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US News: ट्रंप कैबिनेट में शामिल कई लोगों को मिलीं बम की धमकियां, सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

अमेरिकी में डोनाल्ड ट्रंप के कैबिनेट और प्रशासन के कई लोगों को बम धमाके कर निशाना बनाने की धमकी मिली है। सरकार की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने एक बयान में कहा कि धमकियां मंगलवार रात और बुधवार सुबह दी गईं। धमकियां मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए सभी जरूरी उपाय किए गए हैं।

ट्रंप कैबिनेट में शामिल कई लोगों को मिलीं बम की धमकियां (फोटो-एक्स)

 रॉयटर, वाशिंगटन। अमेरिकी में डोनाल्ड ट्रंप के कैबिनेट और प्रशासन के कई लोगों को बम धमाके कर निशाना बनाने की धमकी मिली है। सरकार की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने एक बयान में कहा कि धमकियां मंगलवार रात और बुधवार सुबह दी गईं।

सुरक्षा एजेंसियां सतर्क

धमकियां मिलने के बाद सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हो गई हैं। इस तरह की स्थितियों से निपटने के लिए सभी जरूरी उपाय किए गए हैं।

न्यूयार्क से अमेरिकी प्रतिनिधि एलिस स्टेफनिक ने एक बयान में कहा कि उनका पारिवारिक घर निशाने पर था। उन्होंने कहा कि वह अपने पति और तीन साल के बेटे के साथ वाशिंगटन से साराटोगा काउंटी जा रही थीं। इसी समय उन्हें इस खतरे की सूचना मिली।

ट्रंप प्रशासन में शीर्ष स्वास्थ्य संस्थान का नेतृत्व करेंगे भारतवंशी जय भट्टाचार्य.

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतवंशी जय भट्टाचार्य को देश के शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान और वित्तपोषण संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ का निदेशक चुना है। भट्टाचार्य ट्रंप द्वारा इस शीर्ष प्रशासनिक पद के लिए नामित होने वाले पहले भारतीय-अमेरिकी बन गए हैं। इससे पहले ट्रंप ने सरकारी दक्षता विभाग का नेतृत्व करने के लिए एलन मस्क के साथ भारतवंशी विवेक रामास्वामी का चुनाव किया था।

ट्रंप ने कहा कि मैं राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक के रूप में सेवा करने के लिए जय भट्टाचार्य को नामित करते हुए रोमांचित महसूस कर रहा हूं। भट्टाचार्य राष्ट्र के चिकित्सा अनुसंधान को निर्देशित करने और महत्वपूर्ण खोज करने के लिए राबर्ट एफ कैनेडी जूनियर के साथ मिलकर काम करेंगे। भट्टाचार्य स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य नीति के प्रोफेसर और नेशनल ब्यूरो आफ इकोनामिक्स रिसर्च में शोध सहयोगी हैं।

ट्रंप ने जिम ओ नील को स्वास्थ्य और मानव सेवा के उप सचिव के रूप में नामित किया है। राष्ट्रीय आर्थिक परिषद की अध्यक्षता के लिए केविन हैसेट को चुना है, जो घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीति निर्धारित करने में मदद करती है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) के रूप में काम करने के लिए अटार्नी जेमिसन ग्रीर को चुना गया है। विंस हेली को घरेलू नीति परिषद का निदेशक बनाने का निर्णय लिया गया है।

ट्रंप टीम ने व्हाइट हाउस के साथ परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया

सूत्रों के अनुसार, यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने की योजना प्रस्तुत करने वाले सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल कीथ केलाग को संघर्ष खत्म करने के लिए यूक्रेन के विशेष दूत के रूप में नियुक्त करने पर भी विचार कर रहे हैं। इस बीच, ट्रंप टीम ने व्हाइट हाउस के साथ परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया है। यह एमओयू 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने से पहले ट्रंप की टीम को संघीय एजेंसियों के साथ सीधे समन्वय करने और दस्तावेजों तक पहुंचने की अनुमति देगा।

ट्रंप के आते ही खालिदा जिया वीजा बनवाने पहुंचीं अमेरिकी दूतावास; चीन में वर्षों से जेल में बंद तीन अमेरिकी रिहा

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया बुधवार को यहां अमेरिकी दूतावास पहुंचीं और अपने वीजा आवेदन की प्रक्रिया पूरी की। डेली स्टार अखबार के अनुसार बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी से जुड़े लोगों ने बताया कि 79 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री को विशेष उपचार के लिए विदेश भेजने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध कर लिए गए हैं। खालिदा अगले महीने ब्रिटेन जा सकती हैं और वहां से अमेरिका या जर्मनी जा सकती हैं।
ट्रंप के आते ही खालिदा जिया वीजा बनवाने पहुंचीं अमेरिकी दूतावास (फोटो- रॉयटर)

 पीटीआई, ढाका। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया बुधवार को यहां अमेरिकी दूतावास पहुंचीं और अपने वीजा आवेदन की प्रक्रिया पूरी की। वह ऐसे समय वीजा बनवा रही हैं, जब इस महीने के प्रारंभ में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई। ट्रंप अगले वर्ष 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे।

कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही  खालिदा

डेली स्टार अखबार के अनुसार, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) से जुड़े लोगों ने बताया कि 79 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री को विशेष उपचार के लिए विदेश भेजने के लिए सभी आवश्यक प्रबंध कर लिए गए हैं। खालिदा अगले महीने ब्रिटेन जा सकती हैं और वहां से अमेरिका या जर्मनी जा सकती हैं। वह लिवर, किडनी, हृदय, फेफड़ों और आंखों से संबंधित कई समस्याओं से जूझ रही हैं।

