PhD और नेट के विषयों से भी बन सकेंगे यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, UG-PG की बाध्यता खत्म; UGC ने बदला नियम

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती व पदोन्नति के नियमों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत और लचीला किया है। साथ ही इन बदलावों को लेकर एक मसौदा भी जारी किया है। नई व्यवस्था में उम्मीदवार सिर्फ पीएचडी या नेट में रखे गए विषय के आधार पर ही संबंधित विषय के शिक्षक पदों पर भर्ती के लिए पात्र होंगे।

 

यूजीसी ने नए नियमों को लेकर ड्राफ्ट जारी किया है। (File Image)

HighLights

  1. यूजीसी ने विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती के नियम में बदलाव का जारी किया मसौदा।
  2. नए भर्ती नियमों को एनईपी के अनुरूप बनाया गया लचीला, अनुभव को मिलेगा महत्व।
  3. अगले छह महीनों में सभी संस्थानों को नए नियमों को होगा अपनाना।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उच्च शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों की तरह विश्वविद्यालयों सहित देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया भी अब लचीली होगी, जिसमें अब शिक्षकों की नियुक्ति सिर्फ पीएचडी और नेट के विषयों के आधार पर दी जाएगी।

अभी तक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती के लिए जो न्यूनतम पात्रता थी, उनमें ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन व पीएचडी या फिर नेट की पढ़ाई एक ही विषय में होनी जरूरी होती थी। हालांकि, अब इस बाध्यता को खत्म कर दिया है। नई व्यवस्था में उम्मीदवार ने भले ही ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई किसी भी विषय से की है, लेकिन अब वह सिर्फ पीएचडी या नेट में रखे गए विषय के आधार पर ही संबंधित विषय के शिक्षक पदों पर भर्ती के लिए पात्र होंगे।

यूजीसी ने जारी किया ड्राफ्ट

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों की भर्ती व पदोन्नति के नियमों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत और लचीला किया है। साथ ही इन बदलावों को लेकर एक मसौदा भी जारी किया है। इसके तहत मसौदे को अंतिम रूप देने के छह महीने के भीतर सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को इसे अपनाना होगा। इनमें विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय, स्वायत्त कॉलेज और कॉलेज भी होंगे।

इसके साथ ही इस नई व्यवस्था में अब शैक्षणिक योग्यता के साथ ही उनके अनुभव और स्किल को महत्व दिया जाएगा। यूजीसी ने यह पहल तब की है, जब उच्च शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों को भी पहले के मुकाबले लचीला बनाया गया है, जहां छात्रों को कभी भी पढ़ाई छोड़ने और उसे फिर से शुरू करने का विकल्प दिया गया है।

पदोन्नति में भी स्किल को दिया जाएगा महत्व

यूजीसी ने इसके साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षकों की पदोन्नति में शैक्षणिक प्रदर्शन की जगह उनके स्किल और अनुभव को महत्व देने का सुझाव दिया गया है। नए प्रस्तावित नियमों में योग, संगीत, परफॉर्मिंग व विजुअल आर्ट, मूर्तिकला और नाटक जैसे क्षेत्रों से जुड़ी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए विशेष भर्ती प्रक्रिया को अपनायी जाएगी।

इसमें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हासिल की गई उपलब्धियों को शिक्षक भर्ती की पात्रता से जोड़ा गया है। माना जा रहा है कि इससे इन क्षेत्र को बेहतर शिक्षक मिल सकेंगे। शारीरिक शिक्षा और खेल से जुड़ी शिक्षा में शिक्षक के पद पर नियुक्ति में इन क्षेत्रों में बेहतर योगदान देने वाले खिलाड़ियों को शामिल किया जाएगा। नए भर्ती नियमों में सभी संस्थानों से प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस तहत उद्योग व अपने क्षेत्रों में अनुभव रखने वाले लोगों को नियुक्ति देने पर भी जोर दिया गया है। हालांकि ऐसे पदों की संख्या को संस्थानों में शिक्षकों के कुल स्वीकृत पदों का दस प्रतिशत से अधिक नहीं रखने का सुझाव दिया है।

प्रस्तावित भर्ती नियमों में यह भी किया है शामिल

  • शिक्षकों की भर्ती में वैसे तो यूजीसी-नेट का पात्रता अनिवार्य किया गया है, लेकिन 11 जुलाई 2009 से पहले जिन छात्रों ने पीएचडी की है, उनके लिए इसकी बाध्यता नहीं है। यानी वह सीधे आवेदन कर सकेंगे।
  • असिस्टेंट प्रोफेसर से एसोसिएट प्रोफेसर पद पर पदोन्नति के लिए पीएचडी अनिवार्य होगा।
  • यदि किसी भी स्तर पर भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है, तो उन्हें भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी।
  • कॉलेजों में प्राचार्यों की नियुक्ति अब पांच साल के लिए ही होगी। जिन्हें इस पर अधिकतम दो कार्यकाल मिल सकता है। यानी कोई भी अधिकतम दस साल तक ही प्राचार्य के पद पर रह सकता है। इसके बाद वह प्रोफेसर पद के लिए प्रोन्नत हो सकता है।

 

शाहिद कपूर ने `देवा` के निर्देशक रोशन एंड्रयूज को खास अंदाज में दी जन्मदिन की बधाई

शाहिद कपूर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर ‘देवा’ के निर्देशक रोशन एंड्रयूज का जन्मदिन मनाने के लिए एक भावुक पोस्ट शेयर किया.

शाहिद कपूर की आने वाली एक्शन थ्रिलर फिल्म ‘देवा’ को लेकर फैंस में जबरदस्त उत्साह है. दो शानदार पोस्टर्स के बाद हाल ही में मेकर्स ने 52 सेकंड का एक दमदार टीजर रिलीज़ किया, जिसमें शाहिद एक निडर पुलिस अधिकारी के रूप में एक्शन अवतार में नजर आ रहे हैं. टीजर में जबरदस्त एक्शन सीक्वेंस और उनके इलेक्ट्रिफाइंग डांस मूव्स ने दर्शकों का दिल जीत लिया है. कुछ ही दिनों में इस टीजर ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया और 20 मिलियन व्यूज का आंकड़ा पार कर लिया, जो फिल्म के प्रति फैंस की बढ़ती उत्सुकता को दर्शाता है.

इस उत्साह को और बढ़ाते हुए, फिल्म की टीम ने एक भव्य फैन इवेंट का आयोजन किया, जहां शाहिद कपूर की करिश्माई उपस्थिति ने इस जश्न को यादगार बना दिया. फैंस अब बेसब्री से फिल्म के ट्रेलर का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि 3

31 जनवरी 2025 को रिलीज़ होने वाली इस फिल्म के प्रति उत्सुकता चरम पर है.

