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Sunita Williams पर मंडरा रहा बड़ा खतरा! इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में आई दरारें, कई जगह से लीकेज

Sunita Williams News आईएसएस में कई सालों से हल्की लीकेज हो रही थी जो अब बढ़ गई है। पता चला है कि ये दरारें 50 से ज्यादा हो गई है जिससे सुनीता विलियम्स पर खतरा मंडराने लगा है। इसको लेकर अब नासा भी चिंता में है। एक जांच रिपोर्ट लीक हो गई है जिससे पता चला की आईएसएस पर खतरा है और सभी अतंरिक्ष यात्री भी सेफ नहीं है।

Sunita Williams News सुनीता विलियम्स की जान को खतरा।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Sunita Williams News भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स पर अब एक नई मुसीबत आ पड़ी है। दरअसल, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में कई सालों से हल्की लीकेज हो रही थी, जो अब बढ़ गई है। पता चला है कि ये दरारें 50 से ज्यादा हो गई है, जिससे सुनीता पर खतरा मंडराने लगा है। इसको लेकर अब नासा भी चिंता में है।

नाआस की एक जांच रिपोर्ट लीक हो गई है, जिससे पता चला की आईएसएस पर खतरा है और सभी अतंरिक्ष यात्री भी सेफ नहीं है।

रूस ने भी चेताया

रूस ने भी चेताया है कि पृथ्वी की कक्षा में लैब में माइक्रो वाइब्रेशन हो रहा है। वहीं, नासा ने कहा कि स्पेस स्टेशन से बड़ी मात्रा में हवा निकल रही है, जो खतरे की घंटी है। हालांकि, नासा यात्रियों को बचाने की कोशिश में जुटी है।

रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोमोस और नासा में इस बात पर सहमति नहीं बनी है कि समस्या की असल वजह क्या है। सीएनएन के अनुसार, नासा के अंतरिक्ष यात्री बॉब कैबाना ने कहा है कि दोनों ने इस पर चिंता जाहिर की है।

जून से ही ISS पर फंसी

सुनीता विलियम्स अपने साथी अंतरिक्ष यात्री बुच विलमोर के साथ जून से ही अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर हैं। पिछले 150 दिनों से अधिक समय से दोनों अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर फंसे हुए हैं। दोनों अंतरिक्ष यात्री ने पांच जून को बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान से उड़ान भरी थी और छह जून को आईएसएस पहुंचे थे। अगले साल फरवरी में इनके वापस आने की उम्मीद है।

हालांकि, इतने समय से अंतरिक्ष स्टेशन में रहने वाली सुनीता विलियम्स के स्वास्थ्य को लेकर कई बार चिंता जाहिर की जा चुकी है। हालांकि, नासा ने एक बार फिर उनके स्वास्थ्य की जानकारी देते हुए राहत भरी खबर सुनाई। नासा ने बताया कि अंतरिक्ष में मौजूद सभी यात्री काफी सुरक्षित हैं।

चैंपियंस ट्रॉफी से पहले PAK हुआ बेनकाब! घूमता-कसरत करता नजर आया मुंबई हमले का मास्टरमाइंड लखवी

Mumbai Attacks Mastermind In Pakistan: 26/11 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड लखवी ना सिर्फ भारत में प्रतिबंधित आतंकी है बल्कि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी लखवी को आतंकी घोषित कर चुका है.

मुंबई हमले का मास्टरमाइंड आतंकवादी जकी उर रहमान लखवी

Mumbai Attacks Mastermind In Pakistan: मुंबई हमले के मास्टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी पर एक तरफ पाकिस्तान पूरी दुनिया के सामने ये झूठ फैला रहा है की लखवी 2021 से पाकिस्तान की जेल में बंद है तो दूसरी तरफ एबीपी न्यूज के हाथ एक्सक्लूसिव वीडियो लगी है, जिसमें यह आतंकवादी अबु वासी के नाम से पाकिस्तान में ना सिर्फ खुलेआम घूम रहा है बल्कि फिटनेस चैलेंज में भाग ले रहा है.

कुल 3 मिनट 9 सेकंड की इस वीडियो में जकी उर रहमान लखवी एक इवेंट में पश अप कर कर रहा है, डम्बल उठा रहा है और कार्यक्रम का होस्ट लखवी की पहचान लोगों से अबु वासी के रूप में करवाते हुए बता रहा है कि उसने कभी नहीं देखा कि एक 63 साल का व्यक्ति इतना फिट और फुर्तीला हो सकता है.

