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US News: ट्रंप कैबिनेट में शामिल कई लोगों को मिलीं बम की धमकियां, सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

अमेरिकी में डोनाल्ड ट्रंप के कैबिनेट और प्रशासन के कई लोगों को बम धमाके कर निशाना बनाने की धमकी मिली है। सरकार की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने एक बयान में कहा कि धमकियां मंगलवार रात और बुधवार सुबह दी गईं। धमकियां मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए सभी जरूरी उपाय किए गए हैं।

ट्रंप कैबिनेट में शामिल कई लोगों को मिलीं बम की धमकियां (फोटो-एक्स)

 रॉयटर, वाशिंगटन। अमेरिकी में डोनाल्ड ट्रंप के कैबिनेट और प्रशासन के कई लोगों को बम धमाके कर निशाना बनाने की धमकी मिली है। सरकार की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने एक बयान में कहा कि धमकियां मंगलवार रात और बुधवार सुबह दी गईं।

सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

धमकियां मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए सभी जरूरी उपाय किए गए हैं।

न्यूयार्क से अमेरिकी प्रतिनिधि एलिस स्टेफनिक ने एक बयान में कहा कि उनका पारिवारिक घर निशाने पर था। उन्होंने कहा कि वह अपने पति और तीन साल के बेटे के साथ वाशिंगटन से साराटोगा काउंटी जा रही थीं। इसी समय उन्हें इस खतरे की सूचना मिली।

ट्रंप प्रशासन में शीर्ष स्वास्थ्य संस्थान का नेतृत्व करेंगे भारतवंशी जय भट्टाचार्य.

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतवंशी जय भट्टाचार्य को देश के शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान और वित्तपोषण संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ का निदेशक चुना है। भट्टाचार्य ट्रंप द्वारा इस शीर्ष प्रशासनिक पद के लिए नामित होने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी बन गए हैं। इससे पहले ट्रंप ने सरकारी दक्षता विभाग का नेतृत्व करने के लिए एलन मस्क के साथ भारतवंशी विवेक रामास्वामी का चुनाव किया था।

ट्रंप ने कहा कि मैं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक के रूप में सेवा करने के लिए जय भट्टाचार्य को नामित करते हुए रोमांचित महसूस कर रहा हूं। भट्टाचार्य राष्ट्र के चिकित्सा अनुसंधान को निर्देशित करने और महत्वपूर्ण खोज करने के लिए राबर्ट एफ कैनेडी जूनियर के साथ मिलकर काम करेंगे। भट्टाचार्य स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य नीति के प्रोफेसर और नेशनल ब्यूरो आफ इकोनामिक्स रिसर्च में शोध सहयोगी हैं।

ट्रंप ने जिम ओ नील को स्वास्थ्य और मानव सेवा के उप सचिव के रूप में नामित किया है। राष्ट्रीय आर्थिक परिषद की अध्यक्षता के लिए केविन हैसेट को चुना है, जो घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीति निर्धारित करने में मदद करती है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के रूप में काम करने के लिए अटार्नी जेमिसन ग्रीर को चुना गया है। विंस हेली को घरेलू नीति परिषद का निदेशक बनाने का निर्णय लिया गया है।

ट्रंप टीम ने व्हाइट हाउस के साथ परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया

सूत्रों के अनुसार, यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने की योजना प्रस्तुत करने वाले सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल कीथ केलाग को संघर्ष खत्म करने के लिए यूक्रेन के विशेष दूत के रूप में नियुक्त करने पर भी विचार कर रहे हैं। इस बीच, ट्रंप टीम ने व्हाइट हाउस के साथ परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया है। यह एमओयू 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने से पहले ट्रंप की टीम को संघीय एजेंसियों के साथ सीधे समन्वय करने और दस्तावेजों तक पहुंचने की अनुमति देगा।

ट्रंप के आते ही खालिदा जिया वीजा बनवाने पहुंचीं अमेरिकी दूतावास; चीन में वर्षों से जेल में बंद तीन अमेरिकी रिहा

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया बुधवार को यहां अमेरिकी दूतावास पहुंचीं और अपने वीजा आवेदन की प्रक्रिया पूरी की। डेली स्टार अखबार के अनुसार बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी से जुड़े लोगों ने बताया कि 79 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री को विशेष उपचार के लिए विदेश भेजने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध कर लिए गए हैं। खालिदा अगले महीने ब्रिटेन जा सकती हैं और वहां से अमेरिका या जर्मनी जा सकती हैं।
ट्रंप के आते ही खालिदा जिया वीजा बनवाने पहुंचीं अमेरिकी दूतावास (फोटो- रॉयटर)

 पीटीआई, ढाका। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया बुधवार को यहां अमेरिकी दूतावास पहुंचीं और अपने वीजा आवेदन की प्रक्रिया पूरी की। वह ऐसे समय वीजा बनवा रही हैं, जब इस महीने के प्रारंभ में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई। ट्रंप अगले वर्ष 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।

कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही  खालिदा

डेली स्टार अखबार के अनुसार, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) से जुड़े लोगों ने बताया कि 79 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री को विशेष उपचार के लिए विदेश भेजने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध कर लिए गए हैं। खालिदा अगले महीने ब्रिटेन जा सकती हैं और वहां से अमेरिका या जर्मनी जा सकती हैं। वह लिवर, किडनी, हृदय, फेफड़ों और आंखों से संबंधित कई समस्याओं से जूझ रही हैं।

बीएनपी प्रमुख खालिदा को बुधवार को ही भ्रष्टाचार के एक मामले में बड़ी राहत मिली। हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। ढाका की एक अदालत ने 2018 में जिया चैरिटेबल ट्रस्ट भ्रष्टाचार मामले में उन्हें सात वर्ष जेल की सजा सुनाई थी।

