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Adani power projects: बांग्लादेश, श्रीलंका में अडानी ग्रुप को लग सकता है झटका, प्रोजेक्ट छिना तो चीन को फायदा

Adani power projects: गौतम अडानी रिश्वतकांड में कितनी सच्चाई है, इसका फैसला करना तो अदालत का काम है, लेकिन अडानी ग्रुप पर लगे आरोपों से भारत को भारी नुकसान हो सकता है। खासकर पड़ोस में, क्योंकि बांग्लादेश में जहां उनके प्रोजेक्ट की फिर से जांच की जाएगी, वहीं श्रीलंका की एक्शन ले सकता है।

अमेरिकी प्रॉसीक्यूटर्स नेअडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी और सात अन्य लोगों पर भारतीय सरकारी अधिकारियों को कथित तौर पर रिश्वत देने का आरोप लगाए जाने के बाद, बांग्लादेश ने अडानी पावर ट्रेडिंग पैक्ट सहित प्रमुख बिजली उत्पादन कॉन्ट्रैक्ट की “समीक्षा” करने में मदद के लिए एक “प्रतिष्ठित कानूनी और जांच फर्म” को नियुक्त करने का फैसला किया है।

बांग्लादेश कर सकता है कॉन्ट्रैक्ट रद्द?

अधिकारियों ने रविवार को इंडियन एक्सप्रेस को बताया है, कि इससे “संभावित रूप से फिर से बातचीत या कॉन्ट्रैक्ट को रद्द करने” की नौबत आ सकती है। बांग्लादेश सरकार ने एक बयान में कहा है, कि “बिजली, ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय की राष्ट्रीय समीक्षा समिति ने रविवार को अंतरिम सरकार से 2009 और 2024 के बीच शेख हसीना के ‘निरंकुश शासन’ के दौरान साइन किए गये प्रमुख बिजली उत्पादन कॉन्ट्रैक्ट की समीक्षा में सहायता के लिए एक प्रतिष्ठित कानूनी और जांच फर्म को नियुक्त करने के लिए कहा है।”

समिति ने कहा है, कि “समिति वर्तमान में कई कॉन्ट्रैक्ट्स की विस्तृत जांच में लगी हुई है। इनमें अडानी (गोड्डा) BIFPCL 1234.4 मेगावाट कोयला आधारित बिजली संयंत्र शामिल है। इसमें पायरा (1320 मेगावाट कोयला), मेघनाघाट (335 मेगावाट दोहरी ईंधन), आशुगंज (195 मेगावाट गैस), बशखली (612 मेगावाट कोयला), मेघनाघाट (583 मेगावाट दोहरी ईंधन) और मेघनाघाट (584 मेगावाट गैस/आरएलएनजी) के बिजली संयंत्रों को भी शामिल किया गया है।”

समिति ने कहा है, कि “न्यायमूर्ति मोईनुल इस्लाम चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति ने एक असाधारण प्रस्ताव में कहा, कि उसे अन्य मांगे गए और अनचाहे अनुबंधों का आगे विश्लेषण करने के लिए और समय चाहिए। समिति ऐसे सबूत जुटा रही है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कानूनों और कार्यवाही के अनुरूप कॉन्ट्रैक्ट्स पर संभावित पुनर्वार्ता या रद्दीकरण की संभावना हो सकती है।”

समीक्षा समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा है, कि “इसमें सुविधा प्रदान करने के लिए, हम अपनी समिति की सहायता के लिए एक या ज्यादा शीर्ष-गुणवत्ता वाली अंतर्राष्ट्रीय कानूनी और जांच फर्मों की तत्काल नियुक्ति की सिफारिश करते हैं।”

समिति ने आगे कहा है, कि “यह सुनिश्चित करना चाहता है, कि इसकी जांच इंटरनेशनल स्टैंडर्ड्स के मुताबिक हो और अंतरराष्ट्रीय वार्ता और मध्यस्थता में स्वीकार्य हो।”

वहीं, अडानी पावर लिमिटेड के प्रवक्ता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है, कि “हम बांग्लादेश के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं करते हैं। हमारा PPA पिछले सात वर्षों से अस्तित्व में है और पूरी तरह से कानूनी है और सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है। हम बिजली की आपूर्ति करके अपने कॉन्ट्रैक्ट्स संबंधी दायित्वों को पूरा करना जारी रखते हैं।”

