Tag Archives: Bangladesh news

Bangladesh: पहले चिन्मय प्रभु से किया किनारा, अब ISKCON दे रहा सफाई; हिंदू पुजारी की गिरफ्तारी पर नए बयान में क्या कहा?

Bangladesh ISKCON on Hindu priest हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से ही हिंदू वहां सड़कों पर उतर विरोध कर रहे हैं। विरोध के दौरान कई हिंदुओं के साथ पुलिस ने बर्बरता भी की। इस बीच अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसायटी (इस्कॉन) का नया बयान सामने आया है जहां वो सफाई देता दिख रहा है और उनका साथ देने की बात कही है।

Bangladesh ISKCON on Hindu priest चिन्मय प्रभु पर इस्कॉन का नया बयान आया। (फाइल फोटो)

HighLights

  1. इस्कॉन ने पहले कहा था कि उसका चिन्मय प्रभु से कोई वास्ता नहीं है।
  2. चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी पर बांग्लादेश में हो रहे विरोध प्रदर्शन।

एजेंसी, ढाका। Bangladesh ISKCON on Hindu priest बांगलादेश में हिंदुओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से ही हिंदू वहां सड़कों पर उतर विरोध कर रहे हैं। विरोध के दौरान कई हिंदुओं के साथ पुलिस ने बर्बरता भी की। इस बीच अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसायटी (इस्कॉन) का नया बयान सामने आया है, जहां वो सफाई देता दिख रहा है।

पहले किया किनारा, अब जताई एकजुटता

इस्कॉन ने पहले हिंदू पुजारी चिन्मय कृष्ण दास (चिन्मय प्रभु) से किनारा कर लिया था। अब इस्कॉन ने नया बयान जारी कर हिंदू पुजारी के साथ एकजुटता व्यक्त की, जिन्हें बांग्लादेश में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। ये इस्कॉन (बांग्लादेश) द्वारा हिंदू पुजारी से खुद को अलग करने के बयान के बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि चिन्मय दास धार्मिक संस्था का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

चिन्मय दास को संगठन के सभी पदों से हटाया

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, इस्कॉन बांग्लादेश के महासचिव चारु चंद्र दास ब्रह्मचारी ने कहा कि अनुशासन भंग करने के कारण हिंदू पुजारी चिन्मय दास को संगठन के सभी पदों से हटा दिया गया है। हालांकि, एक नए बयान में इस्कॉन ने पूर्व सदस्य के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए स्पष्टीकरण जारी किया।

अब क्या बोला इस्कॉन?

इस्कॉन ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि उसने स्पष्ट किया कि चिन्मय कृष्ण दास प्रभु संगठन के आधिकारिक सदस्य नहीं थे, लेकिन उसने खुद को उनसे दूर करने का प्रयास नहीं किया। समूह ने कहा, “इस्कॉन ने हिंदुओं और उनके पूजा स्थलों की रक्षा के लिए शांतिपूर्वक आह्वान करने वाले चिन्मय कृष्ण दास के अधिकारों और स्वतंत्रता का समर्थन करने से खुद को दूर नहीं किया है और न ही करेगा।”

बयान में आगे कहा गया कि हमने केवल वही स्पष्ट किया है, जो हमने पिछले कई महीनों में कहा था कि वह बांग्लादेश में आधिकारिक रूप से इस्कॉन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।

दरअसल, इस्कॉन ने चिन्मय कृष्ण दास से खुद को उस समय अलग कर लिया था जब इस्कॉन पर बांग्लादेश में प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी और उसे कट्टरपंथी संगठन करार दिया गया था। इस संबंध में इस्कॉन के खिलाफ एक वकील द्वारा कानूनी याचिका दायर की गई थी।

याचिका के बाद, इस्कॉन बांग्लादेश के महासचिव चारु चंद्र दास ब्रह्मचारी ने कहा कि अनुशासन के उल्लंघन के कारण चिन्मय दास को संगठन के सभी पदों से हटा दिया गया था। चारु चंद्र दास ने आगे कहा कि इस्कॉन का हाल ही में गिरफ्तार किए गए चिन्मय कृष्ण दास की गतिविधियों में कोई संलिप्तता नहीं थी। हालांकि, बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया।

इस कारण चिन्मय दास हुए थे गिरफ्तार

इस सप्ताह चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। उन्हें बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज को प्रदर्शित करने वाले एक स्टैंड पर झंडा फहराने के देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

Explained: बांग्लादेश में 1971 जैसा हिंदुओं का नरसंहार? मोहम्मद यूनुस के शासन में इस बार मिट जाएगा नामोनिशान?

Bangladesh Hindu Attack: बांग्लादेश में चरमपंथी मुसलमान सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, कि ‘इस्कॉन मंदिर के सदस्यों की हत्या के लिए चाकू तेज करें।’

बांग्लादेश में जिस तरह से हिंदुओं के खिलाफ हिंसक हमले हो रहे हैं, मंदिरों को तोड़ा जा रहा है और जिस तरह से हिंदू पुजारियों की गिरफ्तारी हो रही है, उससे ऐसे आरोपों को बल मिलता है, जिसमें कहा जाता है, कि मुस्लिमों की आबादी ज्यादा होने पर दूसरे अल्पसंख्यकों का नामोनिशान मिट जाता है।

अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हिदुओं के खिलाफ लगातार खतरनाक हमले हो रहे हैं, मंदिर टूट रहे हैं, लेकिन मानवाधिकर के चैंपियन बाइडेन के प्यादे मोहम्मद यूनुस, जो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख हैं, उनके मुंह से चूं तक नहीं निकली है, जिससे सवाल उठता है, कि क्या हिंदुओं के लिए मानवाधिकर जैसी बातें नहीं होती हैं?

