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Diplomacy: यूक्रेन में शांति के लिए दिल्ली में बन रहा रास्ता? ट्रंप की वापसी से पहले पुतिन इसलिए आ रहे भारत!

Diplomacy News: जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में भारत आएंगे, तो उनकी मुलाकातें यूक्रेन और उसके आस-पास के युद्ध पर नई दिल्ली की सैद्धांतिक तटस्थता के बैकग्राउंड में होंगी।

भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रखे गए रूस विरोधी प्रस्तावों से खुद को अलग रखा है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। साथ ही, भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने और यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने का आह्वान भी किया है।

अभी तक भारत ने रूस पर पश्चिमी दबाव को निकालने के लिए एक रिलीज वाल्व के रूप में काम किया है, जिससे मॉस्को को चीन पर अत्यधिक निर्भर होने के बजाय एक बड़ी शक्ति का विकल्प मिल गया है। भारत, चीन के बाद रियायती रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार 2021 में जहां सिर्फ 12 बिलियन डॉलर था, वो अब बढ़कर पिछले साल 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, सस्ते तेल ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है, जो पिछले साल औसतन 8.2% थी और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।

हालांकि, भारत सरकार रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करती है, लेकिन भारत के वित्तीय संस्थाओं को उन प्रतिबंधों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे इनमें से कुछ फंड को ट्रांसफर करना मुश्किल हो गया है। इस प्रकार रूस ने अपने रुपये के भंडार का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करने पर सहमति जताई है, जिससे दोनों पक्षों के व्यापार में विविधता लाने और संतुलन बनाने में मदद मिली है।

भारत और रूस ने तीन लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर के डेवलपमेंट को प्राथमिकता दी है, जिनमें से कोई भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। इनमें शामिल हैं:-

1- ईरान से होकर गुजरने वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जिसकी शाखाएं अजरबैजान, कैस्पियन सागर और मध्य एशिया तक फैली हैं।

2- व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री गलियारा, जिसे पूर्वी समुद्री गलियारा भी कहा जाता है

3- आर्कटिक में उत्तरी समुद्री मार्ग।

इन तीनों में से, INSTC सबसे ज्यादा आशाजनक है, लेकिन सबसे ज्यादा असुरक्षित भी है, क्योंकि ऐसी खबरें हैं, कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ईरान के खिलाफ अपने “अधिकतम दबाव” अभियान को फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

भारत के सामने क्या दिक्कतें आ सकती हैं?

भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने के लिए अमेरिका से पहले ही छूट हासिल कर ली है। ट्रंप, ईरान पर प्रतिबंधों को इस हद तक कड़ा कर सकते हैं, कि भारत को INSTC के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार को बंद करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिससे रूसी अलमारियों पर भारतीय उत्पादों की उपलब्धता कम हो सकती है – जिसमें फार्मास्यूटिकल्स भी शामिल हैं, जिससे बाजार में हिस्सेदारी कम हो सकती है और परिणामस्वरूप रूस की चीन पर पहले से ही उच्च निर्भरता बढ़ सकती है।

ऐसा ही तब हो सकता है, जब भारत द्वारा कथित तौर पर रूस के साथ स्थापित किए गए गुप्त तकनीकी चैनल को निशाना बनाया जाता है। यह आने वाले ट्रंप प्रशासन के अपने बड़े रणनीतिक हितों के खिलाफ काम करेगा, क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में चीन विरोधियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले ट्रंप ने कहा था, कि वह रूस और चीन को “अलग करना” चाहते हैं, लेकिन यदि वह ईरान को दंडित करने के लिए रूसी-भारतीय व्यापार पर नई सीमाएं लगाते हैं, तो इससे अनजाने में ही वे एक-दूसरे के और करीब आ जाएंगे।

ट्रंप ने यह भी कहा, कि वह यूक्रेन युद्ध को खत्म करने को प्राथमिकता देंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि वह ऐसा कैसे करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कुछ ऑब्जर्वर्स को उम्मीद है, कि वह युद्धविराम समझौते में यूक्रेन की जमीन पर रूसी कब्जे को मान्यता दे देंगे। हालांकि, वो क्या करेंगे, फिलहाल साफ नहीं है।

माना जा रहा है, कि 20 जनवरी को शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्ड ट्रंप बातचीत को फिर से शुरू कर सकते हैं।

भारत से कैसे गुजरेगा शांति का रास्ता?

