रॉयटर्स के एक पोल से पता चला है, कि नई अमेरिकी सरकार अगले साल चीन से सामानों के आयात पर लगभग 40% टैरिफ लगा सकती है। हालांकि, चीन ने ट्रंप के टैरिफ युद्ध से निपटने के लिए अपनी कंपनियों को भारी-भरकम फंड देने का फैसला किया है, लेकिन कनाडा और मैक्सिको, जिनकी आर्थिक स्थिति सही नहीं है, उनके लिए मुश्किलें काफी हैं।
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की है, कि वह मैक्सिको और कनाडा से सभी आयातों पर 25% टैरिफ लगाएंगे। इसके अलावा, चीनी वस्तुओं पर 10% अतिरिक्त टैरिफ लगेगा, जब तक कि बीजिंग अमेरिका में सिंथेटिक ओपिओइड फेंटेनाइल की तस्करी को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता है।
मैक्सिको, चीन और कनाडा पर अमेरिकी टैरिफ क्या हैं?
रॉयटर्स पोल के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप, चीनी वस्तुओं पर 60% टैरिफ लगाने से परहेज करेंगे। जनवरी में पदभार ग्रहण करने वाले ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान ‘अमेरिका फर्स्ट’ व्यापार उपायों के पैकेज के हिस्से के रूप में चीनी आयात पर भारी टैरिफ लगाने का वादा किया था, जिससे बीजिंग में बेचैनी पैदा हुई और चीन के लिए विकास जोखिम बढ़ गया है।
धमकी दी गई है, टैरिफ दरें ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान चीन पर लगाए गए 7.5%-25% से बहुत ज्यादा हैं, जबकि अर्थव्यवस्था भी लंबे समय तक संपत्ति की मंदी, ऋण जोखिम और कमजोर घरेलू मांग को देखते हुए बहुत अधिक कमजोर स्थिति में है।
13-20 नवंबर के रॉयटर्स पोल से पता चला है, कि मुख्य भूमि चीन के अंदर और बाहर दोनों जगह एक मजबूत बहुमत को उम्मीद है कि ट्रंप अगले साल की शुरुआत में टैरिफ लगाएंगे, जिसका औसत अनुमान 38% है। वहीं, कई लोगों का मानना है, कि टैरिफ 15% से 60% तक हो सकता है।
नए अमेरिकी टैरिफ चीन की 2025 की आर्थिक वृद्धि को लगभग 0.5%-1.0% प्रतिशत अंक तक प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, रॉयटर्स पोल में शामिल ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने इस वर्ष और 2025 के लिए अपने औसत विकास पूर्वानुमानों को क्रमशः 4.8% और 4.5% पर बनाए रखा है, जो अमेरिकी चुनावों से पहले किए गए अनुमानों के लगभग समान है। 2026 में चीन का ग्रोथ रेट और धीमी होकर 4.2% रहने की उम्मीद है।
ट्रंप ने मैक्सिको और कनाडा को भी टेंशन में डाल दिया है। उन्होंने घोषणा की है, कि “अवैध अप्रवास जैसी समस्या का अगर हल नहीं किया गया, तब तक उनके उत्पादों पर 25% टैरिफ लागू रहेगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि इन मुद्दों को संबोधित करना 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने के बाद उनकी पहली कार्यकारी कार्रवाइयों में से एक होगी।
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) के मुताबिक, मैक्सिको, चीन और कनाडा, अमेरिका के तीन सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं, जो ट्रंप की प्रस्तावित नीतियों के कारण सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। ईआईयू ने भारत को उन देशों की सूची में आठवें स्थान पर रखा है, जिन्हें ट्रंप के राष्ट्रपति पद के दौरान व्यापार चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
चीन और अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव
अमेरिकी टैरिफ का तत्काल प्रभाव ये होगा, कि कनाडा, मैक्सिको और चीन की कंपनियों के लिए अमेरिका को माल निर्यात करनाक महंगा हो जाएगा, जिससे उनकी इनकम में कमी आएगी। और आशंका ये है, कि ये कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स की कीमत को बढ़ा सकते हैं, जिसका असर आम ग्राहकों पर पड़ेगा, क्योंकि कीमतें बढ़ सकती हैं।
टैरिफ के कारण मैक्सिको की ऑटो इंडस्ट्री को नुकसान हो सकता है। मध्य अमेरिकी देश होंडा, निसान, टोयोटा, माजदा और किआ के साथ-साथ कई चीनी ऑटो पार्ट आपूर्तिकर्ताओं के मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का घर है।
