का हवाला नहीं दिया।

उप-राष्ट्रपति के बयान पर क्या बोला राष्ट्रपति का कार्यालय?

वहीं, उपराष्ट्रपति की धमकी के बाद राष्ट्रपति के कम्युनिकेशन ऑफिस ने तत्काल जवाब देते हुए कहा, “उप-राष्ट्रपति के स्पष्ट दावे को देखते हुए, कि उन्होंने राष्ट्रपति को मारने के लिए एक हत्यारे को कॉन्ट्रैक्ट दिया है, अगर उनके खिलाफ कथित साजिश सफल हो जाती है, तो कार्यकारी सचिव ने तत्काल और उचित कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति सुरक्षा कमान को इस गंभीर खतरे के बारे में बताया है। राष्ट्रपति के जीवन के लिए किसी भी खतरे को हमेशा गंभीरता से लिया जाना चाहिए, खासकर जब इसे सार्वजनिक रूप से इतने स्पष्ट शब्दों में बताया जाता है।”

डुटर्टे के कार्यालय ने अभी तक राष्ट्रपति के ऑफिस के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इस बीच, डुटर्टे ने मार्कोस पर हमला करते हुए कहा, “यह देश नरक में जा रहा है, क्योंकि हमारा नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है जो राष्ट्रपति बनना नहीं जानता और झूठा है।”

राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के बीच क्या है विवाद?

मार्कोस और डुटर्टे परिवारों के बीच तनावपूर्ण गठबंधन, जिसने पहले 2022 में अपनी भारी चुनावी जीत हासिल की थी, स्पष्ट रूप से बिगड़ गया है। पूर्व राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे की बेटी डुटर्टे ने जून में मार्कोस के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, जो उनकी राजनीतिक साझेदारी के टूटने का संकेत था।

यह दरार तब और गहरी हो गई, जब मार्कोस के चचेरे भाई, स्पीकर रोमुअलडेज़ ने उपराष्ट्रपति के कार्यालय के बजट को लगभग दो-तिहाई तक कम कर दिया। डुटर्टे ने मार्कोस के नेतृत्व की खुलेआम आलोचना की है, उन पर अक्षमता का आरोप लगाया है और यहां तक ​​कि अक्टूबर में दावा किया, कि “उन्होंने उनका सिर कलम करने की कल्पना की थी।”

दोनों परिवारों के बीच विदेश नीति और रॉड्रिगो डुटर्टे के नेतृत्व में ड्रग्स पर विवादास्पद युद्ध सहित प्रमुख मुद्दों पर भी टकराव हुआ है। मई में होने वाले मध्यावधि चुनाव मार्कोस की लोकप्रियता का एक महत्वपूर्ण टेस्ट होने की उम्मीद है और यह उन्हें 2028 में अपने कार्यकाल के समापन से पहले सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर प्रदान कर सकता है।

राजनीतिक हिंसा ने फिलीपींस के इतिहास को कलंकित कर दिया है, विशेष रूप से 1983 में विपक्षी सीनेटर बेनिग्नो एक्विनो की हत्या के बाद, जब वे निर्वासन से लौटे थे, जो मार्कोस के पिता के शासन के खिलाफ संघर्ष में एक महत्वपूर्ण क्षण था।

26/11 Anniversary: मुंबई हमले का मास्टरमाइंड, ग्लोबल टेरेरिस्ट, क्या हाफिज सईद को पाकिस्तान से ला पाएगा भारत?

26/11 Anniversary: मुंबई में दिल दहला देने वाले हमले के 16 साल हो गये हैं, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े आतंकी हमलों में शामिल मुंबई हमले के सबसे बड़े गुनहगार को अभी भी भारत को नहीं सौंपा गया है। हम बात कर रहे हैं हाफिज सईद की, जिसने ही इस आतंकी हमले का तानाबाना बुना था।

भारत ने 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के प्रत्यर्पण के लिए पाकिस्तान से औपचारिक अनुरोध किया था और पाकिस्तान ने इस अनुरोध की पुष्टि भी की थी, लेकिन पाकिस्तान ने इस ग्लोबल टेरेरिस्ट को भारत को नहीं सौंपा। पाकिस्तान ने इस साल जनवरी में कहा था, कि “पाकिस्तान और भारत के बीच पहले से कोई द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि नहीं है।”

क्या हाफिज सईद कभी नहीं लाया जा सकेगा भारत?

