पहली बार, चीन तिब्बत में हाइड्रोपावर डेम्स का निर्माण कर रहा है, जिसका मकसद एशिया की प्रमुख नदियों के स्रोतों को टारगेट करना है। रिपोर्ट में ऊपरी माचू नदी पर कम से कम तीन महत्वपूर्ण बांधों के निर्माण की बात कही गई है। चीनी भाषा में हुआंग हे के नाम से जानी जाने वाली माचू नदी को “चीन का शोक” भी कहा जाता है, क्योंकि ये नदी कई बार विनाशकारी बाढ़ की वजह बनी है।

यह क्षेत्र, जो पहले से ही भूकंप आने को लेकर अस्थिर रहा है, और जो जलवायु परिवर्तन के लिहाज से काफी संवेदनशील रहा है, वहां बांधों का निर्माण तबाही ला सकता है, बांधों का निर्माण काफी जोखिम पैदा करता है, फिर भी चीन इस नाजुक वातावरण में बांध बनाने का काम जारी रखे हुआ है, जो बताता है, कि दुनिया के लिए ये देश कितना ज्यादा खतरनाक बन चुका है।
पीली नदी कितनी महत्वपूर्ण है?
पीली नदी, जिसे तिब्बत में माचू नदी कहा जाता है, वो उत्तरी चीन में फैली एक महत्वपूर्ण जलमार्ग है। चीन में इसे “मां नदी” के नाम से जाना जाता है, यह चीन की दूसरी सबसे लंबी नदी है और दुनिया भर में छठी सबसे लंबी नदी प्रणाली है।
पीली नदी, जिसे अक्सर “दुनिया की सबसे गंदी नदी” कहा जाता है, वो अपनी उच्च तलछट सामग्री के लिए कुख्यात है। इस भारी तलछट निर्माण ने इसे एक और उपनाम दिया है, “लटकती नदी”, क्योंकि जमा हुई गाद, नदी के किनारों को काफी ज्यादा भारी बनाती है।
समय के साथ, इस जमा गाद ने नदी को अपना रास्ता बदलने के लिए मजबूर किया है, जिसके परिणामस्वरूप बार-बार और विनाशकारी बाढ़ आती है। नदी का एक तिहाई से ज्यादा मार्ग तिब्बत में है, जहां यह उत्तरी तिब्बत में अमदो क्षेत्र में लगभग 2,000 किलोमीटर बहती है। ‘बायन हर पर्वत’ – तिब्बत-किंगहाई पठार (15,000 फीट) से उत्पन्न, पीली नदी सात चीनी प्रांतों से होकर पूर्व की ओर बहती है और किंगहाई, गांसु, निंगक्सिया, इनर मंगोलिया, शानक्सी, शांक्सी, हेनान और शेडोंग क्षेत्रों से निकलती है।
पीली नदी में तीन अलग-अलग धाराएं हैं: ऊपरी धारा जो पहाड़ी इलाके से होकर बहती है, मध्य धारा जो पठार से होकर बहती है, और निचली धारा जो निचले मैदान से होकर बहती है। भारी मात्रा में तलछट और अप्रत्याशित मार्ग के संयोजन की वजह से पीली नदी एक महत्वपूर्ण जलमार्ग और पर्यावरणीय खतरा दोनों बन गई है।
नदी के ऊपरी हिस्से में जलविद्युत बांध खतरनाक क्यों हैं?