 

अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी लखवी को आतंकी घोषित कर चुका

26/11 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड लखवी ना सिर्फ भारत में प्रतिबंधित आतंकी है बल्कि अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी लखवी को आतंकी घोषित कर चुका है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी साख सुधारने और FATF की ग्रे लिस्ट से बचने के लिए पाकिस्तान ने पूरी दुनिया के सामने साल 2021 में जकी उर रहमान लखवी को 15 साल की कैद की सजा सुनाई थी, लेकिन एबीपी न्यूज की पड़ताल में ये सजा महज एक दिखावा साबित हुई.

कुछ ही महीनों में पाकिस्तान में चैंपियंस ट्रॉफी खेली जाएगी

खुफिया सूत्रों की मानें तो लखवी रावलपिंडी और लाहौर में आराम से रह रहा है और यह उसे अबु वासी के नाम देना पाकिस्तानी सेना का पैंतरा था, जो वीडियो के आने से ध्वस्त हो गया है. अब सवाल यह उठता है कि कुछ ही महीनों में पाकिस्तान में चैंपियंस ट्रॉफी खेली जानी है. ऐसे में पाकिस्तान, जहां आतंकी इस तरह से खुले घूम रहे हैं, वहां क्या सच में कोई टीम सुरक्षित रह भी सकती है.

क्या ईरान-अमेरिका तनाव सुलझा पाएगा ट्रंप का ‘दूत’ ? जानिए क्या है आमिर सईद से मुलाकात के मायने?

Elon Musk Meet Iran UN Envoy: हाल ही में, हुए अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप ने जीत हासिल की। नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने मंत्रिमंडल और प्रशासन के विस्तार में जुट गए हैं। इस बीच, ट्रंप ने अपने करीबी सहयोगी एलन मस्क(टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक) के हाथ ईरान-अमेरिका के तनावपूर्ण रिश्तों की डोर थमा दी है।

आखिर हो भी क्यों न, जब नव-निर्वाचित राष्ट्रपति ने अपने आगामी प्रशासन के लिए नवनिर्मित सरकारी कार्यकुशलता विभाग का नेतृत्व करने के लिए मस्क को चुना है। इससे पहले ही, एलन मस्क ने 11 नंवबर को संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत से मुलाकात की।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने ईरानी अधिकारियों के हवाले से बताया कि मस्क और ईरान के दूत आमिर सईद इरावानी के बीच न्यूयॉर्क में एक गुप्त स्थान पर बैठक हुई और यह एक घंटे से अधिक समय तक चली। अधिकारियों ने बताया कि चर्चा इस बात पर केंद्रित थी कि दोनों देशों के बीच तनाव को कैसे कम किया जाए? एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र में बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों को इस बात की सूचना नहीं दी गई थी कि बैठक हो रही है और अभी तक इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई है।

यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि अगले चार साल ईरान के लिए महत्वपूर्ण परीक्षा साबित हो सकते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रंप की निगरानी में तेहरान पर “अधिकतम दबाव” अभियान की वापसी हो सकती है, जो उन्होंने अपने पिछले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान लागू किया था, जिससे ईरान का अलगाव बढ़ा और उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई।

ईरान-अमेरिका संबंधों की वर्तमान स्थिति

ईरान और अमेरिका के बीच रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। 2020 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद से हटने के बाद, ईरान ने कई आक्रामक कदम उठाए, जैसे…

• यूरेनियम संवर्धन बढ़ाना।

• तेल निर्यात में वृद्धि।

•क्षेत्रीय आतंकी समूहों का समर्थन करना।

• इजरायल पर सीधा हमला करना।

ट्रंप के पिछले कार्यकाल में “अधिकतम दबाव” की नीति लागू की गई थी, जिसने ईरान को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया था। अब, उनके नए प्रशासन में इस नीति की वापसी की संभावना जताई जा रही है।

क्या नया सरकारी विभाग मददगार होगा?

डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि एलन मस्क और विवेक रामास्वामी उनके नए “सरकारी दक्षता विभाग” का नेतृत्व करेंगे। इस विभाग का उद्देश्य सरकारी कामकाज को बेहतर बनाना और “बाहर से विशेषज्ञों” की मदद लेना है। हालांकि, इस विभाग की कार्यप्रणाली और इसके संभावित प्रभाव पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कांग्रेस की मंजूरी भी इस विभाग के लिए एक चुनौती हो सकती है।

बैठक के राजनीतिक मायने

एलन मस्क और ईरानी राजदूत के बीच हुई इस बैठक ने कई सवाल खड़े किए हैं…

• क्या ट्रंप प्रशासन अपने पहले कार्यकाल की तरह ईरान पर “अधिकतम दबाव” नीति को फिर से लागू करेगा?