अडानी ग्रुप ने 2017 में किया था समझौता

अडानी ग्रुप ने साल 2017 में बांग्लादेश की सरकार के साथ बिजली खरीद समझौते (पीपीए) पर दस्तखत किए थे और प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली देश की अंतरिम सरकार ने इस डील की फिर से जांच के लिए एनर्जी और कानूनी एक्सपर्ट्स को मिलाकर एक हाई लेवल जांच समिति बनाई थी। यह फैसला बांग्लादेश हाई कोर्ट के निर्देश के मुताबिक था।

बांग्लादेश की समाचार एजेंसी यूएनबी ने बताया था, कि 19 नवंबर को न्यायमूर्ति फराह महबूब और न्यायमूर्ति देबाशीष रॉय चौधरी की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने सरकार से दो महीने के भीतर समिति की रिपोर्ट पेश करने को कहा था। इसके अलावा, हाई कोर्ट ने सरकार को बिजली विभाग और अडानी समूह के बीच 25 साल के सौदे से संबंधित सभी दस्तावेज एक महीने के भीतर कोर्ट में जमा करने का भी आदेश दिया है।

हाई कोर्ट का यह निर्देश 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के वकील एम. अब्दुल कय्यूम की तरफ से दायर की गई रिट याचिका के बाद आया है। यूएनबी की रिपोर्ट में कहा गया है, कि कय्यूम ने पहले बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (BPDB) के अध्यक्ष और ऊर्जा एवं ऊर्जा मंत्रालय के सचिव को कानूनी नोटिस भेजा था और PPA की शर्तों का पुनर्मूल्यांकन करने या सौदों को रद्द करने की मांग की थी।

वहीं, इंडियन एक्सप्रेस की 12 सितंबर की एक रिपोर्ट में कहा गया है, कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार अडानी समूह सहित भारतीय व्यवसायों की जांच करने वाली है, जो 2017 के समझौते के तहत अपनी झारखंड इकाई से बिजली खरीदता है।

मोहम्मद यूनुस की सरकार, खास तौर पर समझौते की शर्तों को जानने के लिए उत्सुक है और यह भी, कि क्या बिजली के लिए भुगतान की जा रही कीमत उचित है।

अडानी-बांग्लादेश एनर्जी डील क्या है?

नवंबर 2017 में अडानी पावर (झारखंड) लिमिटेड (APJL) ने बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड के साथ 25 सालों के लिए 1,496 मेगावाट (नेट) बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत बांग्लादेश, APJL के गोड्डा प्लांट से उत्पादित 100 प्रतिशत बिजली खरीदेगा। 100 प्रतिशत आयातित कोयले पर चलने वाली इस इकाई को मार्च 2019 में भारत सरकार द्वारा विशेष आर्थिक क्षेत्र घोषित किया गया था। अप्रैल-जून 2023 के दौरान पूरी तरह से व्यावसायिक रूप से चालू होने वाला गोड्डा प्लांट, बांग्लादेश के बेस लोड का 7-10 प्रतिशत आपूर्ति करता है। 2023-24 में इसने लगभग 7,508 मिलियन यूनिट बिजली निर्यात की, जो भारत के कुल 11,934 मिलियन यूनिट बिजली निर्यात का लगभग 63 प्रतिशत है।

बांग्लादेश को भारत का बिजली निर्यात 1 बिलियन डॉलर को पार कर गया है, जो भारत के अपने पड़ोसी देश को कुल निर्यात का लगभग 10 प्रतिशत है।

श्रीलंका में भी अडानी ग्रुप को लगेगा झटका?

श्रीलंका, जो भारत और चीन के लिए जियो-पॉलिटिक्स के लिहाज से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है, वहां भी अडानी ग्रुप को झटका देने की कोशिश की जा सकती है। श्रीलंका में पावर प्रोजेक्ट्स हासिल करने के लिए भारत और चीन के बीच काफी कड़ा संघर्ष चला था।

श्रीलंका के मामले में, अनुरा कुमारा दिसानायके के नेतृत्व वाली नई सरकार ने देश में चल रहे अन्य निवेशों के अलावा मन्नार और पूनरी में अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (AGEL) पवन ऊर्जा परियोजना के बारे में अभी तक अंतिम फैसला नहीं लिया है।