वहीं, फॉक्सकॉन, एनवीडिया, लेनोवो और एलजी जैसी एशियाई टेक कंपनियां, जिन्होंने कारखानों और अन्य सेवाओं के साथ मैक्सिको में अपना विस्तार किया है, वे भी गंभीर तौर पर प्रभावित होंगी। कनाडाई चैंबर ऑफ कॉमर्स के पिछले अनुमानों का हवाला देते हुए, कनाडाई मीडिया ने बताया है, कि 10% टैरिफ से भी कनाडा को हर साल 21 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हो सकता है। अमेरिका को कनाडा मुख्य रूप से पेट्रोलियम, गैस और गाड़ियों का निर्यात करता है।
हांगकांग में नेटिक्सिस में एशिया प्रशांत क्षेत्र के वरिष्ठ अर्थशास्त्री गैरी एनजी ने अल जजीरा से अमेरिकी केंद्रीय बैंक का हवाला देते हुए कहा, “शुल्कों के कारण अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है, जिसका मतलब है कि फेड के लिए दरों में कटौती करना कठिन हो जाएगा।” वाशिंगटन में चीन के दूतावास ने कहा, कि व्यापार युद्ध से किसी भी पक्ष को लाभ नहीं होगा। प्रवक्ता लियू पेंगयु ने एक बयान में कहा, “चीन पर अमेरिकी शुल्क के मुद्दे पर, चीन का मानना है कि चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार सहयोग प्रकृति में पारस्परिक रूप से लाभकारी है।”
भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
अब तक, डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय सामानों पर टैरिफ लगाने की कोई बात नहीं की है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है, कि अगला नंबर भारत का हो सकता है। ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान भारत को “बहुत बड़ा व्यापार दुर्व्यवहारकर्ता” कहा था। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और अगर भारत पर भी टैरिफ लगता है, तो भारतीय निर्यात पर गंभीर असर पड़ेगा।
हालांकि, चीनी सामानों पर टैरिफ लगाने से चीनी निर्यात पर तो गंभीर असर पड़ेगा ही, लेकिन बर्नस्टीन द्वारा किए गए शोध से पता चलता है, कि चीनी सामनों पर लगे टैरिफ का भारत को केवल सीमित लाभ ही मिल सकता है। इसके बजाय, भारत को नए टैरिफ दबावों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के व्यापार विवादों पर फिर से विचार करने का संकेत दिया है।
भारत अमेरिका को 75 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के मुताबिक, अगर ट्रंप प्रशासन चीन पर टैरिफ लगाता है, तो चीन को अपने सामानों, जैसे EV, बैटरी और टेक्नोलॉजिकल गुड्स को भारत में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इसने कहा है, कि चीनी फेस मास्क, सीरिंज और सुई, मेडिकल दस्ताने और प्राकृतिक ग्रेफाइट पर अमेरिकी टैरिफ, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मौका बनाते हैं।
शोध रिपोर्ट में कहा गया है, कि “इन मांग वाले उत्पादों के उत्पादन और निर्यात को बढ़ाकर, भारत अमेरिकी बाजार में अपने कारोबार को बढ़ा सकता है।” इसने कहा कि भारत को EV और सेमीकंडक्टर जैसे उत्पादों पर कोई निर्यात लाभ नहीं मिल सकता है, क्योंकि भारत इन उत्पादों का शुद्ध आयातक है।
नई दिल्ली EV में निवेश आकर्षित करने के लिए अपना काम कर रही है। पिछले महीने, सरकार ने इस क्षेत्र के लिए एक नई नीति का अनावरण किया है, जिसमें कुछ मॉडलों पर आयात करों को 100% से घटाकर 15% कर दिया गया, लेकिन इसके लिए शर्त ये है, कि यदि कोई निर्माता कम से कम $500 मिलियन का निवेश भारत में करता है और एक कारखाना भी स्थापित करता है।
जीटीआरआई के अजय श्रीवास्तव ने कहा, “अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) चीन पर निर्भरता कम करने के लिए सक्रिय कदम उठा रहे हैं। चीन से निर्यात में ठहराव और आयात में वृद्धि के साथ, भारत को भी चीन को लेकर नीति की जरूरत हो सकती है।”
वित्त वर्ष 2024 में, चीन के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार कुल 118.4 बिलियन डॉलर था, जिसमें आयात 3.24% बढ़कर 101.7 बिलियन डॉलर और निर्यात 8.7% बढ़कर 16.67 बिलियन डॉलर हो गया।
इसके विपरीत, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार में मामूली गिरावट देखी गई। वित्त वर्ष 24 में दोनों तरफ का व्यापार कुल 118.3 बिलियन डॉलर रहा, जिसमें भारतीय निर्यात 1.32% घटकर 77.5 बिलियन डॉलर और आयात 20% घटकर 40.8 बिलियन डॉलर रह गया। जनवरी में जब ट्रंप सत्ता संभालेंगे, तो भारत समेत अमेरिका के व्यापारिक साझेदार उनकी नीतियों के संभावित नतीजों के लिए तैयार रहेंगे।