• क्या मस्क की कूटनीतिक भूमिका ट्रंप की विदेश नीति में बड़े बदलाव का संकेत देती      है?

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम ईरान पर कड़ा रुख अपनाने की तैयारी हो सकती है।

ईरान-अमेरिका संबंधों में कब-कब बढ़ा तनाव?

1979 की ईरानी इस्लामिक क्रांति – इस क्रांति में ईरान के शाह (जो अमेरिका समर्थक थे) का तख्तापलट कर दिया गया। इसके बाद ईरान में एक इस्लामिक शासन स्थापित हुआ, जिसने अमेरिका के प्रति विरोध की नीति अपनाई। इसके बाद उसी साल तेहरान में अमेरिकी दूतावास में 52 अमेरिकी नागरिकों को बंधक बना लिया गया, जिससे अमेरिका और ईरान के संबंधों में गहरा अविश्वास पैदा हुआ।

ईरान-इराक युद्ध (1980-88):अमेरिका का समर्थन – ईरान-इराक युद्ध (1980-88) में अमेरिका ने ईरान के दुश्मन इराक का समर्थन किया। इससे भी ईरान में अमेरिका के प्रति घृणा की भावना बढ़ी।

परमाणु कार्यक्रम पर विवाद – ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को विकसित करना शुरू किया, जिसे अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने एक खतरे के रूप में देखा। अमेरिका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए और उसे परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने की कोशिश की।

क्षेत्रीय संघर्ष – ईरान और अमेरिका कई क्षेत्रों में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। ईरान पश्चिम एशिया में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है, जबकि अमेरिका उसे रोकना चाहता है। सीरिया, यमन, इराक जैसे देशों में ईरान समर्थित समूह और अमेरिका समर्थित सेनाओं के बीच संघर्ष भी इन दोनों देशों के रिश्तों में तनाव को बढ़ाता है।

Robert F Kennedy: कौन हैं रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर? अमेरिकी स्वास्थ्य सचिव के लिए बने ट्रंप की पहली पसंद

Who is Robert F Kennedy Jr:अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर को अपने प्रशासन में स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग का प्रमुख नामित किया है। रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर, जिन्हें आरएफके के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख टीकाकरण-विरोधी कार्यकर्ता हैं। उनके विचारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ खतरनाक मानते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि टीकों से ऑटिज्म जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

ट्रंप ने कैनेडी को स्वास्थ्य सचिव बनाने की घोषणा अपनी वेबसाइट ट्रुथ सोशल पर की। उन्होंने कहा, “बहुत लंबे समय से अमेरिकी लोग औद्योगिक खाद्य और दवा कंपनियों के भ्रामक और गलत सूचना अभियानों से प्रभावित हो रहे हैं।” ट्रंप ने कहा कि कैनेडी का चयन “अमेरिका को फिर से महान और स्वस्थ बनाने” के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर के विचार

घोषणा के बाद, कैनेडी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्रंप का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका को स्वस्थ बनाने के लिए उनके पास विज्ञान, चिकित्सा, उद्योग और सरकार के विशेषज्ञों को एक साथ लाने का एक ऐतिहासिक अवसर है। उन्होंने यह भी वादा किया कि वे स्वास्थ्य क्षेत्र में पारदर्शिता लाने और अमेरिकी नागरिकों को सभी डेटा तक पहुंच देने का प्रयास करेंगे ताकि वे अपने स्वास्थ्य के लिए सही निर्णय ले सकें।

रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर का राजनीतिक सफर?

रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर का संबंध अमेरिका के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवारों में से एक से है। वे दिवंगत अटॉर्नी जनरल रॉबर्ट एफ कैनेडी के पुत्र और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भतीजे हैं। पिछले वर्ष, उन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडेन के खिलाफ डेमोक्रेटिक नामांकन के लिए चुनौती दी थी, लेकिन बाद में वे राष्ट्रपति पद के लिए स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने लगे।

हालांकि, आगे चलकर कैनेडी ने रिपब्लिकन पार्टी के साथ जुड़ने का निर्णय लिया और ट्रंप का समर्थन करना शुरू किया। इसके बाद ट्रंप ने अपने प्रशासन में कैनेडी को स्वास्थ्य विभाग का महत्वपूर्ण पद देने का इरादा जाहिर किया।