चीन में वर्षों से जेल में बंद तीन अमेरिकी रिहा

चीन में वर्षों से कैद किए गए तीन अमेरिकी नागरिकों को रिहा कर दिया गया है। व्हाइट हाउस ने बुधवार को बाइडन प्रशासन के अंतिम महीनों में बीजिंग के साथ राजनयिक समझौते की घोषणा करते हुए यह जानकारी दी। रिहा किए गए लोगों में मार्क स्विडन, काई ली और जान लेउंग शामिल हैं। अमेरिकी सरकार ने इन सभी को गलत तरीके से हिरासत में लिया गया घोषित किया था।

स्विडन को ड्रग संबंधी आरोपों में मौत की सजा सुनाई गई थी, जबकि ली और लेउंग को जासूसी के आरोप में कैद किया गया था। व्हाइट हाउस ने कहा कि जल्द ही वे वापस लौटेंगे और अपने परिवारों से मिलेंगे। एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि बाइडन प्रशासन ने पिछले कई वर्षों में हुई कई बैठकों में चीन के साथ अपने मामले उठाए हैं। इस महीने की शुरुआत में पेरू में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन के मौके पर राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से बातचीत के दौरान कई मुद्दे उठाए थे।

अमेरिकी एयरबेस के ऊपर रहस्यमयी ड्रोन देखे गए

अमेरिकी वायुसेना ने एक बयान में बताया कि इंग्लैंड में मौजूद चार एयरबेस के ऊपर छोटे मानवरहित विमानों (ड्रोन) को लगातार मंडराते देखा गया है। इन एयरबेस का नाम सफोक स्थित आरएएफ लेकेनहेथ और आरएएफ माइल्डेनहाल, नारफोक स्थित आरएएफ फेल्टवेल और ग्लूकेस्टरशायर स्थित आरएएफ फेयरफोर्ड है।

पेंटागन के प्रेस सचिव मेजर जनरल पैट्रिक राइडर ने कहा कि अब तक इन एयरबेस के प्रमुखों ने यह सुनिश्चित किया है कि इन घुसपैठों ने इनमें रहने वाले लोगों, निर्माण या संपत्तियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है।

 

डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिको और चीन के खिलाफ शुरू किया टैरिफ युद्ध, ट्रूडो सरकार के हाथ-पांव फूले

Donald Trump: अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए शथ लेंगे और पहले ही दिन उन्होंने कनाडा, मैक्सिको और चीन को जोरदार झटका देने का फैसला कर लिया है। अवैध आव्रजन और ड्रग्स पर नकेल कसने के कोशिश में मैक्सिको, कनाडा और चीन पर भारी भरकम टैरिफ लगाने का फैसला लिया गया है।

डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा है, कि 20 जनवरी को पदभार संभालने के बाद वह अपने पहले कदमों में से एक के रूप में कनाडा और मैक्सिको से आने वाले हर उत्पाद पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाएंगे। सोमवार को अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में उन्होंने कहा, कि टैरिफ तब तक लागू रहेगा, जब तक अमेरिका में अवैध आव्रजन को रोकने के लिए मैक्सिको और कनाडा के साथ सीमाएं बंद नहीं हो जातीं।

अगर टैरिफ लागू किए गए तो गैस से लेकर ऑटोमोबाइल तक हर चीज की कीमतें नाटकीय रूप से बढ़ सकती हैं। सबसे हालिया जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका दुनिया में वस्तुओं का सबसे बड़ा आयातक है, जिसमें मैक्सिको, चीन और कनाडा इसके शीर्ष तीन आपूर्तिकर्ता हैं।

लेकिन, ट्रंप ने कहा, कि “जैसा कि सभी जानते हैं, हजारों लोग मैक्सिको और कनाडा से होकर आ रहे हैं, और अपने साथ अभूतपूर्व स्तर का अपराध और नशीले पदार्थ लेकर आ रहे हैं।”

कनाडा, मैक्सिको और चीन को झटका

ट्रंप ने कहा, “फिलहाल, मैक्सिको से आने वाला एक कारवां, जिसमें हजारों लोग शामिल हैं, हमारी वर्तमान खुली सीमा के जरिए देश में आ रहे हैं।” उन्होंने कहा, कि “20 जनवरी को, मेरे कई पहले कार्यकारी आदेशों में से एक के रूप में, मैं मेक्सिको और कनाडा से संयुक्त राज्य अमेरिका और इसकी हास्यास्पद खुली सीमाओं में आने वाले सभी उत्पादों पर 25% टैरिफ़ लगाने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेजो पर हस्ताक्षर करूंगा।”

उन्होंने कहा, कि “यह टैरिफ तब तक प्रभावी रहेगा जब तक ड्रग्स, विशेष रूप से फेंटेनाइल और सभी अवैध विदेशी हमारे देश पर इस आक्रमण को रोक नहीं देते! मेक्सिको और कनाडा, दोनों के पास इस लंबे समय से चली आ रही समस्या को आसानी से हल करने का पूर्ण अधिकार और शक्ति है।”

उन्होंने कहा, कि “हम मांग करते हैं कि वे इस शक्ति का उपयोग करें, और जब तक वे ऐसा नहीं करते, तब तक उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी।”