डोनाल्ड ट्रंप अगर यूक्रेन में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू करते हैं, तो निश्चित तौर पर उन्हें भारत की तरफ देखना होगा, क्योंकि ये भारत ही है, जो बातचीत शुरू करने के लिए जमीन तैयार कर सकता है और राष्ट्रपति पुतिन के आगामी भारत दौरे को उसी लेंस में देखना होगा।

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन, सौदे के संभावित सैन्य और आर्थिक मापदंडों पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें रूस के खिलाफ लगाए गये प्रतिबंधों को धीरे धीरे कम करना और आगे जाकर खत्म करना शामिल हैं और ईरान के माध्यम से रूस के साथ भारतीय व्यापार के लिए प्रतिबंधों में छूट शामिल है।

इसके बाद भारत, निजी तौर पर रूसी वार्ता के इन बिंदुओं को ट्रंप प्रशासन तक पहुंचा सकता है, क्योंकि इसके पूरे आसान हैं, कि ट्रंप 2.0 के भारत के साथ विशेष रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध होंगे।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मंगलवार को पुष्टि की, कि पुतिन की भारत यात्रा की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी। यह जून में मोदी की रूस यात्रा के बाद होगी, जो सितंबर 2019 में व्लादिवोस्तोक में पूर्वी आर्थिक मंच में पुतिन के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के बाद से उनकी पहली रूस यात्रा थी। गर्मियों में उनकी पिछली बैठक में नेताओं ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए और एक विस्तृत संयुक्त बयान जारी किया।

डोनाल्ड ट्रंप, प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी हैं, और उनकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड भारत के काफी करीबी हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज, भारत कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं और विदेश मंत्री के लिए उनके नामित सीनेटर मार्को रुबियो ने जुलाई में अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग अधिनियम पेश किया था।

लिहाजा, कैबिनेट के इन सदस्यों के साथ यूक्रेन में शांति का मार्ग पूर्व मध्यस्थ तुर्की या महत्वाकांक्षी मध्यस्थ चीन के माध्यम से नहीं, बल्कि भारत के माध्यम से हो सकता है। इसलिए यह संभावना है, कि पुतिन और मोदी अपनी आगामी यात्रा के दौरान यूक्रेन सौदे पर चर्चा करेंगे, हालांकि उनकी चर्चाओं के बारे में जानकारी, निश्चित तौर पर सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

पुतिन को इस बात का पूरा अहसास है, कि डोनाल्ड ट्रंप एशिया की ओर वापस लौटने के लिए कितने उत्सुक हैं, जिसके लिए यूक्रेन युद्ध का तत्काल समाधान आवश्यक है। और पुतिन इस बात से भी वाकिफ हैं, कि चीन के मुकाबले यूरेशियाई शक्ति संतुलन को संभालने में भारत की भूमिका अपरिहार्य है।

इस प्रकार, मोदी ईरान के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए अच्छी स्थिति में हैं, जो अगर लागू होते हैं, तो रूस में और उसके ऊपर चीन का प्रभाव और बढ़ जाएगा। 2014 से पुतिन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के आधार पर, मोदी यूक्रेन में समझौता करने के सर्वोत्तम मार्ग पर व्यावहारिक सुझाव भी दे सकते हैं जो रूस को मंजूर होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डोमिनिका ने सर्वोच्च सम्मान से किया सम्मानित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डोमिनिका ने देश के सर्वोच्च सम्मान, “डोमिनिका अवार्ड ऑफ़ ऑनर” से सम्मानित किया है। यह प्रतिष्ठित सम्मान मोदी को डोमिनिका के राष्ट्रपति सिल्वेनी बर्टन द्वारा कोविड-19 संकट के दौरान उनके असाधारण योगदान और भारत और डोमिनिका के बीच संबंधों को मजबूत करने के लिए उनके अटूट समर्पण के लिए प्रदान किया गया। यह समारोह गुयाना के जॉर्जटाउन में भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन में हुआ, जो मोदी के तीन देशों के दौरे में एक यादगार क्षण था।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस सम्मान के लिए दिल से आभार व्यक्त किया और इसे भारत के लोगों को समर्पित किया। उन्होंने अपने विचार साझा करने के लिए एक्स का सहारा लिया और कहा, “डोमिनिका द्वारा सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने पर सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। मैं इसे भारत के 140 करोड़ लोगों को समर्पित करता हूँ।” मोदी ने दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों पर जोर दिया और इस पुरस्कार को भारत और डोमिनिका के बीच मजबूत बंधन का प्रमाण बताया।