ट्रंप- कैनेडी की मित्रता और अभियान

चुनाव के अंतिम दौर में कैनेडी और ट्रंप ने एक साथ प्रचार किया, और इस दौरान उनकी मित्रता और गहरी होती गई। ट्रंप ने यह साफ कर दिया कि वे कैनेडी को अमेरिका की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण भूमिका देंगे। दोनों का मानना है कि वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की जरूरत है, और वे इसे “अमेरिका को फिर से स्वस्थ बनाने” के अभियान का हिस्सा मानते हैं।

रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर का नामांकन एक साहसिक कदम है, क्योंकि उनके टीकाकरण-विरोधी विचारों पर काफी विवाद रहा है। ट्रंप का मानना है कि कैनेडी के विचार अमेरिकी स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने और अधिक पारदर्शी बनाने में मदद करेंगे। अब देखना यह है कि कैनेडी अपने इस नए पद पर आकर अमेरिकी स्वास्थ्य नीति में क्या बदलाव लाते हैं और इसे किस दिशा में लेकर जाते हैं।

 

कनाडा से भारत लाया जाएगा अर्श डल्ला? खालिस्तान समर्थक आतंकी की गिरफ्तारी पर विदेश मंत्रालय का आया बयान

Arsh Dalla Extradition खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला की कनाडा में गिरफ्तारी पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने पहला बयान जारी किया है। मंत्रालय ने कहा कि उसे मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से डल्ला की गिरफ्तारी की जानकारी मिली है। अब वह कनाडा से उसके प्रत्यर्पण की मांग करते हुए अनुरोध करेगा। साथ ही विदेश मंत्रालय ने और भी कई अहम जानकारियां दी हैं।

भारत ने 2023 में अर्श डल्ला को आतंकी घोषित किया था। (File Image)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत कनाडा से खालिस्तानी आतंकी अर्श डल्ला के प्रत्यर्पण की मांग करेगा। इसकी जानकारी खुद विदेश मंत्रालय ने दी है। गुरुवार को इस मामले पर बयान जारी करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि डल्ला खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख है। उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया जा चुका है।

विदेश मंत्रालय के अनुसार, कनाडा में एक घोषित आतंकवादी की गिरफ्तारी के बारे में मीडिया के सवालों के जवाब में, आधिकारिक प्रवक्ता, श्री रणधीर जायसवाल ने कहा, ‘हमने 10 नवंबर से कनाडा में घोषित अपराधी अर्श सिंह गिल उर्फ अर्श डल्ला की गिरफ्तारी पर मीडिया रिपोर्ट्स देखी हैं, जो खालिस्तान टाइगर फोर्स का वास्तविक प्रमुख है। कनाडा के प्रिंट और विजुअल मीडिया ने गिरफ्तारी पर व्यापक रूप से रिपोर्ट की है। हम समझते हैं कि ओंटारियो कोर्ट ने मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।’

50 से अधिक मामलों मे आरोपी है डल्ला

मंत्रालय ने बताया कि अर्श डल्ला हत्या, हत्या के प्रयास, जबरन वसूली और आतंकी वित्तपोषण सहित आतंकवादी कृत्यों के 50 से अधिक मामलों में घोषित अपराधी है। मई 2022 में उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया गया था। उसे 2023 में भारत में एक व्यक्तिगत आतंकवादी के रूप में नामित किया गया था। जुलाई 2023 में, भारत सरकार ने कनाडा सरकार से उसकी अनंतिम गिरफ्तारी के लिए अनुरोध किया था। इसे अस्वीकार कर दिया गया था। इस मामले में अतिरिक्त जानकारी प्रदान की गई थी।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, ‘अर्श डल्ला के संदिग्ध आवासीय पते, भारत में उसके वित्तीय लेन-देन, चल/अचल संपत्तियों, मोबाइल नंबरों आदि के विवरण को सत्यापित करने के लिए पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) के तहत कनाडा को एक अलग अनुरोध भी भेजा गया था। ये सभी जानकारी जनवरी 2023 में कनाडाई अधिकारियों को प्रदान की गई थी। दिसंबर 2023 में, कनाडा के न्याय विभाग ने मामले पर अतिरिक्त जानकारी मांगी। इन प्रश्नों का उत्तर इस वर्ष मार्च में भेजा गया था।’