इसका मतलब यह लगाया जा सकता है, कि हाफिज सईद को भारत को सौंपने में पाकिस्तान की कोई दिलचस्पी नहीं है। भले ही भारत-पाकिस्तान के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, लेकिन दोनों देशों के बीच किसी व्यवस्था के जरिए प्रत्यर्पण संभव हो सकता है।

इस साल जनवरी में भारत ने हाफिज सईद को सौंपने के लिए कहा था और वह पहली बार नहीं था, जब भारत ने पाकिस्तान से सईद के प्रत्यर्पण के लिए ऐसा अनुरोध किया था। पाकिस्तान लगातार सईद को सौंपने से बचता रहा है।

पाकिस्तान दलील देता है, कि उसने हमेशा आतंकवाद विरोधी नीति अपनाई है, जिसके तहत वह या तो आतंकी खतरे को बेअसर करेगा या फिर आतंकवादियों को अन्य राज्य-विरोधी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। लेकिन, पाकिस्तान ने ऐसा कभी नहीं किया है। और इस बैकग्राउंड से देखने पर, यह माना जा सकता है, कि पाकिस्तान के पास लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के लिए स्पष्ट रूप से बड़ी योजनाएं थीं।

सईद पर 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम है, उस पर अमेरिका और भारत ने आतंकी गतिविधियों और अपहरण में शामिल होने का आरोप लगाया है, फिर भी उसे एक पाकिस्तानी नागरिक की तरह बुनियादी आज़ादी मिली हुई है। उनका “चैरिटी संगठन”, जमात-उद-दावा (JuD), पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है।

आतंकवादियों को लेकर क्या है पाकिस्तान की नीति?

हाफिज सईद को पाकिस्तान में आतंकवादियों को फंडिंग के लिए 78 सालों की सजा मिली है, लेकिन ऐसा सिर्फ अमेरिकी दबाव की वजह है और ऐसी रिपोर्ट है, कि वो पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी ISI की सुरक्षा में है।

लिहाजा, हाफिज सईद के साथ पाकिस्तान का जो रवैया है, उस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि पाकिस्तान अपने सुरक्षा खतरों को विभिन्न समूहों में बांटकर रखता है। एक वर्ग में वे लोग शामिल हैं, जो सिर्फ पाकिस्तान के लिए खतरा हैं, दूसरा वर्ग वो, जिसमें पाकिस्तान और अमेरिका दोनों के लिए खतरा हो सकते हैं, या फिर वो, जो चीन के लिए खतरा पैदा करते हैं, और अंत में, वे लोग हैं, जो भारत जैसे अन्य देशों के लिए खतरा हैं।

पाकिस्तान के लिए हाफिज सईद अंतिम श्रेणी में आता है। सईद ने हिंसा से दूर रहने का दावा करके एक सामाजिक-राजनीतिक अभिनेता के रूप में अपनी छवि को फिर से बनाने और सुधारने की कोशिश की है। शुरू में, यह माना गया था, कि अफगानिस्तान से अमेरिका के हटने पर, हाफिज सईद को पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में सीमा पार पाकिस्तान की ओर आतंकवादियों के बीच तनाव को कम करने के लिए उपयोगी बनाया जाएगा।

उस समय ऐसा माना गया था, कि सईद एक आदर्श उम्मीदवार था, जो न केवल भारत विरोधी था, बल्कि एक कट्टर पाकिस्तानी देशभक्त भी था, जो पाकिस्तान के खिलाफ कभी भी अराजकतावादी गतिविधियां नहीं करेगा।

मौलाना होने के नाते हाफिज ने लश्कर-ए-झांगवी और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे अन्य आतंकवादी समूहों के साथ बातचीत करने के मौके भी बनाए। हालांकि, हाल के वर्षों में, ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तानी योजनाएं बहुत सफल नहीं रहीं, खासकर टीटीपी के संबंध में और टीटीपी अब पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है।

सईद कश्मीर में भारत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहा है, और वो अभी भी भारत के खिलाफ जितना जहर बो सकता है, उतना किसी और पाकिस्तानी आतंकी में दम नहीं है, और इसीलिए, वो पाकिस्तान के लिए काफी उपयोगी है। इसलिए, यह बहुत कम संभावना है, कि पाकिस्तान सईद को बेअसर करेगा या उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा, जब तक कि वह पाकिस्तानी सरकार के लिए उपयोगी बना रहे और गज़वा-ए-हिंद के प्रयासों को भी मजबूत करे।