डोमिनिका द्वारा मोदी को अपना सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान करने का इशारा कोविड-19 महामारी के सबसे कठिन दौर में भारत के महत्वपूर्ण समर्थन की स्वीकृति में था। 2021 में, जब दुनिया स्वास्थ्य संकट से जूझ रही थी, भारत ने डोमिनिका को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 70,000 खुराकें प्रदान कीं। चुनौतीपूर्ण समय में डोमिनिका का समर्थन करने में एकजुटता का यह कार्य महत्वपूर्ण था।

डोमिनिका के प्रधान मंत्री रूजवेल्ट स्केरिट ने मोदी के नेतृत्व और उनके कार्यों के गहन प्रभाव की प्रशंसा की। स्केरिट ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी की, “2021 में, कोविड-19 महामारी के सबसे काले दिनों के दौरान, 70,000 एस्ट्राजेनेका टीकों का आपका उदार प्रावधान डोमिनिका के लिए जीवन रेखा बन गया।”

इस पुरस्कार का महत्व महामारी प्रतिक्रिया से कहीं आगे तक फैला हुआ है; यह भारत और डोमिनिका के बीच गहरे संबंधों और साझा सिद्धांतों को भी दर्शाता है। दोनों राष्ट्र लोकतंत्र, प्रतिकूल परिस्थितियों में लचीलापन और एकता में पाई जाने वाली ताकत को महत्व देते हैं !

स्केरिट ने मोदी को दिए अपने सम्मान में इन साझा मूल्यों पर प्रकाश डाला, और बताया कि कैसे मोदी के नेतृत्व और मानवता के प्रति प्रतिबद्धता ने न केवल डोमिनिका पर बल्कि पूरी दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मोदी के कार्य केवल दान से कहीं अधिक थे; वे वैश्विक साझेदारी और दक्षिण-दक्षिण सहयोग के सार का प्रतीक थे।

उल्लेखनीय रूप से, डोमिनिका से यह सम्मान प्रधानमंत्री मोदी के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मानों की श्रृंखला का हिस्सा है, गुयाना और बारबाडोस भी उन्हें अपने सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान करने वाले हैं। इन पुरस्कारों के साथ मोदी के अंतरराष्ट्रीय सम्मानों की संख्या 19 हो गई है, जो उनके वैश्विक प्रभाव और नेतृत्व का प्रमाण है।

डोमिनिका से मिले इस पुरस्कार की घोषणा समारोह से कुछ दिन पहले की गई थी और यह मोदी के नेतृत्व में डोमिनिका के लिए भारत के व्यापक समर्थन की मान्यता है। इसमें स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, जलवायु लचीलापन और सतत विकास में योगदान शामिल हैं।

सम्मान के जवाब में, मोदी ने जलवायु परिवर्तन और भू-राजनीतिक संघर्ष जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने इन महत्वपूर्ण मुद्दों से निपटने के लिए डोमिनिका और कैरिबियन क्षेत्र के साथ मिलकर काम करने की भारत की प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की। स्वीकृति का यह संकेत मोदी के आपसी समर्थन और सहयोग के दृष्टिकोण को रेखांकित करता है जो भौगोलिक सीमाओं से परे है।

दुनिया जब जटिल चुनौतियों से जूझ रही है, तो भारत और डोमिनिका के बीच एकजुटता और आपसी सम्मान के कार्यों से मजबूत हुआ रिश्ता उम्मीद की किरण की तरह काम करता है। “डोमिनिका अवॉर्ड ऑफ ऑनर” न केवल मोदी के योगदान की मान्यता है, बल्कि दोनों देशों के बीच स्थायी साझेदारी का प्रतीक भी है। यह ऐसे नेतृत्व के महत्व को रेखांकित करता है जो अपने तात्कालिक दायरे से कहीं आगे जाकर वैश्विक स्तर पर एकता और सहयोग को बढ़ावा देता है।

दुनिया के नये ‘सऊदी अरब’ पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी, 56 सालों के बाद किसी भारतीय PM का दौरा, क्यों है खास?

