केरल में 1,500 सरकारी कर्मचारियों ने धोखाधड़ी से उठाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राज्य सरकार करेगी यह कार्रवाई

Kerala: केरल में लगभग 1,500 सरकारी कर्मचारी जिनमें राजपत्रित अधिकारी और कॉलेज प्रोफेसर शामिल हैं। उन्हें सामाजिक सुरक्षा पेंशन का धोखाधड़ी से लाभ उठाते हुए पाया गया है। यह पेंशन मुख्य रूप से गरीब और वृद्ध व्यक्तियों के लिए निर्धारित है। राज्य के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल ने इस मामले में सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश दिए हैं।

इन्फॉर्मेशन केरल मिशन की जांच में हुआ खुलासा

यह धोखाधड़ी इन्फॉर्मेशन केरल मिशन द्वारा की गई जांच में सामने आई है। यह मिशन राज्य की स्थानीय स्व-सरकारी संस्थाओं के डिजिटलीकरण और नेटवर्किंग के लिए काम करता है। इसकी जांच में 1,458 सरकारी कर्मचारियों को पेंशन प्राप्त करते हुए पाया गया। इनमें राजपत्रित अधिकारी, कॉलेज सहायक प्रोफेसर, उच्चतर माध्यमिक शिक्षक और अन्य शामिल हैं।

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फर्जी पेंशनधारियों के विभागवार आंकड़े

सरकारी कर्मचारी धोखाधड़ी से पेंशन का लाभ ले रहे थे। उनमें स्वास्थ्य विभाग के सबसे अधिक 373 कर्मचारी पेंशन लाभार्थी शामिल हैं। इसमें सार्वजनिक शिक्षा विभाग के 224 कर्मचारी, चिकित्सा शिक्षा विभाग के 124 कर्मचारी, आयुर्वेद विभाग के 114 कर्मचारी, पशुपालन विभाग 74 कर्मचारी, लोक निर्माण विभाग के 47 कर्मचारी, तकनीकी शिक्षा विभाग के 46 कर्मचारी, होम्योपैथी विभाग के 41 कर्मचारी, कृषि और राजस्व विभाग के 35-35 कर्मचारी, न्यायपालिका एवं सामाजिक न्याय विभाग के 34-34 कर्मचारी, इंश्योरेंस मेडिकल सर्विसेज के 31 कर्मचारी और कॉलेजिएट शिक्षा विभाग के 27 कर्मचारी भी शामिल हैं।

ब्याज सहित वसूल होगी अवैध रूप से ली गई पेंशन राशि

वित्त मंत्री केएन बालगोपाल ने कहा कि अवैध रूप से ली गई पेंशन राशि, ब्याज सहित, वसूल की जाएगी। दोषियों के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि योग्य व्यक्तियों को उनकी पूरी और सही पेंशन मिले।

सरकार ने निर्णय लिया है कि विभिन्न स्तरों पर नियमित जांच जारी रहेगी। अयोग्य व्यक्तियों को सूची से हटाया जाएगा। योग्य लाभार्थियों को पेंशन वितरण प्रणाली में सुधार किया जाएगा।

62 लाख लाभार्थियों को 1,600 रुपए मासिक पेंशन

केरल सरकार हर महीने लगभग 62 लाख लोगों को 1,600 रुपए की सामाजिक सुरक्षा पेंशन प्रदान करती है। इस घोटाले ने सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

यह घटना न केवल सरकारी संस्थानों की नैतिकता पर सवाल खड़ा करती है। बल्कि यह भी दर्शाती है कि कमजोर वर्गों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कड़ी निगरानी और पारदर्शी प्रक्रियाओं की कितनी आवश्यकता है। सरकार ने इस धोखाधड़ी को रोकने के लिए जो कदम उठाए हैं। वह अन्य राज्यों के लिए भी एक नजीर बन सकता है।

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