बीएनपी प्रमुख खालिदा को बुधवार को ही भ्रष्टाचार के एक मामले में बड़ी राहत मिली। हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। ढाका की एक अदालत ने 2018 में जिया चैरिटेबल ट्रस्ट भ्रष्टाचार मामले में उन्हें सात वर्ष जेल की सजा सुनाई थी।

चीन में वर्षों से जेल में बंद तीन अमेरिकी रिहा

चीन में वर्षों से कैद किए गए तीन अमेरिकी नागरिकों को रिहा कर दिया गया है। व्हाइट हाउस ने बुधवार को बाइडन प्रशासन के अंतिम महीनों में बीजिंग के साथ राजनयिक समझौते की घोषणा करते हुए यह जानकारी दी। रिहा किए गए लोगों में मार्क स्विडन, काई ली और जान लेउंग शामिल हैं। अमेरिकी सरकार ने इन सभी को गलत तरीके से हिरासत में लिया गया घोषित किया था।

स्विडन को ड्रग संबंधी आरोपों में मौत की सजा सुनाई गई थी, जबकि ली और लेउंग को जासूसी के आरोप में कैद किया गया था। व्हाइट हाउस ने कहा कि जल्द ही वे वापस लौटेंगे और अपने परिवारों से मिलेंगे। एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि बाइडन प्रशासन ने पिछले कई वर्षों में हुई कई बैठकों में चीन के साथ अपने मामले उठाए हैं। इस महीने की शुरुआत में पेरू में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग शिखर सम्मेलन के मौके पर राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से बातचीत के दौरान कई मुद्दे उठाए थे।

अमेरिकी एयरबेस के ऊपर रहस्यमयी ड्रोन देखे गए

अमेरिकी वायुसेना ने एक बयान में बताया कि इंग्लैंड में मौजूद चार एयरबेस के ऊपर छोटे मानवरहित विमानों (ड्रोन) को लगातार मंडराते देखा गया है। इन एयरबेस का नाम सफोक स्थित आरएएफ लेकेनहेथ और आरएएफ माइल्डेनहाल, नारफोक स्थित आरएएफ फेल्टवेल और ग्लूकेस्टरशायर स्थित आरएएफ फेयरफोर्ड है।

पेंटागन के प्रेस सचिव मेजर जनरल पैट्रिक राइडर ने कहा कि अब तक इन एयरबेस के प्रमुखों ने यह सुनिश्चित किया है कि इन घुसपैठों ने इनमें रहने वाले लोगों, निर्माण या संपत्तियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है।

 

कनाडा, चीन और मैक्सिको के बाद भारत का नंबर? डोनाल्ड ट्रंप के ‘व्यापार युद्ध’ का आपके ऊपर क्या होगा असर?

Donald Trump Tariff War: अगले साल जनवरी में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए कनाडा, मैक्सिको और चीन के खिलाफ भारी-भरकम टैरिफ लगाने की बात कही है, जिसने तीनों देशों को परेशान कर दिया है।

रॉयटर्स के एक पोल से पता चला है, कि नई अमेरिकी सरकार अगले साल चीन से सामानों के आयात पर लगभग 40% टैरिफ लगा सकती है। हालांकि, चीन ने ट्रंप के टैरिफ युद्ध से निपटने के लिए अपनी कंपनियों को भारी-भरकम फंड देने का फैसला किया है, लेकिन कनाडा और मैक्सिको, जिनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं है, उनके लिए मुश्किलें काफी हैं।

ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की है, कि वह मैक्सिको और कनाडा से सभी आयातों पर 25% टैरिफ लगाएंगे। इसके अलावा, चीनी वस्तुओं पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगेगा, जब तक कि बीजिंग अमेरिका में सिंथेटिक ओपिओइड फेंटेनाइल की तस्करी को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता है।

मैक्सिको, चीन और कनाडा पर अमेरिकी टैरिफ क्या हैं?

रॉयटर्स पोल के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप, चीनी वस्तुओं पर 60% टैरिफ लगाने से परहेज करेंगे। जनवरी में पदभार ग्रहण करने वाले ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार उपायों के पैकेज के हिस्से के रूप में चीनी आयात पर भारी टैरिफ लगाने का वादा किया था, जिससे बीजिंग में बेचैनी पैदा हुई और चीन के लिए विकास जोखिम बढ़ गया है।

धमकी दी गई है, टैरिफ दरें ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान चीन पर लगाए गए 7.5%-25% से बहुत ज्यादा हैं, जबकि अर्थव्यवस्था भी लंबे समय तक संपत्ति की मंदी, ऋण जोखिम और कमजोर घरेलू मांग को देखते हुए बहुत अधिक कमजोर स्थिति में है।

13-20 नवंबर के रॉयटर्स पोल से पता चला है, कि मुख्य भूमि चीन के अंदर और बाहर दोनों जगह एक मजबूत बहुमत को उम्मीद है कि ट्रंप अगले साल की शुरुआत में टैरिफ लगाएंगे, जिसका औसत अनुमान 38% है। वहीं, कई लोगों का मानना है, कि टैरिफ 15% से 60% तक हो सकता है।

नए अमेरिकी टैरिफ चीन की 2025 की आर्थिक वृद्धि को लगभग 0.5%-1.0% प्रतिशत अंक तक प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, रॉयटर्स पोल में शामिल ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने इस वर्ष और 2025 के लिए अपने औसत विकास पूर्वानुमानों को क्रमशः 4.8% और 4.5% पर बनाए रखा है, जो अमेरिकी चुनावों से पहले किए गए अनुमानों के लगभग समान है। 2026 में चीन का ग्रोथ रेट और धीमी होकर 4.2% रहने की उम्मीद है।