हाफिज सईद का रहस्य उजागर

हाफिज सईद का जन्म पाकिस्तान के सरगोडा में हुआ था। उसे हाफिज नाम इसलिए मिला, क्योंकि उसने कम उम्र में ही कुरान को याद कर लिया था। अपने भाई-बहनों और पिता की तरह, उसने इस्लामी अध्ययन और अरबी भाषा में दो मास्टर डिग्री हासिल की।

निदा-ए-मिल्लत पत्रिका के मुताबिक, सईद ने 1970 में जमात-ए-इस्लामी के चुनाव अभियान में भाग लिया और 1971 में ढाका के पतन के बाद, उसने पार्टी से अलग होने का फैसला किया।

जनरल जिया उल हक ने सईद को इस्लामिक विचारधारा परिषद में नियुक्त किया और बाद में उसने पाकिस्तान के इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय में इस्लामी अध्ययन के शिक्षक के रूप में पढ़ाया। 1980 के दशक में, उसे दो सऊदी शेखों से मिलवाया गया जो सोवियत-अफगान युद्ध में शामिल थे।

दो शेखों से बहुत प्रभावित होने के कारण, हाफिज ने अफगानिस्तान में मुजाहिदीन की लड़ाई का समर्थन किया। उसके जिहादी करियर में महत्वपूर्ण मोड़ 1987 में आया, जब उसने अब्दुल्ला अज़्ज़ाम और प्रो. जफर इकबाल सरदार के साथ मिलकर मरकज दावा-वल-इरशाद की स्थापना की। यह समूह जमीयत अहल-ए-हदीस से निकला था, जो राजनीतिक प्रकृति का था।

आखिरकार, मरकज दावा-वल-इरशाद के जरिए 1987 में कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का उदय हुआ। पाकिस्तानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने भारत को अस्थिर करने के लिए जम्मू और कश्मीर में अस्थिरता फैलाने के लिए LeT को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

तब से, सईद भारत के खिलाफ कई आतंकी हमलों में शामिल रहा है, जैसे कि लाल किला हमला (22 दिसंबर 2000), रामपुर हमला (1 जनवरी 2008), 26/11 मुंबई हमला (26-28 नवंबर 2008) और साथ ही जम्मू और कश्मीर के उधमपुर में बीएसएफ काफिले पर हमला (5 अगस्त 2015)।

हाफिज मुहम्मद सईद कई मामलों में आरोपी है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा उसकी जांच की जा रही है। सईद के खिलाफ अन्य मामले भी दर्ज हैं, जिनमें आतंकी फंडिंग के मामले भी शामिल हैं।

सईद की भागीदारी एक महिला संगठन, दुख्तरान-ए-मिल्लत (डीएम) के साथ देखी गई है। इस संगठन को एक नरम आतंकवादी संगठन माना जाता है, जिसमें यह मुख्य रूप से अपने जिहादी विचारधाराओं को धमकाने या लागू करने के लिए गैर-कानूनी साधनों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।

हालांकि, चूंकि संगठन ने पूरी तरह से हथियारों का सहारा नहीं लिया है, इसलिए उन्हें एक नरम आतंकवादी संगठन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस समूह का गठन 1987 में हुआ था और यह कश्मीर मामले को एक धार्मिक मुद्दा मानता है तथा इसके लिए यह भारत पर जिहाद का आह्वान करता है।

पाकिस्तान में हाफिज सईद का क्या होगा?

पाकिस्तान में सईद की गिरफ्तारी और सजा, आतंकवाद पर तथाकथित पाकिस्तानी कार्रवाई के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खुश करने और समझाने के लिए एक दिखावा से कम नहीं है।

हाफिज मुहम्मद सईद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और रूस ने आतंकवादी के रूप में नामित किया है, फिर भी भारत न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है। वह भारत की एनआईए मोस्ट वांटेड लिस्ट में है।

एक विडंबना ये भी रहा, कि इस साल पाकिस्तान में हुए संसदीय चुनाव में हाफिज सईद का बेटे तल्हा सईद भी लाहौर के NA-127 से उम्मीदवार बना, हालांकि ये अलग बात है, कि उसे इमरान खान की पार्टी के एक उम्मीदवार ने हरा दिया, लेकिन उसका चुनाव में उतरना ही पाकिस्तान के चरित्र को उजागर करता है। लिहाजा, इस बात की उम्मीद लगभग नहीं की जा सकती है, कि हाफिज सईद का प्रत्यर्पण किया जाएगा, बल्कि पाकिस्तान, उसके लिए संकट मोचक बना रहेगा।

Adani Bribery Case: गौतम अधिकारी और सागर अडानी की होगी गिरफ्तारी? अमेरिका ने भेजा समन, क्या करेंगे?