इसी बीच, शाहिद कपूर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर ‘देवा’ के निर्देशक रोशन एंड्रयूज का जन्मदिन मनाने के लिए एक भावुक पोस्ट शेयर किया. उन्होंने सेट से तीन खास BTS तस्वीरों का एक कोलाज शेयर किया, जिसमें अभिनेता और मलयालम फिल्म निर्माता के बीच की शानदार बॉन्डिंग झलक रही है. एक तस्वीर में वे सेट को देखते हुए मुस्कुराते नजर आ रहे हैं, दूसरी में वे किसी गंभीर चर्चा में मग्न हैं, और तीसरी तस्वीर में वे किसी हंसी-मजाक के पल का आनंद ले रहे हैं.

मलयालम सिनेमा के प्रसिद्ध निर्देशक रोशन एंड्रयूज द्वारा निर्देशित और उमेश बंसल, सिद्धार्थ रॉय कपूर द्वारा प्रोड्यूस की गई यह धमाकेदार एक्शन थ्रिलर ज़ी स्टूडियो और रॉय कपूर फिल्म्स के बैनर तले 31 जनवरी 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने के लिए तैयार है.

 

Syria War Explained: सीरिया के किस हिस्से पर किसका कंट्रोल? क्या विद्रोही असद सरकार को गिरा पाएंगे?

Syria War Explained: सीरिया एक बार फिर से गृहयुद्ध की आग में जलने लगा है और जैसे जैसे विद्रोही बलों की ताकत बढ़ती जा रही है, ना सिर्फ बशर अल असद की सरकार पर खतरे बढ़ गये हैं, बल्कि आशंका इस बात की ज्यादा है, कि एक बार फिर से लाखों लोगों के सिर से छत छिन जाएगा।

हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में विद्रोही सेनाएं अलेप्पो और दक्षिण में हामा की ओर बढ़ रही हैं। ये हमले अचानक किए गये हैं, जिससे सीरिया में 13 साल से चल रहे युद्ध का एक नया दौर शुरू हो गया है। सीरिया की सेना ने शनिवार को देश के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो से “अस्थायी रूप से सेना वापस बुलाने” की घोषणा की और कबूल किया, कि वह जवाबी हमले के लिए फिर से तैयारी कर रही है।

राष्ट्रपति बशर अल-असद की सेनाओं ने 2016 से ईरान, रूस और हिज्बुल्लाह के समर्थन से अलेप्पो पर नियंत्रण कर रखा था, जब रूसी युद्धक विमानों के क्रूर हवाई अभियान से अल-असद को लगभग दो मिलियन की आबादी वाले शहर पर फिर से कब्जा दिलाने में मदद की थी।

सीरिया में कहां पर किसका कंट्रोल?

सीरिया में जमीन पर नियंत्रण के लिए चार अलग अलग समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है।

1- Syrian government forces: सीरिया की सरकार अपनी सेना, राष्ट्रीय रक्षा बलों, जो सरकार समर्थक अर्धसैनिक समूह है, उसके साथ मिलकर लड़ती है। सीरिया की सरकार देश के ज्यादातर हिस्सों को कंट्रोल करती है, जिनमें हमा, होम्स, दमस्कस, डारिया, डैर अज-जोर शामिल हैं। ये क्षेत्र देश का कुल 70 प्रतिशत हिस्सा बनाती हैं।

2- Syrian Democratic Forces: यह कुर्द-प्रभुत्व वाला, संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित समूह है, जो पूर्वी सीरिया के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण रखता है। इसके पास सीरिया का एक बड़ा हिस्सा है, जदिनमें कामिशी और रक्का शामिल हैं। सीरिया सरकार के बाद सीरिया में सबसे ज्यादा क्षेत्र पर इसी का नियंत्रण है।

3- HTS and other allied rebel groups: एचटीएस अल-नुसरा फ्रंट का सबसे लेटेस्ट रूप है, जिसने 2016 में अलकायदा से अपने सभी संबंध खत्म करने की घोषणा की थी और कहा था, उसका मकसद दुनिया में जिहाद करना नहीं, बल्कि सीरिया में असद की सरकार को खत्म करना और इस्लामिक शासन को लागू करना है। इसने अभी तक अलेप्पो और इदलिब शहर पर कब्जा कर लिया है। इसने अब हमा की तरफ बढ़ना शुरू कर कर दिया है।

4- Turkish and Turkish-aligned Syrian rebel forces: सीरियन नेशनल आर्मी भी सीरिया में अपना वर्चस्व हासिल करने में जुटी है, जिसे तुर्की का समर्थन हासिल है। ये सीरिया के ताल अबयाद और रास अल-एन पर नियंत्रण रखता है। इसके अलावा इसका अफ्रीन शहर पर भी नियंत्रण है।

 

 

नया जंग कैसे शुरू हुआ?

बुधवार को, जिस दिन इजराइल और लेबनान के बीच युद्ध विराम लागू हुआ, एचटीएस के नेतृत्व में सीरियाई विपक्षी बलों ने उत्तर-पश्चिमी सीरिया के इदलिब प्रांत में अपने बेस से एक आक्रामक अभियान शुरू किया।

विद्रोही समूह का कहना है कि ये हमले हाल ही में सीरियाई सरकार द्वारा इदलिब के शहरों पर किए गए हमलों का बदला लेने के लिए किए गए हैं, जिनमें अरिहा और सरमादा शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चों की मौत सहित दर्जनों नागरिक हताहत हुए हैं, और इसका उद्देश्य विद्रोही गढ़ पर भविष्य के हमलों को रोकना है।

यह ऑपरेशन 2020 के इदलिब युद्ध विराम के बाद से क्षेत्र में अल-असद की सेना के खिलाफ पहला बड़ा हमला था, जिसकी मध्यस्थता तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने की थी।

बुधवार शाम तक, समूह ने पश्चिमी अलेप्पो प्रांत में आगे बढ़ते हुए, सैन्य स्थलों सहित, सरकार समर्थक बलों से कम से कम 19 कस्बों और गांवों पर कब्जा कर लिया था। सीरियाई शासन ने विद्रोहियों के कब्जे वाले क्षेत्रों पर गोलाबारी करके जवाब दिया, जबकि रूसी वायु सेना ने हवाई हमले किए हैं।

गुरुवार तक विद्रोहियों ने और ज्यादा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और पूर्वी इदलिब के गांवों से सरकारी बलों को खदेड़ दिया था, फिर M5 राजमार्ग की ओर बढ़ना शुरू कर दिया, जो एक रणनीतिक सड़क है, जो दक्षिण में राजधानी दमिश्क की ओर जाती है, जो लगभग 300 किमी दूर है।