ट्रंप ने मैक्सिको और कनाडा को भी टेंशन में डाल दिया है। उन्होंने घोषणा की है, कि “अवैध अप्रवास जैसी समस्या का अगर हल नहीं किया गया, तब तक उनके उत्पादों पर 25% टैरिफ लागू रहेगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि इन मुद्दों को संबोधित करना 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने के बाद उनकी पहली कार्यकारी कार्रवाइयों में से एक होगी।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) के मुताबिक, मैक्सिको, चीन और कनाडा, अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं, जो ट्रंप की प्रस्तावित नीतियों के कारण सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। ईआईयू ने भारत को उन देशों की सूची में आठवें स्थान पर रखा है, जिन्हें ट्रंप के राष्ट्रपति पद के दौरान व्यापार चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

चीन और अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव

अमेरिकी टैरिफ का तत्काल प्रभाव ये होगा, कि कनाडा, मैक्सिको और चीन की कंपनियों के लिए अमेरिका को माल निर्यात करनाक महंगा हो जाएगा, जिससे उनकी इनकम में कमी आएगी। और आशंका ये है, कि ये कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स की कीमत को बढ़ा सकते हैं, जिसका असर आम ग्राहकों पर पड़ेगा, क्योंकि कीमतें बढ़ सकती हैं।

टैरिफ के कारण मैक्सिको की ऑटो इंडस्ट्री को नुकसान हो सकता है। मध्य अमेरिकी देश होंडा, निसान, टोयोटा, माजदा और किआ के साथ-साथ कई चीनी ऑटो पार्ट आपूर्तिकर्ताओं के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का घर है।

वहीं, फॉक्सकॉन, एनवीडिया, लेनोवो और एलजी जैसी एशियाई टेक कंपनियां, जिन्होंने कारखानों और अन्य सेवाओं के साथ मैक्सिको में अपना विस्तार किया है, वे भी गंभीर तौर पर प्रभावित होंगी। कनाडाई चैंबर ऑफ कॉमर्स के पिछले अनुमानों का हवाला देते हुए, कनाडाई मीडिया ने बताया है, कि 10% टैरिफ से भी कनाडा को हर साल 21 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हो सकता है। अमेरिका को कनाडा मुख्य रूप से पेट्रोलियम, गैस और गाड़ियों का निर्यात करता है।

हांगकांग में नेटिक्सिस में एशिया प्रशांत क्षेत्र के वरिष्ठ अर्थशास्त्री गैरी एनजी ने अल जजीरा से अमेरिकी केंद्रीय बैंक का हवाला देते हुए कहा, “शुल्कों के कारण अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है, जिसका मतलब है कि फेड के लिए दरों में कटौती करना कठिन हो जाएगा।” वाशिंगटन में चीन के दूतावास ने कहा, कि व्यापार युद्ध से किसी भी पक्ष को लाभ नहीं होगा। प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक बयान में कहा, “चीन पर अमेरिकी शुल्क के मुद्दे पर, चीन का मानना ​​है कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है।”

भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

अब तक, डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामानों पर टैरिफ लगाने की कोई बात नहीं की है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है, कि अगला नंबर भारत का हो सकता है। ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान भारत को “बहुत बड़ा व्यापार दुर्व्यवहारकर्ता” कहा था। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और अगर भारत पर भी टैरिफ लगता है, तो भारतीय निर्यात पर गंभीर असर पड़ेगा।

हालांकि, चीनी सामानों पर टैरिफ लगाने से चीनी निर्यात पर तो गंभीर असर पड़ेगा ही, लेकिन बर्नस्टीन द्वारा किए गए शोध से पता चलता है, कि चीनी सामनों पर लगे टैरिफ का भारत को केवल सीमित लाभ ही मिल सकता है। इसके बजाय, भारत को नए टैरिफ दबावों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के व्यापार विवादों पर फिर से विचार करने का संकेत दिया है।

भारत अमेरिका को 75 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के मुताबिक, अगर ट्रंप प्रशासन चीन पर टैरिफ लगाता है, तो चीन को अपने सामानों, जैसे EV, बैटरी और टेक्नोलॉजिकल गुड्स को भारत में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इसने कहा है, कि चीनी फेस मास्क, सीरिंज और सुई, मेडिकल दस्ताने और प्राकृतिक ग्रेफाइट पर अमेरिकी टैरिफ, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मौका बनाते हैं।

शोध रिपोर्ट में कहा गया है, कि “इन मांग वाले उत्पादों के उत्पादन और निर्यात को बढ़ाकर, भारत अमेरिकी बाजार में अपने कारोबार को बढ़ा सकता है।” इसने कहा कि भारत को EV और सेमीकंडक्टर जैसे उत्पादों पर कोई निर्यात लाभ नहीं मिल सकता है, क्योंकि भारत इन उत्पादों का शुद्ध आयातक है।

नई दिल्ली EV में निवेश आकर्षित करने के लिए अपना काम कर रही है। पिछले महीने, सरकार ने इस क्षेत्र के लिए एक नई नीति का अनावरण किया है, जिसमें कुछ मॉडलों पर आयात करों को 100% से घटाकर 15% कर दिया गया, लेकिन इसके लिए शर्त ये है, कि यदि कोई निर्माता कम से कम $500 मिलियन का निवेश भारत में करता है और एक कारखाना भी स्थापित करता है।

जीटीआरआई के अजय श्रीवास्तव ने कहा, “अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) चीन पर निर्भरता कम करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं। चीन से निर्यात में ठहराव और आयात में वृद्धि के साथ, भारत को भी चीन को लेकर नीति की जरूरत हो सकती है।”

