भारत ने 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के प्रत्यर्पण के लिए पाकिस्तान से औपचारिक अनुरोध किया था और पाकिस्तान ने इस अनुरोध की पुष्टि भी की थी, लेकिन पाकिस्तान ने इस ग्लोबल टेरेरिस्ट को भारत को नहीं सौंपा। पाकिस्तान ने इस साल जनवरी में कहा था, कि “पाकिस्तान और भारत के बीच पहले से कोई द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि नहीं है।”

क्या हाफिज सईद कभी नहीं लाया जा सकेगा भारत?
इसका मतलब यह लगाया जा सकता है, कि हाफिज सईद को भारत को सौंपने में पाकिस्तान की कोई दिलचस्पी नहीं है। भले ही भारत-पाकिस्तान के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है, लेकिन दोनों देशों के बीच किसी व्यवस्था के जरिए प्रत्यर्पण संभव हो सकता है।
इस साल जनवरी में भारत ने हाफिज सईद को सौंपने के लिए कहा था और वह पहली बार नहीं था, जब भारत ने पाकिस्तान से सईद के प्रत्यर्पण के लिए ऐसा अनुरोध किया था। पाकिस्तान लगातार सईद को सौंपने से बचता रहा है।
पाकिस्तान दलील देता है, कि उसने हमेशा आतंकवाद विरोधी नीति अपनाई है, जिसके तहत वह या तो आतंकी खतरे को बेअसर करेगा या फिर आतंकवादियों को अन्य राज्य-विरोधी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। लेकिन, पाकिस्तान ने ऐसा कभी नहीं किया है। और इस बैकग्राउंड से देखने पर, यह माना जा सकता है, कि पाकिस्तान के पास लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के लिए स्पष्ट रूप से बड़ी योजनाएं थीं।
सईद पर 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम है, उस पर अमेरिका और भारत ने आतंकी गतिविधियों और अपहरण में शामिल होने का आरोप लगाया है, फिर भी उसे एक पाकिस्तानी नागरिक की तरह बुनियादी आज़ादी मिली हुई है। उनका “चैरिटी संगठन”, जमात-उद-दावा (JuD), पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है।
आतंकवादियों को लेकर क्या है पाकिस्तान की नीति?
हाफिज सईद को पाकिस्तान में आतंकवादियों को फंडिंग के लिए 78 सालों की सजा मिली है, लेकिन ऐसा सिर्फ अमेरिकी दबाव की वजह है और ऐसी रिपोर्ट है, कि वो पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी ISI की सुरक्षा में है।
लिहाजा, हाफिज सईद के साथ पाकिस्तान का जो रवैया है, उस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है, कि पाकिस्तान अपने सुरक्षा खतरों को विभिन्न समूहों में बांटकर रखता है। एक वर्ग में वे लोग शामिल हैं, जो सिर्फ पाकिस्तान के लिए खतरा हैं, दूसरा वर्ग वो, जिसमें पाकिस्तान और अमेरिका दोनों के लिए खतरा हो सकते हैं, या फिर वो, जो चीन के लिए खतरा पैदा करते हैं, और अंत में, वे लोग हैं, जो भारत जैसे अन्य देशों के लिए खतरा हैं।
पाकिस्तान के लिए हाफिज सईद अंतिम श्रेणी में आता है। सईद ने हिंसा से दूर रहने का दावा करके एक सामाजिक-राजनीतिक अभिनेता के रूप में अपनी छवि को फिर से बनाने और सुधारने की कोशिश की है। शुरू में, यह माना गया था, कि अफगानिस्तान से अमेरिका के हटने पर, हाफिज सईद को पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में सीमा पार पाकिस्तान की ओर आतंकवादियों के बीच तनाव को कम करने के लिए उपयोगी बनाया जाएगा।
उस समय ऐसा माना गया था, कि सईद एक आदर्श उम्मीदवार था, जो न केवल भारत विरोधी था, बल्कि एक कट्टर पाकिस्तानी देशभक्त भी था, जो पाकिस्तान के खिलाफ कभी भी अराजकतावादी गतिविधियां नहीं करेगा।
मौलाना होने के नाते हाफिज ने लश्कर-ए-झांगवी और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे अन्य आतंकवादी समूहों के साथ बातचीत करने के मौके भी बनाए। हालांकि, हाल के वर्षों में, ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तानी योजनाएं बहुत सफल नहीं रहीं, खासकर टीटीपी के संबंध में और टीटीपी अब पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है।
सईद कश्मीर में भारत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहा है, और वो अभी भी भारत के खिलाफ जितना जहर बो सकता है, उतना किसी और पाकिस्तानी आतंकी में दम नहीं है, और इसीलिए, वो पाकिस्तान के लिए काफी उपयोगी है। इसलिए, यह बहुत कम संभावना है, कि पाकिस्तान सईद को बेअसर करेगा या उसके खिलाफ कार्रवाई करेगा, जब तक कि वह पाकिस्तानी सरकार के लिए उपयोगी बना रहे और गज़वा-ए-हिंद के प्रयासों को भी मजबूत करे।