बांग्लादेश में ताजा हालात कितने खतरनाक हैं?

इस्कॉन के संत और हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण महाराज की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी, तनाव बढ़ाने का एक मुख्य कारण बन गई है। जब हिंदू समुदाय न्याय की मांग के लिए एकजुट होते हैं, तो उन्हें क्रूर दमन और हमलों का सामना करना पड़ता है, जो इस क्षेत्र के इतिहास के कुछ सबसे काले अध्यायों में से एक है।

सम्मिलितो सनातन जागरण जोत के नेता चिन्मय कृष्ण महाराज को 26 नवंबर को चटगांव मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने एक राजद्रोह के मामले में जेल भेज दिया, जिसे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता के रूप में पहचाने जाने वाले एक व्यक्ति की तरफ से दायर किया गया था। आरोप लगाए गये हैं, कि उनकी रैली में बांग्लादेशी झंडे के ऊपर भगवा झंडा था।

चिन्मय कृष्ण महाराज की गिरफ्तारी के बाद हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी हिंदुओं ने “जय श्री राम” के नारे लगाने शुरू कर दिए और उन्हें अदालत से चटगांव सेंट्रल जेल ले जाने वाली जेल वैन को रोकने की कोशिश की। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया।

इस अराजकता के बीच, सहायक सरकारी वकील सैफुल इस्लाम की बेरहमी से हत्या कर दी गई। जवाब में, भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं ने मांग की है, कि इस्कॉन को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाए और सैफुल इस्लाम के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग की। इस बीच, सोशल मीडिया पर आई खबरों के मुताबिक, इस्लामवादी और हिंदू विरोधी तत्व चटगांव और आसपास के जिलों में हिंदुओं के घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर हमले कर रहे हैं।

आज सुबह (27 नवंबर) इस्लामवादियों ने चटगांव शहर के मेथोर पट्टी इलाके में मनसा माता मंदिर में आग लगा दी। लगभग उसी समय, हजारीगली में काली मंदिर को इस्लामी भीड़ ने आग लगा दी। हरिजन समुदाय के दर्जनों हिंदू घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया।

चरमपंथियों ने सोशल मीडिया पर साथी मुसलमानों से इस्कॉन सदस्यों की हत्या के लिए “चाकू तेज करने” की अपील की है।

बांग्लादेश में 1971 की तरह हिंदुओं का नरसंहार?

चटगांव शहर के हिंदू इस वक्त 25 मार्च 1971 की रात को पाकिस्तानी कब्जा करने वाली सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों की तरफ से किए गए अत्याचारों की याद दिलाने वाली असहनीय पीड़ा झेल रहे हैं। और अगर सरकार तत्काल कदम नहीं उठाती है, तो फिर से नरसंहार हो सकता है, खासकर हिंदू महिलाएं निशाने पर हैं।

लेकिन, अमेरिका के ‘गुलाम’ और नोबल अवार्ड से सम्मानित ‘क्रांतिकारी’ मोहम्मद यूनुस को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

क्लिंटन फाउंडेशन के जाने-माने दानकर्ता यूनुस को कथित तौर पर जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख नेताओं से मजबूत समर्थन मिला हुआ है। विकीलीक्स से लीक हुए एक राजनयिक केबल के मुताबिक, हिलेरी क्लिंटन ने 2007 में बांग्लादेश की सेना पर यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने के लिए दबाव डाला था।

अगस्त 2024 से, बांग्लादेश में हिंदुओं को अपने घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर लगातार हमलों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय मीडिया को इन घटनाओं को कवर करने से रोक दिया गया है, और कुछ भारतीय को छोड़कर ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने इन भयावह घटनाओं पर रिपोर्टिंग करने से परहेज किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में रहने वाले ‘फंसे हुए पाकिस्तानी’, जिन्हें वहां बिहारी कहा जाता है, वो सबसे ज्यादा हिंदुओं के खिलाफ हो रहे हमले में शामिल हैं।

लेकिन, इन अपराधों की गंभीरता के बावजूद, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे मानवाधिकार समूह चुप्पी की चादर ओढ़कर सो रहे हैं, जिसकी सबसे बड़ी वजह मोहम्मद यूनुस के माथे पर जो बाइडेन का हाथ है।

हिंदुओं के साथ होने वाली हिंसा के बीच 26 सितंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बैठक के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान, मुहम्मद यूनुस को क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव ने सम्मानित किया था। इस कार्यक्रम में, बिल क्लिंटन ने प्रतिबंधित इस्लामी समूह हिज़्ब उत-तहरीर के नेता महफ़ूज आलम की तारीफ की थी, जो खिलाफत की स्थापना की वकालत करता है।

यूनुस के शासन में बिल से सांपों की तरह निकले इस्लामिस्ट

अक्टूबर में, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आधिकारिक तौर पर अवामी लीग की छात्र शाखा बांग्लादेश छात्र लीग (BCL) पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे “आतंकवादी संगठन” करार दिया है। रिपोर्ट्स बताती हैं, कि सरकार अवामी लीग को पूरी तरह से राजनीतिक भागीदारी से प्रतिबंधित करने पर भी विचार कर रही है।

इससे बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य पर इस्लामी ताकतों का दबदबा हो जाएगा, जिसमें हिंदुओं और ईसाइयों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों का बहुत कम या कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा।

यूनुस की सरकार ने अल-कायदा से जुड़े अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के नेता जशीमुद्दीन रहमानी सहित दोषी ठहराए गए आतंकवादियों को भी रिहा कर दिया है, जिन्हें 2013 में एक धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर की हत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया गया था।

क्या बांग्लादेशी हिंदुओं को बचा पाएगा भारत?

