Explainer: कहां से आया था हमारा चांद? साइंटिस्ट्स की नई थ्योरी ने सभी को हैरत में डाला!

एक नई थ्योरी में वैज्ञानिकों को दावा है कि हमारा चंद्रमा किसी ग्रह के टकराने से नहीं बना था. बल्कि यह बाहर से आया था और पृथ्वी ने इस अपने पास खींच लिया था जिससे यह हमेशा के लिए हमारे पास रहने लगा है. इसके लिए

चंद्रमा कैसे पृथ्वी का उपग्रह बना इस पर वैज्ञानिकों ने बिलकुल ही नई और अलग थ्योरी दी है. (फाइल फोटो)

चंद्रमा हमारे सौरमंडल में और पृथ्वी के पास कहां से और कैसे आया? इस बारे में दशकों से हमारे वैज्ञानिकों की एक प्रचलित थ्योरी है. उनके मुताबिक करोड़ों साल पहले पृथ्वी से एक ग्रह टकराया था जिसे उन्होंने थिया नाम दिया है. इस टकराव से बिखरे चूरे मिल कर धीरे धीरे एक पिंड में बदल गए थे जिसे हम आज अपना चंद्रमा कहते हैं. समय समय पर इस थ्योरी के पक्ष में वैज्ञानिकों के कई प्रमाण भी मिलते रहे हैं. पर नई स्टडी ने विज्ञान जगत में हलचल मचा दी है क्योंकि यह पुरानी थ्योरी के कुछ अलग ही दावा कर रही है. इस सिद्धांत ने प्रस्ताव दिया है कि यह किसी टकराव से नहीं बल्कि एक खास बाइनरी-एक्सचेंज प्रक्रिया के तहत पृथ्वी ने अपना ये अनूठा उपग्रह हासिल किया है.

बाइनरी सिस्टम

पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस नए सिद्धांत को पेश किया है. इसमें उन्होंने बताया है कि चंद्रमा मूल रूप से चट्टानों के पिंडों का द्विज जोड़े का हिस्सा था जो स्पेस में एक दूसरे के चक्कर लगा रहे थे. जब ये सिस्टम पृथ्वी के पास के गुजरा, तब हमारे ग्रह के गुरुत्व बल ने इनमें से एक पिंड को अपनी कक्षा में खींच लिया होगा. जबकि दूसरा पिंड अंतरिक्ष में ही दूर कहीं चला गया होगा.

एक नहीं दो सिद्धांत!

इस थ्योरी को प्रोफेसर डैरेन विलियम्स और उनकी टीम ने पेश किया है. उनका कहना है, “कोई नहीं जानता कि चंद्रमा कैसे बना होगा. पिछले चार दशकों से हमारे पास एक संभावना था, अब हमारे पास दो हैं.” नई थ्योरी उन सवालों के जवाब भी देती है जो पुरानी थ्योरी नहीं दे पा रही थी.

चार दशकों से यह माना जा रहा था कि पृथ्वी के एक ग्रह के टकराने से चंद्रमा का निर्माण हुआ था. (प्रतीकात्मक )

पहली संभावना कैसे अपनाई गई?

1984 में हवाई में हुई कोना कॉन्फ्रेंस में वैज्ञानिकों में आपस में चंद्रमा की पैदाइश पर सहमति बनी थी. वे इस नतीजे पर नासा के अपोलो अभियानों के लिए चंद्रमा की मिट्टी की नमूनों के विश्लेषण के आधार पर पहुंचे थे. उन्होंने पाया था कि चंद्रमा की मिट्टी की संरचना पृथ्वी की संरचना से काफी हद तक मेल खाती है. इस आधार पर वे इस नतीजे पर पहुंचे कि हो सकता है कि शुरुआती पृथ्वी के एक खलोलीय पिंड से टकराव के बाद चंद्रमा बना होगा.

क्यों मशहूर हुई पुरानी थ्योरी?

यह थ्योरी इम्पैक्ट थ्योरी से नाम से मशहूर हुई, और इसे व्यापक समर्थन भी मिला क्योंकि यह चंद्रमा की ज्ञात संरचना से काफी तालमेल बैठाती नजर आ रही थी. लेकिन इसमें सारी बातें शामिल नहीं थी. शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर चंद्रमा किसी पिंड के चूरों से मिल कर बना होता तो उसे पृथ्वी के और नजदीक हो कर उसका चक्कर लगाना चाहिए था.

पुरानी थ्योरी यह नहीं बता पा रही थी कि चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी के भूमध्य रेखा से झुकी क्यों है.

 

चंद्रमा की कक्षा का झुकाव

चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के तल के मुकाबले 7 डिग्री झुकी हुई है. यह भी इम्पैक्ट थ्योरी के साथ विरोधाभास पैदा करता है. इस विसंगति की व्याख्तया करने के लिए शोधकर्ताओं ने बाइनरी एक्सजेंच कैप्चर की अवधारणा की ओर रुख किया. इसमें उन्होंने प्रस्ताव दिया कि पृथ्वी ने पास से गुजर रहे एक पथरीले पिंड को खींच कर अपनी कक्षा में ला कर उसे अपना उपग्रह बना लिया होगा.

नेप्च्यून के साथ भी हुआ था ऐसा

प्रोफेसर विलियम ने नेप्च्यून के सबसे बड़ा चंद्रमा ट्राइटिन की मिसाल दी. अभी माना जाता है कि ट्राइटन भी काइपर बेल्ट से नेप्च्यून की ओर से आया था और उसका उपग्रह बन गया था. नेप्च्यून ग्रह के पार मौजूद काइपर बेल्ट में बहुत सारे पथरीले पिंड हैं जिनमें से हर दस में से एक बाइनरी सिस्टम का हिस्सा हैं. हमारे चंद्रमा की तरह ट्राइटन की भी कक्षा नेप्च्यून की भूमध्य रेखा से 67 डिग्री ज्यादा झुकी है.

और भी संकेत

गणितीय मॉडल भी यही सुझाव देते हैं कि इस तरह की घटना हमारे चंद्रमा के साथ भी हुआ होगा. प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने गणना की कि पृथ्वी अपने कुल भार का एक से 10 फीसदी भार वाले पिंड को अपनी कक्षा में खींच सकती है और 1.2 फीसदी वाले भार का चंद्रमा इस दायरे में आता है. इसके लिए लिए यह बाइनरी सिस्टम 128750 किमी की दूरी के भीतर और 10800 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से पृथ्वी के पास से गुजरना चाहिए.

इस थ्योरी का सबसे बड़ा फायदा ये है कि यह चंद्रमा की कक्षा के झुकाव की व्याख्या करती है साथ ही वह उन तत्व की मौजूदगी की व्याख्या भी करती है जो चंद्रमा पर तो हैं, पर पृथ्वी पर नहीं है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के बाइनरी सिस्टम सौरमंडल के शुरुआत में ज्यादा हुआ करते थे.

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