हाफिज सईद का रहस्य उजागर
हाफिज सईद का जन्म पाकिस्तान के सरगोडा में हुआ था। उसे हाफिज नाम इसलिए मिला, क्योंकि उसने कम उम्र में ही कुरान को याद कर लिया था। अपने भाई-बहनों और पिता की तरह, उसने इस्लामी अध्ययन और अरबी भाषा में दो मास्टर डिग्री हासिल की।
निदा-ए-मिल्लत पत्रिका के मुताबिक, सईद ने 1970 में जमात-ए-इस्लामी के चुनाव अभियान में भाग लिया और 1971 में ढाका के पतन के बाद, उसने पार्टी से अलग होने का फैसला किया।
जनरल जिया उल हक ने सईद को इस्लामिक विचारधारा परिषद में नियुक्त किया और बाद में उसने पाकिस्तान के इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय में इस्लामी अध्ययन के शिक्षक के रूप में पढ़ाया। 1980 के दशक में, उसे दो सऊदी शेखों से मिलवाया गया जो सोवियत-अफगान युद्ध में शामिल थे।
दो शेखों से बहुत प्रभावित होने के कारण, हाफिज ने अफगानिस्तान में मुजाहिदीन की लड़ाई का समर्थन किया। उसके जिहादी करियर में महत्वपूर्ण मोड़ 1987 में आया, जब उसने अब्दुल्ला अज़्ज़ाम और प्रो. जफर इकबाल सरदार के साथ मिलकर मरकज दावा-वल-इरशाद की स्थापना की। यह समूह जमीयत अहल-ए-हदीस से निकला था, जो राजनीतिक प्रकृति का था।
आखिरकार, मरकज दावा-वल-इरशाद के जरिए 1987 में कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का उदय हुआ। पाकिस्तानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने भारत को अस्थिर करने के लिए जम्मू और कश्मीर में अस्थिरता फैलाने के लिए LeT को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
तब से, सईद भारत के खिलाफ कई आतंकी हमलों में शामिल रहा है, जैसे कि लाल किला हमला (22 दिसंबर 2000), रामपुर हमला (1 जनवरी 2008), 26/11 मुंबई हमला (26-28 नवंबर 2008) और साथ ही जम्मू और कश्मीर के उधमपुर में बीएसएफ काफिले पर हमला (5 अगस्त 2015)।
हाफिज मुहम्मद सईद कई मामलों में आरोपी है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा उसकी जांच की जा रही है। सईद के खिलाफ अन्य मामले भी दर्ज हैं, जिनमें आतंकी फंडिंग के मामले भी शामिल हैं।
सईद की भागीदारी एक महिला संगठन, दुख्तरान-ए-मिल्लत (डीएम) के साथ देखी गई है। इस संगठन को एक नरम आतंकवादी संगठन माना जाता है, जिसमें यह मुख्य रूप से अपने जिहादी विचारधाराओं को धमकाने या लागू करने के लिए गैर-कानूनी साधनों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।
हालांकि, चूंकि संगठन ने पूरी तरह से हथियारों का सहारा नहीं लिया है, इसलिए उन्हें एक नरम आतंकवादी संगठन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस समूह का गठन 1987 में हुआ था और यह कश्मीर मामले को एक धार्मिक मुद्दा मानता है तथा इसके लिए यह भारत पर जिहाद का आह्वान करता है।

पाकिस्तान में हाफिज सईद का क्या होगा?
पाकिस्तान में सईद की गिरफ्तारी और सजा, आतंकवाद पर तथाकथित पाकिस्तानी कार्रवाई के बारे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खुश करने और समझाने के लिए एक दिखावा से कम नहीं है।
हाफिज मुहम्मद सईद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और रूस ने आतंकवादी के रूप में नामित किया है, फिर भी भारत न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है। वह भारत की एनआईए मोस्ट वांटेड लिस्ट में है।
एक विडंबना ये भी रहा, कि इस साल पाकिस्तान में हुए संसदीय चुनाव में हाफिज सईद का बेटे तल्हा सईद भी लाहौर के NA-127 से उम्मीदवार बना, हालांकि ये अलग बात है, कि उसे इमरान खान की पार्टी के एक उम्मीदवार ने हरा दिया, लेकिन उसका चुनाव में उतरना ही पाकिस्तान के चरित्र को उजागर करता है। लिहाजा, इस बात की उम्मीद लगभग नहीं की जा सकती है, कि हाफिज सईद का प्रत्यर्पण किया जाएगा, बल्कि पाकिस्तान, उसके लिए संकट मोचक बना रहेगा।
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