वित्त वर्ष 2024 में, चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार कुल 118.4 बिलियन डॉलर था, जिसमें आयात 3.24% बढ़कर 101.7 बिलियन डॉलर और निर्यात 8.7% बढ़कर 16.67 बिलियन डॉलर हो गया।

इसके विपरीत, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार में मामूली गिरावट देखी गई। वित्त वर्ष 24 में दोनों तरफ का व्यापार कुल 118.3 बिलियन डॉलर रहा, जिसमें भारतीय निर्यात 1.32% घटकर 77.5 बिलियन डॉलर और आयात 20% घटकर 40.8 बिलियन डॉलर रह गया। जनवरी में जब ट्रंप सत्ता संभालेंगे, तो भारत समेत अमेरिका के व्यापारिक साझेदार उनकी नीतियों के संभावित नतीजों के लिए तैयार रहेंगे।

Israel Hezbollah Ceasefire: इजराइल और हिज्बुल्लाह के बीच युद्धविराम के प्रयास! जानें कौन-कौन सी बाधाएं खड़ी?

Israel Hezbollah Ceasefire: इजराइल और हिज्बुल्लाह के बीच हालिया संघर्ष के बाद दोनों पक्षों के बीच युद्धविराम कराने के प्रयास जारी हैं। यह संघर्ष 7 अक्टूबर 2023 को हमास के आतंकवादी हमले के बाद शुरू हुआ, जिसमें दोनों पक्षों ने भारी जान-माल का नुकसान झेला है। राजनयिक प्रयास तेज हैं, लेकिन कई मुद्दे अब भी बाधा बने हुए हैं।

युद्धविराम का प्रस्ताव दोनों पक्षों के लिए क्षेत्रीय स्थिरता और शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हालांकि, हथियारों और शर्तों को लेकर मतभेद अभी भी गंभीर चुनौतियां बने हुए हैं। अगले कुछ हफ्ते इस बात का निर्धारण करेंगे कि यह राजनयिक प्रयास सफल होगा या नहीं। आइए इस स्थिति को विस्तार से समझते हैं…

 

युद्धविराम के प्रस्ताव की मुख्य बातें
युद्धविराम की योजना:
इजराइल की सेना लेबनान से हटेगी।
हिज्बुल्लाह अपनी सेनाओं को दक्षिणी सीमा से पीछे करेगा।
लेबनान की सेना और संयुक्त राष्ट्र शांति गश्त को बढ़ावा दिया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1701 को लागू करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समिति का गठन किया जाएगा।

किसके तहत निगरानी होगी?:
इस योजना की निगरानी एक अंतरराष्ट्रीय समिति करेगी, जो 2006 के प्रस्ताव 1701 पर आधारित होगी।

प्रमुख बाधाएं
हथियारों पर विवाद:
इजराइल हिज्बुल्लाह के हथियारों को पूरी तरह हटाने की मांग कर रहा है।
हिज्बुल्लाह ने इसे लेबनान की संप्रभुता का उल्लंघन करार दिया।
अंतरराष्ट्रीय समिति की संरचना पर असहमति:
इजराइल ने फ्रांस की भागीदारी को स्वीकार किया, लेकिन लेबनान ब्रिटेन के शामिल होने का विरोध कर रहा है।

गाजा संघर्ष से जुड़ी शर्तें:
हिज्बुल्लाह ने गाजा में शांति स्थापित करने को इस युद्धविराम की शर्तों से जोड़ दिया है।

क्षेत्रीय तनाव और संभावित विस्तार
सीरिया और इराक पर प्रभाव:
अगर, युद्धविराम नहीं होता है, तो सीरिया और इराक में संघर्ष बढ़ सकता है।
इजराइल ने सीरिया में ईरान समर्थित समूहों पर हमले किए हैं और इराक में ऐसी कार्रवाइयों की धमकी दी है।

क्षेत्रीय स्थिरता का खतरा:
संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि इस संघर्ष के बढ़ने से पूरे क्षेत्र में हिंसा फैल सकती है।

 

मानवीय संकट
लेबनान: इस संघर्ष ने लेबनान की 25% आबादी को विस्थापित कर दिया है। दक्षिणी क्षेत्रों और बेरूत में भारी तबाही हुई है।
इजराइल: सीमावर्ती क्षेत्रों से हजारों लोग पलायन कर चुके हैं। ये लोग अब अपनी वापसी के लिए सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।

हालिया घटनाक्रम
आक्रमण और पलटवार:
इजराइल ने मध्य बेरूत पर हमला किया, जिसके बाद हिज्बुल्लाह ने इजराइल पर 250 रॉकेट दागे।
हालिया हिंसा में सात लोग घायल हुए और इजराइल में भी सीमावर्ती क्षेत्रों में नुकसान हुआ।

अमेरिकी मध्यस्थता:
अमेरिकी दूत एमोस होचस्टीन ने समझौते के लिए हाल ही में प्रयास किए। लेकिन बिना किसी ठोस नतीजे के उनकी यात्रा समाप्त हो गई।

Lebanon: हिज्बुल्लाह के साथ युद्धविराम का ऐलान करेगा इजराइल? नेतन्याहू ने की सीनियर अधिकारियों के साथ बैठक

Israel Hezbollah Conflict: पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने के साथ ही, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने लेबनान के हिज्बुल्लाह के साथ युद्ध विराम समझौते पर पहुंचने के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक की है। यह बैठक रविवार को उन रिपोर्टों के बीच की गई है, जिनमें कहा गया था, कि इजराइल, अमेरिका की मध्यस्थता वाले समझौते को स्वीकार करने जा रहा है।

यह बैठक ऐसे समय में हुई, जब इजराइल पर दिन भर लेबनान से रॉकेटों की बौछार की गई, जबकि तेल अवीव ने बेरूत में कई हमले किए। टाइम्स ऑफ इजराइल के मुताबिक, नेतन्याहू ने कुछ वरिष्ठ मंत्रियों और सुरक्षा अधिकारियों से सलाह ली और बैठक में इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया, कि इजराइली प्रधानमंत्री को आम जनता के सामने समझौते को कैसे पेश करना चाहिए।

बाइडेन प्रशासन का अल्टीमेटम?