चिन्मय कृष्ण महाराज की गिरफ्तारी के बाद, इस्कॉन मंदिर के अधिकारियों ने भारत सरकार से हस्तक्षेप करने की अपील की है और कहा है, कि इस्कॉन का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है। अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर, संगठन ने महाराज के खिलाफ आरोपों को निराधार बताया है।

भारत के विदेश मंत्रालय ने 26 नवंबर को एक बयान जारी किया, जिसमें महाराज की गिरफ़्तारी और ज़मानत से इनकार करने के साथ-साथ बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। मंत्रालय ने बांग्लादेशी सरकार से सभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा करने का आग्रह किया।

लिहाजा, बिगड़ती स्थिति बांग्लादेश-भारत संबंधों को और भी ज्यादा तनावपूर्ण बना सकती है, खासकर ट्रंप प्रशासन की संभावना के साथ, क्योंकि मुहम्मद यूनुस डोनाल्ड ट्रंप के मुखर आलोचक माने जाते हैं। चल रहे अत्याचारों ने पहले ही भारत में हिंदुओं और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है, जिससे संभावित रूप से व्यापक भू-राजनीतिक नतीजे सामने आ सकते हैं।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर चल रहा अत्याचार देश में शासन और धार्मिक सहिष्णुता के गहरे संकट को उजागर करता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस स्थिति की गंभीरता को पहचानना चाहिए और अल्पसंख्यक समुदायों को और ज्यादा नुकसान से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।

Bangladesh: बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ आतंक जारी, तीन और मंदिरों पर हमला, भड़के साउथ के मशहूर एक्टर

Bangladesh Hindu: बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ आतंक लगातार जारी है और मंगलवार को चटगांव में तीन हिंदू मंदिरों को फिर से निशाना बनाया गया है। जिन मंदिरों पर हमले किए गये हैं, उनमें फिरंगी बाजार में लोकनाथ मंदिर, मनसा माता मंदिर और हजारी लेन में काली माता मंदिर शामिल हैं।

मंदिरों पर हुए हमले से साफ पता चलता है, कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में चलने वाली अंतरिम सरकार के शासन में इस्लामिक कट्टरपंथी बेकाबू हो चुके हैं और देश से हिंदुओं के सफाए की मुहिम चलाई जा रही है। 5 अगस्त को शेख हसीना सरकार के पतन के बाद देश में हिंदुओं के खिलाफ एक तरह से ‘नरसंहार’ चलाया जा रहा है।

 

हाल ही में हुए ये विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुए, जब हिंदुओं ने इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा संगठित हमलों के जवाब में बड़ी संख्या में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करना शुरू किए। विरोध प्रदर्शन उनके सामाजिक और धार्मिक संगठन, मुख्य रूप से इस्कॉन द्वारा आयोजित किए गए थे, जिसके अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं।

विरोध प्रदर्शन को देखते हुए, प्रमुख हिंदू नेता और इस्कॉन के संत चिन्मय कृष्ण दास को सोमवार को ढाका हवाई अड्डे से गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

 

हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला

बांग्लादेश की सेना ने बांग्लादेश के ठाकुरगांव में शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला किया, जो प्रदर्शनकारी चिन्मयानंद दास की रिहाई के लिए प्रदर्शन कर रहे थे। इस बीच, इस्कॉन बांग्लादेश ने अपने नेता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी की निंदा की है और कहा है, कि वे बांग्लादेश के विभिन्न क्षेत्रों में सनातनियों पर हो रहे हमलों की निंदा करते हैं।

बांग्लादेशी सुरक्षा बलों और हिंदू नेता चिन्मय दास के समर्थकों के बीच हिंसक झड़प में एक सरकारी वकील की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए हैं। चटगांव कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर जेल भेज दिया है। ढाका ट्रिब्यून अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित की पहचान सैफुल इस्लाम के रूप में हुई है, जो 35 वर्षीय सहायक सरकारी वकील और चटगांव जिला बार एसोसिएशन का सदस्य था।

 

 

हिंदुओं पर हमले से भड़के साउथ के अभिनेता

वहीं, आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने बुधवार को हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास प्रभु की गिरफ्तारी और जमानत न दिए जाने की निंदा की और बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप करने की मांग की है। कल्याण ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस से पड़ोसी देश में हिंदू समुदाय पर हो रहे अत्याचारों को रोकने की अपील की है।

उपमुख्यमंत्री ने बांग्लादेश के निर्माण में भारत के योगदान की याद दिलाते हुए कहा, कि भारतीय सेना के जवानों ने बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से आजाद कराने के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी।