India-Caricom summit: भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को गुयाना पहुंच गये हैं और 56 वर्षों में दक्षिण अमेरिकी देश का दौरा करने वाले वो पहले भारतीय प्रधानमंत्री बन गए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1968 में गुयाना का दौरा करने वाली आखिरी भारतीय नेता थीं।अभूतपूर्व कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री मोदी का गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली और एक दर्जन से ज्यादा कैबिनेट मंत्रियों ने हवाई अड्डे पर गर्मजोशी से गले लगाकर उनका स्वागत किया। प्रधानमंत्री मोदी को गुयाना के जॉर्जटाउन में औपचारिक स्वागत और गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।

 

गुयाना को दुनिया का नया सऊदी अरब कहा जाता है, क्योंकि यहां पर तेल के भंडार मिले हैं और भारत के लिए ये देश इसलिए भी काफी खास है, क्योंकि यहां की 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी भारतीय है। यहां के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली और उप-राष्ट्रपति भारत जगदेव, भारतीय मूल के हैं। भारतीय लोगों को अंग्रेज गिरमिटिया मजदूर बनाकर गुयाना और अन्य कैरेबियाई देश ले गये थे, जो अब काफी रसूखदार हो चुके हैं।

तेल और गैस संसाधनों की खोज के बाद गुयाना एक तेजी से बढ़ता हुआ देश है। देश के साथ जुड़ाव में, भारत न सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने की उम्मीद कर रहा है, बल्कि ग्लोबल साउथ देशों और कैरेबियाई क्षेत्र के बीच अपनी स्थिति को मजबूत करने की भी कोशिश कर रहा है।

भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करेंगे मोदी

गुयाना में, प्रधानमंत्री मोदी सभी कैरीकॉम देशों के नेताओं की मौजूदगी में ग्रेनाडा के प्रधानमंत्री डिकॉन मिशेल, कैरीकॉम (कैरिबियन समुदाय और साझा बाजार) के वर्तमान अध्यक्ष के साथ दूसरे भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता करेंगे। शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री मोदी ग्लोबल साउथ की आवाज के रूप में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालेंगे, जो कैरीकॉम देशों की राजनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं का समर्थन करता है।

प्रधानमंत्री मोदी गुयाना के राष्ट्रपति के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता भी करेंगे और गुयाना की राष्ट्रीय सभा को संबोधित करेंगे। गुयाना की अपनी यात्रा से पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने एक बयान में कहा है, कि वह सबसे पुराने भारतीय समुदाय में से एक को अपना सम्मान देंगे, जो 185 साल से भी पहले यहां आकर बसे थे।

प्रधानमंत्री ने कहा, “हम अपने अनूठे संबंधों को रणनीतिक दिशा देने पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे, जो साझा विरासत, संस्कृति और मूल्यों पर आधारित है।”

गुयाना के उपराष्ट्रपति भारत जगदेव ने कहा, कि प्रधानमंत्री मोदी की गुयाना यात्रा “भारत और गुयाना के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंधों को रेखांकित करती है।”

 

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कैरीकॉम क्या है?

कैरीकॉम, कैरीबियाई देशों का एक समूह है। इसमें 21 देश हैं, जिनमें से 15 सदस्य देश हैं और छह सहयोगी सदस्य हैं। पहला शिखर सम्मेलन 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान आयोजित किया गया था, जहां भारत ने जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 150 मिलियन डॉलर की ऋण सुविधा की पेशकश की थी।

कैरीकॉम वेबसाइट के मुताबिक, 20 नवंबर 2024 को होने वाले दूसरे भारत-कैरीकॉम शिखर सम्मेलन से ऊर्जा और बुनियादी ढांचे, कृषि और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स, टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन, साथ ही मानव संसाधन और क्षमता निर्माण में कैरीकॉम और भारत के बीच द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने की उम्मीद है।

मोदी की गुयाना यात्रा से भारत को क्या फायदा होगा?

आईएएनएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए गुयाना की ओर देख रहे हैं। यह छोटा कैरेबियाई देश लगातार एक संभावित प्रमुख पेट्रोलियम और गैस शक्ति के रूप में उभर रहा है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुसार, गुयाना में तेल और प्राकृतिक गैस संसाधनों का अनुमान 11 बिलियन तेल-समतुल्य बैरल से अधिक है, जो कुवैत के तीन गुना से भी ज्यादा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत के ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के प्रयास में गुयाना महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से सहयोग के नए रास्ते खुलने, भारत-गुयाना संबंधों को मजबूत करने और क्षेत्रीय साझेदारी को प्रोत्साहित करने की भी उम्मीद है।

भारत-गुयाना संबंध

भारत-गुयाना संबंधों को स्ट्रेक्चरल बाइलेटरल मैकेनिज्म द्वारा बल मिलता है, जिसमें मंत्रिस्तरीय स्तर पर एक संयुक्त आयोग और विदेशी कार्यालयों के बीच पिरियोडिक परामर्श शामिल हैं।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम और फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) और जॉर्जटाउन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (GCCI) के बीच स्थापित एक संयुक्त व्यापार परिषद, संबंधों को और मजबूत करती है।