Climate Change: चीनी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है, कि तीव्र मानवीय गतिविधि और प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव ने पीली नदी के ऊपरी इलाकों में महत्वपूर्ण इको सिस्टम और पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। इन मुद्दों ने क्षेत्र की इको-सिस्टम सुरक्षा और बिजली आपूर्ति को खतरे में डाल दिया है।
बांधों की एक श्रृंखला, या फिर एक झरना बनाने के लिए और पानी को अगले बांध के तल तक पहुंचने के लिए जल स्तर को काफी ऊपर उठाना आवश्यक है। यह एक बार तेज गति से बहने वाली पहाड़ी नदी को मानव निर्मित झीलों की एक श्रृंखला में बदल देता है, जिनमें से प्रत्येक अपने ऊपर की ओर पड़ोसी बांध के खिलाफ दबाव वाली स्थित होती है।
लिहाजा, जलस्तर को बढ़ाने के लिए इन बांधों को दुनिया के सबसे ऊंचे बांधों में से एक होना चाहिए, जो 300 से 400 मीटर ऊंचे हों। यदि एक बांध फेल हो जाता है, तो एक भयावह प्रतिक्रिया हो सकती है और एक के बाद एक सभी बांध ढह सकते है, जिससे पानी की सुनामी आ सकती है।
पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र के लिए खतरा: तिब्बत में ऊंचाई पर बांध बनाने से एक और खतरा पैदा होता है, वो है पिघलता हुआ पर्माफ्रॉस्ट। तिब्बत का पर्माफ्रॉस्ट क्षेत्र आर्कटिक के बाहर सबसे बड़ा है, और इस अस्थिर जमीन पर निर्माण एक बड़ी चुनौती पेश करता है। चूंकि हर गर्मियों में पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है और सर्दियों में फिर से जम जाता है, इसलिए बदलती हुई उप-भूमि बांध की स्थिरता को खतरे में डाल सकती है।
इसके अलावा, तिब्बती पठार के 1.6 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मीथेन- ग्रीनहाउस गैस के रूप में कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली- वातावरण में उत्सर्जित होती है। चीन के पास इन मीथेन उत्सर्जनों से निपटने के लिए कोई स्पष्ट नीति या उपाय नहीं हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और भी गंभीर हो रहा है।
कोयला आधारित बिजली संयंत्र: चीन खुद को स्वच्छ ऊर्जा के लिहाज से काफी आगे बताता है, फिर भी यह दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है। 2024 की पहली छमाही में, चीन ने नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के निर्माण में दुनिया का नेतृत्व किया।
अक्षय ऊर्जा स्रोतों की मौजूदगी के बावजूद, रिपोर्ट से पता चलता है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्र क्षेत्र के पावर ग्रिड पर हावी हैं, जो जीवाश्म ईंधन पर चीन की लगातार निर्भरता को उजागर करता है। वहीं, बड़े पैमाने पर जलविद्युत परियोजनाओं की वजह से स्थानीय आबादी को क्षेत्र से भागना पड़ सकता है और पूरे क्षेत्र के जलवायु पर गंभीर असर पड़ता है।
इन प्रोजेक्ट्स से स्थानीय तिब्बती समुदायों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। रिपोर्ट के अनुसार, माचू नदी पर बना पहला बड़ा बांध यांगखिल (यांग्कू) हाइड्रोपावर स्टेशन ने पूरे तिब्बती समुदाय को तबाह कर दिया है। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, घरों को जबरन ढहा दिया गया और एक मठ को भी नष्ट कर दिया गया, जिसे ध्वस्त करने से पहले संरक्षित विरासत सूची से हटा दिया गया था।

तिब्बती नदियों पर चीन का कब्जा
इससे पहले, जनवरी 2023 में, सैटेलाइट तस्वीरों ने पुष्टि की थी, कि चीन तिब्बत में माबजा जांगबो नदी पर एक नया बांध बना रहा है, जो भारतीय गंगा नदी की एक सहायक नदी है। यह नदी भारत, नेपाल और तिब्बत के त्रि-जंक्शन के पास स्थित है। मई 2021 में शुरू हुआ बांध का निर्माण इस त्रि-जंक्शन से लगभग 16 किमी उत्तर में, उत्तराखंड के कालापानी क्षेत्र के सामने स्थित है।
इस डेवलपमेंट ने नदी के निचले हिस्से के देशों, भारत और नेपाल के लिए महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा कर दी हैं, खासकर तब जब चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्षेत्रों में अपने सैन्य और दोहरे उपयोग वाले बुनियादी ढांचे को बढ़ा रहा है। जैसा कि टर्कुइज़ रूफ रिपोर्ट द्वारा उजागर किया गया है, पीली नदी के ऊपर की ओर चीन की जलविद्युत परियोजनाओं का भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जो कंबोडिया, वियतनाम, थाईलैंड, लाओस और म्यांमार जैसे देशों के किसानों और मछुआरों को प्रभावित करता है।
इन परियोजनाओं के दूरगामी परिणाम संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित बुनियादी ढांचे के विकास के जोखिमों को उजागर करते हैं। तिब्बत के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में यह आक्रामक बांध निर्माण, चीन की बुनियादी ढांचा विकास के पागलपन को दिखाता है, जो तबाही के रास्ते को खोलती है।
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