वहीं, पड़ोसी देश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने वाले प्रभु की गिरफ्तारी और जमानत न दिए जाने पर बांग्लादेश में भारत के विदेश मंत्रालय सहित कई देशों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

पवन कल्याण ने हिंदू एकता का आह्वान किया

पवन कल्याण ने हिंदू समुदाय से इस घटना की निंदा करने का आह्वान किया और मामले में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की मांग की।

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, कि “आइए हम सब मिलकर बांग्लादेश पुलिस द्वारा इस्कॉन बांग्लादेश के पुजारी ‘चिन्मय कृष्ण दास’ को हिरासत में लिए जाने की निंदा करें। हम मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश सरकार से हिंदुओं पर अत्याचार बंद करने का आग्रह करते हैं। बांग्लादेश निर्माण के लिए भारतीय सेना का खून बहा है, हमारे संसाधन खर्च किए गए हैं, हमारे सेना के जवानों की जान गई है। जिस तरह से हमारे हिंदू भाइयों और बहनों को निशाना बनाया जा रहा है, उससे हम बहुत परेशान हैं। हम @UN @UNinIndia से हस्तक्षेप करने का अनुरोध करते हैं।”

भारतीय विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?

भारत ने बांग्लादेश में हाल ही में हुए घटनाक्रम पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और पड़ोसी देश से देश में धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा। विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा, “हम बांग्लादेश के अधिकारियों से हिंदुओं और सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं, जिसमें शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उनका अधिकार भी शामिल है।”

मंत्रालय ने कहा, कि अल्पसंख्यकों के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में आगजनी और लूटपाट के साथ-साथ देवताओं और मंदिरों में तोड़फोड़ और अपवित्रता के मामले बढ़ रहे हैं। विदेश मंत्रालय ने गिरफ्तार साधु की रिहाई की मांग को लेकर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं पर हमलों पर चिंता व्यक्त की है।

 

‘बांग्लादेश के PM को नोबल पुरस्कार, उनसे ये उम्मीद नहीं’, चिन्मय कृष्ण की गिरफ्तारी पर श्री श्री रविशंकर

बांग्लादेश में हिंदूओं पर हमले, धार्मिक स्थलों पर नुकसान पहुंचाए जाने के मामलों को लेकर प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार लगातार सवालों से घिरी है। इस बीच इस्कॉन नेता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को लेकर एक बार फिर बांग्लादेश सरकार की निंदा हो रही है। श्री श्री रविशंकर दास ने कहा है कि प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस नोबल शांति पुरस्कार के विजेता हैं, उनसे संतों के खिलाफ इस तरह के एक्शन की उम्मीद नहीं है। इससे समाज में भय और तनाव का माहौल पैदा हो जाता है।

चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी को इस हफ्ते मंगलवार सुबह 11 बजे चटगांव छठे मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट के न्यायाधीश काजी शरीफुल इस्लाम के सामने पेश किया गया। द ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, उनके वकीलों ने जमानत याचिका दायर की, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया और उन्हें जेल भेजने का आदेश दिया।

 

चटगांव मेट्रोपॉलिटन पुलिस (सीएमपी) के अतिरिक्त उपायुक्त काजी एमडी तारेक अजीज ने कहा कि चिन्मय को रात में सड़क मार्ग से चटगांव लाया गया। उन पर कोतवाली पुलिस स्टेशन में देशद्रोह का मामला दर्ज है और उस मामले में उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया था।

बांग्लादेश में इस्कॉन नेता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी को लेकर श्री श्री रविशंकर दास ने चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा जिस देश में संतों पर इस तरह के एक्शन लिए जाएंगो तो वहां भय और तनाव का माहौल बन जाएगा। एक सवाल जवाब में श्री श्री रविशंकर दास ने कहा, “पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री के लिए एक आध्यात्मिक नेता को गिरफ्तार करना अशोभनीय है। वह हथियार नहीं ले रहे हैं, वह बंदूक नहीं ले रहे हैं, वह अपने लोगों की देखभाल कर रहे हैं। वह सिर्फ अधिकारों के लिए खड़े हैं और चाहते हैं कि सरकार ऐसा करे।” रविशंकर ने कहा, “वहां अल्पसंख्यकों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, उन्हें सुनिए। धार्मिक पुजारियों को गिरफ्तार करने से न तो उनका भला होगा और न ही लोगों का, देश का भला होगा और न ही बांग्लादेश की छवि का भला होगा।”

श्री श्री रविशंकर दास ने कहा, “हम प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस से बहुत अधिक उम्मीद करते हैं, जिन्हें लोगों में शांति और सुरक्षा लाने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला है और इसीलिए उन्हें वहां प्रधान मंत्री के रूप में रखा गया है। हम उनसे ऐसी कार्रवाई की उम्मीद नहीं करेंगे जो आगे समुदायों के बीच तनाव और भय और अधिक पैदा करेगी।”

Bangladesh: बांग्लादेश में ISKCON के संत की गिरफ्तारी पर भारत सख्त, दिल्ली ने लगाई यूनुस सरकार को फटकार

Bangladesh Hindu: भारत सरकार ने मंगलवार को बांग्लादेश में सनातन जागरण जोत के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और जमानत न दिए जाने पर चिंता जताई। एक आधिकारिक बयान में, विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ होने वाली हिंसा पर गहरी चिंता जताई है।