Adani Bribery Case: अडानी समूह के संस्थापक और चेयरमैन गौतम अडानी और उनके भांजे सागर अडानी को सौर ऊर्जा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए 265 मिलियन अमेरिकी डॉलर, यानि करीब 2200 करोड़ रुपये की रिश्वत देने के मामले में अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) ने दोनों को समन भेजा है।

समन में गौतम अडानी और सागर अडानी को आरोपों पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए बुलाया गया है। अहमदाबाद में अडानी के शांतिवन फार्म निवास और उसी शहर में उनके सागर अडानी के बोदकदेव निवास पर 21 दिनों के भीतर SEC को जवाब देने के लिए समन भेजा गया है।

अमेरिका करना चाहता है गौतम अडानी, सागर को गिरफ्तार?

न्यूयॉर्क ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के माध्यम से 21 नवंबर को भेजे गए नोटिस में कहा गया है, “इस समन के 21 दिनों के भीतर (जिस दिन आपको यह समन मिला था, उसे छोड़कर)…आपको वादी (SEC) को संलग्न शिकायत का उत्तर या संघीय सिविल प्रक्रिया नियमों के नियम 12 के तहत एक प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा।”

समन में आगे कहा गया है, कि “यदि आप जवाब देने में नाकाम रहते हैं, तो शिकायत में मांगी गई राहत के लिए डिफ़ॉल्ट रूप से आपके खिलाफ फैसला दर्ज किया जाएगा। आपको अपना उत्तर या प्रस्ताव भी न्यायालय में दाखिल करना होगा।” यानि, समन में सख्ती दिखाई गई है, जो अडानी ग्रुप के लिए बहुत बड़ा झटका है।

62 साल के गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर सहित सात अन्य प्रतिवादी, जो समूह की अक्षय ऊर्जा इकाई अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड में निदेशक हैं, उन्होंने कथित तौर पर 2020 से 2024 के बीच भारतीय सरकारी अधिकारियों को लगभग 265 मिलियन अमरीकी डालर की रिश्वत देने पर सहमति जताई थी, ताकि आकर्षक सौर ऊर्जा आपूर्ति कॉन्ट्रैक्ट हासिल किए जा सकें, जिनकी शर्तों से 20 वर्षों में 2 बिलियन डालर का मुनाफा होने की उम्मीद है।

बुधवार को न्यूयॉर्क की एक अदालत में गौतम अडानी और सागर अडानी पर अभियोग लगाए गये हैं।

अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लगाए गए अभियोग से अलग, अमेरिकी SEC ने भी इन दोनों और Azure Power Global के कार्यकारी अधिकारी सिरिल कैबनेस पर “बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी” के लिए आरोप लगाया है।

हालांकि, बंदरगाहों से लेकर ऊर्जा तक के कारोबार से जुड़े अडानी समूह ने आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि वह सभी संभव कानूनी संसाधनों की तलाश करेगा।

अडानी ग्रुप की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, कि “अडानी समूह ने हमेशा अपने ऑपरेशन के सभी अधिकार क्षेत्रों में शासन, पारदर्शिता और रेगुलेशन के उच्चतम स्टैंडर्ड को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। हम अपने हितधारकों, भागीदारों और कर्मचारियों को आश्वस्त करते हैं, कि हम एक कानून का पालन करने वाला संगठन हैं जो सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है।”

अमेरिकी अभियोग क्या होता है?