लेकिन, श्रीलंकाई दैनिक द संडे मॉर्निंग से बात करते हुए, सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (CEB) के प्रवक्ता इंजीनियर धनुष्का पराक्रमसिंघे ने पुष्टि की है, कि मामले की “समीक्षा” की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा, कि पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट के बारे में एक प्रस्ताव आगे के विचार-विमर्श के लिए आने वाले हफ्तों में कैबिनेट के सामने पेश किया जाएगा।

पराक्रमसिंघे ने द संडे मॉर्निंग को बताया है, कि “अंतिम फैसला लेने से पहले कैबिनेट अडानी पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट से संबंधित सभी विवरणों की समीक्षा करेगी। हम वर्तमान में परियोजना के सभी पहलुओं का मूल्यांकन करने की प्रक्रिया में हैं, जिसमें इसकी वित्तीय व्यवहार्यता और पर्यावरणीय प्रभाव शामिल हैं।”

उन्होंने कहा, “यह महत्वपूर्ण है कि हम इस तरह की बड़े पैमाने की परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें, खासकर अडानी समूह के बारे में उठाई गई अंतरराष्ट्रीय चिंताओं के मद्देनजर।”

यानि, अगर अडानी ग्रुप को जानबूझकर बाइडेन प्रशासन निशाना बना रहा है, तो भारत सरकार को काफी सतर्कता से आगे बढ़ना होगा, नहीं तो पड़ोस में, जहां चीन हर समय एंटी-इंडिया हरकत को अंजाम देने में लगा रहता है, वो फायदा उठा सकता है।

‘हम आपकी पूरी अर्थव्यवस्था तबाह कर देंगे’, ट्रंप के करीबी ने दी ट्रूडो को खुली धमकी; नेतन्याहू पर बंटे पश्चिमी देश

Benjamin Netanyahu Arrest Warrant बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट पर अमेरिका बेहद नाराज है। अब वह खुलकर बाकी देशों को धमकी देने पर उतर आया है। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और पूर्व रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। इस बीच डोनाल्ड ट्रंप के करीबी ने कई पश्चिम देशों को धमकाया है।

जस्टिन ट्रूडो और डोनाल्ड ट्रंप। ( फाइल फोटो)

HighLights

  1. ट्रंप के करीबी ग्राहम ने दी प्रतिबंध लगाने की धमकी।
  2. गिरफ्तारी में मदद करने वाले देश भुगतेंगे परिणाम।
  3. जल्द प्रतिबंध लगाने वाला कानून बनाएगा अमेरिका।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ जारी अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के गिरफ्तारी वारंट पर पश्चिमी देश बंटते दिख रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में बयान दिया कि अगर नेतन्याहू उनके देश आते हैं तो वह गिरफ्तारी वारंट का पालन करेंगे। मतलब यह हुआ कि कनाडा जाने पर नेतन्याहू को गिरफ्तार किया जा सकता है।

अब जस्टिन ट्रूडो को डोनाल्ड ट्रंप के बेहद करीबी सांसद लिंडसे ग्राहम ने खुली धमकी दी है। उन्होंने कहा कि अगर कनाडा ने ऐसा किया तो वह कनाडा की पूरी अर्थव्यवस्था को तबाह कर देंगे। ग्राहम ने न केवल कनाडा बल्कि ब्रिटेन, फ्रांस समेत कई पश्चिमी देशों को खुली धमकी दी है। ग्राहम ने प्रतिबंध लगाने की बात भी कही है।

ब्रिटेन को भी धमकाया

सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने कहा कि अमेरिका को उन सभी देशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर देना चाहिए, जो अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के गिरफ्तारी वारंट का पालन करते हैं। उन्होंने जस्टिन ट्रूडो और यूके के प्रधानमंत्री केर स्टार्मर को चेतावनी दी है। कहा कि अगर ब्रिटेन ने बेंजामिन नेतन्याहू की गिरफ्तार में मदद की तो उसे गंभीर आर्थिक परिणाम भुगतने होंगे। बता दें के कनाडा के अलावा ब्रिटेन ने खुलकर कहा है कि अगर इजरायल के प्रधानमंत्री ब्रिटेन में प्रवेश करते हैं तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता

हैं।

पूरी अर्थव्यवस्था को कुचल देंगे

ग्राहम ने कहा कि अगर कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस ने आईसीसी की मदद करने की कोशिश की तो हम प्रतिबंध लगाएंगे। आपको दुष्ट आईसीसी बनाम अमेरिका को चुनना होगा। जल्द से जल्द एक कानून पारित कराने की दिशा में मैं टॉम कॉटन के साथ काम कर रहा हूं। इस कानून से उस देश पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है जो इजराइल के किसी भी राजनेता की गिरफ्तारी में सहायता करता है। उन्होंने कहा कि ऐसा करने वाले देशों की अर्थव्यवस्था को कुचल देना चाहिए।

पुतिन के खिलाफ वारंट का किया था स्वागत

पिछले साल मार्च में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ भी आईसीसी ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। तब ग्राहम ने इस फैसले का स्वागत किया था। उन्होंने कहा था कि पुतिन के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए सही दिशा में एक बड़ा कदम है। यह सुबूतों से कहीं अधिक उचित है। मुझे उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय यूक्रेन पर क्रूर आक्रमण के लिए पुतिन को जवाबदेह ठहराएगा और आईसीसी का समर्थन करना जारी रखेगा।

कोई भी देश या संगठन जो नेतन्याहू की गिरफ्तारी में सहायता करेगा, उसे अमेरिकी प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। मैं राष्ट्रपति ट्रंप, उनकी टीम और कांग्रेस में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एक मजबूत प्रतिक्रिया देने को तत्पर हूं। लिंडसे ग्राहम, अमेरिकी सीनेटर।

Diplomacy: कभी जापान की तरक्की से जलने वाले अमेरिका को भारत के विकास से डर? अडानी केस में अंदर की बात जानिए

Adani Case Diplomacy: अडानी को टारगेट करने का मुख्य मकसद अडानी ग्रुप को अमेरिकी बाजारों से फंड जुटाने से रोकना, और खासकर बंदरगाहों और हवाई अड्डों में इसके तेजी से हो रहे बुनियादी ढांचे के विस्तार को रोकना हो सकता है।

1980 के दशक में अमेरिका, जापान के उदय और “अमेरिका पर जापान के कब्जे” को लेकर काफी ज्यादा टेंशन में रहता था, क्योंकि मित्सुबिशी और सोनी जैसी जापानी कंपनियों ने अमेरिका की प्रमुख प्रॉपर्टीज पर कब्जा कर लिया था। इस चिंता ने माइकल क्रिचटन के राइजिंग सन (1992) जैसे उपन्यासों को जन्म दिया, जो लॉस एंजिल्स में एक ‘काल्पनिक युग में भ्रष्टाचार’ से भरी ‘अमेरिकी भविष्य की हत्या’ की रहस्यपूर्ण कहानी है, जब जापानी कंपनियों ने अमेरिका में पूरी तरह से अपना दबदबा बना लिया था।

जापानी कंपनियों ने उस दौरान अमेरिकी बाजारों में किसी भी प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया था। विडंबना यह है कि उसी समय, जापानी बुलबुला भी फूटने लगा था और एक लंबा ठहराव आने लगा था।

पिछले तीन दशकों से अमेरिकी और पश्चिमी सिस्टम में चीनी घुसपैठ और चीनी कंपनियों की ताकत के बारे में चिंताएं तेजी से बढ़ी हैं, खासकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की टेक्नोलॉजी चोरी सहित खुद की साजिशों के कारण। यह गाथा जारी है क्योंकि चीन ने अब बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर कब्जा कर चुका है और इलेक्ट्रिक वाहनों और अन्य क्षेत्रों में अमेरिका सहित पश्चिम से काफी आगे निकल गया है।

और जापान और चीन के बाद आर्थिक ताकत और भारतीय कंपनियों की भूमिका के बारे में यह चिंता भारत की तरफ तो आनी ही थी, क्योंकि भारत की जीडीपी लगातार आगे बढ़ रही है, भारत का ग्रोथ रेट दुनिया में सबसे ज्यादा है और बहुत जल्द भारत की अर्थव्यवस्था तीसरे नंबर पर आने वाली है और हर तरह के आर्थिक रिपोर्ट में बताया जा रहा है, कि भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार फिलहाल थमने वाली नहीं है।

लिहाजा, अडानी मामले को समझना काफी जरूरी हो जाता है।

अडानी रिश्वतकांड में सच क्या है, झूठ क्या है, इसका फैसला करना अदालत का काम है, लेकिन इस कथित भ्रष्टाचार कांड के पीछे की जियो-पॉलिटिक्स को समझना काफी जरूरी हो जाता है।