शुक्रवार तक विद्रोही बलों ने दो कार बम विस्फोट करने और शहर के पश्चिमी किनारे पर सरकारी बलों से भिड़ने के बाद अलेप्पो शहर के कुछ हिस्सों में प्रवेश किया था। सीरियाई राज्य टेलीविजन ने कहा, कि रूस सीरिया की सेना को हवाई सहायता प्रदान कर रहा है।

शनिवार तक, ऑनलाइन तस्वीरें और वीडियो प्रसारित होने लगे, जिनमें विद्रोही लड़ाके शहर में आगे बढ़ते हुए अलेप्पो के प्राचीन गढ़ के पास तस्वीरें लेते हुए दिखाई दे रहे थे।

अलेप्पो शहर पर कब्ज़ा करने के बाद विद्रोही दक्षिण की ओर बढ़ गए हैं, लेकिन इस बारे में परस्पर विरोधी रिपोर्टें हैं कि वे केंद्रीय शहर हामा तक पहुंच पाए हैं या नहीं। विपक्ष ने सुरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करने और इदलिब में विस्थापित नागरिकों को हाल ही में “मुक्त” क्षेत्रों में अपने घरों में लौटने की अनुमति देने के प्रयास की घोषणा की है।

World’s Angriest Country! दुनिया का सबसे गुस्सैल देश! ‘मिडिल ईस्ट के स्विट्जरलैंड’ का क्यों चढ़ा रहता है पारा?

World’s Angriest Country: गैलप की 2024 ग्लोबल इमोशन रिपोर्ट में एक देश ने एक अविश्वसनीय खिताब हासिल किया है और उसे आधिकारिक तौर पर दुनिया का सबसे गुस्सैल देश घोषित किया गया है। इसकी लगभग आधी (49%) आबादी ने गुस्से में रहने की बात कबूल की है।

मिडिल ईस्ट के इस देश में मौजूद ये भावनात्मक उथल-पुथल अलग-थलग नहीं है, बल्कि तुर्की और आर्मेनिया जैसे पड़ोसी देश भी इसी तरह हमेशा गुस्से में रहते हैं, जो इस क्षेत्र की सामूहिक संकट की तरफ इशारा करती है।

तुर्की दूसरे स्थान पर है, जहां 48% नागरिक गुस्सा जताते हैं, उसके बाद आर्मेनिया तीसरे स्थान पर है। वहीं, भारी गुस्से में रहने वाले बाकी देशों में इराक, अफगानिस्तान, जॉर्डन, माली और सिएरा लियोन जैसे देश शामिल हैं। जबकि, गैलप की रिपोर्ट में, अल साल्वाडोर दुनिया का सबसे खुशहाल और सबसे आशावादी देश बनकर उभरा है, जबकि लेबनान को सबसे ज्यादा गुस्से में रहने वाला देश बताया गया है।

Gallup 2024: ग्लोबल इमोशनल रिपोर्ट

गैलप की ग्लोबल इमोशनल रिपोर्ट देशों की भावनात्मक स्थितियों में गहराई से उतरती है, जो उन अनुभवों को मापती है, जिन्हें जीडीपी जैसे आर्थिक संकेतक नहीं पकड़ पाते हैं। 142 देशों में लगभग 146,000 लोगों से बातचीत के आधार पर 2024 की ये रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें क्रोध, तनाव, चिंता और उदासी जैसी भावनाओं को ट्रैक किया गया है।

इस रिपोर्ट में लेबनान को सबसे गुस्सैल देश घोषित किया गया है, जो पिछले एक साल इजराइल और हिज्बुल्लाह के जंग से जूझ रहा है। लेबनान का सबसे क्रोधित राष्ट्र के रूप में स्थान, राजनीतिक अराजकता, आर्थिक पतन और सामाजिक उथल-पुथल से पीड़ित आबादी के संघर्ष को दर्शाता है। देश की लगभग आधी आबादी गुस्से और तनाव से पीड़ित है।

लेबनान – चौराहे पर खड़ा एक देश

भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर बसा लेबनान, मध्य पूर्व में एक छोटा लेकिन भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश है। अपने समृद्ध इतिहास और जीवंत व्यापारिक परंपराओं के लिए जाना जाने वाला यह देश, लंबे समय से इस क्षेत्र के लिए एक वाणिज्यिक प्रवेश द्वार के रूप में काम करता रहा है।

लेबनान को 1970 के दशक की शुरुआत तक “मध्य पूर्व का स्विटजरलैंड” भी कहा जाता था, क्योंकि खाड़ी अरबों के लिए एक सुरक्षित बैंकिंग केंद्र, बर्फ से ढका एक अवकाश स्थल, एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था, उच्च साक्षरता दर और राजनीतिक स्थिरता, सुरक्षा और शांति के रूप में इसकी अनूठी मौजूदगी थी।

लेकिन, फिर लेबनान अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से मध्य पूर्व में होने वाले संघर्ष के केन्द्र में आ गया। लेबनान की सीमा सीरिया और इजराइल के साथ मिलती है, जिसने इसे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। लेबनान ने एक वक्त दिल खोलकर शरणार्थियों का स्वागत किया, लेकिन आगे जाकर उन शरणार्थियों ने राजनीतिक ताकत हासिल की और फिर देश का इस्लामीकरण हो गया। अब यहां की एक बड़ी अबादी में शिया और सुन्नी मुसलमान, ईसाई शामिल हैं।

अशांति में कैसे फंसता चला गया लेबनान?

1982 में हिज्बुल्लाह के उदय ने लेबनान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया। एक वक्त ईसाई बहुल इस देश में मुस्लिम आबादी काफी तेजी से बढ़ी, जिसने यहां की राजनीति को बदल दिया और उसी का नतीजा हिज्बुल्लाह का गठन था, जिसने लेबनान को ईरान की कठपुतली बना दिया। ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने हिज्बुल्लाह को ट्रेनिंग दिया और हिज्बुल्लाह ने लेबनान में “देश के भीतर एक देश” बनाना शुरू कर दिया।

ईरानी फंडिंग लेबनान में कई मिलिशिया को जन्म दिया और देखते ही देखते, हिज्बुल्लाह, लेबनान की सेना से ज्यादा शक्तिशाली बन गया। हिज्बुल्लाह, अब देश की राजनीति में सबसे बड़ी ताकत बन गया।

1992 में ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के इशारे पर हिज्बुल्लाह ने लेबनान की संसदीय और नगरपालिका, दोनों चुनावों में सीटें हासिल करते हुए राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया। समय के साथ, इसने सीरिया समर्थक गुटों के साथ गठबंधन किया, जिससे लेबनान में सत्ता मजबूत हुई।