अमेरिका में अभियोग मूल रूप से एक औपचारिक लिखित आरोप होता है, जो प्रॉसीक्यूटर द्वारा शुरू किया जाता है और एक ग्रैंड जूरी द्वारा अपराध के आरोप में किसी पक्ष के खिलाफ जारी किया जाता है। अभियोग लगाए गए व्यक्ति को जवाब देने के लिए औपचारिक नोटिस दिया जाता है।

Justin Trudeau: PM मोदी पर लांछन लगाकर जस्टिन ट्रूडो घर में ही घिरे, अपने ही अधिकारियों को कहा ‘क्रिमिनल’

Justin Trudeau News: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने शुक्रवार को अपने ही खुफिया अधिकारियों पर निशाना साधा और मीडिया को जानकारी लीक करने के लिए उन्हें “अपराधी” कहा है। जस्टिन ट्रूडो ने अपने अधिकारियों को उस वक्त ‘क्रिमिनल’ कहा, जब प्रधानमंत्री मोदी पर गंभीर आरोप लगाए गये थे।

शुक्रवार को ब्रैम्पटन में मीडिया को संबोधित करते हुए ट्रूडो ने खुफिया अधिकारियों पर बरसते हुए कहा, कि उन्होंने पहले ही विदेशी हस्तक्षेप की राष्ट्रीय जांच शुरू कर दी है।

उन्होंने कहा, कि “दुर्भाग्य से हमने देखा है, कि मीडिया को शीर्ष-गुप्त जानकारी लीक करने वाले ‘अपराधी’ लगातार उन कहानियों को गलत साबित कर रहे हैं। इसलिए हमने विदेशी हस्तक्षेप की राष्ट्रीय जांच की, जिसने इस बात पर प्रकाश डाला है, कि मीडिया आउटलेट को जानकारी लीक करने वाले अपराधी, अपराधी होने के अलावा अविश्वसनीय भी हैं।”

ट्रूडो ने अपने ही खुफिया अधिकारियों के खिलाफ नाराजगी क्यों जताई?

ट्रूडो का यह बयान उस मीडिया रिपोर्ट के एक दिन बाद आया है, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को कनाडा में आपराधिक गतिविधियों से जोड़ा गया है, जिसमें सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की कथित साजिश भी शामिल है, जिसे कनाडाई सरकार ने “अटकलबाजी और गलत” करार दिया गया है।

एक अनाम वरिष्ठ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी के हवाले से, द ग्लोब एंड मेल अखबार ने मंगलवार को बताया था, कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों का मानना ​​है, कि प्रधानमंत्री मोदी निज्जर की हत्या और अन्य हिंसक साजिशों के बारे में जानते थे। अधिकारी ने कहा, कि कनाडाई और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने हत्या के ऑपरेशन को गृह मंत्री अमित शाह से जोड़ा है। अधिकारी ने कहा कि डोभाल और जयशंकर भी इस बात की जानकारी में थे।

हालांकि, कनाडा के प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं खुफिया सलाहकार नैथली जी ड्रोइन ने इन दावों को खारिज कर दिया, जबकि एक दिन पहले ही भारत ने इस रिपोर्ट को “बदनाम करने का अभियान” करार दिया था।

 

कनाडा पुलिस ने मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया

प्रिवी काउंसिल ऑफिस द्वारा गुरुवार को जारी एक बयान में, ड्रोइन ने कहा, “14 अक्टूबर को, सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण और निरंतर खतरे के कारण, RCMP और अधिकारियों ने भारत सरकार के एजेंटों द्वारा कनाडा में गंभीर आपराधिक गतिविधि के सार्वजनिक आरोप लगाने का असाधारण कदम उठाया।”

हालांकि, उन्होंने कहा, “कनाडा सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी, मंत्री जयशंकर या एनएसए डोभाल को कनाडा के भीतर गंभीर आपराधिक गतिविधि से जोड़ने वाले सबूतों के बारे में कुछ नहीं कहा है, न ही उसे इसकी जानकारी है। इसके विपरीत कोई भी सुझाव, अटकलें और गलत, दोनों है।”

14 अक्टूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) के कमिश्नर माइक डुहेम ने व्यापक हिंसा, हत्याओं और भारत सरकार के “एजेंटों” से जुड़ी सार्वजनिक सुरक्षा के खतरे की चेतावनी दी थी।

डुहेम के कॉन्फ्रेंस के कुछ घंटों बाद, प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने संवाददाताओं से कहा, “मेरा मानना ​​है कि भारत ने अपने राजनयिकों और संगठित अपराध का इस्तेमाल करके कनाडाई लोगों पर हमला करने, उन्हें अपने घर में असुरक्षित महसूस कराने और इससे भी अधिक, हिंसा और यहां तक ​​कि हत्या की घटनाओं को अंजाम देने के लिए एक बड़ी गलती की है।

