बांग्लादेश में जिस तरह से हिंदुओं के खिलाफ हिंसक हमले हो रहे हैं, मंदिरों को तोड़ा जा रहा है और जिस तरह से हिंदू पुजारियों की गिरफ्तारी हो रही है, उससे ऐसे आरोपों को बल मिलता है, जिसमें कहा जाता है, कि मुस्लिमों की आबादी ज्यादा होने पर दूसरे अल्पसंख्यकों का नामोनिशान मिट जाता है।

अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश में हिदुओं के खिलाफ लगातार खतरनाक हमले हो रहे हैं, मंदिर टूट रहे हैं, लेकिन मानवाधिकर के चैंपियन बाइडेन के प्यादे मोहम्मद यूनुस, जो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख हैं, उनके मुंह से चूं तक नहीं निकली है, जिससे सवाल उठता है, कि क्या हिंदुओं के लिए मानवाधिकर जैसी बातें नहीं होती हैं?
बांग्लादेश में ताजा हालात कितने खतरनाक हैं?
इस्कॉन के संत और हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण महाराज की राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी, तनाव बढ़ाने का एक मुख्य कारण बन गई है। जब हिंदू समुदाय न्याय की मांग के लिए एकजुट होते हैं, तो उन्हें क्रूर दमन और हमलों का सामना करना पड़ता है, जो इस क्षेत्र के इतिहास के कुछ सबसे काले अध्यायों में से एक है।
सम्मिलितो सनातन जागरण जोत के नेता चिन्मय कृष्ण महाराज को 26 नवंबर को चटगांव मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने एक राजद्रोह के मामले में जेल भेज दिया, जिसे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता के रूप में पहचाने जाने वाले एक व्यक्ति की तरफ से दायर किया गया था। आरोप लगाए गये हैं, कि उनकी रैली में बांग्लादेशी झंडे के ऊपर भगवा झंडा था।
चिन्मय कृष्ण महाराज की गिरफ्तारी के बाद हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी हिंदुओं ने “जय श्री राम” के नारे लगाने शुरू कर दिए और उन्हें अदालत से चटगांव सेंट्रल जेल ले जाने वाली जेल वैन को रोकने की कोशिश की। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान कट्टरपंथी इस्लामी समूहों ने पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया।
इस अराजकता के बीच, सहायक सरकारी वकील सैफुल इस्लाम की बेरहमी से हत्या कर दी गई। जवाब में, भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं ने मांग की है, कि इस्कॉन को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाए और सैफुल इस्लाम के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग की। इस बीच, सोशल मीडिया पर आई खबरों के मुताबिक, इस्लामवादी और हिंदू विरोधी तत्व चटगांव और आसपास के जिलों में हिंदुओं के घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर हमले कर रहे हैं।
आज सुबह (27 नवंबर) इस्लामवादियों ने चटगांव शहर के मेथोर पट्टी इलाके में मनसा माता मंदिर में आग लगा दी। लगभग उसी समय, हजारीगली में काली मंदिर को इस्लामी भीड़ ने आग लगा दी। हरिजन समुदाय के दर्जनों हिंदू घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया।
चरमपंथियों ने सोशल मीडिया पर साथी मुसलमानों से इस्कॉन सदस्यों की हत्या के लिए “चाकू तेज करने” की अपील की है।