आज, हिजबुल्लाह की सैन्य शाखा, जिसे “लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध” के रूप में जाना जाता है, वो वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी और सबसे अच्छी तरह से सुसज्जित गैर-राज्य सैन्य बल है। इसकी ताकत के बारे में अनुमान अलग-अलग हैं और अमेरिकी सेना के अनुसार इसमें लगभग 40,000 से 50,000 लड़ाके हैं। वहीं, इजरायली रक्षा बलों (आईडीएफ) का मानना ​​है कि इसकी संख्या 20,000 से 25,000 के बीच है, और इसके पास बड़ी संख्या में रिजर्व फोर्स भी है।

लेबनान की आर्थिक दुर्दशा

चल रहे संघर्ष ने लेबनान की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, युद्ध की वजह से लेबनान को 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है, जिसमें अकेले बुनियादी ढांचे की क्षति 3.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। 2024 में लेबनान की अर्थव्यवस्था में 6.6% की गिरावट आने की उम्मीद है।

मानवीय लागत भी उतनी ही विनाशकारी है। संघर्ष ने महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग व्यक्तियों और शरणार्थियों सहित 875,000 से ज्यादा लोगों को विस्थापित किया है। इसके अलावा, इस संकट के कारण बड़ी संख्या में नौकरियां चली गईं। 166,000 लोग बेरोजगार हो गए, जिसके परिणामस्वरूप अनुमानित 168 मिलियन अमेरिकी डॉलर की इनकम का नुकसान हुआ।

हालांकि हाल ही में अमेरिका और फ्रांस की मध्यस्थता से इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच हुए युद्धविराम समझौते ने 12 लाख से ज्यादा विस्थापित लेबनानी लोगों के लिए घर लौटने का रास्ता खोला है। लेकिन, इस बात की उम्मीद ना के बराबर है, कि देश अपनी आर्थिक स्थिति सुधार पाएगा। देश को युद्ध और राजनीतिक पतन के वर्षों के बाद अपने बिखर चुके बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

डोनाल्ड ट्रंप का मजाक उड़ाने वाले जस्टिन ट्रूडो अब उन्हीं की शरण में! टैरिफ युद्ध से क्यों टेंशन में है कनाडा?

 

Justin Trudeau Donald Trump: डिप्लोमेसी की दुनिया भी काफी निराली होती है और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इस वक्त शायद सबसे बेहतर इस बात को समझ रहे होंगे, क्योंकि जिस डोनाल्ड ट्रंप का वो मजाक उड़ाया करते थे, अब उन्हें उन्हीं की शरण में जाना पड़ा है।

दोनों पड़ोसी देशों के बीच संभावित व्यापार युद्ध के खतरे के बीच, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुक्रवार शाम (स्थानीय समयानुसार) फ्लोरिडा के मार-ए-लागो रिसॉर्ट में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ डिनर करेंगे।

इस दौरान जस्टिन ट्रूडो, डोनाल्ड ट्रंप को कनाडा पर भारी भरकम टैरिफ नहीं लगाने के लिए मनाने की कोशिश करेंगे।

सीएनएन की रिपोर्ट में कहा गया है, कि ट्रूडो के मंत्रिमंडल के कुछ सदस्यों के भी डिनर कार्यक्रम में शामिल होने की उम्मीद है। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते ही में सीमा संबंधी चिंताएं जताते हुए अपने प्रशासन के कार्यभार संभालने के पहले दिन से ही कनाडा से अमेरिका आने वाले सामानों पर भारी भरकम 25% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी।

जिसके बाद कनाडा में हाहाकार मच गया था, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था पहले ही गोते खा रही है और टैरिफ लगने से उसे अरबों डॉलर का व्यापार नुकसान होगा, जो देश की इकोनॉमी को चौपट कर सकता है। और यही वजह है, जस्टिन ट्रूडो भागे भागे ट्रंप की शरण में पहुंचे हैं।

जस्टिन ट्रूडो को वेस्ट पाम बीच के एक होटल से निकलकर ट्रंप से उनके रिसॉर्ट में मिलने के लिए जाते देखा गया है।

 

रॉयटर्स की रिपोर्ट में कहा गया है, कि जस्टिन ट्रूडो के सार्वजनिक कार्यक्रम में फ्लोरिडा की यात्रा शामिल नहीं थी। न तो ट्रूडो के कार्यालय और न ही ट्रंप के प्रतिनिधियों ने रिसॉर्ट मीटिंग पर कोई टिप्पणी की।

लेकिन सीएनएन ने एक सूत्र के हवाले से बताया है, कि ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के लिए चुने गए फ्लोरिडा के प्रतिनिधि माइक वाल्ट्ज और उनके वाणिज्य सचिव के लिए चुने गए ट्रंप ट्रांजिशन के सह-अध्यक्ष हॉवर्ड लुटनिक भी अपने इस बातचीत में शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया है, कि ट्रूडो की चीफ ऑफ स्टाफ केटी टेलफोर्ड और कनाडा के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री डोमिनिक लेब्लांक भी उपस्थित थे।

क्या अमेरिका-कनाडा व्यापार युद्ध की आशंका है?

यह बैठक काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ट्रंप के व्हाइट हाउस में पदभार ग्रहण करने से कुछ हफ्ते पहले और कनाडा से आयात पर भारी टैरिफ लगाने की उनकी प्रतिज्ञा के कुछ दिनों बाद हो रही है। सोमवार को ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से आयात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी थी और कहा था, कि अगर दोनों देश, अमेरिका की सीमा पार करने वाले ड्रग्स और अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई नहीं करते, तो टैरिफ लगाया जाएगा।

जिसके बाद जस्टिन ट्रूडो ने अमेरिका के साथ संबंधों पर चर्चा करने के लिए सभी 10 कनाडाई प्रांतों के प्रधानमंत्रियों के साथ बैठक बुलाई थी।

शुक्रवार की सुबह पत्रकारों से बात करते हुए ट्रूडो ने कहा था, कि “एक बात जो समझना वास्तव में महत्वपूर्ण है, वह यह है, कि जब डोनाल्ड ट्रंप इस तरह के बयान देते हैं, तो वे उन्हें लागू करने की योजना बनाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है।” उन्होंने कहा, “हमारी जिम्मेदारी यह बताना है, कि इस तरह से वह वास्तव में न केवल कनाडाई लोगों को नुकसान पहुंचाएंगे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बहुत अच्छी तरह से काम करते हैं, बल्कि वह अमेरिकी नागरिकों के लिए भी कीमतें बढ़ाएंगे और अमेरिकी उद्योग और व्यवसायों को नुकसान पहुंचाएंगे।”

क्या ट्रंप को मना पाएंगे जस्टिन ट्रूडो?