विदेश मंत्रालय ने कहा है, कि ये घटना, बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों की एक श्रृंखला के बीच हुई है, जिसमें आगजनी, लूटपाट, चोरी, बर्बरता और धार्मिक स्थलों को अपवित्र करने की घटनाएं शामिल हैं।

देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गये बांग्लादेशी हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका चटगांव मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने खारिज कर दी है। अदालत ने यह देखते हुए, कि पुलिस ने दास की रिमांड का अनुरोध नहीं किया था, उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है, कि उन्हें हिरासत के दौरान सभी धार्मिक विशेषाधिकार दिए जाएं।

सोमवार को दास की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए एकत्र हुए अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा करते हुए भारत ने कहा, “हम बांग्लादेश के अधिकारियों से हिंदुओं और सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं, जिसमें शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उनका अधिकार भी शामिल है।”

वहीं, श्री चिन्मय कृष्ण दास के खिलाफ आरोपों को निराधार बताते हुए मंदिर के अधिकारियों ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा, “हमें परेशान करने वाली खबरें मिली हैं, कि इस्कॉन बांग्लादेश के प्रमुख नेताओं में से एक श्री चिन्मय कृष्ण दास को ढाका पुलिस ने हिरासत में लिया है। यह निराधार आरोप लगाना अपमानजनक है, कि इस्कॉन का दुनिया में कहीं भी आतंकवाद से कोई लेना-देना है।”

पोस्ट में कहा गया है, कि “इस्कॉन, भारत सरकार से तत्काल कदम उठाने और बांग्लादेश सरकार से बात करने और यह बताने का आग्रह करता है, कि हम एक शांतिप्रिय भक्ति आंदोलन हैं। हम चाहते हैं कि बांग्लादेश सरकार चिन्मय कृष्ण दास को तुरंत रिहा करे। इन भक्तों की सुरक्षा के लिए हम भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हैं।”

यह घटनाक्रम तब सामने आया है, जब सोमवार को श्री कृष्ण दास प्रभु को देश छोड़ने से रोक दिया गया और देश के अधिकारियों ने ढाका हवाई अड्डे पर उन्हें हिरासत में ले लिया। CNN-News18 की रिपोर्ट के मुताबिक, धार्मिक नेता को एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया है। उनकी गिरफ्तारी के तुरंत बाद, बांग्लादेश में हिंदू अधिकार वकालत और नागरिक समाज समूहों ने उनकी रिहाई की मांग करते हुए ढाका, चटगांव और अन्य प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।

Krishna Das Prabhu: ISKCON बांग्लादेश के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास कौन हैं, जिन्हें किया गया है गिरफ्तार?

Krishna Das Prabhu: बांग्लादेश की पुलिस ने सोमवार को कहा है, कि उन्होंने एक हिंदू नेता को गिरफ्तार किया है जो इस्लामिक देश में हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की वकालत करते हुए विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे।

समाचार एजेंसी एएफपी ने वरिष्ठ पुलिस डिटेक्टिव रजाउल करीम मलिक के हवाले से कहा है, उन्हें ढाका में गिरफ्तार किया गया है।

चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी, जिन्हें कृष्ण प्रभु दास के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने बांग्लादेश में कई रैलियां आयोजित की थीं, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने “साथी भक्तों के खिलाफ अत्याचार” की निंदा की थी। ढाका पुलिस के प्रवक्ता तालेबुर रहमान ने गिरफ्तारी की पुष्टि की है, लेकिन उनके ऊपर लगाए गये आरोपों की जानकारी नहीं दी है।

लेकिन, बांग्लादेशी मीडिया के मुताबिक, उनके ऊपर राजद्रोह के मामले दर्ज किए गये हैं और कोर्ट में आज उन्हें पेश किया गया, जहां उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई है।

बांग्लादेश में गिरफ्तार किए गए हिंदू नेता कृष्णदास प्रभु कौन हैं?

कृष्ण दास प्रभु, जिन्हें चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी के नाम से भी जाना जाता है, वो बांग्लादेश में एक हिंदू नेता और पूजनीय व्यक्ति हैं। वे बांग्लादेश सम्मिलितो सनातन जागरण जोते समूह के सदस्य भी हैं। ब्रह्मचारी इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) से जुड़े थे। वे इस्कॉन के प्रवक्ता भी हैं।

इस्कॉन के सदस्य के रूप में, कृष्ण प्रभु दास बांग्लादेश में हिंदुओं के अधिकारों और सुरक्षा के लिए मुखर वकील रहे हैं, और अक्सर लक्षित घृणा हमलों और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ बोलते रहे हैं।

 

 

कृष्ण दास ने हाल ही में लक्षित हमलों का सामना कर रहे हिंदुओं के लिए न्याय की मांग करते हुए एक बड़ी रैली का नेतृत्व किया था और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए बांग्लादेशी अधिकारियों से बेहतर सुरक्षा की मांग की। एएफपी के मुताबितक, ब्रह्मचारी के खिलाफ अक्टूबर में मामला दर्ज किया गया था, जब उन्होंने चटगांव शहर में एक बड़ी रैली का नेतृत्व किया था, जहां उन पर बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाया गया था।

उनके मुखर रुख और नेतृत्व ने उन्हें एक प्रमुख व्यक्ति बना दिया है, लेकिन साथ ही उन्हें राजनीतिक और सामाजिक विवादों के घेरे में भी खड़ा कर दिया है। कृष्ण दास प्रभु की हिरासत, बांग्लादेश में बढ़ते धार्मिक तनाव के बीच हुई है, जो पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद से हिंसा से ग्रस्त है।