चीन पर 10 प्रतिशत एक्स्ट्रा टैरिफ

इसके अलावा, चीन पर भी उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर किया और कहा, कि उन्होंने चीन के साथ कई बार बातचीत की है, जिसमें कहा गया है, कि अमेरिका में ड्रग्स, खास तौर पर फेंटेनाइल की भारी मात्रा भेजी जा रही है – लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने लिखा, “जब तक वे इसे बंद नहीं करते, हम चीन से अमेरिका में आने वाले सभी उत्पादों पर किसी भी अतिरिक्त टैरिफ से ऊपर 10% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाएंगे।”

फिलहाल यह साफ नहीं है, कि क्या ट्रंप वास्तव में धमकियों को लागू करेंगे या वे नए साल में पदभार ग्रहण करने से पहले बातचीत की रणनीति के रूप में टैरिफ धमकियों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

हाल ही में यूएस के आंकड़ों के अनुसार, मेक्सिको से अवैध रूप से सीमा पार करने के लिए गिरफ्तारियां कम हो रही हैं और अक्टूबर में चार साल के निचले स्तर पर रहीं। बॉर्डर पैट्रोल ने अक्टूबर में 56,530 गिरफ्तारियां कीं, जो पिछले अक्टूबर की संख्या का एक तिहाई से भी कम है।

वहीं, अमेरिका में फेंटेनाइल मैक्सिको से तस्करी करके लाया जाता है। राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में सीमा पर इस दवा की जब्ती में तेजी से वृद्धि हुई और अमेरिकी अधिकारियों ने 2024 के सरकारी बजट वर्ष में लगभग 21,900 पाउंड (12,247 किलोग्राम) फेंटेनाइल जब्त किया, जबकि 2019 में जब ट्रम्प राष्ट्रपति थे, तब यह संख्या 2,545 पाउंड (1,154 किलोग्राम) थी।

यदि ट्रंप नॉमिनेट ट्रेजरी सचिव के लिए नामित स्कॉट बेसेंट सीनेट से चुन ली जाती हैं, तो वे अन्य देशों पर टैरिफ लगाने के लिए जिम्मेदार कई अधिकारियों में से एक होंगे। उन्होंने कई मौकों पर कहा है, कि टैरिफ अन्य देशों के साथ बातचीत का एक साधन है।

उन्होंने अपने नामांकन से पहले पिछले सप्ताह फॉक्स न्यूज के एक लेख में लिखा था, कि टैरिफ “राष्ट्रपति की विदेश नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक उपयोगी उपकरण है। चाहे वह सहयोगियों को अपनी रक्षा पर ज्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित करना हो, अमेरिकी निर्यात के लिए विदेशी बाजारों को खोलना हो, अवैध आव्रजन को समाप्त करने और फेंटेनाइल तस्करी को रोकने के लिए सहयोग सुनिश्चित करना हो या सैन्य आक्रमण को रोकना हो, टैरिफ एक केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं।”

कनाडा और मैक्सिकों पर होगा गंभीर असर

यदि डोनाल्ड ट्रंप वाकई टैरिफ लगाते हैं, तो कनाडा और मैक्सिको की अर्थव्यवस्था पर इसका गंभीर असर होगा। खासकर कनाडा मुसीबतों में फंस जाएगा, क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही गोता लगा रही है।

नये टैरिफ के लगने से 2020 के व्यापार सौदे की विश्वसनीयता पर भी संदेह पैदा होंगे, जिसे मुख्य रूप से ट्रंप ने ही आगे बढ़ाया था, जिसकी समीक्षा 2026 में होनी है।

वाशिंगटन में कनाडा के राजदूत और उप प्रधान मंत्री, क्रिस्टिया फ्रीलैंड के प्रवक्ता, जो ट्रंप के एक और राष्ट्रपति पद के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए कनाडा-अमेरिका संबंधों पर एक विशेष कैबिनेट समिति की अध्यक्षता करते हैं, उन्होंने फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है।

लेकिन, ट्रंप के टैरिफ घोषणा से पहले एक वरिष्ठ कनाडाई अधिकारी ने कहा था, कि कनाडाई अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रंप पद संभालते ही व्यापार और सीमा पर कार्यकारी आदेश जारी करेंगे। अधिकारी को सार्वजनिक रूप से बोलने की अनुमति नहीं थी और उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर बात की।

मेक्सिको के विदेश संबंध विभाग और अर्थव्यवस्था विभाग ने भी ट्रंप के बयानों पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। आम तौर पर ऐसे गंभीर मुद्दों को राष्ट्रपति सुबह की प्रेस ब्रीफिंग में संभालती हैं।

ट्रंप के ऐलान से कनाडा में डर

कनाडा की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के नेता जगमीत सिंह ने मंगलवार को जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व वाली लिबरल सरकार से देश के लिए खड़े होने और अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा और मैक्सिको से आने वाले सामानों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के इरादे के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया है।

टैरिफ की घोषणा के कुछ घंटों बाद, NCP नेता ने X पर लिखा, “खड़े हो जाओ और पूरी ताकत से लड़ो। कनाडा की नौकरियां खतरे में हैं।”

ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान भी जस्टिन ट्रूडो के साथ उनके संबंध कोई अच्छे नहीं थे और जब ट्रंप 2020 का चुनाव हार गये, तो ट्रूडो ने सार्वजनिक तौर पर उनका मजाक उड़ाया था। वहीं, ट्रंप पहले भी कई बार जस्टिन ट्रूडो की आलोचना कर चुके हैं।

‘हम आपकी पूरी अर्थव्यवस्था तबाह कर देंगे’, ट्रंप के करीबी ने दी ट्रूडो को खुली धमकी; नेतन्याहू पर बंटे पश्चिमी देश

Benjamin Netanyahu Arrest Warrant बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट पर अमेरिका बेहद नाराज है। अब वह खुलकर बाकी देशों को धमकी देने पर उतर आया है। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। इस बीच डोनाल्ड ट्रंप के करीबी ने कई पश्चिम देशों को धमकाया है।