ट्रूडो ने उम्मीद जताई है, कि वह और ट्रंप मिलकर कुछ चिंताओं का समाधान करेंगे और “कुछ मुद्दों पर जवाब देंगे”।

सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, टैरिफ की घोषणा के बाद ट्रंप और ट्रूडो के बीच एक छोटी बातचीत हुई है, जिसमें दोनों नेताओं ने सीमा सुरक्षा और व्यापार पर चर्चा की।

इस महीने की शुरुआत में, ट्रूडो ने कूटनीतिक लहजे में ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव में जीत की बधाई दी थी।

उन्होंने कहा था, कि “कनाडा और अमेरिका के बीच दोस्ती से दुनिया की ईर्ष्या है। मुझे पता है कि राष्ट्रपति ट्रंप और मैं अपने दोनों देशों के लिए अधिक अवसर, समृद्धि और सुरक्षा बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे।”

लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है, कि पहले ही अलोकप्रिय हो चुके जस्टिन ट्रूडो के लिए साल 2025, डोनाल्ड ट्रंप की वजह से काफी मुश्किल भरा हो सकता है

सीरिया में गृहयुद्ध: अलेप्पो एयरपोर्ट बंद, विद्रोहियों का शहर पर कब्जा, भीषण लड़ाई, क्या हैं ताजा हालात?

 

Syria Civil War: सीरिया, जो सालों से गृहयुद्ध की आग में जल रहा है, वहां एक बार फिर से हालात बिगड़ गये हैं और विद्रोहियों ने अलेप्पो शहर पर कब्जा कर लिया है, जिसके बाद देश में भीषण जंग भड़क गई है।

सीरियाई अधिकारियों ने शहर में विद्रोहियों के हमले के बाद अलेप्पो हवाई अड्डे को बंद कर दिया है और सभी उड़ानें रद्द कर दी हैं। सैन्य सूत्रों ने शनिवार को रॉयटर्स को इसकी जानकारी दी है। इस्लामी समूह हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में यह हमला पहली बार है, जब विपक्षी लड़ाके लगभग एक दशक पहले अपनी हार के बाद अलेप्पो के केंद्र में फिर से पहुंचे हैं।

सीरिया में अचानक क्यों बिगड़े हालात?

इस हमले को कॉर्डिनेट करने वाले एक ऑपरेशन रूम के मुताबिक, विद्रोहियों ने बुधवार को अचानक आश्चर्यजनक हमला शुरू किया था, जो सरकार के कब्जे वाले शहरों से होते हुए शुक्रवार देर रात तक अलेप्पो में पहुंच गए।

जैश अल-इज़्ज़ा ब्रिगेड के कमांडर मुस्तफा अब्दुल जाबेर ने कहा है, कि गाजा युद्ध की वजह से सीरिया में ईरान का समर्थन कमजोर पड़ गया है, जिसकी वजह से विद्रोहियों को एक बार फिर से अपने संघर्ष को तेज करने का मौकामिल गया है।

वहीं, तुर्की खुफिया विभाग से जुड़े विपक्षी सूत्रों ने बताया है, तुर्की ने हमले के लिए मौन स्वीकृति दी है। हालांकि, तुर्की के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओन्कू केसेली ने कहा है, कि अंकारा क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देता है और उसने चेतावनी दी है, कि हाल के हमलों से मौजूदा डी-एस्केलेशन समझौतों को खतरा है।

वहीं, सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के एक प्रमुख सहयोगी रूस ने हमले का मुकाबला करने के लिए दमिश्क को अतिरिक्त सैन्य सहायता देने का वादा किया है। दो सैन्य सूत्रों ने रॉयटर्स को बताया है, कि “नए सैन्य हार्डवेयर 72 घंटों के भीतर आ जाएंगे।” क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने हमले की निंदा की और इसे सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन बताया और संवैधानिक व्यवस्था की तत्काल बहाली का आह्वान किया है।

विद्रोही गुटों का ताजा हमला, मार्च 2020 में किए गये बड़े हमले के बाद किया गया सबसे बड़ा हमला है, जब रूस और तुर्की ने शत्रुता को कम करने के लिए एक समझौता किया था। हलांकि, सीरियाई राज्य टेलीविजन ने विद्रोहियों के अलेप्पो शहर में प्रवेश करने की खबरों का खंडन किया है। साथ ही ये भी दावा किया है, कि रूसी हवाई हमलों ने अलेप्पो और इदलिब के ग्रामीण इलाकों में विद्रोहियों को भारी नुकसान पहुंचाने में सरकारी बलों की मदद की है।

नागरिकों को गंभीर नुकसान

नये सिरे से संघर्ष के शुरू होने के बाद ताजा हालात को लेकर यूनाइटेड नेशंस ने गंभीर चिंता जताई है। सीरिया संकट के लिए संयुक्त राष्ट्र के उप क्षेत्रीय मानवीय समन्वयक डेविड कार्डन ने कहा, “पिछले तीन दिनों में लगातार हमलों ने कम से कम 27 नागरिकों की जान ले ली है, जिनमें आठ साल की उम्र के बच्चे भी शामिल हैं।”

सरकारी मीडिया एजेंसी SANA ने बताया है, कि अलेप्पो में विद्रोहियों ने विश्वविद्यालय के छात्रावासों को निशाना बनाया है, जिसमें दो छात्रों सहित चार नागरिक मारे गए हैं। फिलहाल यह साफ नहीं हैं, कि ये मरने वाले, यूनाइटेड नेशंस की तरफ से बताए गये उन 27 लोगों में शामिल हैं या नहीं।

जैसे-जैसे लड़ाई तेज होती जा रही है, इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं, कि इससे क्षेत्र में और ज्यादा अस्थिरता पैदा हो सकती है, जो पहले ही वर्षों से युद्ध और विस्थापन झेल रहा है।

दूसरी तरफ, तुर्की की सरकारी समाचार एजेंसी अनादोलु ने बताया है, कि सशस्त्र समूह अलेप्पो शहर के केंद्र में घुस गए हैं, लेकिन उसने कोई और जानकारी नहीं दी।

सीरियाई सेना ने शुक्रवार को कहा, कि उसने शहर पर एक बड़े हमले को नाकाम कर दिया है।

सेना ने एक बयान में कहा, “हमारे बल सशस्त्र आतंकवादी समूहों द्वारा शुरू किए गए बड़े हमले को नाकाम कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि वे “कुछ स्थानों पर नियंत्रण वापस लेने की कोशिश कर रहे हैं।”

लेकिन, इन सबसे बीच यूनाइटेड नेशंस ने कहा है, कि फिर से हालात बिगड़ने की वजह से अभी तक 14 हजार लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा है।

कहां तक बिगड़ सकते हैं हालात?