उन्होंने कहा, कि यह “अस्वीकार्य है।”

26 अक्टूबर को कनाडा के उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने आरोप लगाया था, कि भारतीय गृह मंत्री शाह ने कनाडा के अंदर सिख अलगाववादियों को निशाना बनाकर हिंसा, धमकी और खुफिया जानकारी जुटाने का अभियान चलाने का आदेश दिया है।

भारत ने रिपोर्ट को “हास्यास्पद” बताया

बुधवार को नई दिल्ली में, ग्लोब एंड मेल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, कि इस तरह के “हास्यास्पद बयानों” को उसी अवमानना ​​के साथ खारिज किया जाना चाहिए, जिसके वे हकदार हैं और “इस तरह के बदनाम करने वाले अभियान हमारे पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और नुकसान पहुंचाते हैं”।

खालिस्तानी अलगाववादियों को कनाडा के कथित समर्थन और निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता के आरोप के कारण भारत-कनाडा संबंधों में गहरी खटास बनी हुई है, जिसकी पिछले साल जून में ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पिछले महीने भारत-कनाडा संबंधों में और गिरावट तब आई, जब कनाडा ने भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा और कुछ अन्य राजनयिकों को हत्या से जोड़ा था, जिसपर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।

Pakistan: पाकिस्तान में भयानक हुई सांप्रदायिक हिंसा की आग, शिया-सुन्नियों की लड़ाई में 47 लोगों की मौत

Pakistan News: आतंकवादी हमलों की वजह से पहले ही लहूलुहान हो चुके पाकिस्तान में पिछले दो दिनों से सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़की हुई है और पिछले 48 घंटों में दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं और अभी तक भी लोगों के सिर से खून नहीं उतरा है।

पुलिस ने बताया है, कि पिछले 24 घंटों में उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 32 लोग मारे गए हैं और 30 अन्य घायल हो गए। वहीं, पिछले 48 घंटे में मरने वालों की संख्या 47 हो गई है।

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कुर्रम जिले में अलीजई और बागान जनजातियों के बीच झड़पें गुरुवार को यात्री वैन के काफिले पर हुए हमले के बाद हुईं, जिसमें 47 लोगों की हत्या कर दी थी। बालिशखेल, खार काली, कुंज अलीजई और मकबल में भी गोलीबारी जारी है। जनजातियां भारी और स्वचालित हथियारों से एक-दूसरे को निशाना बना रही हैं।

पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये हिंसक झड़प शिया और सुन्नियों के बीच हो रही है। कल सुन्नियों ने शियाओं के ऊपर हमला किया था और आज शियाओं ने बदला लिया है। इस लड़ाई में घरों और दुकानों को भी नुकसान पहुंचा है। वहीं, कई गांवों से लोग सुरक्षित स्थानों की तरफ भाग निकले हैं।

कोचिंग सेंटर चलाने वाले मुहम्मद हयात हसन ने पुष्टि की है, कि बिगड़ते हालात के कारण शनिवार को जिले के सभी शैक्षणिक संस्थान बंद रहेंगे।

गुरुवार को बागान, मंदुरी और ओछत में 50 से ज्यादा यात्री वाहनों पर गोलीबारी की गई थी। पुलिस ने बताया, कि गोलीबारी में छह वाहन सीधे तौर पर क्षतिग्रस्त हो गए, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं और बच्चों सहित 47 लोगों की मौत हो गई थी। अधिकारियों ने बताया है, कि ये वाहन खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी पाराचिनार से पेशावर जा रहे थे। उन्होंने बताया कि ज्यादातर पीड़ित शिया समुदाय के थे।

पाकिस्तान में शिया और शिया मुसलमान

सुन्नी बहुल पाकिस्तान की 24 करोड़ की आबादी में शिया मुसलमान लगभग 15 प्रतिशत हैं, जिसका इतिहास दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक दुश्मनी का रहा है। हालांकि वे देश में काफी हद तक शांतिपूर्ण तरीके से एक साथ रहते हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में दशकों से तनाव बना हुआ है, खासकर कुर्रम के कुछ हिस्सों में, जहां शियाओं का वर्चस्व है।