जस्टिन ट्रूडो और डोनाल्ड ट्रंप। ( फाइल फोटो)

HighLights

  1. ट्रंप के करीबी ग्राहम ने दी प्रतिबंध लगाने की धमकी।
  2. गिरफ्तारी में मदद करने वाले देश भुगतेंगे परिणाम।
  3. जल्द प्रतिबंध लगाने वाला कानून बनाएगा अमेरिका।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ जारी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के गिरफ्तारी वारंट पर पश्चिमी देश बंटते दिख रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में बयान दिया कि अगर नेतन्याहू उनके देश आते हैं तो वह गिरफ्तारी वारंट का पालन करेंगे। मतलब यह हुआ कि कनाडा जाने पर नेतन्याहू को गिरफ्तार किया जा सकता है।

अब जस्टिन ट्रूडो को डोनाल्ड ट्रंप के बेहद करीबी सांसद लिंडसे ग्राहम ने खुली धमकी दी है। उन्होंने कहा कि अगर कनाडा ने ऐसा किया तो वह कनाडा की पूरी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देंगे। ग्राहम ने न केवल कनाडा बल्कि ब्रिटेन, फ्रांस समेत कई पश्चिमी देशों को खुली धमकी दी है। ग्राहम ने प्रतिबंध लगाने की बात भी कही है।

ब्रिटेन को भी धमकाया

सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने कहा कि अमेरिका को उन सभी देशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर देना चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के गिरफ्तारी वारंट का पालन करते हैं। उन्होंने जस्टिन ट्रूडो और यूके के प्रधानमंत्री केर स्टार्मर को चेतावनी दी है। कहा कि अगर ब्रिटेन ने बेंजामिन नेतन्याहू की गिरफ्तार में मदद की तो उसे गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने होंगे। बता दें के कनाडा के अलावा ब्रिटेन ने खुलकर कहा है कि अगर इजरायल के प्रधानमंत्री ब्रिटेन में प्रवेश करते हैं तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता

हैं।

पूरी अर्थव्यवस्था को कुचल देंगे

ग्राहम ने कहा कि अगर कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस ने आईसीसी की मदद करने की कोशिश की तो हम प्रतिबंध लगाएंगे। आपको दुष्ट आईसीसी बनाम अमेरिका को चुनना होगा। जल्द से जल्द एक कानून पारित कराने की दिशा में मैं टॉम कॉटन के साथ काम कर रहा हूं। इस कानून से उस देश पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है जो इजराइल के किसी भी राजनेता की गिरफ्तारी में सहायता करता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने वाले देशों की अर्थव्यवस्था को कुचल देना चाहिए।

पुतिन के खिलाफ वारंट का किया था स्वागत

पिछले साल मार्च में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ भी आईसीसी ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। तब ग्राहम ने इस फैसले का स्वागत किया था। उन्होंने कहा था कि पुतिन के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए सही दिशा में एक बड़ा कदम है। यह सुबूतों से कहीं अधिक उचित है। मुझे उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय यूक्रेन पर क्रूर आक्रमण के लिए पुतिन को जवाबदेह ठहराएगा और आईसीसी का समर्थन करना जारी रखेगा।

कोई भी देश या संगठन जो नेतन्याहू की गिरफ्तारी में सहायता करेगा, उसे अमेरिकी प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। मैं राष्ट्रपति ट्रंप, उनकी टीम और कांग्रेस में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक मजबूत प्रतिक्रिया देने को तत्पर हूं। लिंडसे ग्राहम, अमेरिकी सीनेटर।

Diplomacy: यूक्रेन में शांति के लिए दिल्ली में बन रहा रास्ता? ट्रंप की वापसी से पहले पुतिन इसलिए आ रहे भारत!

Diplomacy News: जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में भारत आएंगे, तो उनकी मुलाकातें यूक्रेन और उसके आस-पास के युद्ध पर नई दिल्ली की सैद्धांतिक तटस्थता के बैकग्राउंड में होंगी।

भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रखे गए रूस विरोधी प्रस्तावों से खुद को अलग रखा है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। साथ ही, भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने और यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने का आह्वान भी किया है।

अभी तक भारत ने रूस पर पश्चिमी दबाव को निकालने के लिए एक रिलीज वाल्व के रूप में काम किया है, जिससे मॉस्को को चीन पर अत्यधिक निर्भर होने के बजाय एक बड़ी शक्ति का विकल्प मिल गया है। भारत, चीन के बाद रियायती रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार 2021 में जहां सिर्फ 12 बिलियन डॉलर था, वो अब बढ़कर पिछले साल 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, सस्ते तेल ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है, जो पिछले साल औसतन 8.2% थी और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।

हालांकि, भारत सरकार रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करती है, लेकिन भारत के वित्तीय संस्थाओं को उन प्रतिबंधों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे इनमें से कुछ फंड को ट्रांसफर करना मुश्किल हो गया है। इस प्रकार रूस ने अपने रुपये के भंडार का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करने पर सहमति जताई है, जिससे दोनों पक्षों के व्यापार में विविधता लाने और संतुलन बनाने में मदद मिली है।

भारत और रूस ने तीन लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर के डेवलपमेंट को प्राथमिकता दी है, जिनमें से कोई भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। इनमें शामिल हैं:-

1- ईरान से होकर गुजरने वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जिसकी शाखाएं अजरबैजान, कैस्पियन सागर और मध्य एशिया तक फैली हैं।

2- व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री गलियारा, जिसे पूर्वी समुद्री गलियारा भी कहा जाता है

3- आर्कटिक में उत्तरी समुद्री मार्ग।

इन तीनों में से, INSTC सबसे ज्यादा आशाजनक है, लेकिन सबसे ज्यादा असुरक्षित भी है, क्योंकि ऐसी खबरें हैं, कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ईरान के खिलाफ अपने “अधिकतम दबाव” अभियान को फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

भारत के सामने क्या दिक्कतें आ सकती हैं?

भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने के लिए अमेरिका से पहले ही छूट हासिल कर ली है। ट्रंप, ईरान पर प्रतिबंधों को इस हद तक कड़ा कर सकते हैं, कि भारत को INSTC के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार को बंद करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिससे रूसी अलमारियों पर भारतीय उत्पादों की उपलब्धता कम हो सकती है – जिसमें फार्मास्यूटिकल्स भी शामिल हैं, जिससे बाजार में हिस्सेदारी कम हो सकती है और परिणामस्वरूप रूस की चीन पर पहले से ही उच्च निर्भरता बढ़ सकती है।

ऐसा ही तब हो सकता है, जब भारत द्वारा कथित तौर पर रूस के साथ स्थापित किए गए गुप्त तकनीकी चैनल को निशाना बनाया जाता है। यह आने वाले ट्रंप प्रशासन के अपने बड़े रणनीतिक हितों के खिलाफ काम करेगा, क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में चीन विरोधियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले ट्रंप ने कहा था, कि वह रूस और चीन को “अलग करना” चाहते हैं, लेकिन यदि वह ईरान को दंडित करने के लिए रूसी-भारतीय व्यापार पर नई सीमाएं लगाते हैं, तो इससे अनजाने में ही वे एक-दूसरे के और करीब आ जाएंगे।

ट्रंप ने यह भी कहा, कि वह यूक्रेन युद्ध को खत्म करने को प्राथमिकता देंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि वह ऐसा कैसे करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कुछ ऑब्जर्वर्स को उम्मीद है, कि वह युद्धविराम समझौते में यूक्रेन की जमीन पर रूसी कब्जे को मान्यता दे देंगे। हालांकि, वो क्या करेंगे, फिलहाल साफ नहीं है।

माना जा रहा है, कि 20 जनवरी को शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्ड ट्रंप बातचीत को फिर से शुरू कर सकते हैं।

भारत से कैसे गुजरेगा शांति का रास्ता?

डोनाल्ड ट्रंप अगर यूक्रेन में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू करते हैं, तो निश्चित तौर पर उन्हें भारत की तरफ देखना होगा, क्योंकि ये भारत ही है, जो बातचीत शुरू करने के लिए जमीन तैयार कर सकता है और राष्ट्रपति पुतिन के आगामी भारत दौरे को उसी लेंस में देखना होगा।

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन, सौदे के संभावित सैन्य और आर्थिक मापदंडों पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें रूस के खिलाफ लगाए गये प्रतिबंधों को धीरे धीरे कम करना और आगे जाकर खत्म करना शामिल हैं और ईरान के माध्यम से रूस के साथ भारतीय व्यापार के लिए प्रतिबंधों में छूट शामिल है।

इसके बाद भारत, निजी तौर पर रूसी वार्ता के इन बिंदुओं को ट्रंप प्रशासन तक पहुंचा सकता है, क्योंकि इसके पूरे आसान हैं, कि ट्रंप 2.0 के भारत के साथ विशेष रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध होंगे।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मंगलवार को पुष्टि की, कि पुतिन की भारत यात्रा की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी। यह जून में मोदी की रूस यात्रा के बाद होगी, जो सितंबर 2019 में व्लादिवोस्तोक में पूर्वी आर्थिक मंच में पुतिन के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के बाद से उनकी पहली रूस यात्रा थी। गर्मियों में उनकी पिछली बैठक में नेताओं ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए और एक विस्तृत संयुक्त बयान जारी किया।

डोनाल्ड ट्रंप, प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी हैं, और उनकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड भारत के काफी करीबी हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज, भारत कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं और विदेश मंत्री के लिए उनके नामित सीनेटर मार्को रुबियो ने जुलाई में अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग अधिनियम पेश किया था।

लिहाजा, कैबिनेट के इन सदस्यों के साथ यूक्रेन में शांति का मार्ग पूर्व मध्यस्थ तुर्की या महत्वाकांक्षी मध्यस्थ चीन के माध्यम से नहीं, बल्कि भारत के माध्यम से हो सकता है। इसलिए यह संभावना है, कि पुतिन और मोदी अपनी आगामी यात्रा के दौरान यूक्रेन सौदे पर चर्चा करेंगे, हालांकि उनकी चर्चाओं के बारे में जानकारी, निश्चित तौर पर सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

पुतिन को इस बात का पूरा अहसास है, कि डोनाल्ड ट्रंप एशिया की ओर वापस लौटने के लिए कितने उत्सुक हैं, जिसके लिए यूक्रेन युद्ध का तत्काल समाधान आवश्यक है। और पुतिन इस बात से भी वाकिफ हैं, कि चीन के मुकाबले यूरेशियाई शक्ति संतुलन को संभालने में भारत की भूमिका अपरिहार्य है।

इस प्रकार, मोदी ईरान के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए अच्छी स्थिति में हैं, जो अगर लागू होते हैं, तो रूस में और उसके ऊपर चीन का प्रभाव और बढ़ जाएगा। 2014 से पुतिन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के आधार पर, मोदी यूक्रेन में समझौता करने के सर्वोत्तम मार्ग पर व्यावहारिक सुझाव भी दे सकते हैं जो रूस को मंजूर होगा।

ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले नाराज हुए एलन मस्क, मंत्रियों के चयन पर जमकर हुआ झगड़ा; चौंकाने वाली रिपोर्ट

अगले साल 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। मगर उससे पहले ही उनके पुराने सहयोगियों और नए दोस्त एलन मस्क के बीच घमासान शुरू हो चुका है। एलन मस्क के बढ़ते प्रभाव से ट्रंप के पुराने सहयोगी परेशान हैं। एक डिनर पार्टी के दौरान ट्रंप के सलाहकार और एलन मस्क के बीच जमकर झगड़ा हुआ। यह विवाद कैबिनेट नियुक्तियों को लेकर हुआ है।

एलन मस्क और डोनाल्ड ट्रंप। ( फाइल फोटो)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही उद्योगपति एलन मस्क बेहद नाराज है। दरअसल, यह नाराजगी डोनाल्ड ट्रंप के पुराने करीबियों और इस चुनाव में बेहद अहम भूमिका निभाने वाले एलन मस्क की बढ़ती ताकत के बाद उभरी है।

पांच नवंबर को डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद एलन मस्क दुनिया के गैर-निर्वाचित सबसे ताकतवर व्यक्ति बनकर उभरे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कैबिनेट नियुक्तियों पर एलन मस्क और ट्रंप के काफी लंबे समय से सलाहकार बोरिस एप्सटेन के बीच विवाद छिड़ गया है।

डिनर पार्टी के दौरान हुआ झगड़ा

एक्सियोस की रिपोर्ट के मुताबिक यह विवाद पिछले हफ्ते बुधवार को मार-ए- लागो के एक क्लब में डिनर के दौरान सामने आया। सूत्रों के मुताबिक एलन मस्क ने बोरिस एप्सटेन द्वारा चयन किए गए कैबिनेट उम्मीदवारों पर सवाल उठाया। इस पर बोरिस भड़क उठे। एलन मस्क ने बोरिस एप्सटेन पर ट्रंप की निजी निर्णयों को मीडिया पर लीक करने का आरोप भी लगाया।

मस्क का आरोप है कि न्याय विभाग की नियुक्ति और व्हाइट हाउस के वकील के चयन में एप्सटेन की भूमिका अधिक थी। इसके बाद एलन मस्क ने अपने पंसद के लोगों को कैबिनेट में जगह दिलाने पर जोर लगाया। एक्सियोस ने सूत्रों के आधार पर जानकारी दी कि यह विवाद काफी बढ़ गया था।

इन नियुक्तियों पर खफा हैं मस्क

मैट गेट्ज को अटॉर्नी जनरल और विलियम मैकगिनले को व्हाइट हाउस काउंसल के पद पर एप्सटेन की सलाह पर ही नियुक्त किया गया है। ट्रम्प के वकील टॉड ब्लैंच और एमिल बोव को भी न्याय विभाग के शीर्ष पदों पर नियुक्त किया है। इन नियुक्तयों पर मस्क खफा हैं। बता दें कि आपराधिक मामलों में डोनाल्ड ट्रंप को बचाने में एप्सटेन ने अहम भूमिका निभाई है। चुनाव जीतने के बाद कैबिनेट नियुक्तियों में भी एप्सटेन ने अहम किरदार निभाया।

एलन मस्क ने हाल ही में यूक्रेन और तुर्किये के राष्ट्रपति से डोनाल्ड ट्रंप के साथ फोन पर बातचीत की थी। इसके अलावा ईरानी राजदूत से भी अमेरिका में गुपचुप बैठक कर चुके हैं। कैबिनेट नियुक्तियों और अहम बैठकों में मस्क की बढ़ती भूमिका से ट्रंप के पुराने सहयोगी खौफजदा हैं। वह असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। एलन मस्क की बढ़ती ताकत ने ही डोनाल्ड ट्रंप के पुराने सहयोगियों के बीच मतभेद को जन्म दिया है। कुछ लोगों का मानना है कि एलन मस्क अपनी सीमा लांघ रहे हैं।

 

कौन हैं तुलसी गबार्ड, डोनाल्ड ट्रम्प ने बनाया अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का प्रमुख

डोनाल्ड ट्रंप ने तुलसी गबार्ड को DNI नियुक्त किया है। गबार्ड अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की प्रमुख बनने वाली पहली हिंदू महिला होंगी। सेना में सेवा दे चुकीं गबार्ड ने ट्रंप का आभार जताया है।

वाशिंगटन। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को पूर्व डेमोक्रेट तुलसी गबार्ड को DNI (Director of National Intelligence) बनाया है। तुलसी पहली हिंदू कांग्रेस महिला होंगी जो अमेरिकी जासूसी एजेंसियों के शीर्ष पद पर बैठेंगी। वह ट्रंप की खुफिया सलाहकार के रूप में काम करेंगी।

सोशल मीडिया पर ट्रंप ने कहा कि तुलसी गबार्ड एक “प्राउड रिपब्लिकन” हैं। वह खुफिया समुदाय में अपनी “निडर भावना” ला सकती हैं। डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन के लिए एक पूर्व उम्मीदवार के रूप में उन्हें दोनों दलों में व्यापक समर्थन प्राप्त है।”

अमेरिका की खुफिया प्रमुख बनाए जाने पर तुलसी गबार्ड ने डोनाल्ड ट्रम्प का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने लिखा, “डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिकी लोगों की सुरक्षा और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आपके मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में सेवा करने का अवसर देने के लिए धन्यवाद। मैं काम करने के लिए उत्सुक हूं।”