अल जजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सौफान सेंटर के वरिष्ठ शोध साथी कॉलिन क्लार्क ने कहा, कि विद्रोही लड़ाकों के उत्तर-पश्चिमी सीरिया से आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। उन्होंने कहा, “वे इदलिब और अलेप्पो को कंट्रोल करने तक सीमित रह सकते हैं… मुझे लगता है कि वर्तमान क्षेत्र पर शासन करने में उनका पूरा हाथ है। मैं उनसे इस समय उत्तर-पश्चिमी सीरिया से आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं करूंगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि घटनाक्रम से सीरियाई सरकार के प्रमुख सहयोगी ईरान में चिंता पैदा होने की संभावना है। क्लार्क ने कहा, “ईरानी लोग खुश हैं। सुलेमानी की जो प्रतिरोध की यह धुरी, तथाकथित शिया अर्धचंद्र स्थापित करने की जो भव्य परियोजना थी, वो अब पिछले एक साल में ढह गई है।”

सीरिया में गृहयुद्ध को समझिए

सीरिया का गृह युद्ध तब शुरू हुआ था, जब राष्ट्रपति बशर अल-असद की सेना ने 2011 में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों पर कार्रवाई की थी। पिछले कुछ वर्षों में, संघर्ष एक जटिल युद्ध में बदल गया है, जिसमें अल-असद के सहयोगी रूस, ईरान और लेबनानी सशस्त्र समूह हिज्बुल्लाह सहित विदेशी ताकतें शामिल हो गई हैं।

शुक्रवार को एक बयान के अनुसार, ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने अपने सीरियाई समकक्ष बासम अल-सब्बाग के साथ फोन पर बातचीत के दौरान “आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सीरिया की सरकार, राष्ट्र और सेना के लिए ईरान के लगातार समर्थन पर जोर दिया।”

क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने अलेप्पो की स्थिति को “सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन” बताया। उन्होंने “सीरिया की सरकार द्वारा इस जिले में जल्दी से व्यवस्था बहाल करने और संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने” के लिए समर्थन जताया है।

लेबनान में हवाई हमले में पैतृक घर के मलबे में तब्दील होने से परिवार शोक में डूबा

इजराइल के हमले से लेबनान के कई इलाके तबाह हुए हैं। पूर्वी शहर बाल्बेक में कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आईं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक जौहरी परिवार जब अपने घर वापस लौटा तो पता चला जहां उसका घर था, वहां अब खंडहर और गढ्ढे हो चुके हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ये घर लीना जौहरी का थो, जो अब लेबनान और इजराइल के संघर्ष के चलते तबाह हो चुका है।

इस हफ्ते बुधवार (27 नवंबर) की सुबह इजरायल और हिजबुल्लाह के बीच अमेरिका की मध्यस्थता से हुए युद्धविराम के बाद लेबनान के विस्थापित परिवार अपने घरों पर लौट रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक लेबनान के पूर्वी शहर बाल्बेक में मूल रूप रहने वाला एक परिवार जब अपने पैतृक आवास पर पहुंचे तो उन्होंने जो दृश्य देखा उनका दिल टूट गया। दरअसल, कई पीढ़ियों तक कायम रहने वाला घर 1 नवंबर को एक इजरायली हवाई हमले में नष्ट हो गया था।

संघर्ष के कारण लगभग 1.2 मिलियन लोग विस्थापित हो गए हैं। पूरे देश में विनाश व्यापक है। लीना के भतीजे लुआय मुस्तफा द्वारा जौहरी परिवार के घर की एक तस्वीर, जो कभी थी, का मार्मिक स्मरण है। जैसे ही उन्होंने मलबे में छानबीन की, हर पाया गया टुकड़ा यादों को उभारा।

एक घिसी-पिटी चिट्ठी ने परिवार में खुशी ला दी, जबकि उनके दिवंगत पिता की एक तस्वीर ने आँसू बहा दिए। रेडा जौहरी, जिन्होंने घर बनाया था, एक शिल्पकार थे जो अपने धातु के काम के लिए जाने जाते थे। बहनों को उम्मीद थी कि उन्हें मस्जिद-चर्च संरचना का कोई टुकड़ा मिलेगा जो उन्होंने बनाया था। अंततः उन्होंने धातु का एक विकृत टुकड़ा खोज निकाला और उसे उनकी विरासत के प्रतीक के रूप में थाम लिया।

“अलग-अलग पीढ़ियाँ प्यार के साथ पली-बढ़ीं … हमारा जीवन संगीत, नृत्य था,” लीना ने कहा। “अचानक, उन्होंने हमारी दुनिया को नष्ट कर दिया।” यादों को संरक्षित करने के उनके दृढ़ संकल्प के बावजूद, दर्द कच्चा बना हुआ है। रूबा जौहरी ने अपने माता-पिता की तस्वीरें न ले पाने पर खेद व्यक्त किया जब वे चले गए थे।

उनके घर को नष्ट करने वाला हवाई हमला बिना किसी चेतावनी के एक सामान्य शुक्रवार को दोपहर 1:30 बजे हुआ। पड़ोसी अली वेहबे ने भी अपना घर खो दिया; वह मिसाइल लगने के कुछ क्षण पहले भोजन के लिए बाहर गया था और वापस आकर अपने भाई को मलबे के बीच खुद को ढूंढते हुए पाया।

ब्रिटेन की इंटेलिजेंसी के चीफ रिचर्ड मूर का रूस पर बड़ा आरोप, जानिए क्या- क्या कहा?

ब्रिटेन की विदेशी खुफिया सेवा के प्रमुख ने शुक्रवार को कहा कि रूस यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों के खिलाफ “बेहद लापरवाह” तोड़फोड़ अभियान चला रहा है, और उनके जासूस इसके परिणामों को नियंत्रण से बाहर होने से रोकने के लिए काम कर रहे हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, एमआई6 के प्रमुख रिचर्ड मूर ने कहा कि उनकी एजेंसी और उसके फ्रांसीसी समकक्ष राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के “धमकी और आक्रामकता के जवाब में जोखिम कि स्थिति को भांपने और हमारी संबंधित सरकारों के निर्णयों को सूचित करने” के द्वारा एक खतरनाक वृद्धि को रोकने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।