रिपोर्टों ने यह भी सुझाव दिया, कि इजराइली प्राधिकरण ने अमेरिकी मध्यस्थ अमोस होचस्टीन को अमेरिकी प्रस्ताव पर आगे बढ़ने के लिए पहले ही हरी झंडी दे दी है। कई हिब्रू मीडिया आउटलेट्स ने बताया है, कि होचस्टीन ने सप्ताहांत में इजराइली अधिकारियों से कहा, कि यह सौदे के साथ आगे बढ़ने का उनका आखिरी मौका है। यदि दोनों पक्ष प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वह अपनी कोशिश छोड़ देंगे और इजराइल और लेबनान को अगले साल नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पदभार ग्रहण करने तक इंतजार करना होगा।

समझौते में इजराइल के लिए क्या है?

द टाइम्स ऑफ इजराइल के मुताबिक, यह प्रस्ताव यहूदी राष्ट्र की लेबनान और सीरिया की सीमाओं पर काम करने की स्वतंत्रता से संबंधित है। वार्ता से परिचित कुछ अज्ञात स्रोतों ने यह भी सुझाव दिया है, कि वाशिंगटन ने इजराइल को गारंटी दी है, कि अगर हिज्बुल्लाह ने समझौते का उल्लंघन किया, तो वह कार्रवाई करेगा।

पिछले हफ्ते, अमेरिकी मध्यस्थ ने अमेरिका समर्थित समझौते को आगे बढ़ाने के लिए बेरूत और यरुशलम का दौरा किया था। युद्ध विराम प्रस्ताव के मुताबिक, हिज्बुल्लाह को धीरे-धीरे लिटानी नदी के उत्तर से हटना होगा, जबकि लेबनानी सेना दक्षिणी लेबनान की जिम्मेदारी फिर से अपने हाथ में ले लेगी।

सेना, हिज्बुल्लाह को दक्षिणी लेबनान में फिर से बेस बनाने से भी रोकेगी। इस बीच, चैनल 12 न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, समझौते के अंतिम विवरण पर चर्चा करने के लिए इजराइल में पूर्व अमेरिकी राजदूत डैन शापिरो सोमवार को देश में आने वाले हैं।

रॉकेट की बौछार के बीच नेतन्याहू की बैठक

रविवार को बातचीत जारी रही, लेकिन ईरान समर्थित आतंकवादी समूह ने दिनभर तेल अवीव पर हमले किए, जिससे इजराइल और हिज्बुल्लाह के बीच तनाव फिर बढ़ गया। हिज्बुल्लाह ने कहा, कि उसने पूरे दिन उत्तरी और मध्य इजराइल में 250 से ज्यादा रॉकेट और ड्रोन दागे, जिसमें कई लोग घायल हो गए।

हालांकि, चैनल 12 न्यूज ने बताया, कि कई इजराइली अधिकारियों को उम्मीद है, कि जैसे-जैसे दोनों पक्ष समझौते के करीब पहुंचेंगे, हिज्बुल्लाह के हमले बढ़ेंगे। इस बीच, लेबनानी आतंकवादी समूह ने रविवार को एक ऐसा फोटो भी प्रकाशित किया, जो जाहिर तौर पर AI द्वारा जनरेटेड है, जिसमें रॉकेट हमले से राजमार्ग को नुकसान हुआ दिखाया गया है। उन्होंने तस्वीर पर कैप्शन दिया, “अगर इजराइल, लेबनान की राजधानी पर हमला करना जारी रखता है, तो तेल अवीव का भाग्य बेरूत जैसा होगा।” इजरायल ने रविवार को बेरूत में हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर अपने हमलों को भी तेज कर दिया।

Adani Bribery Case: गौतम अधिकारी और सागर अडानी की होगी गिरफ्तारी? अमेरिका ने भेजा समन, क्या करेंगे?

Adani Bribery Case: अडानी समूह के संस्थापक और चेयरमैन गौतम अडानी और उनके भांजे सागर अडानी को सौर ऊर्जा कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए 265 मिलियन अमेरिकी डॉलर, यानि करीब 2200 करोड़ रुपये की रिश्वत देने के मामले में अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (SEC) ने दोनों को समन भेजा है।

समन में गौतम अडानी और सागर अडानी को आरोपों पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए बुलाया गया है। अहमदाबाद में अडानी के शांतिवन फार्म निवास और उसी शहर में उनके सागर अडानी के बोदकदेव निवास पर 21 दिनों के भीतर SEC को जवाब देने के लिए समन भेजा गया है।

अमेरिका करना चाहता है गौतम अडानी, सागर को गिरफ्तार?