तुलसी गबार्ड ने अमेरिकी सेना में दी है सेवा

तुलसी गबार्ड खुफिया मामलों में अनुभवी नहीं हैं। उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक अमेरिकी सेना में सेवा की है। 2022 में उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी से अपने संबंध तोड़ लिए थे। 2024 की शुरुआत में ट्रम्प का समर्थन किया था।

तुलसी गबार्ड की मां ने अपनाया था हिंदू धर्म

तुलसी गबार्ड को उनके नाम के चलते अक्सर भारतीय मूल का समझा जाता है। उनका भारत से कोई सीधा संबंध नहीं है। उनकी मां ने हिंदू धर्म अपना लिया था। उन्होंने अपने बच्चों के नाम हिंदू रखे। गबार्ड भी खुद को हिंदू मानती हैं। उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस की पहली हिंदू सदस्य के रूप में इतिहास रचा है। अमेरिकी समोआ मूल की गबार्ड ने भगवद गीता पर हाथ रखकर कांग्रेस की शपथ ली।

क्या ट्रंप बदलेंगे अमेरिका का संविधान? तीसरा बार भी बनना चाहते हैं राष्ट्रपति, पढ़ें क्या कहता है US का कानून

US President Trump प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए रिपब्लिकन नेताओं के सामने अपने भाषण के दौरान कहा मुझे संदेह है कि मैं तब तक दोबारा चुनाव नहीं लड़ूंगा जब तक आप यह नहीं कहते वह अच्छे हैं हमें कुछ और सोचना है। अमेरिका में वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति दो कार्यकाल से ज्यादा राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता है।

(तीसरा बार भी राष्ट्रपति बनना चाहते हैं ट्रंप।(फोटो सोर्स: रॉयटर्स)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने एक ऐसा बयान दिया है, जिससे अमेरिका में खलबली मच गई है। दूसरी बार राष्ट्रपति बनने वाले ट्रंप ने इशारों-इशारों में यह बात कहा है कि वो तीसरी बार भी राष्ट्रपति बनने के इच्छुक हैं।

बुधवार को निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रतिनिधि सभा में चुनाव जीतकर आए अपनी रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों से भी मिले। उन्होंने सदन में पार्टी की स्थिति पर संतोष जताया। कहा, जीत हमेशा अच्छी होती है। इस दौरान ट्रंप ने राष्ट्रपति पद के तीसरे कार्यकाल में भी कार्य करने की इच्छा जताई।

ट्रंप ने लोगों से मांगा समर्थन

प्रतिनिधि सभा के लिए चुने गए रिपब्लिकन नेताओं के सामने अपने भाषण के दौरान कहा, ‘मुझे संदेह है कि मैं तब तक दोबारा चुनाव नहीं लड़ूंगा, जब तक आप यह नहीं कहते, वह अच्छे हैं, हमें कुछ और सोचना है।’

अमेरिका में वर्तमान संवैधानिक व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति दो कार्यकाल से ज्यादा राष्ट्रपति पद पर नहीं रह सकता है। इस संवैधानिक व्यवस्था में बदलाव तभी हो सकता है जब अमेरिका के सभी राज्यों की असेंबली तीन चौथाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करें। गौरतलब है कि राष्ट्रपति का कार्यकाल बढ़ाने के लिए संविधान में संशोधन की यह प्रक्रिया करीब सात वर्ष लंबी है।

फ्रैंकलिन डी रुजवेल्ट 1933 में राष्ट्रपति बनने के बाद 1945 में मृत्यु होने तक राष्ट्रपति रहे थे। वह अमेरिका के दो कार्यकाल से ज्यादा राष्ट्रपति रहने वाले इकलौते व्यक्ति हैं। उन्हीं के बाद संविधान में संशोधन कर अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बनने की व्यवस्था बनाई गई।

ट्रंप रचेंगे इतिहास 

राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले अमेरिका के इतिहास के सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपति होंगे। दरअसल, 20 जनवरी को जब ट्रंप राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे तो उनकी उम्र 78 साल 221 दिन होगी।

ट्रंप ने बाइडन से की मुलाकात 

बता दें कि बुधवार को व्हाइट हाउस में मुलाकात हुई। मुलाकात में बाइडन ने पूर्व वादे के अनुसार जनवरी में सामान्य तरीके से सत्ता के हस्तांतरण का वचन दिया। ओवल हाउस में हुई दोनों नेताओं की मुलाकात सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुई।

डोनाल्ड ट्रंप ने जिसे बनाया NSA उसका नाम सुनकर कांप जाएगा पाकिस्तान, US संसद में करता है भारत की आवाज़ बुलंद

US NSA:डोनाल्ड ट्रंप ने जिस शख्स को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के लिए चुना है, वे हमेशा से ही चीन और पाकिस्तान के खिलाफ रहे हैं. भारत के लिए अच्छी बात यह है कि उन्होंने अमेरिकी संसद में भारत की आवाज को हमेशा बुलंद करने का काम किया है.

पीएम नरेंद्र मोदी के साथ अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप.

वॉशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के जीतने के बाद से ही कई देशों के होश फाख्ता हो गए हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि ट्रंप का अगला कदम क्या होगा? कहीं उनके देश के खिलाफ तो कोई कार्रवाई नहीं करेंगे. लेकिन ऐसे देशों का डरना वाजिब है और उसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रतिनिधि सभा के सदस्य माइकल वॉल्ट्ज से देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का जिम्मा संभालने के लिए कहा है.