ब्रिटेन की विदेशी खुफिया सेवा के प्रमुख, रिचर्ड मूर ने रूस पर यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों के खिलाफ “अविश्वसनीय रूप से लापरवाह” तोड़फोड़ अभियान चलाने का आरोप लगाया है। फ्रांस में एक कार्यक्रम के दौरान मूर ने एमआई6 और इसके फ्रांसीसी समकक्ष के प्रयासों को उजागर किया। मूर ने ये बात फ्रांस में एंटेंटे कॉर्डियल की 120वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा। कार्यक्रम के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस के बीच सैन्य और राजनयिक गठबंधन को रेखांकित किया। दोनों खुफिया प्रमुखों ने रूसी कार्रवाइयों के आलोक में सामूहिक यूरोपीय सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया।

पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों को संदेह है कि रूसी खुफिया यूक्रेन के सहयोगियों को गलत सूचना और तोड़फोड़ के माध्यम से अस्थिर करने का प्रयास कर रहा है। मास्को को यूरोप में कई नियोजित हमलों से जोड़ा गया है, जिसमें लंदन में यूक्रेनी स्वामित्व वाले व्यवसायों को जलाने की कथित साजिश और कार्गो विमानों पर मिले आग लगाने वाले उपकरण शामिल हैं।

बता दें कि ब्रिटेन और फ्रांस यूक्रेन के सबसे कट्टर समर्थकों में से रहे हैं, जिससे कीव को रूस को निशाना बनाने के लिए स्कैल्प और स्टॉर्म शैडो मिसाइल जैसे आपूर्ति किए गए हथियारों का उपयोग करने की अनुमति मिली है। बिडेन प्रशासन ने हाल ही में रूस के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले अमेरिकी निर्मित मिसाइलों पर अपने रुख को ढीला कर दिया, यूक्रेन ने संघर्ष में अमेरिकी एटीएसीएम मिसाइलों के अपने पहले इस्तेमाल की रिपोर्ट दी।

जवाब में, रूस ने मिसाइलों और ड्रोन के साथ यूक्रेन के ऊर्जा बुनियादी ढांचे पर हमलों को तेज कर दिया है। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कीव में निर्णय लेने वाले केंद्रों के खिलाफ एक नई मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, ओरेश्निक का उपयोग करने की धमकी भी दी है।

मूर ने सहयोगियों को यूक्रेन के लिए अपने समर्थन में कमजोर होने के खिलाफ आगाह किया, यह कहते हुए कि यूक्रेन का समर्थन न करने की कीमत काफी अधिक होगी। उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की टिप्पणियों की आलोचना की जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि वह यूक्रेन पर रूस को क्षेत्र छोड़ने के लिए दबाव डालकर युद्ध को समाप्त कर सकते हैं।

मूर ने चेतावनी दी कि अगर रूस यूक्रेन को वश में करने में सफल हो जाता है, तो यह ईरान और उत्तर कोरिया जैसे अन्य देशों को प्रोत्साहित करेगा और साथ ही रूस और चीन के बीच संबंधों को मजबूत करेगा। उन्होंने अमेरिकी-ब्रिटिश खुफिया गठबंधन की स्थायी ताकत में विश्वास व्यक्त किया, जिसके बारे में उनका मानना ​​है कि इतिहास में दोनों राष्ट्रों के लिए सुरक्षा को बढ़ाया है।

‘AAP से नहीं होगा गठबंधन, सभी 70 सीटों पर उतारेंगे उम्मीदवार’, दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का एलान

कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में भाग लेने के बाद देवेंद्र यादव ने दिल्ली चुनाव के लिए पार्टी के सीएम चेहरे और गठबंधन की संभावनाओं पर बात की। उन्होंने कहा हम पहले से कभी घोषणा नहीं करते। हम सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हमारे जीतने के बाद हमारा नेता चुना जाता है। दिल्ली में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। यहां पर कोई गठबंधन नहीं होगा।

दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने दिल्ली में किसी भी गठबंधन से इनकार किया।

एएनआई, नई दिल्ली। अगले साल की शुरुआत में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस प्रदेश प्रमुख देवेंद्र यादव ने शुक्रवार को कहा कि पार्टी सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उनका किसी भी पार्टी से कोई गठबंधन नहीं होगा।

शुक्रवार को यहां कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में भाग लेने के बाद देवेंद्र यादव ने दिल्ली चुनाव के लिए पार्टी के सीएम चेहरे और गठबंधन की संभावनाओं पर एएनआई से बात की। उन्होंने कहा, “हम पहले से कभी घोषणा नहीं करते। हम सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। हमारे जीतने के बाद हमारा नेता चुना जाता है। दिल्ली में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। यहां पर कोई गठबंधन नहीं होगा।”

लोग आप और BJP के ‘कुशासन’ से ‘नाखुश’: देवेंद्र यादव

कांग्रेस की दिल्ली न्याय यात्रा के चौथे चरण का नेतृत्व करने वाले देवेंद्र यादव ने कहा कि लोग आप और भाजपा के ‘कुशासन’ से ‘बहुत नाखुश’ हैं। उन्होंने कहा, “वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही है। गरीबों को राशन कार्ड नहीं मिल रहा है। सड़कें क्षतिग्रस्त हैं। प्रदूषण नियंत्रण से बाहर हो गया है। युवा बेरोजगार हैं। महिलाएं महंगाई के कारण निराश हैं। AAP ने सिर्फ दिखावे के लिए मोहल्ला क्लिनिक खोले हैं। यह केजरीवाल मॉडल है।”

प्रियव्रत सिंह को ‘वॉर रूम’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया

इस बीच, कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव के लिए पार्टी नेता प्रियव्रत सिंह को ‘वॉर रूम’ का अध्यक्ष नियुक्त किया है। इस नियुक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मंजूरी दे दी। दिल्ली में लगातार 15 वर्षों तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस ने पिछले दो विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन किया है और एक भी सीट जीतने में असफल रही है। इससे पहले, कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की थी कि वह हाल ही में संपन्न महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में अपने खराब प्रदर्शन के बाद अपनी कार्य समिति की बैठक करेगी।

बीजेपी घोषणापत्र समिति की बैठक 25 नवंबर को हुई

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और आप ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इससे पहले, दिल्ली बीजेपी घोषणापत्र समिति की बैठक 25 नवंबर को पार्टी नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी की अध्यक्षता में हुई थी। यह बैठक महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हालिया जीत के बीच हो रही है।

लोग दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनाएंगे: सचदेवा

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने विश्वास जताया कि पार्टी राष्ट्रीय राजधानी में भी इसी तरह की जीत हासिल करेगी। उन्होंने कहा, “पीएम मोदी का संबोधन दिल्ली के बीजेपी कार्यकर्ताओं में जोश भर देता है। अब समय आ गया है कि दिल्ली की जनता उन लोगों को करारा जवाब दे, जो दिल्ली को बर्बाद कर रहे हैं। जनता स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त दिल्ली चाहती है। महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद लोग दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार चुनेंगे। आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भारी समर्थन मिलेगा।”