न्यूयॉर्क ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के माध्यम से 21 नवंबर को भेजे गए नोटिस में कहा गया है, “इस समन के 21 दिनों के भीतर (जिस दिन आपको यह समन मिला था, उसे छोड़कर)…आपको वादी (SEC) को संलग्न शिकायत का उत्तर या संघीय सिविल प्रक्रिया नियमों के नियम 12 के तहत एक प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा।”

समन में आगे कहा गया है, कि “यदि आप जवाब देने में नाकाम रहते हैं, तो शिकायत में मांगी गई राहत के लिए डिफ़ॉल्ट रूप से आपके खिलाफ फैसला दर्ज किया जाएगा। आपको अपना उत्तर या प्रस्ताव भी न्यायालय में दाखिल करना होगा।” यानि, समन में सख्ती दिखाई गई है, जो अडानी ग्रुप के लिए बहुत बड़ा झटका है।

62 साल के गौतम अडानी और उनके भतीजे सागर सहित सात अन्य प्रतिवादी, जो समूह की अक्षय ऊर्जा इकाई अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड में निदेशक हैं, उन्होंने कथित तौर पर 2020 से 2024 के बीच भारतीय सरकारी अधिकारियों को लगभग 265 मिलियन अमरीकी डालर की रिश्वत देने पर सहमति जताई थी, ताकि आकर्षक सौर ऊर्जा आपूर्ति कॉन्ट्रैक्ट हासिल किए जा सकें, जिनकी शर्तों से 20 वर्षों में 2 बिलियन डालर का मुनाफा होने की उम्मीद है।

बुधवार को न्यूयॉर्क की एक अदालत में गौतम अडानी और सागर अडानी पर अभियोग लगाए गये हैं।

अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा लगाए गए अभियोग से अलग, अमेरिकी SEC ने भी इन दोनों और Azure Power Global के कार्यकारी अधिकारी सिरिल कैबनेस पर “बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी” के लिए आरोप लगाया है।

हालांकि, बंदरगाहों से लेकर ऊर्जा तक के कारोबार से जुड़े अडानी समूह ने आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि वह सभी संभव कानूनी संसाधनों की तलाश करेगा।

अडानी ग्रुप की तरफ से जारी बयान में कहा गया है, कि “अडानी समूह ने हमेशा अपने ऑपरेशन के सभी अधिकार क्षेत्रों में शासन, पारदर्शिता और रेगुलेशन के उच्चतम स्टैंडर्ड को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। हम अपने हितधारकों, भागीदारों और कर्मचारियों को आश्वस्त करते हैं, कि हम एक कानून का पालन करने वाला संगठन हैं जो सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है।”

अमेरिकी अभियोग क्या होता है?

अमेरिका में अभियोग मूल रूप से एक औपचारिक लिखित आरोप होता है, जो प्रॉसीक्यूटर द्वारा शुरू किया जाता है और एक ग्रैंड जूरी द्वारा अपराध के आरोप में किसी पक्ष के खिलाफ जारी किया जाता है। अभियोग लगाए गए व्यक्ति को जवाब देने के लिए औपचारिक नोटिस दिया जाता है।

Diplomacy: यूक्रेन में शांति के लिए दिल्ली में बन रहा रास्ता? ट्रंप की वापसी से पहले पुतिन इसलिए आ रहे भारत!

Diplomacy News: जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में भारत आएंगे, तो उनकी मुलाकातें यूक्रेन और उसके आस-पास के युद्ध पर नई दिल्ली की सैद्धांतिक तटस्थता के बैकग्राउंड में होंगी।

भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय मंचों पर रखे गए रूस विरोधी प्रस्तावों से खुद को अलग रखा है और रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। साथ ही, भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने और यूक्रेन युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करने का आह्वान भी किया है।

अभी तक भारत ने रूस पर पश्चिमी दबाव को निकालने के लिए एक रिलीज वाल्व के रूप में काम किया है, जिससे मॉस्को को चीन पर अत्यधिक निर्भर होने के बजाय एक बड़ी शक्ति का विकल्प मिल गया है। भारत, चीन के बाद रियायती रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिसके परिणामस्वरूप द्विपक्षीय व्यापार 2021 में जहां सिर्फ 12 बिलियन डॉलर था, वो अब बढ़कर पिछले साल 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, सस्ते तेल ने भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया है, जो पिछले साल औसतन 8.2% थी और 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।

हालांकि, भारत सरकार रूस के खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करती है, लेकिन भारत के वित्तीय संस्थाओं को उन प्रतिबंधों को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे इनमें से कुछ फंड को ट्रांसफर करना मुश्किल हो गया है। इस प्रकार रूस ने अपने रुपये के भंडार का कुछ हिस्सा भारत में निवेश करने पर सहमति जताई है, जिससे दोनों पक्षों के व्यापार में विविधता लाने और संतुलन बनाने में मदद मिली है।

भारत और रूस ने तीन लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर के डेवलपमेंट को प्राथमिकता दी है, जिनमें से कोई भी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुंच पाया है। इनमें शामिल हैं:-

1- ईरान से होकर गुजरने वाला अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जिसकी शाखाएं अजरबैजान, कैस्पियन सागर और मध्य एशिया तक फैली हैं।

2- व्लादिवोस्तोक-चेन्नई समुद्री गलियारा, जिसे पूर्वी समुद्री गलियारा भी कहा जाता है

3- आर्कटिक में उत्तरी समुद्री मार्ग।

इन तीनों में से, INSTC सबसे ज्यादा आशाजनक है, लेकिन सबसे ज्यादा असुरक्षित भी है, क्योंकि ऐसी खबरें हैं, कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ईरान के खिलाफ अपने “अधिकतम दबाव” अभियान को फिर से शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

भारत के सामने क्या दिक्कतें आ सकती हैं?

भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह का उपयोग करने के लिए अमेरिका से पहले ही छूट हासिल कर ली है। ट्रंप, ईरान पर प्रतिबंधों को इस हद तक कड़ा कर सकते हैं, कि भारत को INSTC के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार को बंद करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिससे रूसी अलमारियों पर भारतीय उत्पादों की उपलब्धता कम हो सकती है – जिसमें फार्मास्यूटिकल्स भी शामिल हैं, जिससे बाजार में हिस्सेदारी कम हो सकती है और परिणामस्वरूप रूस की चीन पर पहले से ही उच्च निर्भरता बढ़ सकती है।

ऐसा ही तब हो सकता है, जब भारत द्वारा कथित तौर पर रूस के साथ स्थापित किए गए गुप्त तकनीकी चैनल को निशाना बनाया जाता है। यह आने वाले ट्रंप प्रशासन के अपने बड़े रणनीतिक हितों के खिलाफ काम करेगा, क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में चीन विरोधियों की संख्या बहुत ज्यादा है।

राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले ट्रंप ने कहा था, कि वह रूस और चीन को “अलग करना” चाहते हैं, लेकिन यदि वह ईरान को दंडित करने के लिए रूसी-भारतीय व्यापार पर नई सीमाएं लगाते हैं, तो इससे अनजाने में ही वे एक-दूसरे के और करीब आ जाएंगे।

ट्रंप ने यह भी कहा, कि वह यूक्रेन युद्ध को खत्म करने को प्राथमिकता देंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि वह ऐसा कैसे करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कुछ ऑब्जर्वर्स को उम्मीद है, कि वह युद्धविराम समझौते में यूक्रेन की जमीन पर रूसी कब्जे को मान्यता दे देंगे। हालांकि, वो क्या करेंगे, फिलहाल साफ नहीं है।

माना जा रहा है, कि 20 जनवरी को शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्ड ट्रंप बातचीत को फिर से शुरू कर सकते हैं।

भारत से कैसे गुजरेगा शांति का रास्ता?

डोनाल्ड ट्रंप अगर यूक्रेन में शांति कायम करने की कोशिशें शुरू करते हैं, तो निश्चित तौर पर उन्हें भारत की तरफ देखना होगा, क्योंकि ये भारत ही है, जो बातचीत शुरू करने के लिए जमीन तैयार कर सकता है और राष्ट्रपति पुतिन के आगामी भारत दौरे को उसी लेंस में देखना होगा।

भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन, सौदे के संभावित सैन्य और आर्थिक मापदंडों पर चर्चा कर सकते हैं, जिसमें रूस के खिलाफ लगाए गये प्रतिबंधों को धीरे धीरे कम करना और आगे जाकर खत्म करना शामिल हैं और ईरान के माध्यम से रूस के साथ भारतीय व्यापार के लिए प्रतिबंधों में छूट शामिल है।

इसके बाद भारत, निजी तौर पर रूसी वार्ता के इन बिंदुओं को ट्रंप प्रशासन तक पहुंचा सकता है, क्योंकि इसके पूरे आसान हैं, कि ट्रंप 2.0 के भारत के साथ विशेष रूप से मैत्रीपूर्ण संबंध होंगे।

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने मंगलवार को पुष्टि की, कि पुतिन की भारत यात्रा की तारीखों की घोषणा जल्द ही की जाएगी। यह जून में मोदी की रूस यात्रा के बाद होगी, जो सितंबर 2019 में व्लादिवोस्तोक में पूर्वी आर्थिक मंच में पुतिन के मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के बाद से उनकी पहली रूस यात्रा थी। गर्मियों में उनकी पिछली बैठक में नेताओं ने नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए और एक विस्तृत संयुक्त बयान जारी किया।

डोनाल्ड ट्रंप, प्रधानमंत्री मोदी के भी करीबी हैं, और उनकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड भारत के काफी करीबी हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइक वाल्ट्ज, भारत कॉकस के सह-अध्यक्ष हैं और विदेश मंत्री के लिए उनके नामित सीनेटर मार्को रुबियो ने जुलाई में अमेरिका-भारत रक्षा सहयोग अधिनियम पेश किया था।

लिहाजा, कैबिनेट के इन सदस्यों के साथ यूक्रेन में शांति का मार्ग पूर्व मध्यस्थ तुर्की या महत्वाकांक्षी मध्यस्थ चीन के माध्यम से नहीं, बल्कि भारत के माध्यम से हो सकता है। इसलिए यह संभावना है, कि पुतिन और मोदी अपनी आगामी यात्रा के दौरान यूक्रेन सौदे पर चर्चा करेंगे, हालांकि उनकी चर्चाओं के बारे में जानकारी, निश्चित तौर पर सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

पुतिन को इस बात का पूरा अहसास है, कि डोनाल्ड ट्रंप एशिया की ओर वापस लौटने के लिए कितने उत्सुक हैं, जिसके लिए यूक्रेन युद्ध का तत्काल समाधान आवश्यक है। और पुतिन इस बात से भी वाकिफ हैं, कि चीन के मुकाबले यूरेशियाई शक्ति संतुलन को संभालने में भारत की भूमिका अपरिहार्य है।

इस प्रकार, मोदी ईरान के माध्यम से रूस के साथ अपने व्यापार के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से बचने के लिए अच्छी स्थिति में हैं, जो अगर लागू होते हैं, तो रूस में और उसके ऊपर चीन का प्रभाव और बढ़ जाएगा। 2014 से पुतिन के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के आधार पर, मोदी यूक्रेन में समझौता करने के सर्वोत्तम मार्ग पर व्यावहारिक सुझाव भी दे सकते हैं जो रूस को मंजूर होगा।

‘भोजन-पानी और दवाओं का स्‍टॉक.. पावर बैकअप रखें’, NATO ने जारी की एडवाइजरी; क्‍या सदस्‍य देश भी युद्ध में कूदेंगे?