अडानी का उदय

अहमदाबाद स्थित करीब 150 अरब डॉलर का अडानी समूह, तीन दशक पहले लगभग अज्ञात था, और फिर भी यह भारत में बंदरगाहों से लेकर रियल एस्टेट, FMCG और मीडिया पोर्टफोलियो के साथ सबसे शक्तिशाली समूहों में से एक बन गया है। यह एक तरह से बांग्लादेश में बिजली की आपूर्ति से लेकर दुनिया भर में बंदरगाहों के निर्माण और मैनेजमेंट तक, भारत के भू-राजनीतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण में निजी योगदान की अगुआई कर रहा है।

उदय गौतम अडानी के व्यवसाय का उदय, भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उदय के साथ-साथ हुआ है और आज की तारीख में, अडानी समूह की लगभग हर भारतीय राज्य में दिलचस्पी है, और इस प्रकार, हर राजनीतिक दल के साथ उनके संबंध हैं।

यह उन बड़ी कंपनियों के समूह में सबसे आगे है, जिन्हें भारत की आर्थिक ताकत को घरेलू और दुनिया भर में पहुंचाने का काम सौंपा गया है, ठीक वैसे ही जैसे चैबोल्स ने कभी दक्षिण कोरिया के लिए किया था, या जैसा मित्सुबिशी, टोयोटा और सोनी जैसी कंपनियों ने 1980 के दशक में जापान के लिए किया था, या जैसा चीन की BYD आज EV बाजार में खलबली मचा रही है, उसी तरह से अडानी, भारत की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के मुख्य चेहरों में से एक बन गये हैं।

और यही वजह है, कि अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने जब अडानी समूह और उसके प्रमोटर गौतम अडानी के खिलाफ भ्रष्टाचार (रिश्वत) के आपराधिक और दीवानी आरोपों की घोषणा की, तो इस मामले ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। कुछ लोगों का मानना ​​,है कि अडानी पर हमला मोदी सरकार पर हमला है, लेकिन वास्तव में चीजें इससे काफी ज्यादा जटिल हैं।

अडानी समूह भारतीय अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है, जिसका मतलब है, कि यह देश के लगभग हर राजनीतिक दल के साथ काम करता है। आज इसकी राष्ट्रीय पहचान इतनी ज्यादा है, कि यह किसी एक पार्टी या यहा तक कि किसी एक राजनीतिक नेता के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

भारत के लिए कितना जरूरी हो चुके हैं अडानी?

हकीकत तो यह हे, कि भारत को ऐसे चैंपियनों की जरूरत है, जो इसके जियो-पॉलिटिकल फायदों को आगे बढ़ा सकें और यह सुनिश्चित कर सकें, कि भारत, चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट का सामना करने की ताकत रखता है।

भारत के पास भले ही चीन जितनी आर्थिक ताकत नहीं है, लेकिन यह तेजी से विस्तार कर रहा है और कई देशों में इसकी चीन से ज्यादा साख है। अडानी समूह उन देशों में तेजी से बंदरगाह और एयरपोर्ट प्रोजेक्ट हासिल कर रहा है, जहां चीन अपना दबदबा बनाना चाहता है, और जो देश, भारत को जियो-पॉलिटिकल लाभ पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए श्रीलंका, जहां पोर्ट डील हासिल करने के लिए भारत और चीन एड़ी से चोटी का जोर लगा देते हैं।

और अमेरिका में जैसे ही अडानी समूह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गये, ठीक वैसे ही केन्या के राष्ट्रपति ने 2.6 अरब डॉलर के हवाईअड्डा और ऊर्जा सौदे को रद्द कर दिया, जबकि केन्या, जियो-पॉलिटिक्स में भारत और चीन के लिए कितना महत्व रखता है, ये बताने की जरूरत नहीं है। केन्या के साथ अडानी ग्रुप का डील रद्द होना, गौतम अडानी के लिए नहीं, बल्कि भारत के लिए झटका है।

अडानी पर एक के बाद एक हमले क्यों?