बांग्लादेश में 1971 की तरह हिंदुओं का नरसंहार?
चटगांव शहर के हिंदू इस वक्त 25 मार्च 1971 की रात को पाकिस्तानी कब्जा करने वाली सेना और उनके स्थानीय सहयोगियों की तरफ से किए गए अत्याचारों की याद दिलाने वाली असहनीय पीड़ा झेल रहे हैं। और अगर सरकार तत्काल कदम नहीं उठाती है, तो फिर से नरसंहार हो सकता है, खासकर हिंदू महिलाएं निशाने पर हैं।
लेकिन, अमेरिका के ‘गुलाम’ और नोबल अवार्ड से सम्मानित ‘क्रांतिकारी’ मोहम्मद यूनुस को इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
क्लिंटन फाउंडेशन के जाने-माने दानकर्ता यूनुस को कथित तौर पर जो बाइडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख नेताओं से मजबूत समर्थन मिला हुआ है। विकीलीक्स से लीक हुए एक राजनयिक केबल के मुताबिक, हिलेरी क्लिंटन ने 2007 में बांग्लादेश की सेना पर यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने के लिए दबाव डाला था।
अगस्त 2024 से, बांग्लादेश में हिंदुओं को अपने घरों, व्यवसायों और मंदिरों पर लगातार हमलों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय मीडिया को इन घटनाओं को कवर करने से रोक दिया गया है, और कुछ भारतीय को छोड़कर ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने इन भयावह घटनाओं पर रिपोर्टिंग करने से परहेज किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश में रहने वाले ‘फंसे हुए पाकिस्तानी’, जिन्हें वहां बिहारी कहा जाता है, वो सबसे ज्यादा हिंदुओं के खिलाफ हो रहे हमले में शामिल हैं।
लेकिन, इन अपराधों की गंभीरता के बावजूद, एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे मानवाधिकार समूह चुप्पी की चादर ओढ़कर सो रहे हैं, जिसकी सबसे बड़ी वजह मोहम्मद यूनुस के माथे पर जो बाइडेन का हाथ है।
हिंदुओं के साथ होने वाली हिंसा के बीच 26 सितंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक बैठक के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान, मुहम्मद यूनुस को क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव ने सम्मानित किया था। इस कार्यक्रम में, बिल क्लिंटन ने प्रतिबंधित इस्लामी समूह हिज़्ब उत-तहरीर के नेता महफ़ूज आलम की तारीफ की थी, जो खिलाफत की स्थापना की वकालत करता है।

यूनुस के शासन में बिल से सांपों की तरह निकले इस्लामिस्ट
अक्टूबर में, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने आधिकारिक तौर पर अवामी लीग की छात्र शाखा बांग्लादेश छात्र लीग (BCL) पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे “आतंकवादी संगठन” करार दिया है। रिपोर्ट्स बताती हैं, कि सरकार अवामी लीग को पूरी तरह से राजनीतिक भागीदारी से प्रतिबंधित करने पर भी विचार कर रही है।
इससे बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य पर इस्लामी ताकतों का दबदबा हो जाएगा, जिसमें हिंदुओं और ईसाइयों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों का बहुत कम या कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा।
यूनुस की सरकार ने अल-कायदा से जुड़े अंसारुल्लाह बांग्ला टीम के नेता जशीमुद्दीन रहमानी सहित दोषी ठहराए गए आतंकवादियों को भी रिहा कर दिया है, जिन्हें 2013 में एक धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगर की हत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया गया था।
क्या बांग्लादेशी हिंदुओं को बचा पाएगा भारत?
चिन्मय कृष्ण महाराज की गिरफ्तारी के बाद, इस्कॉन मंदिर के अधिकारियों ने भारत सरकार से हस्तक्षेप करने की अपील की है और कहा है, कि इस्कॉन का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है। अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर, संगठन ने महाराज के खिलाफ आरोपों को निराधार बताया है।
भारत के विदेश मंत्रालय ने 26 नवंबर को एक बयान जारी किया, जिसमें महाराज की गिरफ़्तारी और ज़मानत से इनकार करने के साथ-साथ बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमलों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। मंत्रालय ने बांग्लादेशी सरकार से सभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा करने का आग्रह किया।
लिहाजा, बिगड़ती स्थिति बांग्लादेश-भारत संबंधों को और भी ज्यादा तनावपूर्ण बना सकती है, खासकर ट्रंप प्रशासन की संभावना के साथ, क्योंकि मुहम्मद यूनुस डोनाल्ड ट्रंप के मुखर आलोचक माने जाते हैं। चल रहे अत्याचारों ने पहले ही भारत में हिंदुओं और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है, जिससे संभावित रूप से व्यापक भू-राजनीतिक नतीजे सामने आ सकते हैं।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर चल रहा अत्याचार देश में शासन और धार्मिक सहिष्णुता के गहरे संकट को उजागर करता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस स्थिति की गंभीरता को पहचानना चाहिए और अल्पसंख्यक समुदायों को और ज्यादा नुकसान से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।
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