माइकल वॉल्ट्ज वो नाम है, जिसे सुनकर पाकिस्तान की कंपकंपी छूट जाती है. वाल्ट्ज ‘आर्मी नेशनल गार्ड’ के रिटायर ऑफिसर और पूर्व सैनिक रह चुके हैं. वॉल्ट्ज को ऐसे वक्त में एनएसए का पद देने के बारे में विचार किया जा रहा है जब यूक्रेन को हथियार उपलब्ध कराने के मौजूदा प्रयासों और रूस तथा उत्तर कोरिया के बीच बढ़ती साझेदारी पर चिंताओं से लेकर पश्चिम एशिया में ईरान के प्रॉक्सी ग्रुप्स द्वारा लगातार हमलों और इजरायल, हमास तथा हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष विराम के लिए दबाव जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने कई संकट हैं.

पूर्व-मध्य फ्लोरिडा से रिपब्लिकन पार्टी के तीन बार के सांसद वॉल्ट्ज पिछले सप्ताह अमेरिकी संसद में निर्वाचित होने और आसानी से फिर से चुनाव जीतने वाले अमेरिकी सेना के पहले पूर्व सदस्य हैं. वह ट्रंप के कट्टर समर्थक रहे हैं. उन्हें चीन के प्रति कठोर रुख रखने वाला माना जाता है और उन्होंने ही कोविड-19 की उत्पत्ति तथा चीन में मुस्लिम उइगर आबादी के उत्पीड़न के कारण बीजिंग में 2022 में हुए शीतकालीन ओलंपिक का अमेरिका द्वारा बहिष्कार करने का आह्वान किया था.

कौन हैं मार्को रुबियो: ट्रंप ने जिन्हें बनाएंगे अमेरिका का नया विदेश मंत्री, माने जाते हैं भारत के समर्थक और चीन के विरोधी  

Who is Marco Rubio:डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो को अमेरिका के विदेश मंत्री पद केकौन हैं मार्को रुबियो: ट्रंप ने जिन्हें बनाएंगे अमेरिका का नया विदेश मंत्री, माने जाते हैं भारत के समर्थक और चीन के विरोधी   लिए नॉमिनेट किया है। रुबियो अमेरिका-भारत संबंधों के मुखर समर्थक और चीन के सख्त आलोचक माने जाते हैं। यह नियुक्ति संभवतः ट्रंप की विदेश नीति में एक नई दिशा का संकेत हो सकती है, जिसमें वे अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करने और चीन जैसे विरोधियों को आक्रामक प्रतिक्रिया देने पर जोर दे सकते हैं। रुबियो के चयन से विदेश नीति के क्षेत्र में ट्रंप के अगले कदमों की दिशा स्पष्ट होती है।

भारत-अमेरिका संबंधों में रुबियो की भूमिका

रुबियो ने भारत को हमेशा से ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण साथी माना है। वे व्यापार और रक्षा क्षेत्रों में अमेरिका-भारत सहयोग को मजबूत करने के पक्षधर हैं। पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने कांग्रेस में लगातार मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों की रणनीतिक अहमियत को रेखांकित किया है। यह रिश्ता न केवल दोनों देशों के आर्थिक हितों को बढ़ाता है, बल्कि दोनों के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को भी बल देता है। ट्रंप प्रशासन में रुबियो का चयन भारत के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।

चीन पर अपनाते रहे हैं सख्त रुख

चीन को लेकर रुबियो का रुख हमेशा आक्रामक रहा है। सीनेट में वे चीन की नीतियों और मानवाधिकारों के हनन के मुखर आलोचक हैं। रुबियो ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) पर आर्थिक दबाव डालने की वकालत की है और दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामक नीतियों की भी निंदा की है। अगर वे विदेश मंत्री बनते हैं, तो उनकी यह सख्ती और भी बढ़ सकती है। चीन के प्रति उनके सख्त रुख से भारत सहित अन्य देशों के साथ अमेरिकी संबंध और मजबूत हो सकते हैं।

NATO के मजबूत समर्थक माने जाते हैं

रुबियो का विदेश नीति का अनुभव यूरोप के साथ अमेरिका के संबंधों को मजबूत करने में मददगार होगा। रुबियो हमेशा NATO के कट्टर समर्थक रहे हैं। मार्को ने कई बार यूरोपीय सहयोगियों के साथ रक्षा साझेदारी को बढ़ावा देने की वकालत की है। ट्रंप ने हालांकि पहले NATO की आलोचना की थी, लेकिन रुबियो का समर्थन इस गठबंधन को और भी मजबूत कर सकता है। रुबियो का मानना है कि NATO अमेरिकी सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।

मिडिल ईस्ट में हमास पर सख्त रुख

मिडिल ईस्ट की बात करें तो रुबियो ने इजरायल के प्रति अपना समर्थन जताया है और हमास जैसे संगठनों पर हमला बोला है। रुबियो का मानना है कि ऐसे संगठन मिडिल ईस्ट की स्थिरता के लिए खतरा हैं। मार्को रुबियो ने इजरायल को हर संभव सुरक्षा सहायता देने और हमास की हिंसा का मजबूती से जवाब देने की अपील की है। उनकी नीतियां GOP (Republican Party) के पारंपरिक आइडियोलॉजी के मुताबिक है, जो इजरायल की सुरक्षा को प्राथमिकता देने पर जोर देती हैं।

रूस-यूक्रेन संघर्ष पर क्या है रुबियो का विजन

रूस और यूक्रेन के संघर्ष पर रुबियो का दृष्टिकोण स्पष्ट और सुलझा हुआ है। हाल ही में उन्होंने कहा कि यह संघर्ष केवल बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है, हालांकि उन्होंने रूस के पक्ष में कोई बात नहीं की। लेकिन रुबियो ने अमेरिका की ओर से यूक्रेन को दिए जा रहे सहायता पैकेज पर सवाल उठाए हैं और अपनी नीतियों में वास्तविकता के आधार पर समाधान करने की बात कही है।

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