अडानी ग्रुप के खिलाफ रिश्वतकांड का ये खुलासा काफी दिलचस्प है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अडानी कानूनी घोटाला तब सामने आया है, जब कुछ महीने पहले अमेरिका के एक एक्टिविस्ट शॉर्ट-सेलर ने अडानी समूह के वित्तीय लेन-देन का तथाकथित खुलासा किया था, लेकिन उन खुलासों से समूह को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

और रिश्वतकांड के जरिए आपराधिकर आरोप लगाकर कोशिश ये की गई है, कि इसे काफी गंभीरता से लिया जाएगा। हालांकि, अडानी ग्रुप ने तमाम आरोपों से इनकार कर दिया है।

गौतम अडानी के खिलाफ़ सुझाए गए आपराधिक मामले को शायद ज़्यादा गंभीरता से लिया जाएगा- अडानी समूह ने सभी आरोपों से इनकार किया है और एक्सपर्ट्स का कहना है, कि अदालत के अंदर ऐसे आरोपों के टिकने की संभावना नहीं है, लिहाजा ऐसे आरोपों को लगाने के पीछे का मकसद कुछ और हो सकता है।

जैसे

– अडानी ग्रुप को अमेरिकी बाजारों से फंड जुटाने से रोकना

– अडानी ग्रुप को दुनियाभर में बंदरगाहों के विस्तार करने से रोकना

– अडानी के जरिए मजबूत मोदी सरकार पर दबाव बनाना

रिश्वतकांड के खुलासे के फौरन बाद अडानी ग्रुप की एक ऊर्जा कंपनी, अडानी ग्रीन को अमेरिका में अपने 600 मिलियन डॉलर के बॉन्ड की पेशकश वापस लेनी पड़ी है। यह जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक सरकार के अंतिम दिनों में हुआ है और यह बाइडेन नौकरशाही के कुछ हिस्सों के मोदी सरकार के साथ बढ़ते हुए तकरार का विस्तार भी हो सकता है।

रिश्वतकांड के खुलासे ने अडानी ग्रुप के मार्केट कैप में 25 अरब डॉलर की कमी कर दी है और इन आरोपों के बाद अगले कई महीनों तक इसके लिए अमेरिकी बाजार से फंड जुटाने की क्षमताओं पर गहरा असर पड़ेगा। लेकिन अमेरिका की इस हरकत से उसे खुद फायदा होने के बाद वास्तविक फायदा चीन को होगा।

जैसे, चीन का बंदरगाह प्रोजेक्ट किसी अमेरिकी कंपनी को नहीं, बल्कि चीन को मिलेगा। इसके अलावा, आने वाले वक्त में दुनियाभर में बिजली परियोजनाएं भी चीन के हिस्से में गिरने की संभावना ज्यादा बन गई है।

अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में बंदरगाहों, सड़कों, हवाई अड्डों, बिजली आपूर्ति और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे में भी निश्चित तौर पर चीन फायदा उठाएगा, जो घरेलू आर्थिक संकट से जूझ रहा है।

रिश्वतकांड के पीछे साजिश की बदबू क्यों है?

लिहाजा, असल सवाल ये है, कि क्या इस अदालती मामले को इसलिए तेजी से आगे बढ़ाया गया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके, कि अडानी ग्रुप के खिलाफ एक्शन अगले साल जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार बनने से पहले डैमेज कर दिया जाए, खासकर तब, जब यह भारत में कथित रिश्वतखोरी से संबंधित है, न कि अमेरिका में।

अमेरिकी नियम ऐसे कानूनी हस्तक्षेप की अनुमति देते हैं जहां अमेरिका से धन जुटाया गया हो, और जहां अमेरिकी कंपनियों की भागीदारी हो, लेकिन ऐसे हस्तक्षेप नॉर्मल नहीं हैं।

लिहाजा, पूछे जाने चाहिए, क्या इस अदालती मामले की घोषणा से भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में और ज्यादा अस्थिरता लाने की कोशिश की गई है, जो पहले से ही खालिस्तान मुद्दे और खालिस्तानी आतंकवादी, गुरपतवंत सिंह पन्नू को खत्म करने की कथित भारतीय खुफिया साजिश से जूझ रहा था? क्या ट्रंप के सत्ता में आने से पहले चीजें और भी बिगड़ सकती हैं, और क्या यह इस बात के आधार तैयार किए जा रहे हैं, कि ट्रंप के सत्ता में आने के बाद भी दोनों देशों के बीच के रिश्तों में उतार-चढ़ाव जारी रहे?

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