इस साल जुलाई में भी भूमि विवाद को लेकर दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प में करीब 50 लोग मारे गए थे, जब कुर्रम में सुन्नी और शियाओं के बीच झड़पें हुई थीं। पाकिस्तान वर्तमान में उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में हिंसा से निपटने के लिए खुफिया-आधारित अभियान चला रहा है, जहां आतंकवादी और अलगाववादी अक्सर पुलिस, सैनिकों और नागरिकों को निशाना बनाते हैं। इन क्षेत्रों में अधिकांश हिंसा के लिए पाकिस्तानी तालिबान और प्रतिबंधित बलूच लिबरेशन आर्मी को दोषी ठहराया गया है।

इमरान खान की पत्नी बुशरा के बयान पर पाकिस्तान में बवाल, सऊदी अरब से जुड़े बयान पर बवाल, पूर्व पीएम फिर घिरे

इमरान खान की पत्नी, बुशरा बीबी, ने पूर्व प्रधान मंत्री की मुश्किलों के बारे में अपनी टिप्पणियों से विवाद खड़ा कर दिया है, उन्हें सऊदी अरब की यात्रा से जोड़कर एक्स पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में टिप्पणियों की पाकिस्तान के कई नेताओं ने आलोचना की है। बता दें कि वीडियो में, बुशरा बीबी ने दावा किया कि खान की समस्याएं 2018 में मदीना की उनकी यात्रा के बाद शुरू हुईं, जहां उन्हें जूते के बिना अपने विमान से उतरते हुए देखा गया था।

वीडियो को लेकर बुशरा बीबी ने सुझाव दिया कि इस घटना के कारण तत्कालीन सेना प्रमुख बाजवा को खान के कार्यों पर सवाल उठाने के लिए फोन किया गया था। इस्लामाबाद में एक विरोध प्रदर्शन से पहले खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के लिए समर्थन जुटाने के लिए वीडियो का इरादा था।

राजनीतिक प्रतिक्रिया

टिप्पणियों को सऊदी अरब की अप्रत्यक्ष आलोचना के रूप में माना गया है, जो पाकिस्तान का एक प्रमुख सहयोगी है। प्रधान मंत्री शरीफ ने टिप्पणियों की राष्ट्रीय हितों के लिए हानिकारक होने की निंदा की और सऊदी अरब के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने राष्ट्र से मित्र देशों के खिलाफ किसी भी प्रचार का मुकाबला करने का आग्रह किया।

जनरल बाजवा ने बुशरा बीबी के दावों को झूठा बताकर खारिज कर दिया, सवाल किया कि एक मित्र राष्ट्र पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में कैसे हस्तक्षेप कर सकता है। उन्होंने मार्च 2022 में इस्लामाबाद में इस्लामी सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के दौरान सऊदी अरब के समर्थन को मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के प्रमाण के रूप में उजागर किया।

रक्षा मंत्री आसिफ ख्वाजा ने भी बुशरा बीबी के बयान की आलोचना की, सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान के घनिष्ठ संबंधों को दोहराया। उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने दोनों देशों के बीच संबंधों को आपसी सम्मान पर आधारित बताया और घरेलू लाभ के लिए विदेश नीति को राजनीतिकरण करने के किसी भी प्रयास की निंदा की।

पीटीआई नेतृत्व बुशरा बीबी की टिप्पणियों से हैरान है, कुछ सदस्यों ने पार्टी के गति पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जबकि खान चल रहे मामलों में जमानत हासिल कर सकते हैं, उनकी पत्नी की टिप्पणियां मामले को जटिल बना सकती हैं।

पीटीआई के अंदर, एक तरह की अव्यवस्था है, कुछ सदस्यों को लगता है कि पार्टी में दिशा और नेतृत्व का अभाव है। पीटीआई कार्यकर्ता और गायक सलमान अहमद ने X पर बुशरा बीबी की आलोचना करते हुए उन्हें खान के लिए शर्म का स्रोत बताया।

दरअसल, ये विवाद ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान सऊदी अरब और चीन से 5 अरब डॉलर के बाहरी वित्तपोषण अंतर को दूर करने के लिए वित्तीय सहायता मांग रहा है। देश ने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को सऊदी अरब से देर से तेल भुगतान की अपनी उम्मीदों का आश्वासन दिया।