हिंदू अल्पसंख्यकों को देश के अलग अलग इलाकों में निशाना बनाया जा रहा है।

बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदू अब सिर्फ 8% बचे हैं। ज्यादातर हिंदू भारत भागने के लिए मजबूर कर दिए गये या फिर उन्हें जबरन मुसलमान बना दिया गया।

बांग्लादेश में कई जगहों पर किए गये प्रदर्शन

उनकी गिरफ्तारी के बाद ढाका में हिंदू समुदाय के लोगों ने शाहबाग इलाके में विरोध प्रदर्शन किया, जहां कई लोगों ने नारे लगाए और प्रभु की तत्काल रिहाई की मांग करते हुए प्रमुख सड़कों को भी जाम कर दिया। ढाका ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (ISKCON) के सदस्यों ने भी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन के दौरान अज्ञात लोगों द्वारा हमला किए जाने के बाद कई लोग घायल हो गए।

इसके अलावा बांग्लादेश के एक अन्य प्रमुख शहर चटगांव में भी लोगों ने प्रभु की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। शहर से आए एक वीडियो में हिंदू नेता की गिरफ्तारी के विरोध में लोगों को अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाते हुए दिखाया गया। इस बीच, भाजपा सांसद सुकांत मजूमदार ने चिन्मय कृष्ण प्रभु की गिरफ्तारी की निंदा की और विदेश मंत्री एस जयशंकर से मामले को गंभीरता से लेने और तत्काल कदम उठाने के लिए हस्तक्षेप करने का आह्वान किया है।

मजूमदार ने कहा, “चिन्मय प्रभु, जिन्हें श्री चिन्मय कृष्ण दास प्रभु के नाम से भी जाना जाता है, बांग्लादेश के एक सनातनी हिंदू नेता, इस्कॉन मंदिर के एक भिक्षु और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों की आवाज हैं, उन्हें सोमवार को शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने के लिए ढाका पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भिक्षु चिन्मय प्रभु को सोमवार दोपहर ढाका पुलिस ने ढाका हवाई अड्डे से उठाया और उन्हें ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस की जासूसी शाखा में ले जाया गया है।”

बांग्लादेश में पुंडरीक धाम के अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी उन 18 लोगों में से एक हैं, जिन पर बांग्लादेश में भगवा ध्वज फहराने के आरोप में राजद्रोह का आरोप लगाया गया है।

 

Adani power projects: बांग्लादेश, श्रीलंका में अडानी ग्रुप को लग सकता है झटका, प्रोजेक्ट छिना तो चीन को फायदा

Adani power projects: गौतम अडानी रिश्वतकांड में कितनी सच्चाई है, इसका फैसला करना तो अदालत का काम है, लेकिन अडानी ग्रुप पर लगे आरोपों से भारत को भारी नुकसान हो सकता है। खासकर पड़ोस में, क्योंकि बांग्लादेश में जहां उनके प्रोजेक्ट की फिर से जांच की जाएगी, वहीं श्रीलंका की एक्शन ले सकता है।

अमेरिकी प्रॉसीक्यूटर्स नेअडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी और सात अन्य लोगों पर भारतीय सरकारी अधिकारियों को कथित तौर पर रिश्वत देने का आरोप लगाए जाने के बाद, बांग्लादेश ने अडानी पावर ट्रेडिंग पैक्ट सहित प्रमुख बिजली उत्पादन कॉन्ट्रैक्ट की “समीक्षा” करने में मदद के लिए एक “प्रतिष्ठित कानूनी और जांच फर्म” को नियुक्त करने का फैसला किया है।

बांग्लादेश कर सकता है कॉन्ट्रैक्ट रद्द?

अधिकारियों ने रविवार को इंडियन एक्सप्रेस को बताया है, कि इससे “संभावित रूप से फिर से बातचीत या कॉन्ट्रैक्ट को रद्द करने” की नौबत आ सकती है। बांग्लादेश सरकार ने एक बयान में कहा है, कि “बिजली, ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय की राष्ट्रीय समीक्षा समिति ने रविवार को अंतरिम सरकार से 2009 और 2024 के बीच शेख हसीना के ‘निरंकुश शासन’ के दौरान साइन किए गये प्रमुख बिजली उत्पादन कॉन्ट्रैक्ट की समीक्षा में सहायता के लिए एक प्रतिष्ठित कानूनी और जांच फर्म को नियुक्त करने के लिए कहा है।”

समिति ने कहा है, कि “समिति वर्तमान में कई कॉन्ट्रैक्ट्स की विस्तृत जांच में लगी हुई है। इनमें अडानी (गोड्डा) BIFPCL 1234.4 मेगावाट कोयला आधारित बिजली संयंत्र शामिल है। इसमें पायरा (1320 मेगावाट कोयला), मेघनाघाट (335 मेगावाट दोहरी ईंधन), आशुगंज (195 मेगावाट गैस), बशखली (612 मेगावाट कोयला), मेघनाघाट (583 मेगावाट दोहरी ईंधन) और मेघनाघाट (584 मेगावाट गैस/आरएलएनजी) के बिजली संयंत्रों को भी शामिल किया गया है।”