Ajmer Sharif Dargah News : अजमेर शरीफ दरगाह विवाद गरमाया, शिव मंदिर के दावे के बाद असदुद्दीन ओवैसी तक भड़के, जानें अब तक क्या क्या हुआ

Ajmer Dargah Controversy : अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने की याचिका ने भारी विवाद खड़ा कर दिया है। हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से दायर याचिका को कोर्ट ने मंजूर किया है। इसके बाद विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक संगठनों ने विस्तृत प्रतिक्रिया दी है, अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित की गई है।

अजमेर शरीफ दरगाह विवाद।

अजमेर : विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर दरगाह को महादेव मंदिर घोषित करने को लेकर जमकर बवाल छिड़ा हुआ है। न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में भी इस विवाद से पारा उबाल पर है। इस विवाद की शुरुआत हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की एक याचिका से हुई, जहां उन्होंने अजमेर दरगाह को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने की मांग की। इसको लेकर अजमेर की अदालत ने 27 नवंबर को इस याचिका के आधार पर दरगाह के सर्वेक्षण को मंजूरी दी। इसके बाद से इस मुद्दे को लेकर जमकर सियासत जारी है। जानिए आखिर अजमेर दरगाह को लेकर क्या है पूरा विवाद? दोनों पक्ष क्या तर्क दे रहे हैं और अब आगे क्या हो सकता है।

अजमेर दरगाह बनाम शिव मंदिर! आखिर क्या है पूरा विवाद?

अजमेर की विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर बीते दिनों से पूरी देश की सियासत में बवाल मचा हुआ है। इस विवाद की शुरुआत अजमेर के एक सिविल कोर्ट में दायर याचिका से हुई। इसमें हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने बीते 25 सितंबर 2024 को दरगाह के अंदर एक शिव मंदिर होने का दावा किया। इसको लेकर उन्होंने ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के तर्कों का भी हवाला दिया गया है। इसमें अजमेर दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर का जिक्र किया गया है। इसको लेकर 27 नवंबर को कोर्ट ने याचिका मंजूर कर दी। इधर, सिविल जज मनमोहन चंदेल ने अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी कर 20 दिसंबर तक जवाब मांगा है।

दरगाह को लेकर विष्णु गुप्ता के यह तर्क सुर्खियों में

विष्णु गुप्ता की ओर से कोर्ट में पेश याचिका में उन्होंने 168 पेज की ‘अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव‘ किताब के पेज नं. 93, 94, 96 और 97 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जब मैंने हरबिलास शारदा की किताब को पढ़ा, तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि यहां पहले ब्राह्मण दंपती रहते थे। यह दंपती सुबह चंदन से महादेव का तिलक करते थे और जलाभिषेक करते थे।

  • 1. याचिका में पहला तर्क है कि दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजा की बनावट हिंदू मंदिर के दरवाजों की तरह है, इनकी नक्काशी को देखकर यही अंदाजा लगाया जा सकता है, कि दरगाह से पहले यहां हिंदू मंदिर रहा होगा।
  • 2. दरगाह के ऊपरी हिस्से को देखे, तो वहां हिंदू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखती हैं। इनके गुंबदों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि किसी हिंदू मंदिर को तोड़कर यहां दरगाह का निर्माण करवाया गया।
  • 3. विष्णु गुप्ता का तीसरा तर्क, देश में जहां भी शिव मंदिर हैं, वहां पानी और झरने जरूर होते हैं, ऐसा ही अजमेर दरगाह में भी है।

मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों? – औवेसी

अजमेर दरगाह केस मामले पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि दरगाह पिछले 800 सालों से यहीं है। नेहरू से लेकर सभी प्रधानमंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं, लेकिन बीजेपी-आरएसएस ने मस्जिदों और दरगाहों को लेकर इतनी नफरत क्यों फैलाई है? उन्होंने कहा कि पीएम मोदी भी वहां चादर भेजते हैं, फिर निचली अदालतें प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? इस तरह कानून का शासन और लोकतंत्र कहां जाएगा? यह देश के हित में नहीं है। पीएम मोदी और आरएसएस का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। यह सब बीजेपी-आरएसएस के निर्देश पर किया जा रहा है।

सस्ती लोकप्रियता के कारण समाज में ऐसी हरकत – दरगाह दीवान

अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती की इसको लेकर कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई। उन्होंने कहा कि सन 1950 में दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज एक्ट की कवायद चल रही है, उस दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज गुलाम हसन की अध्यक्षता में इंक्वायरी कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी की रिपोर्ट पार्लियामेंट में जमा हुई है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में दरगाह का पूरा इतिहास भी था। रिपोर्ट में कौन सी इमारत दरगाह में कब तामीर की गई और किसने बनाई है इसका उल्लेख हैं, लेकिन रिपोर्ट में दरगाह में किसी भी प्रकार का कोई मंदिर होने का उल्लेख नहीं है। 800 साल में कहीं भी कोई जिक्र नहीं है, केवल सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में कुछ लोग ऐसी हरकत कर रहे हैं, जो देश और समाज के लिए ठीक नहीं है। देश में कब तक हम मंदिर-मस्जिद विवाद में उलझे रहेंगे।

आए दिन मस्जिदों और दरगाह पर मंदिर होने का दावा किया जा रहा है

इस दौरान मिडिया में चिश्ती ने बयान देते हुए कहा कि यह परिपाटी बिल्कुल गलत है। उन्होंने केंद्र सरकार से गुजारिश है कि इसको लेकर कानून बनाया जाए। सन 1947 के पहले के विवाद अलग कर दिया जाए। चिश्ती ने कहा कि आए दिन मस्जिद और दरगाहों में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। इससे एक दूसरे के प्रति कटुता और अविश्वास की भावना बढ़ती है, जो समाज के लिए गलत है। ऐसे लोगों के खिलाफ हम सबको मिलकर खड़ा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले में वकीलों से कानूनी राय लेकर पक्ष रखना होगा, तो वह जरूर रखेंगे।

20 दिसम्बर को होने वाली अगली सुनवाई में क्या ?

अजमेर दरगाह विवाद मामले में 27 नवम्बर को याचिका मंजूर कर ली गई। इसको लेकर 20 दिसम्बर को अब मामले की अगली सुनवाई होगी। इधर, अगली सुनवाई को लेकर सियासत हो या आम, हर जगह हलचल मच गई है कि आखिर अब क्या होगा? वहीं अगली सुनवाई पर कोर्ट के आदेश पर अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे। इधर, सियासत में भी बयानबाजी का दौर जारी है। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा समेत कई नेताओं ने भी इस याचिका विरोध किया।

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