विकासात्मक सहयोग मुख्य रूप से भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के माध्यम से होता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में सालाना 50 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) गुयाना के छात्रों को स्नातक, स्नातकोत्तर और चिकित्सा पाठ्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करता है। आज तक, 600 से ज्यादा भारतीय विद्वानों ने ITEC के तहत प्रशिक्षण पूरा कर लिया है।

भारत ने गुयाना को कृषि और सूचना प्रौद्योगिकी पहलों के लिए ऋण सुविधाएं भी प्रदान की हैं, जिसमें भारतीय कंपनियां जैव ईंधन, ऊर्जा, खनिज और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में अवसरों की तलाश कर रही हैं। भारत ने गुयाना को कई परियोजनाओं के लिए सहायता भी प्रदान की है, जिसमें 25 मिलियन डॉलर का राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम भी शामिल है, जो इस वर्ष टी20 विश्व कप क्रिकेट का आयोजन स्थल था।

गुयाना में भारतीय

गुयाना की जनसंख्या में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 39.8 प्रतिशत है, जिसमें सबसे बड़े धार्मिक समुदाय में हिंदू 28.4 प्रतिशत हैं।

भारत-गुयाना व्यापार

भारत और गुयाना के बीच 2021-22 में व्यापार 223.36 मिलियन डॉलर था, जिसमें गुयाना का निर्यात 156.96 मिलियन डॉलर था, जिसे ऊर्जा उत्पादों से बढ़ावा मिला।

 

‘मोदी जी ये 5 करोड़ किसकी सेफ से निकला है?’, विनोद तावड़े के मामले पर बोले राहुल गांधी

बहुजन विकास आघाडी ने आरोप लगाएं हैं कि भाजपा नेता विनोद तावड़े पांच करोड़ रुपये लेकर मुंबई के एक होटल में पैसे बांटने के लिए पहुंचे थे. इस मामले में राहुल गांधी भी भाजपा पर हमलावर दिखाई दिए.

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी. (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावडे पर पैसे बांटने के आरोप लगे हैं. बहुजन विकास आघाडी ने आरोप लगाएं हैं कि विनोद तावड़े पांच करोड़ रुपये लेकर मुंबई के एक होटल में पैसे बांटने के लिए पहुंचे थे. इस मामले में राहुल गांधी भी भाजपा पर हमलावर दिखाई दिए. राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए लिखा, “ मोदी जी, यह 5 करोड़ किसके SAFE से निकला है? जनता का पैसा लूटकर आपको किसने टेंपो में भेजा है?”

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विनोद तावडे मुंबई के होटल में 5 करोड रुपए लेकर जा रहे थे, जहां पर बहुजन विकास आघाडी के नेताओं ने उन्हें घेर लिया और यह आरोप लगाया कि वह इस होटल में पैसे बांटने के लिए लेकर आए थे. हालांकि, विनोद तावड़े ने उनके ऊपर लगे इन आरोपों से साफ इनकार किया और कहा कि जिससे जांच करवाना है करवा लें.

आचार संहिता उल्लंघन के आरोप

इस कैश कांड को लेकर महाराष्ट्र में सियासी घमासान मच गया है. तावडे पर कैश बांटने का तो आरोप लगा ही है. इसी के साथ-साथ उनके खिलाफ आचार संहिता उल्लंघन करने के मामले में भी केस दर्ज हुआ है. इस मामले में विनोद तावड़े ने भी अपनी सफाई पेश की है.

क्या बोले तावड़े?

विनोद तावड़े ने कहा, “नालासोपारा विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं की बैठक चल रही थी. उसमें वोटिंग के दिन और आचार संहिता के नियम क्या है. पोलिंग में क्या होता है. वह बताने मैं वहां पहुंचा था. विपक्ष को लगा कि मैं पैसे बांट रहा हूं… जिससे जांच करवाना है करवा लो.”

बैकफुट पर बीजेपी?

इस कैश कांड के बाद ये तो साफ है कि जिस ‘एक है तो सेफ है’ के नारे के साथ भाजपा लीड कर रही थी वो अब बैकफुट पर आ गई है और राहुल गांधी फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं. अब देखना ये होगा कि चुनाव के परिणामों में इस कैश कांड का कितना असर पड़ेगा.