समिति ने कहा है, कि “न्यायमूर्ति मोईनुल इस्लाम चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति ने एक असाधारण प्रस्ताव में कहा, कि उसे अन्य मांगे गए और अनचाहे अनुबंधों का आगे विश्लेषण करने के लिए और समय चाहिए। समिति ऐसे सबूत जुटा रही है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कानूनों और कार्यवाही के अनुरूप कॉन्ट्रैक्ट्स पर संभावित पुनर्वार्ता या रद्दीकरण की संभावना हो सकती है।”

समीक्षा समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा है, कि “इसमें सुविधा प्रदान करने के लिए, हम अपनी समिति की सहायता के लिए एक या ज्यादा शीर्ष-गुणवत्ता वाली अंतर्राष्ट्रीय कानूनी और जांच फर्मों की तत्काल नियुक्ति की सिफारिश करते हैं।”

समिति ने आगे कहा है, कि “यह सुनिश्चित करना चाहता है, कि इसकी जांच इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स के मुताबिक हो और अंतरराष्ट्रीय वार्ता और मध्यस्थता में स्वीकार्य हो।”

वहीं, अडानी पावर लिमिटेड के प्रवक्ता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, कि “हम बांग्लादेश के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं करते हैं। हमारा PPA पिछले सात वर्षों से अस्तित्व में है और पूरी तरह से कानूनी है और सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है। हम बिजली की आपूर्ति करके अपने कॉन्ट्रैक्ट्स संबंधी दायित्वों को पूरा करना जारी रखते हैं।”

अडानी ग्रुप ने 2017 में किया था समझौता

अडानी ग्रुप ने साल 2017 में बांग्लादेश की सरकार के साथ बिजली खरीद समझौते (पीपीए) पर दस्तखत किए थे और प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली देश की अंतरिम सरकार ने इस डील की फिर से जांच के लिए एनर्जी और कानूनी एक्सपर्ट्स को मिलाकर एक हाई लेवल जांच समिति बनाई थी। यह फैसला बांग्लादेश हाई कोर्ट के निर्देश के मुताबिक था।

बांग्लादेश की समाचार एजेंसी यूएनबी ने बताया था, कि 19 नवंबर को न्यायमूर्ति फराह महबूब और न्यायमूर्ति देबाशीष रॉय चौधरी की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सरकार से दो महीने के भीतर समिति की रिपोर्ट पेश करने को कहा था। इसके अलावा, हाई कोर्ट ने सरकार को बिजली विभाग और अडानी समूह के बीच 25 साल के सौदे से संबंधित सभी दस्तावेज एक महीने के भीतर कोर्ट में जमा करने का भी आदेश दिया है।

हाई कोर्ट का यह निर्देश 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के वकील एम. अब्दुल कय्यूम की तरफ से दायर की गई रिट याचिका के बाद आया है। यूएनबी की रिपोर्ट में कहा गया है, कि कय्यूम ने पहले बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (BPDB) के अध्यक्ष और ऊर्जा एवं ऊर्जा मंत्रालय के सचिव को कानूनी नोटिस भेजा था और PPA की शर्तों का पुनर्मूल्यांकन करने या सौदों को रद्द करने की मांग की थी।

वहीं, इंडियन एक्सप्रेस की 12 सितंबर की एक रिपोर्ट में कहा गया है, कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार अडानी समूह सहित भारतीय व्यवसायों की जांच करने वाली है, जो 2017 के समझौते के तहत अपनी झारखंड इकाई से बिजली खरीदता है।

मोहम्मद यूनुस की सरकार, खास तौर पर समझौते की शर्तों को जानने के लिए उत्सुक है और यह भी, कि क्या बिजली के लिए भुगतान की जा रही कीमत उचित है।

अडानी-बांग्लादेश एनर्जी डील क्या है?

नवंबर 2017 में अडानी पावर (झारखंड) लिमिटेड (APJL) ने बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड के साथ 25 सालों के लिए 1,496 मेगावाट (नेट) बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत बांग्लादेश, APJL के गोड्डा प्लांट से उत्पादित 100 प्रतिशत बिजली खरीदेगा। 100 प्रतिशत आयातित कोयले पर चलने वाली इस इकाई को मार्च 2019 में भारत सरकार द्वारा विशेष आर्थिक क्षेत्र घोषित किया गया था। अप्रैल-जून 2023 के दौरान पूरी तरह से व्यावसायिक रूप से चालू होने वाला गोड्डा प्लांट, बांग्लादेश के बेस लोड का 7-10 प्रतिशत आपूर्ति करता है। 2023-24 में इसने लगभग 7,508 मिलियन यूनिट बिजली निर्यात की, जो भारत के कुल 11,934 मिलियन यूनिट बिजली निर्यात का लगभग 63 प्रतिशत है।

बांग्लादेश को भारत का बिजली निर्यात 1 बिलियन डॉलर को पार कर गया है, जो भारत के अपने पड़ोसी देश को कुल निर्यात का लगभग 10 प्रतिशत है।

श्रीलंका में भी अडानी ग्रुप को लगेगा झटका?