प्रत्यर्पण का अनुरोध करेंगी भारतीय एजेंसियां

मंत्रालय ने कहा कि हाल ही में हुई गिरफ्तारी के मद्देनजर, हमारी एजेंसियां प्रत्यर्पण अनुरोध पर आगे बढ़ेंगी। भारत में अर्श डल्ला के आपराधिक रिकॉर्ड और कनाडा में इसी तरह की अवैध गतिविधियों में उसकी संलिप्तता को देखते हुए, यह उम्मीद की जाती है कि उसे भारत में न्याय का सामना करने के लिए प्रत्यर्पित या निर्वासित किया जाएगा। गौरतलब है कि हाल ही में जानकारी सामने आई थी कि भारत में आतंकी घोषित अर्श डल्ला को कनाडा पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इसी के संदर्भ में विदेश मंत्रालय ने हालिया बयान दिया है।

तालिबान ने मुंबई में नियुक्त किया अपना कांसुलर, भारत ने कहा- अभी मान्यता नहीं

हाल ही में भारतीय विदेश मंत्रालय का एक विशेष दल अफगानिस्तान की राजधानी काबुल गया था। इसके बाद अब तालिबान सरकार ने भारत में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया है। यह नियुक्ति मुंबई स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास में की गई है। भारत सरकार ने भी कहा कि प्रतिनिधि के नियुक्त होने का मतलब यह नहीं है कि तालिबान सरकार को मान्यता दे दी गई है।

तालिबान ने मुंबई स्थित वाणिज्य दूतावास में कांसुलर नियुक्त किया।

नई दिल्ली। तकरीबन तीन वर्ष बाद अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का भारत में प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया गया है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी है कि डॉ. इक्रामुद्दीन कामिल को अफगान के मुंबई स्थित वाणिज्य दूतावास में कार्यवाहक काउंसिल के तौर पर नियुक्त किया गया है। वह कांसुलर सेवा विभाग में अपनी सेवा देंगे और भारत व अफगानिस्तान के बीच सहयोग को बढ़ावा देंगे।

तालिबान सरकार को मान्यता नहीं

भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि कर दी है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि तालिबान सरकार को मान्यता दी गई है। इस बारे में भारत अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के साथ ही काम करेगा। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि पिछले तीन वर्षों के दौरान अफगान दूतावास और कांसुलेट में काम करने वाले तकरीबन सभी राजनयिक पश्चिमी देशों में शरण ले चुके हैं या भारत छोड़ चुके हैं। सिर्फ एक राजनयिक यहां रह गया है जिसकी वजह से अफगानिस्तानी दूतावास काम कर रहा है।

भारत में अफगानों की संख्या अधिक

दूसरी तरफ भारत में रहने वाले अफगानी नागरिकों की संख्या काफी ज्यादा है जिन्हें राजनयिक सेवाओं की जरूरत है। इन नागरिकों को उचित सेवा देने के लिए काफी संख्या में कांसुलर अधिकारियों की जरूरत है। बताते चलें कि उक्त अफगानिस्तानी कांसुलर अधिकारी वही हैं, जिसे तालिबान सरकार ने भारत की जिम्मेदारी दी है।

भारत में की कांसुलर प्रभारी

सूत्रों का कहना है कि विदेश मंत्रालय इन नए कांसुलर प्रभारी को पहले से जानता है। इन्होंने भारत में ही शिक्षा हासिल की है और भारतीय विदेश मंत्रालय की छात्रवृत्ति पर ही साउथ एशियन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की है। भारत के लिए वह एक अफगानी नागरिक हैं, जो यहां अफगानी नागरिकों के हित के लिए काम करेंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत ने तालिबान को मान्यता दे दी है तो सूत्रों ने कहा कि किसी भी सरकार को मान्यता देने की एक प्रक्रिया होती है। इस बारे में भारत अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के साथ ही काम करेगा।

अफगानिस्तान जा चुका विदेश मंत्रालय का दल

सनद रहे कि हाल ही में भारतीय विदेश मंत्रालय का एक विशेष दल काबुल गया था। इस दल की तालिबान सरकार के रक्षा मंत्री से भी मुलाकात हुई थी। अगस्त, 2021 में अमेरिकी सेना की अचानक वापसी के बाद तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमाया हुआ है। तब माना गया था कि तालिबान भारत के हितों के विरुद्ध होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जबकि तालिबान को सींचने वाले पाकिस्तान से रिश्ते खराब हो चुके हैं। तालिबान और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव भी चल रहा है, जबकि भारत अफगानी नागरिकों को खाना और दवाइयां भेज रहा है।