बाइडन के यूक्रेन को 300 किलोमीटर रेंज की एटीएसीएमएस मिसाइलों से रूस पर हमले की मंजूरी देने से तनाव और बढ़ गया। रूस की पलटवार की धमकी से तीन नाटों देश- नॉर्वे स्‍वीडन और फिनलैंड भी खौफ में हैं। इन देशों ने अपने नागरिकों को जरूरी सामन का स्‍टॉक रखने और सैनिकों को जंग के लिए तैयार रहने को कहा।

 

NATO Nations Ask Citizens To Prepare For War: अमेरिका के फैसले के बाद रूस की धमकी से घबराए नाटो देश।

डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्ली/हेलसिंकी। अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने हाल ही में यूक्रेन को 300 किलोमीटर रेंज की एटीएसीएमएस (अटैक देम्स) मिसाइलों से रूस पर अटैक करने की अनुमति दे दी है। इसके बाद यूक्रेन ने रूस पर मंगलवार को छह मिसाइलें दागीं। इससे तनाव और ज्यादा बढ़ गया है।

इस तनाव की आंच रूस सीमा के पास स्थित तीन नाटो देश तक भी पहुंची है। रूस की पलटवार की धमकी से तीन नाटो देश – नॉर्वे, स्वीडन और फिनलैंड में भी खौफ पैदा हो गया है। इन तीनों देश ने अपने नागरिकों को जीवनयापन के लिए जरूरी सामन का स्टॉक रखने और सैनिकों को जंग के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए हैं।

नाटो के संस्थापक देशों में शामिल नॉर्वे 195 किलोमीटर बॉर्डर रूस से शेयर करता है। नॉर्वे ने पर्चे और पैम्फलेट्स बांटकर अपने नागरिकों को युद्ध के लिए चेताया है। स्वीडन ने भी अपनी जनता को पर्चे भेजे हैं। इतना ही नहीं, इन देशों ने परमाणु युद्ध के दौरान विकिरण से बचाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आयोडीन की गोलियां घर में रखने का भी निर्देश दिया है।

‘बिजली कटौती हो सकती है, पावर बैकअप रखें’

नाटो के सदस्‍य देश फिनलैंड भी रूस के साथ 1340 किलोमीटर से ज्यादा सीमा साझा करता है। यहां की सरकार ने जंग के हालात में नागरिकों की मदद के लिए नई वेबसाइट लॉन्च की है। फिनलैंड सरकार की ओर से ऑनलाइन मैसेज जारी किया गया है।

इसमें बताया गया है कि अगर देश पर हमला होता है तो सरकार क्या-क्‍या करेगी। फिनलैंड ने अपने लोगों को युद्ध के चलते बिजली कटौती से निपटने के लिए बैक-अप पावर सप्लाई की व्यवस्था रखने को कहा है। लोगों से कम ऊर्जा में पकने वाले या फिर बिना पकाए खाए जाने वाले खाद्य पदार्थ का स्‍टॉक रखने के लिए कहा। बता दें कि फिनलैंड 2023 में नाटो में शामिल हुआ था।

इन केस ऑफ क्राइसिस ऑफ वार: क्या करें और क्‍या न करें

नाटो के सबसे नए सदस्‍य देश स्वीडन की सीमा रूस से सटी नहीं है। इसके बावजूद स्‍वीडन ने नागरिकों के लिए युद्ध की स्थिति बनने पर ‘इन केस ऑफ क्राइसिस ऑफ वार’ नाम से एक गाइडलाइन से जुड़ी बुकलेट जारी की है।

इसमें कहा गया है कि जंग के दौरान आपातस्थिति से निपटने के लिए 72 घंटे का भोजन, पीने का पानी और जरूरी दवाएं स्टोर करके रखे। इतना ही नहीं, गाइडलाइन में लोगों को आलू, गोभी, गाजर और अंडे का भरपूर मात्रा में स्टॉक करने का सुझाव दिया गया है।

बाइडन के फैसले से नाटो और ईयू के देश नाराज

अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति बाइडन के यूक्रेन को 300 किलोमीटर रेंज की एटीएसीएमएस (अटैक देम्स) मिसाइलों से रूस पर अटैक करने की अनुमति देने के फैसले पर स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको ने नाराजगी जताई।

उन्होंने कहा, ”पश्चिम चाहता है कि किसी भी हालत में यूक्रेन में जंग जारी रहे, इससे उनको फायदा होगा। हंगरी के विदेश मंत्री पीटर सिज्जार्तो ने कहा कि युद्धोन्माद फैलाने के लिए बाइडन जनमत की अनदेखी कर रहे हैं। बता दें कि स्लोवाकिया और हंगरी दोनों नाटो के सदस्य देश हैं और ईयू में शामिल हैं।

बाल्टिक सागर में इंटरनेट केबल कटी, हो सकता है हाइब्रिड युद्ध

यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध का तनाव समुद्र तक पहुंच गया है। जर्मनी और फिनलैंड की ओर से बाल्टिक सागर में दो संचार केबलों के कटने का आरोप लगाया गया है।

दोनों देशों ने कहा कि बाल्टिक सागर में संचार केबल काटने की ये घटनाएं 17 और 18 नवंबर की है, जिनकी जांच शुरू कर दी गई है। बाल्टिक सागर एक अहम शिपिंग रूट है, जिसके चारों ओर 9 देश स्थित है। इस घटना से हाइब्रिड युद्ध का खतरा बढ़ गया है।

NATO क्या है?

नाटो (NATO – North Atlantic Treaty Organization) एक अंतरराष्‍ट्रीय सैन्य गठबंधन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों की स्वतंत्रता व सुरक्षा की रक्षा करना और सदस्य राष्ट्रों के बीच सैन्य व राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसका मुख्यालय ब्रसेल्स, बेल्जियम में है। वर्तमान में 31 देश नाटो के सदस्य हैं। ये देश उत्तरी अमेरिका और यूरोप के हैं।

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