श्रीलंका, जो भारत और चीन के लिए जियो-पॉलिटिक्स के लिहाज से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है, वहां भी अडानी ग्रुप को झटका देने की कोशिश की जा सकती है। श्रीलंका में पावर प्रोजेक्ट्स हासिल करने के लिए भारत और चीन के बीच काफी कड़ा संघर्ष चला था।

श्रीलंका के मामले में, अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली नई सरकार ने देश में चल रहे अन्य निवेशों के अलावा मन्नार और पूनरी में अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (AGEL) पवन ऊर्जा परियोजना के बारे में अभी तक अंतिम फैसला नहीं लिया है।

लेकिन, श्रीलंकाई दैनिक द संडे मॉर्निंग से बात करते हुए, सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (CEB) के प्रवक्ता इंजीनियर धनुष्का पराक्रमसिंघे ने पुष्टि की है, कि मामले की “समीक्षा” की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा, कि पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट के बारे में एक प्रस्ताव आगे के विचार-विमर्श के लिए आने वाले हफ्तों में कैबिनेट के सामने पेश किया जाएगा।

पराक्रमसिंघे ने द संडे मॉर्निंग को बताया है, कि “अंतिम फैसला लेने से पहले कैबिनेट अडानी पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट से संबंधित सभी विवरणों की समीक्षा करेगी। हम वर्तमान में परियोजना के सभी पहलुओं का मूल्यांकन करने की प्रक्रिया में हैं, जिसमें इसकी वित्तीय व्यवहार्यता और पर्यावरणीय प्रभाव शामिल हैं।”

उन्होंने कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि हम इस तरह की बड़े पैमाने की परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें, खासकर अडानी समूह के बारे में उठाई गई अंतरराष्ट्रीय चिंताओं के मद्देनजर।”

यानि, अगर अडानी ग्रुप को जानबूझकर बाइडेन प्रशासन निशाना बना रहा है, तो भारत सरकार को काफी सतर्कता से आगे बढ़ना होगा, नहीं तो पड़ोस में, जहां चीन हर समय एंटी-इंडिया हरकत को अंजाम देने में लगा रहता है, वो फायदा उठा सकता है।

Bangladesh News: बांग्लादेश में जल्द होंगे चुनाव! नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त नासिर ने ली शपथ

Bangladesh New Election Commission sworn बांग्लादेश में रविवार को नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त एएमएम नासिर उद्दीन और चार अन्य आयुक्तों ने अपने पद की शपथ ली। पिछले लंबे समय से ये पद खाली था। चुनाव आयोग की नियुक्ति अंतरिम सरकार द्वारा नियुक्त एक समिति द्वारा नए चुनाव आयोग प्रमुख और उन सदस्यों के नामों की सिफारिश करने के कुछ दिनों बाद की गई।

Bangladesh News: बांग्लादेश में जल्द होंगे चुनाव! (फाइल फोटो)

पीटीआई, ढाका। Bangladesh New Election Commission sworn: रविवार को बांग्लादेश में नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त एएमएम नासिर उद्दीन और चार अन्य आयुक्तों ने अपने पद की शपथ ली। मुख्य न्यायाधीश सैयद रेफात अहमद ने नए आयोग को पद की शपथ दिलाई।

दरअसल, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन में उखाड़ फेंका गया था, इसके बाद बांग्लादेश के पिछले मुख्य चुनाव आयुक्त ने इस्तीफा दे दिया था। तब से ये पद खाली था।

नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त का शपथ ग्रहण

मुख्य न्यायाधीश सैयद रेफात अहमद ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लाउंज में आयोजित एक समारोह में नए चुनाव आयोग को पद की शपथ दिलाई, जिसमें शीर्ष अदालत के न्यायाधीश और संबंधित अधिकारी शामिल हुए।

नए मुख्य चुनाव आयुक्त इससे पहले सेवक सैन्य अधिकारी और निचली न्यायपालिका के न्यायाधीश के रूप में काम कर चुके हैं। वहीं, अन्य चार नए चुनाव आयुक्त क्रमशः सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश मोहम्मद अनवारुल इस्लाम सरकार और अब्दुर रहमानल मसूद, सरकार की सेवानिवृत्त संयुक्त सचिव बेगम तहमीदा अहमद और सेवानिवृत्त सेना ब्रिगेडियर जनरल अबुल फजल मोहम्मद सनाउल्लाह हैं।

राष्ट्रपति ने की थी नियुक्ति

गौरतलब है कि बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 21 नवंबर को इस पद पर नियुक्ति की थी। पिछले 5 सितंबर से ये पद रिक्त था। बता दें कि बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के सत्ता से जाने के बाद काजी हबीबुल अवाल के नेतृत्व वाले पिछले आयोग के सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था।

लंबे समय से खाली था पद

बता दें कि बांग्लादेश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त काजी हबीबुल अवाल और आयोग के अन्य सदस्यों ने 5 सितंबर को अपने त्यागपत्र दे दिए थे। अधिकारियों ने कहा कि साल 1972 में अपनी स्थापना के बाद चुनाव आयोग इतने दिनों तक कभी रिक्त नहीं रहा है। विगत 29 अक्टूबर को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जुबैर रहमान चौधरी के नेतृत्व में छह सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति के प्रत्येक सदस्य को चुनाव आयोग की सदस्यता के लिए दो लोगों के नाम का सुझाव देना था।

जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग

बांग्लादेश में चुनाव आयोग की स्थापना इसलिए की गई है क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के अलावा कई अन्य राजनीतिक दल पिछले कई हफ्ते से देश में जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग कर रहे थे। विगत 17 नवंबर को बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार ने कहा था कि उनकी सरकार चुनावी सुधारों पर निर्णय होते ही चुनाव का रोडमैप जारी करेगी।

Exit mobile version